प्रविष्टि क्रमांक - 382 देवेन्द्रराज सुथार असभ्य लोग! पाँच सितारा होटल की मालिक रेणु डिसूजा को साफ़-सफ़ाई के साथ रहना बेहद पसंद था। घर और हो...
प्रविष्टि क्रमांक - 382
देवेन्द्रराज सुथार
असभ्य लोग!
पाँच सितारा होटल की मालिक रेणु डिसूजा को साफ़-सफ़ाई के साथ रहना बेहद पसंद था। घर और होटल दोनों की सफ़ाई के लिए उसने नौकरों की फ़ौज जमा कर रखी थी। जिन्हें सफ़ाई के लिए सख़्त आदेश दिए गए थे। रेणु के शरीर पर ज़रा भी धूल चिपक जाती तो वो अपने कपड़ों को झटकती नहीं बल्कि बदल देती थी। ज़्यादातर वह अपना सफ़र अपनी वातानुकूलित कार में तय करती। लेकिन कभी कभार जब उसे कार से निकलकर पैदल चलने की नौबत आती तो वो अपने नाक को बड़े से रुमाल से ढक लेती। काम से मैले कपड़ों में लौटते मज़दूरों को असभ्य व गँवार मानकर उनसे पाँच फुट की दूरी बनाकर रखती। सफ़ाई पसंद रेणु अपने बच्चे को मिट्टी में खेलने भी नहीं देती। उसे लगता कि मिट्टी में खेलेगा तो बीमार पड़ जाएगा। दिनों-दिन रेणु के मस्तक में घुसा सफ़ाई का कीड़ा बड़ा हो रहा था। पति राज को रेणु का सफ़ाई को लेकर अतिशयोक्तिपूर्ण आचरण चिंतित कर रहा था। बड़े लोगों की संगत और धन की विलासिता के मद में रेणु अपनी माटी और अपने लोगों को भूलती जा रही थी।
एक दिन होटल से लौटते वक्त रेणु की कार का एक्सीडेंट हो गया। ऑटो से भिड़ंत के बाद रेणु कार के बाहर ज़ख़्मी हालत में गिर पड़ी। देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई। लोग अपने मोबाइल से वीडियो और फोटो लेने लगें। काम से लौट रहे मज़दूरों की नज़र रेणु पर पड़ी तो उन्होंने तुरंत रेणु को उठाया और अपने ट्रैक्टर की टोली में बैठाकर नज़दीकी सरकारी अस्पताल में ले गए। ऑपरेशन के कुछ समय बाद रेणु को होश आया तो स्वयं को सरकारी अस्पताल की खाट पर लेटा देखकर आश्चर्य हुआ और अपने कपड़ों को गंदा देख बोल पड़ी - 'मैं यहाँ कैसे? मेरी यह हालत किसने बनाई? ये मैले मज़दूर मेरे पास कैसे?' डॉक्टर ने रेणु के एक के बाद एक प्रश्न को सुनकर कहा - 'मैडम, आपका एक्सीडेंट हो गया था। इन्हीं मज़दूर लोगों ने आपको अस्पताल में भर्ती कराया है। यदि ये आपको लाने में एक मिनट की भी देरी करते तो शायद आप बच नहीं पाती। आपको तो इन लोगों का धन्यवाद अदा करना चाहिए।' यह सुनकर रेणु की आँखों से छलक आएं आँसुओं ने उसके मन के मैल को धो दिया, जिसके कारण अब रेणु को वे असभ्य लोग सबसे बड़े सभ्य लोग के रूप में नज़र आ रहे थे।
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प्रविष्टि क्रमांक - 383
देवेन्द्रराज सुथार
भगवान की लीला
अपने चार वर्षीय बच्चे के इलाज के लिए लाचार भीखू भिखारी चौराहे पर बैठकर भगवान से मन ही मन प्रार्थना करते हुए कह रहा था - 'भगवान आज कैसे भी करके कुछ ऐसा चमत्कार कर दो कि मैं अपने बेटे का इलाज करा सकूं।' तभी स्कूल से घर लौटते हुए आठ वर्षीय सोहन को रास्ते में पांच सौ रुपये का नोट दिखा तो उसने तुरंत उठा लिया और जेब में धर दिया। लेकिन कुछ देर आगे जाकर उसे अपनी मम्मी की कही हुई बात याद आयी कि 'रास्ते में पड़ी हुई किसी भी अनजान चीज़ को हाथ नहीं लगाते।' इसलिए उसने वह नोट चौराहे पर बैठे भीखू भिखारी को दे दिया। भीखू ने बच्चे के रूप में मदद करने आए भगवान की लीला को भाँपते हुए नोट ले लिया और अपने बीमार बच्चे का इलाज करा दिया।
