डॉ0 नरेश कुमार ‘‘सागर’’ की कविताएँ

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          मिलेंगे जब मेरे मनमीत --------- मिलेंगे जब मेरे मनमीत , होंठों पै उपजेगें गीत पैंग बढेगी सावन जैसे , पूरी होगी मन की प्रीत      ...

          मिलेंगे जब मेरे मनमीत ---------
मिलेंगे जब मेरे मनमीत , होंठों पै उपजेगें गीत
पैंग बढेगी सावन जैसे , पूरी होगी मन की प्रीत
                   मिलेंगे जब मेरे ------------
आयेगी वो छम छम करती , मन आंगन में गुंजन करती
अलबेली  अल्हड  सी  वो ,मेरे  मन को  लेगी जीत
                   मिलेंगे जब मेरे --------------
चाहूं और होगी खुशहाली , झूमेगी जब कान की बाली
मेरे दिल से दिल लगाकर , जब वो निभायेगी रीत
                     मिलेंगे जब मेरे -------------
सपनों की बारातें होंगीं , ख्वाबों की सब रातें होगी
फूल खिलेंगे हरसू हरसू , कोयल भी गायेगी गीत
                      मिलेंगे जब मेरे ------------
नैनों में भरकर मधुशाला , आयेगी जब वो वाला
अपने होंठों से उसे पीकर , कर लूंगा मैं अपनी जीत
                     मिलेंगे जब मेरे --------------
मन लेता अंगडाई अकेला , प्यारा कितना प्रेम झमेला
अपनी धुन में रमकर ‘‘सागर’’, लिखते रहेंगे कहानी गीत
                       मिलेंगे जब मेरे ------------!!
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            मैं कवि हो गया -------
बच्चों की भूख में , गरीबी के रूप में
माँ के फटे आंचल में , जब भी मैं खो गया
                  बस मैं कवि हो गया ---------
प्रेमिका के प्रेम में , रूप और श्रृंगार में
यादों के परिवार में , जब भी मैं खो गया
                बस मैं कवि हो गया -------------
राहों की धूल में , खिलते हुए फूल में
पावों के चुभते शूल में, जब भी मैं खो गया
                बस मैं कवि हो गया -----------
मन्दिर की टन टन में , मस्जिद की हलचल में
गिरजा की शान्ति में , जब भी मैं खो गया
                 बस मैं कवि हो गया ----------
धरती की प्यास में , मेघों की मलहार में
अश्कों की फुहार में , जब भी मैं खो गया
                 बस मैं कवि हो गया ----------
सूरज की ललकार में , रात की झनकार में
डर से बुरे हाल में , जब भी मैं खो गया
                  बस मैं कवि हो गया ----------
जंगों की तलवार में ,प्रेम के व्यापार में
घरों की लगी दीवार में , जब भी मैं खो गया
                  बस मैं कवि हो गया -------------
राजनीति की अडचनें ,महगें होते गुड चने
टूटे दिलों की धडकनों में , जब भी मैं खो गया
                   बस मैं कवि हो गया -----------
दोस्तों  की  भीड़  में , बढ़ती  हुई  पीर में
नारी के खींचते चीर में , जब भी मैं खो गया
                    बस मैं कवि हो गया -------------
‘‘सागर’’ की गहराई में , पर्वत की उंचाई में
पेडों की परछाई में , जब भी मैं खो गया
                     बस मैं कवि हो गया --------------
कोयल की कूक में , बगुले की मूक में
विरह की धूप में, जब भी मैं खो गया
                    बस मैं कवि हो गया ---------------
बापू की आवाज में , बच्चों की किलकार में
वीबी के प्यार में , जब भी मैं खो गया
                   बस मैं कवि हो गया -----------
ढोलक की थाप में , बात करूं साफ मैं
बैठा हुआ आप में , जब भी मैं खो गया
                  बस मैं कवि हो गया ---------!!
