प्रविष्टि क्रमांक - 334 सरिता सुराणा राखी का मोल पुनीता का भाई मुम्बई में बड़ी-बड़ी कंपनियों के शेयरों की खरीद और बिक्री का काम करता था। शे...
प्रविष्टि क्रमांक - 334
सरिता सुराणा
राखी का मोल
पुनीता का भाई मुम्बई में बड़ी-बड़ी कंपनियों के शेयरों की खरीद और बिक्री का काम करता था। शेयर मार्केट में अचानक आई गिरावट की वजह से उसे इस कारोबार में भारी नुक़सान हुआ। तब उसने पूरे परिवार के सामने अपने व्यापारिक घाटे का रोना रोया। तब पुनीता ने अपने पति से बात करके बैंग्लौर में उनकी फर्म में अपने भाई को पार्टनर बनाया। जैसे ही भाई के हाथ में जमा-जमाया काम आया, वह उसमें घोटाला करने लगा। जब बहनोई को इस बात का पता चला तो घर में बहुत बड़ा हंगामा हो गया। अब बहनोई ने साले से अपना कारोबार छोड़ने को कहा लेकिन साला उससे हटने को तैयार नहीं था। उल्टा वह बहन-बहनोई को ही परेशान करने लगा। उसने बहनोई को धमकी दी कि अगर वे बिजनेस डीड उसके नाम पर नहीं करेंगे तो वह उन्हें झूठे केस में फंसाकर जेल में डलवा देगा। तब डर के मारे बहन ने फर्म की डीड भाई के नाम करवा दी। इस घटना से बहन के घर में आए दिन कलह होने लगी और उसको इन सबसे इतना बड़ा सदमा लगा कि वह डिप्रेशन में चली गई और उसे शुगर की बीमारी ने घेर लिया।भाई ने बहन से बोलना बंद कर दिया और उसके जमा किए हुए लाखों रुपए भी डकार गया।
जब राखी का त्यौहार आया तो बहन ने यह सोचकर भाई को राखी भेजी कि कोई और रिश्ता रहे या ना रहे, राखी का पवित्र रिश्ता तो बना रहे। लेकिन भाई ने राखी को लौटती डाक से वापस भेज दिया, यह कह कर कि इस राखी के बहाने तूं मुझसे रिश्ता जोड़ने की कोशिश मत करना। बहन यह एक और सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और भगवान को प्यारी हो गई। क्या मोल चुकाया था भाई ने बहन के प्यार का और उसकी राखी का?
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प्रविष्टि क्रमांक - 335
सरिता सुराणा
बेटे की चाह
शर्मा जी और काबरा जी दोनों बचपन के दोस्त थे। साथ-साथ पले-बढे और पढ़े भी साथ ही थे। दोनों की शादी भी लगभग एक ही समय में हुई थी। शर्मा जी के एक ही बेटा था और काबरा जी के दो बेटियां थीं। सबकी शादी हो चुकी थी और सब अपनी-अपनी गृहस्थी में खुश थे। अचानक काबरा जी की पत्नी गम्भीर रूप से बीमार हो गईं, अब उन्हें अपनी बीमारी से ज्यादा काबरा जी की चिंता सता रही थी कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो काबरा जी की देखभाल कौन करेगा? परन्तु जब उनकी बेटियों और दामाद ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे पापा की देखभाल अच्छे से करेंगे तो वे एकदम निश्चिंत हो गईं और कुछ दिनों के बाद ही उनका देहावसान हो गया।
कुछ दिन तक तो उनकी दोनों बेटियां उनके साथ रहीं, परन्तु अब उन्हें भी अपने-अपने घर जाना था और वे पापा को अपने साथ ही ले जाना चाहती थीं। काबरा जी भारी मन से अपने मित्रों-रिश्तेदारों से मिलने गए तो उन्हें अपना खास मित्र शर्मा कुछ दु:खी दिखाई दिया। पूछने पर पता चला कि उनके घर में बेटे की बहू आए दिन कलह करती रहती है। अब वह उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहती और वृद्धाश्रम में भेजना चाहती है। शर्मा जी के मुंह से यह बात सुनकर काबरा जी भी दु:खी हो गए। शर्मा जी फूट-फूटकर रोने लगे और कहने लगे कि बेटे के मोह में मैंने अपनी दो बेटियों की गर्भ में ही हत्या कर दी थी। अगर आज मेरी बेटियां जिन्दा होतीं तो मैं भी आपकी तरह उनके साथ रहता। लेकिन 'अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।'
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प्रविष्टि क्रमांक - 336
सरिता सुराणा
भय और भूत
रहीम अपने परिवार के साथ कब्रिस्तान में बनी हुई झोंपड़ी में रहता था, वही उसका घर था। उसका बचपन वहीं कब्रों के आस-पास खेलते हुए बीता था। जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो पढ़ने के लिए मदरसा जाने लगा। वहां पर उसने देखा कि सब उसके बारे में ही खुसर-पुसर कर रहे थे। पहले तो उसे समझ में नहीं आया परन्तु बाद में पता चला कि कब्रिस्तान में रहने के कारण वे लोग उसका मजाक उड़ा रहे थे।
घर आकर उसने यह बात अपने अम्मी-अब्बू को बताई तो उन्होंने उससे कहा- 'बेटा! लोग ऐसे ही बातें बनाते रहते हैं। बरसों से हमारा घर यहीं है।'
'परन्तु अब्बू, वे बच्चे तो कह रहे थे कि कब्रिस्तान में भूत रहते हैं और वे लोगों को बहुत सताते हैं। अगर उन्होंने मुझे सताया तो मैं यहां पर नहीं रहूंगा।'
'बेटा! कब्रिस्तान में कोई भूत नहीं है, क्या तुमने आज तक किसी भी भूत को देखा है?'
