- राजेश माहेश्वरी परिचय राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा ह...
- राजेश माहेश्वरी
परिचय
राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा हो व मंथन कविता संग्रह, रात के ग्यारह बजे एवं रात ग्यारह बजे के बाद ( उपन्यास ), परिवर्तन, वे बहत्तर घंटे, हम कैसे आगे बढ़ें एवं प्रेरणा पथ कहानी संग्रह तथा पथ उद्योग से संबंधित विषयों पर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
वे परफेक्ट उद्योग समूह, साऊथ एवेन्यु मॉल एवं मल्टीप्लेक्स, सेठ मन्नूलाल जगन्नाथ दास चेरिटिबल हास्पिटल ट्रस्ट में डायरेक्टर हैं। आप जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एवं इंडस्ट्रीस् के पूर्व चेयरमेन एवं एलायंस क्लब इंटरनेशनल के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक के पद पर भी रहे हैं।
आपने अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सिंगापुर, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग आदि सहित विभिन्न देशों की यात्राएँ की हैं। वर्तमान में आपका पता 106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर (म.प्र) है।
16. सच्चा लोकतंत्र
पहले था राजतंत्र
अब आ गया है लोकतंत्र।
पहले राजा शोषण कर रहा था
अब नेता शोषण कर रहा है।
जनता पहले भी गरीब थी
आज भी गरीब है।
कोई ईमान बेचकर,
कोई खून बेचकर
और कोई तन बेचकर
कमा रहा है धन।
तब भर पा रहा है
अपना और अपने परिवार का पेट।
कोई नहीं है
गरीब के साथ,
गरीबी करवा रही है
प्रतिदिन नए-नए अपराध और पाप।
खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र
जिससे आ पाये सच्चा लोकतंत्र।
मिटे गरीब और अमीर की खाई।
क्या तुम्हारे पास है कोई
ऐसा इलाज मेरे भाई।
17. चीर हरण
उच्च पदों पर आसीन है
धृतराष्ट्र और गान्धारी।
बुद्धिजीवी स्तब्ध है
द्रोणाचार्य और भीष्म के समान।
भ्रष्टाचार कर रहा है अट्टहास
दुर्योधन की तरह।
चरित्रहीनता कर रही है चीरहरण
दुस्शासन की तरह
पांसे खड़काते हुए शकुनी
बिखरा रहे है वैमनस्यता और कलह।
धर्म, ईमान, सच्चाई, सद्भाव और संवेदना
सिर झुकाकर बैठे है किनारे पर
पाण्डवों की तरह।
जनता कर रही है विलाप
द्रोपदी के समान
खींचा जा रहा है उसका चीर
वह पुकार रही है
हे वसुदेव !
हे कृष्ण !
भरे दरबार में लुट रही है अबला
उसकी लाज बचाओ।
18. अपराधी और राजनीतिज्ञ
राजनीतिज्ञों और अपराधियों का गठजोड़
मेरी राय में नया नहीं है।
यह तो महाभारत काल से चला आ रहा है।
समय के साथ विकसित हो रहा है
और पा रहा है नये नये रूप।
राजनीतिज्ञों ने सफलता के लिये
धनबल, प्रलोभन और भ्रष्टाचार के साथ
बाहुबल को माध्यम बनाया
इसके लिये
अपराधियों तक को गले लगाया।
उनको सत्ता तक पहुँचने का
रास्ता दिखाया।
लोहे को लोहा काटता है
और जहर को जहर मारता है
अब अपराधी सत्ता पर चढ़े है
और सच्चे राजनीतिज्ञ
घूरे में पड़े हैं।
19. अर्थ
ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है
यह सृष्टि और सृष्टि में
सर्वश्रेष्ठ कृति है मानव
मानव जिसमें क्षमता है
सृजन और विकास की
आविष्कार की और
समस्याओं के समाधान की
वस्तु विनिमय का समाधान था
मुद्रा का जन्म।
मुद्रा अर्थात अर्थ
अर्थ में छुपी हुई थी क्रय शक्ति
इसी क्रय शक्ति ने
बांट दिया मानव को
अमीर और गरीब में
अर्थ की धुरी पर घूमती हुई व्यवस्था ने
निर्मित कर दी
अमीर और गरीब के बीच