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प्रविष्टि क्रमांक - 384
देवेन्द्रराज सुथार
प्रायश्चित
सेवानिवृत्त शिक्षक हरिशंकर को अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर स्कूली दिनों में बच्चों को मन से नहीं पढ़ाकर उन पर ट्यूशन का दबाव डालने का मलाल सता रहा था। वे खुद को मन ही मन कोस रहे थे कि उन्होंने अपनी पूरी नौकरी में अपने दायित्वों का एक आदर्श शिक्षक की तरह कभी भी निर्वहन नहीं किया। हमेशा कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाने के बजाय नींद ली और टाइम पास किया।
कल जब उन्होंने अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर अपने स्कूल के छात्र रमेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने की ख़बर पढ़ी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने तुरंत रमेश को फ़ोन करके कहा- 'रमेश, मैं तुम्हारा शिक्षक हरिशंकर बोल रहा हूँ, पहचाना की नहीं?'
'जी, पहचान लिया गुरुजी। आपको कैसे भूल सकता हूँ, स्कूल के दिनों में जब आपके पास मैं ट्यूशन नहीं आया था तो आपने मेरे अंक काट दिये थे। जिससे विवश होकर मुझे आपके पास ट्यूशन आना पड़ा था। यदि आप मुझे उस समय पास नहीं करते तो मैं आज इस मुक़ाम पर कभी नहीं पहुंचाता।' रमेश की इन बातों को सुनकर हरिशंकर शर्म के मारे पानी-पानी हो गए। हरिशंकर को अपनी भूलों को अहसास होने लगा। अब वे कैसे भी करके मरने से पहले अपनी ग़लतियों का प्रायश्चित करना चाहते थे।
उन्होंने दूसरे ही दिन अपने शहर की मलिन बस्ती में जाकर ग़रीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने का बीड़ा उठाया। वे पूर्ण निष्ठा के साथ ग़रीब बच्चों को पढ़ाने में जुट गए। आज जब दसवें बोर्ड का रिज़ल्ट आया तो रामलाल ने पूरे राज्य में टॉप किया। जब रामलाल से मीडिया ने पूछा कि, 'आपने अभावों में सर्वाधिक अंक कैसे हासिल किये?' तब रामलाल ने कहा कि, 'यह सब मेरे ट्यूशन टीचर का कमाल है, उन्होंने मुझे पूरे साल निःशुल्क पढ़ाकर कड़ी मेहनत करायी। जिसका नतीजा आज आपके सामने हैं।' अख़बार में रामलाल की क़ामयाबी के पीछे अपने शिक्षक हरिशंकर को देखकर पूर्व छात्र रमेश ने फ़ोन करते हुए अपने शिक्षक के श्लाघनीय कार्य की प्रशंसा की। रमेश के प्रशंसनीय शब्द हरिशंकर को विश्वास दिला गये कि अब उन्होंने अपनी ग़लतियों का प्रायश्चित कर लिया है।
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- देवेन्द्रराज सुथार
(मूल नाम : देवेंद्र कुमार)
स्थानीय पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। 343025
ईमेल- devendrakavi1@gmail.com
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