1.स्त्री होती है वसंत ************** स्त्री होती है वसंत फूटती रहती है उनमें नई उम्मीदों के मोजर शीत सा मौन सहते हुए भी देती है हमेशा...
1.स्त्री होती है वसंत
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स्त्री होती है वसंत
फूटती रहती है उनमें
नई उम्मीदों के मोजर
शीत सा मौन सहते हुए भी
देती है हमेशा
अपनी ममता और करुणा की गरमाहट
संशय और क्रोध की धुंध को
अपने विश्वास से छांटते हुए
निकाल ही लेती है
संभावनाओं का सूरज
और फिर छाने लगता है
उनके प्रेम का वासंती फूल
चंहुओर...
2. आईना
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आईना तो देखा होगा तुमने
हाँ! शायद अपने बाह्य स्वरूप को देखा होगा
हुलिया तो ठीक किया ही होगा
बालों को भी अच्छे से संवारा होगा तुमने
फिर कुछ देर तक...
अपने चेहरे को भी निहारा होगा तुमने
अपने वस्त्र को ठीक करते हुए
स्वयं पे इतराये भी होंगे तुम
पर उस अंतर्मन का क्या
जो तुम्हारे अंदर समाया है
तुमने सोचा कभी कि...
एक आईना वहाँ भी लगा दूँ
जो सब मोह माया से परे
एक कोने में छुपा पड़ा है
उसको भी पहचान लूँ
क्या अंतरात्मा की बात कभी मानी तुमने?
जो झूठ से परे
सच्चाई की मिसाल बन
आज भी तुम्हारे रोम रोम में विद्यमान है?
मगर नहीं..
तुमने किसी की बात नहीं मानी..
स्वीकारा वही
जो मन फुसलाने वाली बातें है
जिसे सुन दिल खुश हो जाए
जिससे भ्रमित रहे दिलो दिमाग
पर क्या तुमने अपने आप को जान लिया?
ज़िन्दगी के इस मकड़जाल से निकल
खुद को क्या पहचान लिया..?
कलयुग के इस काल में
दूसरों की तारीफ़ों से
अत्यन्त सुख तो पा लिया होगा तुमने
पर..क्या यही है जीवन का असली सुख?
क्या यही है ज़िन्दगी की सार्थकता?
क्या यही है जीवन जीने का मकसद?
क्या यही हो तुम
जो तुम आईने में देख रहे हो
अगर हाँ..
तो कुछ रह गया है आईने के पीछे
ज़रा एक बार फिर झाँक कर देखो
शायद अभी नादाँ हो तुम...
3. बारिश की बूँदे
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जब चेहरे को छूती है
हाथों को चूमती है
सूखी मिट्टी पे
जब अपनी बूँदे बरसाती है
सौंधी खुशबू आती है
ना जाने कौन सी भाषा बोलती है
जो मन को छू जाती है
कुछ को ये बारिश
सिर्फ पानी ही लगता है
मगर मेरे लिए ये बूँदें
एक प्यारी सी धुन बन जाती है
उसी धुन पे मेरा मन मयूर
जब मगन हो के नाच उठता है
तो जीवन एक प्यारा सा संगीत
एक खूबसूरत सा चलचित्र बन जाता है
जिसमें मैं होती हूँ, तुम होते हो
और होता है ये मदमाता गुनगुनाता सावन...!!
4.याद
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दिल के आईने पे तेरा चेहरा
आज भी मुस्कुराता है...
दूर तुम हुए तो क्या
दिल आज भी तेरा कहलाता है...
तेरी न हो पाई इसका गम नहीं
पर चाहत के समंदर में यह
आज भी गोते लगाता है...
जी लो जी भर के
ये हौले से कह जाता है
जानती हूँ ये दुनिया की रस्मे कसमें
हमें मिलने नहीं देंगी
फिर भी ऐ दोस्त!
सावन के इस मौसम में
दिल तुझे ही याद किये जाता है..
5.शिक्षक
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शिक्षक वो है
जिसमें पूरा संसार समाहित है
हमारा जीवन गुरु के बिना अपूर्ण है
जीवन के विभिन्न चरणों में
गुरु की महत्ता बढ़ती जाती है
जन्म से अगर देखें तो
हमारी प्रथम गुरु माँ
जिसका साथ
दूसरों से नौ महीने पहले से ही रहता है
जो जान जाती है सबसे पहले ही
अपने बच्चे की सारी तोतली भाषा को
समझ लेती है उसकी अनकही बातों को भी
जो सीखा देती है
नन्हे डगमगाते कदमों को
ज़मीन पकड़ कर चलना
जिसकी वाणी में समाहित हैं
वेदों की ऋचाएँ
उपनिषद का ज्ञान
और गीता के उपदेश
जिसकी ममता के आंचल में है
सारे दर्द छुपा लेने की क्षमता
और जो सीखा देती है
मौन की भी परिभाषा..