एक गहरी खाई।
अमीर होता जा रहा और अमीर
गरीब होता जा रहा और गरीब।
डगमगा रहा है सामाजिक संतुलन
असंतुलन से बढ़ रहा है असंतोष
असंतोष जिस दिन पार कर जाएगा अपनी सीमा
फैल जाएगी अराजकता जो करेगी विध्वंस
हमारे सृजन और विकास का।
यदि कायम रखना है अपनी प्रगति
जारी रखना है अपना सृजन
तो जगाना पड़ेगी सामाजिक चेतना
पाटना पड़ेगी अमीर और गरीब
के बीच की खाई
देना होगा सबको
आर्थिक विकास का लाभ।
पूरी करना होगी
सबकी भौतिक आवश्यकताएँ।
हर अमीर दे
किसी गरीब को सहारा
बनाए उसे स्वावलंबी
कम होगी बेकारी तो कम होगा
समाज का अपराधीकरण
और बढ़ेगी राष्ट्रीय आय।
इस संकल्प की पूर्णता के लिये
सबको करना होगा प्रयत्न
तभी सच्चा होगा
सशक्त भारत निर्माण का स्वप्न ।
20. सरकार
सरकार तेजी से चल रही है।
जनता नाहक डर रही है।
सर के ऊपर से कार निकल रही है।
सर को कार का पता नहीं
कार को सर का पता नहीं
पर सरकार चल रही है।
हर पाँच साल में जनता
सर को बदल देती है।
कार जैसी थी
वैसी ही रहती है।
सर बदल गया है
कार भी बदल गई है
आ गई है नई मुसीबत
सर और कार में
नहीं हो पा रहा है ताल मेल
लेकिन सरकार
फिर भी चल रही है।
जनता जहाँ थी वही है
परिवर्तन की चाहत में
सर धुन रही है।
21. समीक्षा, प्रतीक्षा और महँगाई
सरकार समीक्षा कर रही है
जनता प्रतीक्षा कर रही है
देश में महँगाई क्यों बढ़ रही है ?
सरकार का कहना है -
बढ़ रही है जनता की क्रय शक्ति
इससे बढ़ रही है खरीददारी
बढ़ रही है माँग
और बढ़ रहे हैं दाम।
जनता है हैरान
गरीब और गरीबी से त्रस्त है
अमीर अपनी अमीरी में मस्त है
सरकार ने गरीबी रेखा को बदल दिया
लाखों गरीबों को
रातों रात अमीर कर दिया
गठित कर दिया आयोग
करने के लिए स्थिति की समीक्षा
जनता कर रही है प्रतीक्षा
महँगाई बढ़ती ही जा रही है
जनता महँगाई से परेशान
आँसू बहा रही है।
22. मदिरा और महँगाई
महँगाई लगातार बढ़ती जा रही है
और बढ़ती जा रही है
मदिरा की खपत।
दोनों का नीतियों से है गहरा संबंध
दोनों का सत्ता से है
सीधा अनुबंध।
खोल दिये है
विदेशी कंपनियों के लिये
भारत के बाजार।
हो गई है -
विदेशी वस्तुओं की बाजार में भरमार।
बढ़ा रही है उपभोक्तावाद को
लगातार सरकार।
बढ़ता ही जा रहा है
जनता पर भार।
सभी को चाहिए
जीने के लिये अधिक कमाई।
इसी चक्र में फंसकर
बढ़ रही है मँहगाई।
उपभोगवादी प्रवृत्ति
बढ़ा रही है सरकार का खर्चा।
सत्र खत्म हो जाता है
बिना किए कोई चर्चा।
मंत्री जी कमाई के लिए
बांट रहे परमीशन
अफसर और नेता मिलकर
खा रहे कमीशन।
प्रतिदिन होती है एक्सरसाइज
कमाई का सर्वोत्तम साधन है एक्ससाइज।
इसके लिए कदम कदम पर
खुल रहे है मदिरालय,
मदिरालय संरक्षित है पर
टूट रहे देवालय।
महँगाई और मदिरा से
गृहलक्ष्मी है परेशान।
इस समस्या का कही भी
नजर नहीं आता है समाधान।
सरकार यदि करे नीतियाँ परिवर्तित
तो इन्हें भी किया जा सकता है नियंत्रित।
इसके सिवा नहीं है कोई विकल्प
इसके लिये शासन को ही
लेना होगा दृढ़ संकल्प।
23. एक भिखारी
एक भिखारी मैला कुचैला
दीन भाव से आया।
मेरे सामने हाथ फैलाया।
जेब से कुछ निकालते निकालते
मैं उससे पूछा बाबा !
तुम अन्ना या प्रधानमंत्री को जानते हो ?
वह बोला - बाबू जी।
मैं तो सिर्फ रोटी और कपड़े को जानता हूँ।
जो मुझे कुछ देते है
और जो कुछ नहीं देते है
उन दोनों के लिये दुआ माँगता हूँ।
मैंने फिर पूछा, क्या तुम्हें पता है ?
