1.कविता जंजाज किसकी दीपावली, किसका नया साल हुआ है। गरीब के घर नित नया जंजाल हुआ है।। रोटियों की राख उतार लूं , घर में घी नहीं, घी...
1.कविता
जंजाज
किसकी दीपावली, किसका नया साल हुआ है।
गरीब के घर नित नया जंजाल हुआ है।।
रोटियों की राख उतार लूं , घर में घी नहीं,
घी के दिये चलाऊं कहां ख्याल हुआ है।।
देसी-विदेशी लड़ी-पटाखे मिल जाए खेलने को,
गंदी राजनीति जाए भाड़ में, मेरा बच्चा निहाल हुआ है।।
हम पर पाबंदी तुम्हारा आयात-निर्यात चलता है,
मेरे देश के लोगों का जीवन बेहाल हुआ है।।
विदेशी बैंकों में काला धन खूब जमा है,
नेता मजे में मजदूर-किसान कंगाल हुआ है।।
निवाले तक को तरस जाते, कितने बच्चे,
तुम जूठन फेंक देते कूड़े में, ना मलाल हुआ है।।
जो बैठाएं रखवाले, लूट देश को, वो ही खा रहे,
उठो! लड़ना बाकी है, क्यों निढ़ाल हुआ है।
सरदानन्द राजली ©
2.कविता
जड़ता में क्या रखा है
उदासी में क्या रखा है।
खामोशी में क्या रखा है।।
माथे की सलवटें बोलती है निरंतर,
राज छुपाने में क्या रखा है।।
जीवन में मुश्किलें आएंगी बहुत,
रोने-धोने में क्या रखा है।।
जीना होता है हर हाल में,
मुर्दा बन कर, जीने में क्या रखा है।।
मुस्कुरा के जी लो जिंदगी यारों,
रेडीमेड बने रहने में, क्या रखा है।।
खुशी दबा देती है बहुत सारे दुखों को,
मुरझाए चेहरे में क्या रखा है।।
उतार-चढ़ाव आते हैं जिंदगी भर,
गतिमय रहो, जड़ता में क्या रखा है।।
सरदानन्द राजली©
3.कविता
नेता बदलते हैं
नेता बदलते हैं, नीति नहीं बदलती है।
फ्रेम वही रहता है, बस तस्वीर बदलती है।।
मिसाल को मजाक, मजाक को मिसाल,
आज कल ये काम, राजनीति खूब करती है।
खूब चिल्लाते, विकास-विकास परिवर्तन चाहिए,
फिर अपनी ही तिजोरी नहीं भरती है।
हम पैसे वाले, हमारे नेता, देश हमारा,
सोचते जैसा हैं हम, वैसे ही जनता सोचती है।
बदलना कुछ नहीं ना हालात ना व्यवस्था
पूरे देश में अपनी ही तूती बोलती है।
बदलते हैं पार्टी झन्डे-डन्डे और निशान,
प्रोपगेन्डा कुछ नेताओं की अदला-बदली चलती है।
ब्यान, घटना लड़ाई नियोजित होते हैं सब,
अखबार-मीडिया सब हमारे इशारों पे चलती है।
सरदानंद राजली ©
4.कविता
अंतर्विरोध से अंत
पलभर पहले तुमने हां कहा,
झट से अब मना भी कर दिया।
फिर खुद उसी पर ही अड़ गऐ,
क्या खूब है!
तुम्हारा अंतर्विरोध।
कुतर्क की आड़ में, बचाते हो खुद को,
आखिर कब तक?
यह किसी पर रहमदिली नहीं दिखाता,
दिमाग को दीमक की तरह खा जाता है।
अंतर्विरोध अंत में बदल जाता है।।
सरदानन्द राजली ©
5.कविता
निजीकरण
जिसपे निजीकरण सवार है।
देश का वही असली गद्दार है।।
आज कर्मचारी ने ललकारा है,
लूट-फूट और झूठ की सरकार है।
उठो! तेरे देश को रख देंगे गिरवी,
अमीरजादे इनके सरदार है।
गजब है तुम अब भी चुप हो,
वो देश बेचने को तैयार हैं।
ये नेता नहीं बहरुपिए व्यापारी हैं
पूंजीपति इनके खास यार है।
बोलो कब तक चुप रहोगे यारों,
देश में मचा हाहाकार है।
लाठियां बरसती, आंदोलनकारियों पर,
देश का चौकीदार, जहाज में सवार है।
जब जनता नहीं चाहती निजीकरण,
देश बेचने का तुम्हें चढ़ा, क्यों शुमार है।
उठ खड़े हुए समर्थन में, किसान-मजदूर, युवा,
जनसंगठन-पंचायतें, जनता असली सरकार है।
देश जाग गया है, जाकर कह दो,
तुम्हारे हुक्मरानों को, अब खबरदार है।।
सरदानंद राजली
6.कविता
*ज़मीं के चांद*
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ऐ-चांद आज खुद पर गुरूर मत करना।
आज गली-गली नहीं,
घर-घर चांद निकलने वाले हैं।
जो पीटते हैं, पत्नियों को,
शराबी भी हैं।
बहुतों ने कर रखी है,
चांद सी पत्नी-बच्चों की जिंदगी बर्बाद।
आज उन्हीं की लम्बी उम्र,
सात जन्मों की कामना की जाती है।
वाह!
गजब है रे गजब।
बस!
