प्रविष्टि क्रमांक - 331 सारिका भूषण ढिबरी ----------- पिछले पाँच घंटों से बिजली का अता - पता नहीं था । मालती की आँखें ढिबरी की लौ पर टिकी थ...
प्रविष्टि क्रमांक - 331
सारिका भूषण
ढिबरी
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पिछले पाँच घंटों से बिजली का अता - पता नहीं था । मालती की आँखें ढिबरी की लौ पर टिकी थीं । दिल की सारी बातें , गिले शिकवे उस ढिबरी की धीमी लौ को तेज़ कर रहे थे । महीने भर से जो आँखें गिलाफ़ को नम करती आई थीं अब सख़्त हो चली थीं ।
दिल के अंधेरों को रौशन करने की कोशिश और थकान भरी शरीर में पलकें कब बंद हो जाती थी पता ही नहीं चलता । अचानक दरवाज़े की कुंडी लगाने की आवाज़ से मालती चौंक उठी । मालती ने ढिबरी की ओर देखा । अभी तेल आधा से ज़्यादा बचा था । रतन को कमरे के अंदर आते देख मालती सहम उठी ।
" आज ....अभी ...रतन कमरे में कैसे ? ...." मालती का दिल तेजी से धड़कने लगा ।
" जिस पति ने सुहागरात से ही अपनी पत्नी को एक नज़र भर नहीं देखा हो और न ही कभी कुछ बातें की हो ....वह आज अचानक इतनी जल्दी कमरे में ......मेरे पास ......" मालती कुछ भी सोचने - समझने की हालत में नहीं थी ।
" यह मैंने पिछले साल की फसल बिक्री के पैसे बचाकर ख़रीदे थे अपनी पहली लुगाई के लिए .......मगर अफ़सोस दे न पाया ....... निमोनिया ने उसे ............ । " बोलते बोलते रतन की आंखें भर आईं ।
" मगर आज इस घर की बहुरिया को देने की हिम्मत जुटा रहा हूँ , जिसने एक महीने में ही पूरा घर बार संभाल लिया है ........और शायद मुझे भी । " रतन ने खाट 8पर बैठते ही मालती की हाथ में काले मोतियों और सोने की लटकन वाला मंगलसूत्र देते हुए बोला ।
मालती इस स्पर्श और स्नेह से मोम की तरह पिघल गई ।
" ढिबरी धीमी कर दूं ? " रतन मालती की आँखों में अपने प्यार के लिए स्थान ढूंढ रहा था । मालती ने धीरे से ढिबरी की ओर देखा , जिसकी लौ की रौशनी अब तीखी लग रही थी ।
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प्रविष्टि क्रमांक - 332
सारिका भूषण
वाट - अ - रिलीफ़
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" अब बोलो भी कौन वाला शूट पहनूँ ? रॉयल गोल्ड या रॉयल सिल्वर वाला ? " जिमखाना क्लब की पार्टी में जाने के लिए संदीप ने डियो लगाते हुए निशा से पूछा ।
" इतनी तैयारी तो शायद शादी में भी नहीं किए होगे । जो मन वही पहनो । मगर इस बार मुझे क्यों ले जा रहे हो ? मुझे अच्छा नहीं लगता यह सब । " निशा एक बार फिर से अपने नहीं जाने की इच्छा बताई ।
" अरे बाबा ! हर बार लोग फैमिली पूछते हैं । एक बार तो चलो । देखो तो कैसी होती हैं हाई क्लास पार्टियां ? " संदीप इस बार कुछ नहीं सुनना चाह रहा था ।
दो घंटे की तैयारी के बाद पार्टी में
दोनों पहुंच चुके थे ।
" मेरा तो दम घुटता है । इन हाय - हलो , चमक - धमक और सबके कटे- छटे कपड़े और रंगीन ग्लास देखकर ! कहाँ फंस गई ....मेरे लिए किचेन और किताबें ही ठीक हैं । " निशा बनावटी मुस्कान देते - देते थक गई थी ।