विदेशों से काला धन वापिस लाने के लिये
और भ्रष्टाचार मिटाने के लिये
चल रहा है एक बड़ा आंदोलन।
वह बोला- मैं तो केवल जानता हूँ
अपने शरीर को ढंकने वाले
इन फटे कपड़ों को
और जेब में पड़े कुछ पैसों को
मैं क्या जानूँ -
कालाधन, भ्रष्टाचार या आंदोलन।
मैं कल भी भिखारी था आज भी हूँ
और कल भी रहूँगा।
टुकड़े टुकड़े बासी रोटी,
कट फटे कपड़े और टूटा हुआ छप्पर ही
मेरी संपत्ति मेरा धन है।
ये तो बड़ों की बातें है काला धन आएगा
तो इन्हीं में बंट जाएगा।
गरीब, गरीब ही रहेगा
उसका जीवन तो
रोटी और पानी में ही कट जाएगा।
मैं सोच में पड़ गया
क्या विदेशों में पड़ा
कालाधन आने पर ही
गरीब का पेट भर पाएगा।
क्या अभी हमारे पास नहीं है
इतना धन और सामान,
जिससे हर नागरिक को मिल सके
जीने लायक रोटी, कपड़ा और मकान।
मैंने अपना हाथ जेब से बाहर किया।
जो कुछ हाथ में आया
वह उसे सौंप दिया।
वह दुआएँ देता हुआ आगे बढ़ गया
और मैं देश के भविष्य पर
सोचता हुआ अपनी जगह पर
खड़ा रह गया।
24. पाकेट मार
एक जेब कतरे ने
राहगीर के जेब पर
अपना हाथ आजमाया
उसका धन अपना बनाया
दूसरे जेबकतरे ने
पहले जेबकतरे का
जेब साफ कर दिया
राहगीर के साथ-साथ
जेबकतरे का धन भी हथिया लिया
तीसरे जेब कतरे ने
दूसरे का जेब कतर लिया
राहगीर के साथ-साथ
दोनों जेबकतरों के धन पर भी
कब्जा जमा लिया।
राहगीर है जनता
पहला जेबकतरा है अधिकारी
दूसरा है व्यापारी
तीसरा है नेता
जनता का धन
अधिकारी व व्यापारी से छनता हुआ
नेताओं की जेब में जा रहा है
उनके घरों में
उनकी तिजोरियों में
या विदेशी बैंकों के खातों में
शोभा बढ़ा रहा है
राजनीति और व्यवस्था का दानव
कटी जेबों से झांकते हुए
अट्टहास लगा रहा है।
25. विध्वंस
एक विद्वान ने
लिपिबद्ध किया
साहित्य में इतिहास को।
दूसरे प्रस्तुत की प्रतिक्रिया
और दी चिंतन को नई दिशा।
तीसरे ने दोनों को सहेजा
और दिया संरक्षण।
सहसा छिड़ गया युद्ध
चलने लगी गोलियाँ
होने लगे धमाके
और एक धमाके ने
कर दिया विध्वंस
मिटा दिया सब कुछ
राख में तब्दील हो गई
कलम और उसका सारा सृजन।
फिर शांति दूत आये
उन्होंने राख पर आंसू बहाये
व्यक्त की संवेदना
और श्रद्धांजलि के पुष्प चढ़ाये।
अब वह विध्वंस जनता के लिये
दर्शनीय स्थल हो गया।
वे रचनाएँ, वे पाण्डुलिपियाँ
और वह साहित्य
सदा सदा के लिये
राख के ढेर में खो गया।
26. जीवन ऐसा हो
युद्ध नहीं शांति
घृणा नहीं प्रेम
विध्वंस नहीं सृजन
लाएगा राष्ट्र में नया परिवर्तन
युवा आगे आए और लाए
कर्म और श्रम की बहारें।
युद्ध और आतंकवाद की विभीषिका,
कर रही है धन की बर्बादी
माँ से छीन रही है बेटा,
बहिन से उसका भाई
और पत्नी से उसका सौभाग्य।
शहीदों की विधवाओं को
दिया जा रहा है सम्मान,
क्या इससे मिल जाएगा
बिछुड़ा हुआ अपना
जीवन का सपना
सांप्रदायिकता और वैमनस्यता की जगह
आर्थिक क्रांति लाए।
बेरोजगारी का कलंक मिटाएं
स्वरोजगार की ध्वजा फहराए
एकता और सहयोग की मशाल उठाए
देश को उसका गौरव दिलवाए
घर घर में
सद्भावों के दीप जलाए।
27. बँटवारा
बढ़ती ही जा रही है
जीवन में जटिलता।
बढ़ती जा रही है
आदमी की व्यस्तता।
दूभर हो रहा है
संयुक्त परिवार का संचालन।
हो रहा है विघटन अर्थात्
परिवारों का संक्षिप्तीकरण।
जब होता है बंटवारा
तब जन्म लेते है मनभेद
बढ़ते हैं मतभेद