'नहीं अब्बू, पर करीम कह रहा था कि कब्रों में जिन्न रहते हैं और वे रात को बाहर निकलते हैं। फिर मनुष्यों को सताते हैं।'
'ऐसा कुछ नहीं होता बेटा। यह उनका भय है और भूत वहीं रहते हैं जहां भय का वास होता है और तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो।'
'जी अब्बू, अब मैं समझ गया कि भूत-वूत कुछ नहीं होते, यह हमारे मन का भय होता है।'
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प्रविष्टि क्रमांक - 337
सरिता सुराणा
जन्मदिन
विजय की शादी तीन महीने पहले हुई थी। शादी के बाद यह उसका पहला जन्मदिन था। उसकी पत्नी उसका जन्मदिन किसी होटल या रिसोर्ट में अकेले ही मनाना चाहती थी, परन्तु विजय हमेशा की तरह पूरे परिवार के साथ घर में ही जन्मदिन मनाना चाहता था। सामने तो उसकी पत्नी ने कुछ नहीं कहा, परन्तु उसके मन में एक खुन्नस बैठ गई कि उसने उसका कहा नहीं माना।
शाम को जब विजय ऑफिस से घर लौटा तो घर में सब बड़ी बेसब्री से उसका इंतजार कर रहे थे। फ्रेश होकर जब वह कमरे से बाहर आया तो उसने सबसे पहले अपने मम्मी-पापा के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। फिर सब लोग एक साथ खाना खाने बैठे। उसकी माँ ने उसके लिए बादाम का हलवा और खस्ता कचौड़ी बनाए थे तो पत्नी ने पिज्जा बर्गर और केक बाहर से मंगाए थे। उनके घर में जन्मदिन पर केक पहली बार मंगाया गया था इसलिए विजय के भाई-बहन बहुत खुश थे। सबने मिलकर बड़े ही उत्साह से केक काटने में विजय का साथ दिया।
फिर जब खाना परोसने की बारी आई तो उसकी पत्नी ने थाली में सीधे पिज्जा और बर्गर ही परोस दिए। जब माँ ने यह देखा तो उन्होंने विजय को बादाम का हलवा और कचौड़ी परोसे तथा बड़े ही प्यार से उसे हलवा खिलाने लगी। जैसे ही कौर विजय के मुँह के पास गया, बहू ने मांजी का हाथ पीछे खींच लिया। कहने लगी - 'रहने दीजिए मांजी ! ये सब हैवी चीजें खाने से इनका कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाएगा।'
मांजी ने यह शब्द पहली बार सुना था, इसलिए उन्हें यह समझ में नहीं आया, परन्तु वह इतना तो समझ गयीं कि बहू उनकी बनाई हुई चीजें विजय को नहीं खाने देना चाहतीं। बेटे के मुँह तक गए हुए निवाले को छीनने से वे बहुत आहत हुईं और उनकी आँखों में आँसू आ गए। माँ की आँखों में आँसू और पत्नी के चेहरे पर विजय का दर्प देखकर वह भी बहुत दुःखी हुआ। वह बिना कुछ खाए चुपचाप उठकर अपने कमरे में चला गया क्योंकि जन्मदिन का पूरा मजा किरकिरा हो गया था।
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सरिता सुराणा
Secunderabad- 500009.
Telangana state.
Former sub-editor Daily Hindi Milap.
Email: sarritasurana@gmail.com
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