" निशा , मीट मिसेज़ लोहिया हमारी गोल्फ क्लब की प्रेसिडेंट और मोस्ट डायनामिक लेडी ! " संदीप ने बड़े जोश से किसी मॉडल जैसी दिखने वाली महिला से मिलाया ।
" नमस्कार । आपने कुछ खाया ? " शायद निशा की साड़ी देखकर मिसेज़ लोहिया ने अपनी शालीनता दिखाई ।
" कम ऑन डियर ! चाँद निकलने वाला है । चलो देखकर फिर पार्टी एन्जॉय करते हैं । " कुछ मॉडल जैसी दिखने वाली महिलाओं ने मिसेज़ लोहिया के पास आकर बोला ।
" अरे ! ये लोग पूजा भी करती हैं । अच्छा आज किसी चौथ की पूजा है शायद । " निशा के लिए ऐसा माहौल बिल्कुल नया था ।
सभी सुंदरियों ने चाँद देखा और अपने - अपने ग्लास रंगीन कर चियर्स करते हुए अपना उपवास तोड़ा और मिसेज़ लोहिया ने कहा " वाट अ रिलीफ़ ! "
अब निशा भी अपनी बोरिंग दुनिया में लौटने को बेचैन थी और शायद यही बोलने के लिए " वाट - अ - रिलीफ़ !! "
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प्रविष्टि क्रमांक - 333
सारिका भूषण
चार आना रिक्शा भाड़ा
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जाड़े की धूप में पूरा शर्मा परिवार अपने घर की बालकनी में बैठा था । छुट्टियों में बेटी मायके आईं थी और साथ में उसके ससुराल वाले भी थे ।
" भई समधी साहब कल आपकी पचासवीं सालगिरह की पार्टी में बहुत मज़ा आया । लेकिन उससे भी ज़्यादा आनंद इस धूप में आ रहा है । हमारे यहाँ दिल्ली में तो ठंढ बढ़ते ही सूरज छिप जाता है , और प्रदूषण बढ़ जाता है वो अलग । "
" भाई साब आपकी दोनों बहुएं भी बहुत प्यारी हैं । आप खुशकिस्मत हैं । अरे हां , आज तो दोनों अपने मायके भी जा रही हैं न । " बेटी की सास ने शर्मा साहब को देखकर बोला ।
" जी हाँ समधन जी ! मैं सचमुच खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं । बच्चों की छुट्टियां शुरू होते ही नीरा अपनी बहुओं को मायके जाने के लिए खुद ही बोलती है । आख़िर उनके मायके में भी तो इंतज़ार रहता होगा । " शर्मा साहब ने अपनी पत्नी नीरा की तरफ़ इशारा करते हुए बोला ।
एक प्यारी सी हँसी सबके चेहरे पर बिखर जाती है । मगर मिसेज़ नीरा को गंभीर देखकर समधी साहब को नहीं रहा गया " नीरा जी , आपका मायका कहाँ है ? कभी आपने बताया नहीं । लगता है भाईसाहब किसी को वहाँ नहीं ले जाना चाहते । "
अचानक खिलखिलाते हुए शर्मा जी बिल्कुल शांत हो गए ।
" चार आना रिक्शा भाड़ा ! " नीरा देवी ने गंभीर आवाज़ में बोला । " मेरे मायके और ससुराल में बस इतनी ही दूरी थी । मगर भाइयों ने सिर्फ़ मेरे हाथ पीले करने तक ही अपनी ज़िम्मेदारी समझी । उसके बाद मैं मायके नहीं जानती........ । " बोलते - बोलते मिसेज़ शर्मा का गला रुंध गया ।
" अच्छा माफ कीजिएगा । मैं जरा अपनी बहुओं की पैकिंग देख कर आती हूँ । कहीं मिठाई के डब्बे छूट न जाए । " नीरा देवी ने अपने पल्लू से आंखों की कोर को पोंछा और मुस्कुराते हुए अंदर चली गई ।
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सारिका भूषण
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झारखंड
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