आपस में हल नहीं होते विवाद।
न्यायालयों में होता है
बेहिसाब कीमती समय बर्बाद।
पारिवारिक उद्योग हो जाते है चौपट,
बढ़ती है खटपट।
राष्ट्र की आर्थिक क्षति
के बचाव के लिये
सामाजिक शांति और
सद्भाव के लिये
बहुत आवश्यक है
एक तटस्थ न्यायालयीन निकाय।
जहाँ समस्या समय सीमा में
सुलझा ली जाय।
ऐसा होने पर रूकेगी आर्थिक क्षति
नहीं पनप सकेगा पारिवारिक विवाद
खण्डित नहीं होगी पारिवारिक एकता
सुदृढ़ बनेगा हमारा समाज
तब हर घर में चमकेगा
प्रेम और साहचर्य का ऐसा सूरज
जिसका सूर्यास्त कभी नहीं होगा।
28. जीवन की राह
गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम
पवित्र हो सकता है
किंतु मोक्षदायक नहीं।
मोक्ष निर्भर है
धर्म एवं कर्म पर।
संगम में डुबकी से भावना बदल सकती है
किंतु बिना कर्म के मोक्ष असंभव है।
हमारी सांस्कृतिक मान्यता है
जैसा होगा कर्म वैसा ही होगा कर्मफल।
जब हम मनसा वाचा कर्मणा
सत्यमेव जयते को अपनायेंगें
तो जीवन में होगा
सुख, संपदा और स्नेह का संगम।
सूर्य देगा ऊर्जा,
प्रकाश दिखलाएगा रास्ता
सुहावनी संध्या देगी शांति
निशा देगी विश्राम
चांदनी से मिलेगी तृप्ति की अनुभूति
और हम पर बरसेगी परमात्मा की कृपा।
हमारे जीवन में हो समर्पण
कर्म में हो सेवा, धर्म में हो परोपकार
धनोपार्जन में हो ईमानदारी और सच्चाई
हृदय में हो आत्मीयता
और वाणी में हो मधुरता
तो ईश्वर हमारे साथ रहेगा
और स्वर्ग बन जाएगा
हमारा घर, नगर और हमारा देश।
29. मसीहा
जिसने उसे जन्म दिया
उसने जन्म भूमि पर ही
उसे एकाकी छोड़ दिया
धरती की गोद में पड़ा
आकाश को पुकार रहा वह
उसके रूदन में
तार तार हो रहा था मातृत्व
और तड़प रही थी मानवता
तभी बढ़े
किसी मसीहा के दे हाथ
और ले गए उसे अपने साथ
अनजाने गंतव्य की ओर।
मसीहा बरसाता रहा उस पर
अपना प्यार और दुलार
ऋतुएँ आती रही
और जाती रही
वह नन्हा
अब हो गया था युवा
एक दिन मसीहा
उसे छेड़कर चला गया
और हो गया
उस अनंत में विलीन।
जीवन पथ पर चलते चलते
इतिहास ने अपने को दुहराया
उसने भी एक अबोध को
कचरे के ढेर पर रोता हुआ पाया।
बढ़ गये उसके हाथ
और उसने लगा लिया
उसे अपने सीने से।
अब वह उसका पालन करने लगा।
उस पर जान छिड़कने लगा।
दुनिया उसे मसीहा कहती है।
जहाँ दानवता रही है
वहाँ मानवता भी रहती है।
30. प्रेरणा
क्षण भर पहले वह हँस रहा था
अचानक हुई दुर्घटना
और वह सड़क पर पड़ा कराह रहा था
एकत्रित हो गई भीड़
कर रही थी एम्बुलेंस की प्रतीक्षा
और समय बिताते हुए
कैसे, कब, क्या हुआ
कर रही थी इसकी समीक्षा।
मैंने उसे उठाया सहारा देकर अस्पताल पहुँचाया।
अस्पताल में चिकित्सक ने बताया
थोड़ा सा भी विलम्ब कर सकता था बड़ा अनर्थ।
मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया
जिसने मुझे निमित्त बनाकर
उसको दिया जीवन दान
और मेरे जीवन को समझाया जीने का अर्थ।
उसकी आँखों से झाँकती हुई पीड़ा
उसमें जागी हुई जीवन की आशा
और मेरे प्रति उसका आभार
आज भी मुझे दिखता है
मेरी आँखों में झूलता हुआ।
मुझसे कहता है -
कभी किसी पीड़ित की
सहायता में विलम्ब मत करना।
किसी को मदद की हो आवश्यकता
तो मत करना किसी की प्रतीक्षा।
तुम्हारी यह सेवा और सेवा की तत्परता
तुम्हारे जीवन को देगी सार्थकता।
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