मैं फिर यही दोहराता हूं।
तुम मगरूर मत होना।
आज देखना तुम भी,
सुहागिनों की तरह उन चांदों को।
जो उनके जीवन भर की चमक छीन लेते हैं।
जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा पैदा कर देते हैं।
हर साल इसी तरह एक दिन चांद बनकर,
खुश हो जाते हैं,
ज़मीं के चांद।
सरदानन्द राजली ©
7.कविता
सरपंच पद के चुनाव के बाद, एक वोटर का दर्द।
पंचायत चुनाव
जात-गौत्र, बगड़-पाने के नाम पर चुनाव लड़ा गया।
खूब शराब पिलाई गई,
लोगों को बगड़ के नाम पर बरगलाया गया।
मंदिर में नेम करवाया गया,
लोटे में नूण डलवाया गया।
लोगों को डराया-धमकाया गया।
अपना जोर आजमाया गया।
बैठकें हुई, पंचायत हुई,
बगड़, परिवार-पाना इकठ्ठा किया गया।
दूसरे प्रतिनिधियों के वोटरों को रातों-रात तोड़ा गया।
अपने वोटरों को जोड़ा गया।
छोटे-छोटे बच्चों को नशे का आदी बनाया गया।
आखिरी रात चौराहे-चौंकों पर,
आग के धूने जलाकर, ठिकरी पहरा दिया गया।
कोई वोटों में सेंध ना लगा सके,
गांव पर एक तरह से कब्जा किया गया।
ताकि दुसरा कोई वोटरों को शराब कि पेटियां ना दें सके,
पैसे का लालच ना दें सके,
क्योंकि हमने सब इंतजाम पहले ही कर रखा है।
कुछ दल्लै बने, कुछ दलाल बने,
परिवार के थोहलेदार बन परिवार को बेच डाला,
केवल अपने निजी स्वार्थ की खातिर।
कुछ दिन फ्री शराब की बोतलें खूब चली।
चौधरियों की बैठकों में हुक्के का धुंआ खूब उड़ा।
जो लाखों रुपए खर्च कर हार गए,
पकड़ अपने पुराने रोजगार गए,
गांव कि दिन-रात सेवा का वादा करने वाले,
तो गांव से ही चले बाहर गए।
नई चौधर मिली, सरपंच भी खूब इतराया,
दलाल सरपंच के करीब लग, सारे ग्रांट डकार गए।
पंचायत सचिव, जेई, बीडीपीओ, संघ सरपंच मिलकर,
नकली माल, झूठे बिल बनाकर, मोटे पैसे कमा गए।
शहर में कोठियां बनाई, सारा कर्जा उतार गए।
रजिस्टरों में गांव विकास कार्य हेतु लगें करोड़ों रुपए,
ना गांव बदला, ना गांव के लोग।
फिर चुनाव होगा, फिर यही सिलसिला,
ठीक-ठीक इसी तरह दोहराया जाएगा।
आखिर कब तक ?
सरदानन्द राजली©
8.कविता
डर में
जब हम अपने,
लक्ष्य से,
भटक जाते हैं।
हमारी जिंदगी,
बारूद के ढेर की तरह,
हो जाती है।
हर पल डर में ही,
बीतने लगती है जिंदगी।
न जाने कब,
यह सुलग जाएं,
और हम,
ढेर हो जाएं।
सरदानन्द राजली ©
9.कविता
सदियों से
बदल जाते हैं तेवर,
चेहरे भी, बदलते रहते हैं लगातार,
इसके पीछे की हकीकत,
क्या है।
छान-बीन जारी है,
सदियों से।
आदमियों के बीच,
आदमी की ?
सरदानन्द राजली ©
10.कविता
क़िलाबन्दी
अच्छे विचार!
स्वीकार आत्मसात करने के लिए,
कमजोर पड़ जाता है,
कई बार,
हमारा आई क्यू लेवल।
हम अपनी पे अड़े ही रहते हैं।
हम खुद को ही, समझते हैं महान,
यहीं हमारी सबसे बड़ी कमजोरी,
बाधा बनकर रोक लेती है,
हमें आगे बढ़ने से,
उम्र भर कुएं के मेंढक की तरह,
रेंगते रहते हैं, अपने ही बनाई,
किलाबंदी में कैद रहकर।
सरदानन्द राजली ©
परिचय
नाम - सरदानन्द राजली
शिक्षा - एम. ए. (जनसंचार)
जन्मतिथि - 10/07/1985
जनवादी लेखक संघ, जिला सचिव एवं (राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य)
सम्मान
# राज्य स्तरीय ग्रामीण आंचल महाकवि सम्मेलन 24 फरवरी 2013 (हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकुला)
# पुलिस चौंकी, बरवाला ने रक्तदान के क्षेत्र में प्रशस्ति पत्र दिया।
# राष्ट्रीय कवि चौपाल मनीषी सम्मान, 23 जनवरी 2018 को राजस्थान दौसा में।
# पंजाब केसरी समाचार -पत्र द्वारा, 8 सितम्बर 2018
(45 वीं बार रक्तदान करने सम्मान-पत्र)
# राष्ट्रीय कवि सम्मेलन 29 दिसम्बर 2018 (हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकुला)
पता :
सरदानन्द राजली
गांव राजली
तहसील बरवाला
जिला हिसार (हरियाणा)
पिन कोड-125121
ई-मेल:- sardanandrajli@gmai
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