हमारे दूसरे गुरु ...पिताजी
जो सिखाते हैं हर उदासी को
हँसी में तबदील करने का हुनर
जो बताते हैं बारीक गुर
मुश्किलों को आसान बनाने का
और जो खड़े रहते हैं
बरगद की छांव की तरह
हमें ज़िन्दगी की धूप से बचाने के लिए..
फिर हमारा प्रवेश होता है
विद्यालय रूपी मंदिर में
जहाँ होते हैं हमारी ज़िंदगी को
एक नई दिशा, नए उद्देश्य देने वाले
सर्वज्ञ ज्ञानी ..,
जो देते हैं हमें
विभिन्न विषयों का ज्ञान
जो कराते है बोध सही और गलत का
जो कराते हैं अवगत दुनिया के दांव पेंच से हमें
जो कराते है विकसित हमारी अंतर्दृष्टि को
और जो कभी प्यार भरी थपकी
और कभी डांट से
बता जाते हैं अपने लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग भी
नमन है ऐसे गुरुओं को
जिनसे बंध जाती है अपनेपन की डोर
एक ऐसा पवित्र रिश्ता
जो न कभी अलग हो सका है और न कभी हो पायेगा
हममें झलकेगा उनका आत्मविश्वास
उनका ज्ञान और उनकी सिखाई बातें...
6.जल्दी आ जाया करो मेरे पास
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जल्दी आ जाया करो मेरे पास
अब मन नहीं लगता है कुछ ख़ास
याद आते है वो पल
जिसमें हम होते है
और होती है खुशियों की सौगात..
अब जल्दी आ जाया करो मेरे पास
एक तुम ही हो मेरी दोस्त,
जिससे बाँटती हूँ अपने जज़्बात
अब गैरों पे कहाँ रहा भरोसा
अब सच्चा सा लगता है अपना रिश्ता
जानती हूँ कभी कभी करती हूँ बकवास
मगर क्या करूँ
एक तुम ही तो हो मेरे लिए खास
बस यादों में है हमारे खुशियों के पल
अब सब्र को नहीं है मेरे पास देने के लिए जवाब
अब जल्दी आ जाया करो मेरे पास
दूर जाने से लगता है डर
आँखों में आंसू को भर
कह देती हूँ अलविदा
कि तुम आ जाया करोगी मेरे पास
बार बार हर बार
दिलाती हूँ यही एहसास
ज़्यादा दूर नहीं हो बस
फ़ोन मिलाने तक की है दूरी
मगर दिल मानता नहीं
चाहिए उसको तुम्हारा आँचल
जिसमें छुप के सोना
आज भी लगता है अनोखा...
बच्चों की तरह ज़िद करना
और तुम्हारा मान जाना
खलता है बार बार
क्योंकि नहीं है कोई और
जिससे करती हूँ बातें हज़ार
जो समझ सके मेरे ख्यालात
कहने को तो बातें है अनंत
लेकिन ज़्यादा नहीं बचे है अल्फ़ाज़
बस यही कहना है हर बार
की अब मन नहीं लगता है कुछ ख़ास
अब देर न करो माँ
जल्दी आ जाया करो मेरे पास...
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परिचय
नाम- आस्था दीपाली
पिता का नाम- श्री माधवेन्द्र प्रसाद
माता का नाम- डॉ आरती कुमारी
जन्मतिथि व स्थान- 06/11/1999, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)
पता-के- 69/4, मैदानगढ़ी रोड, छत्तरपुर, नई दिल्ली
ईमेल-aasthadeepali909@gmail.com
शिक्षा- बी.ए. हिंदी(प्रतिष्ठा) में अध्यनरत
शिक्षण संस्थान - लेडी श्री राम कॉलेज फ़ॉर विमन, नई दिल्ली
प्रकाशन- जादू की छड़ी(बाल कविता संग्रह)
सम्मान-
भारत स्काउट एवं गाइड में राज्य पुरस्कार, श्री सम्मान 2011, उद्भव कला सम्मान 2012, बिहार विकास रत्न अवार्ड 2012 , दैनिक भास्कर प्रतिभा सम्मान 2016, अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 2019
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