चन्द्रशेखर प्रजापति ( स्वतन्त्र पत्रकार व स्तम्भकार ) भले ही प्राचीन काल में मदिरा को सोमरस का नाम देकर अनेक अवसरों पर आनंद उठाने के लिए प्र...
चन्द्रशेखर प्रजापति
( स्वतन्त्र पत्रकार व स्तम्भकार )
भले ही प्राचीन काल में मदिरा को सोमरस का नाम देकर अनेक अवसरों पर आनंद उठाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा हो जोकि मूजवन्त पर्वत से निकलता था और प्राणियों को सुख की अनुभूति कराता था l अब न तो मूजवन्त पर्वत की वह क्षमता रही कि सोमरस निकाल सकें और न ही सुखानुभूति का अहसास कराने की ताक़त l अब आधुनिकता के दौर में सोमरस ने ही दारू का रूप से लिया है और मूजवन्त पर्वत की जगह पर गांव -गांव में धधक रही शराब की भट्ठियाँ और बेगुनाह इंसानों को मौत बांटने का काम कर रही हैं जो पूरे देश के लिए बड़ी समस्या बन चुकी है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड में मौत का मातम कोई नया नहीं है इसके पहले अक्सर देश के कोने कोने से यदा-कदा समाचार मिलते रहे हैं कहीं पर जहरीली शराब से दो-चार मौतें तो कहीं पर दर्जन दो दर्जन एक साथ मारे गए तो कहीं पर मरने वालों की संख्या सौ से ऊपर तक पहुँच जाती है l
किस तरह दारू मौत का कारण बन जाती है ? दरअसल कच्ची शराब को अधिक नशीली बनाने के प्रयास में जहरीली हो जाती है। सामान्यत : इसे बनाने में गुड़, शीरा से लहन तैयार किया जाता है। लहन को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है इसमें यूरिया और बेसर्मबेल की पत्ती डाली जाती है अधिक नशीली बनाने के लिए इसमें ऑक्सिटोसिन मिला दिया जाता है, जो मौत का कारण बनता है l कुछ जगहों पर कच्ची शराब बनाने के लिए पांच किलो गुड़ में 100 ग्राम ईस्ट और यूरिया मिलाकर इसे मिट्टी में गाड़ दिया जाता है यह लहन उठने पर इसे भट्टी पर चढ़ा दिया जाता है। गर्म होने के बाद जब भाप उठती है, तो उससे शराब उतारी जाती है इसके अलावा सड़े संतरे, उसके छिलके और सड़े गले अंगूर से भी लहन तैयार किया जाता है ।
कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाने की वजह से मिथाइल एल्कोहल बन जाता है । इसकी वजह से ही लोगों की मौत हो जाती है। मिथाइल शरीर में जाते ही केमिकल रिएक्शन तेज होता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कुछ लोगों मे यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है ।
उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड प्रांत में बेवजह, बेगुनाह , बेमौत 110 से अधिक लोग जहरीली शराब सेवन करने के कारण मौत का निवाला बन चुके हैं l यह लोग कोई और बल्कि वंचित तबके के ही लोग है l सहारनपुर, शामली , कुशीनगर , हरिद्वार, रुड़की ,मेरठ सहित कई अन्य जगहों पर जहरीली शराब मौत का कारण कहर बनकर टूटी। जिससे बहुत से सुहाग उजड़े हैं , तो कहीं पर किसी को अनाथ कर डाला है, और कहीं किसी मां - बाप की गोद सुनी हुई है। बहरहाल शराब से हुई मौत बड़ी त्रासदी से कम नहीं है जहरीली शराब के कारण हुई मौतों ने एक बार फिर सरकार व पुलिस प्रशासन पर सवाल खड़ा कर दिया है ऐसे में हर बार की तरह इस बार चारों तरफ छापामारी पुलिस गुड न्यूज़ गुड वर्क की सुर्खियां बटोरने के साथ इसे ठंडे बस्ते में पहुंचा देने की आशंकाएं जीवित है। क्योंकि इसके पहले भी इस तरह की मौतों के बाद बहुत से दावे और घोषणाएं की जाती रही है लेकिन परिणाम शून्य ही दिखे ? नतीजन मौते रुकने का नाम नहीं ले रही अवैध रूप से चल रहे कच्ची शराब बनाने का सिलसिला लगातार जारी है उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड में जहरीली शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है ।
हकीकत तो यही है कि इन अकाल मौतों के लिए जितना अवैध शराब माफिया जिम्मेदार है, उतना ही स्थानीय पुलिस प्रशासन और आबकारी विभाग भी। चिंता का विषय यह भी है कि यहां के आस-पास के जिलों में कई वर्षों से जहरीली शराब से लगातार मौतें हो रही हैं। यह क्षेत्र जहरीली शराब पूर्ति में काफी चर्चित रहा है। फिर भी छापेमारी करके इसे क्यों नहीं बंद किया गया और आखिर कैसे एक बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो गई ? जाहिर सी बात है, सिस्टम में कहीं खोट थी और समाज की सुरक्षा का दायित्व रखने वाले अधिकारी इसके जिम्मेदार नहीं है तो फिर कौन ?
उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब से मौतें पहली बार नहीं हुई हैं। इस प्रकार की दर्जनों घटनाओं में हजारों लोगों की जानें पहले भी जा चुकी हैं। मई 2018 में 19 लोगों को कानपुर देहात में जहरीली शराब निगल लिया । जनवरी 2018 बाराबंकी में 9 लोगों की कच्ची शराब के कारण मौतें हुई । अगस्त 2017 आजमगढ़ जिले में जहरीली शराब से दो दर्जन से अधिक लोग मर गए। वर्ष 2016 एटा में दो दर्जन मौतें हुई। साल 2015 लखनऊ व उन्नाव में 42 से अधिक मौतें हुई थी । 2013 मुबारकपुर क्षेत्र में जहरीली शराब से 47 लोग मौत का निवाला बने। वर्ष 2011 वाराणसी में 12 लोगों की मौतें हुई थी। इसके पूर्व बरदह उन्नाव के इरनी गांव में भी 11 लोग जहरीली शराब से मारे गए थे।
जहरीली शराब से अकाल मौतें उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरा भारत इसकी चपेट में रहा है। देश के अन्य राज्य भी इससे अछूते नहीं है। वर्ष 1981 कर्नाटक के बंगलुरु में 300 से अधिक लोग जहरीली शराब पीने से मौत का निवाला बने थे। वर्ष 1992 उड़ीसा के कटक में 200 लोग जहरीली शराब के कारण मारे गए थे। पश्चिम बंगाल में भी वर्ष 2011 में लगभग 200 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी । वर्ष 2014 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में विषैली शराब के कारण 87 लोगों का इंतकाल हुआ था 2015 में भी सौ लोग मारे थे । कर्नाटक वर्ष 2008 में 180 लोगों की मौतें हुई। प्रधानमंत्री के अपने राज्य गुजरात में भी 2009 में 135 से ज्यादा को जहरीली शराब के कारण ही मौत ने निगल लिया था।
आखिर कैसे ? क्रय - विक्रय जैसे व्यवसाय से जुड़ा कारोबारियों का धंधा प्रशासन के बिना गठजोड़ के जहरीली शराब बिक जाती हैं? कहीं न कहीं तो मिलीभगत होगी। इन गरीबों को सस्ते में मौत की दवा बेचकर शराब कारोबारी और पुलिस विभाग के बीच भले ही बंदरबांट से जेब भर जाती हो। लेकिन जहरीली शराब कांड से किसी अपना परिवार सहारा खो गया और किसी के मां-बाप से उनकी संतान हमेशा के लिए दूर हो गई। यदि इन कारोबारियों पर कभी कोई ठोस कार्रवाई की गई होती तो आज यह मौत का कोहराम परिवार के लोगों को देखने को न मिलता। पहले शराब माफिया गांवों में कारोबार चोरी छिपे करते थे, लेकिन अब खुलेआम वे मौत का तांडव मचा रहे हैं। गांव-गांव में अनैतिक रूप से अवैध जहरीली शराब बनाई और बेची जा रही है। बेरोजगारी के चलते शराब बनाना कुटीर उद्योग की तरह गॉव गॉव में पॉव पसार चुका है परन्तु इसके जिम्मेदार समस्या के उन्मूलन हेतु जन मुसीबत रूपी पेड़ की जड़ को काटने के बजाय पत्तियां तोड़ने में मशरूफ है जिसके कारण गॉव गॉव में पहुँच चुकी शराब जैसी आधुनिक समस्या का निदान हो पाना दुरूह ही नहीं अपितु असम्भव सा है इसलिए जिम्मेदारों जड़ पर करारा प्रहार कर इस समसामयिक समस्या का समाधान खोजने में अपनी ऊर्जा निवेश करने में सकारात्मक कदम उठायें l
लेखक परिचय
नाम चंद्रशेखर प्रजापति (स्तंभकार व स्वतंत्र पत्रकार)
ग्राम सरौरा खुर्द ,पोस्ट सरौरा कला( कमलापुर)
तहसील सिधौली
जिला सीतापुर
उत्तर प्रदेश पिन कोड 26 13 02
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