                 -------------
            आ गया नव-वर्ष -----
आ गया नव-वर्ष, सर पर पुराना कर्ज
कैसे मनांउ हर्ष , आ गया नव-वर्ष  ----- आ गया नव-वर्ष---
मंहगाई ने तोडी नींद , सपने हुए वे-उम्मीद
आँखों में भरे है आँसू , मैं घर में किसको तांसू
चिंता का लगा है मर्ज ----- आ गया नव-वर्ष -----
चीनी से चॉंद गंजी , याद आयी पुरानी मंदी
गेहॅूं का खरीदूं आटा , लगता है जैसे चांटा
सरकार ना खाये तर्स ----- आ गया नव-वर्ष ------
हर चीज हो गयी महंगी , इज्जत के उतरे दाम
मूंगफली भी है महंगी , खाउं मैं कैसे बादाम
निभता नहीं कोई फर्ज ----- आ गया नव-वर्ष -------
ले के उधारी घर मे , आयी मिठायी भारी
वीबी से कह रहे थे ,ये प्यार है मेरा प्यारी
हो गया लम्बा कर्ज ------ आ गया नव-वर्ष ----------
प्याज की आयी आँधी , बनिया भी मारे दांडीं
लहसुन ने पैंग बढायी , महंगी हो गयी चटायी
चलता ना घर का खर्च ----- आ गया नव-वर्ष --------
सब कहते हैंप्पी न्यू ईयर , कैसे हो प्यारे डियर
रहते हो किसके नियर ,क्या पहना है अंडर-वियर
पूछे सभी कम जर्फ ------- आ गया नव-वर्ष ----------!!
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           माँ याद आयी है ------
सजी है शाम माँ के नाम तो माँ याद आयी है
मेरे ख्वाबों ख्यालों में , वो देखो मुस्करायी है
माँ के साये में गुजरा ,मेरा वो बचपना सुन्दर
मगर अब तो जवानी भी , लगती गहरी खायी है
                    मेरे ख्वाबों ख्यालों में -----------
नहीं जन्नत कोई देखी ,खुदा का नूर ना देखा
मैंने तो माँ की आँखों से, ये सारा जहाँ देखा
जमाने का हर एक रिश्ता, झूठा है फरेबी है
मुकद्दर वाला वो जिसने , माँ की दौलत पायी है
                    मेरे ख्वाबों ख्यालों में ------------
गया परदेश तो देखा, सभी कुछ था लुभाना सा
बिन माँ के मगर लगता, वो आलम भी पुराना सा
एक तस्वीर मैं लेकर गया था , माँ की संग अपने
मेरी खुशियों की दुनिया में , माँ की ही परछांयी है
                      मेरे ख्वाबों ख्यालों में -----------
नहीं होती माँ जिनकी, कलेजा उनका फटता है
जमाने का हर एक रिश्ता, दे ताने डपटता है
ना दो दुःख कोई माँ को , खुदा भी रूठ जायेगा
मोहब्बत की हकीकत की , बस माँ ही सच्चाई है
                       मेरे ख्वाबों ख्यालों में ----------
मतलब स्वार्थ की दुनिया में , बस माँ वफा करती
वो अपने बच्चों की खातिर, सारे सुख स्वाह करती
माँ का प्यार पाने को , राम-कृष्णा भी ललचाये
झुके ‘‘सागर’’ फरिश्ते भी ,फटी जब भी बिवायी है
                      मेरे ख्वाबों ख्यालों में ----------!!
         ------------
       क्या है  जिन्दगी ?
हंसना है जिन्दगी
रोना है जिन्दगी
गिरकर संभल जाने को
कहते हैं जिन्दगी ---- हंसना है जिन्दगी
यूं तो उजड़ जाते हैं
कितने ही आशियाने
सपनों का महल बनाने को
कहते हैं जिन्दगी ----- हंसना है जिन्दगी
‘‘सागर’’भी हो पास
नदियां भी बहे कितनी
आँसुओं को पी जानें को
कहते हैं जिन्दगी ----- हंसना है जिन्दगी
तूफान भी आतें हैं
सैलाब भी आते हैं
इन सबसे भी कहीं ज्यादा
वीरान है जिन्दगी ----- हंसना है जिन्दगी
कांटों से घीरे रहना
अकेले राहों पर चलना
गुन गुनाने मुस्कराने को
कहते हैं जिन्दगी ------ हंसना है जिन्दगी !!
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       --------
          पीने भी दो -----
पीने दो मुझे ओ यारा - पीने भी दो
ना दो मुझे कोई सहारा - पीने भी दो ------
                    पीने दो मुझे ओ यारा -----
उठ उठ के गिरूंगा गिरने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
ना दो मुझे कोई सहारा ---- पीने भी दो -----
                     पीने दो मुझे ओ यारा ------
मेरे दिल के टुकडे कहते हैं
यहाँ बेवफा ही रहते हैं
यहाँ तोडे दिल - दिलदारा --- पीने भी दो ----
                     पीने दो मुझे ओ यारा -------------
मेरी आँख के आँसू बहते हैं
उस बेवफा को कहते  हैं
अब गली ना तेरी आना --- पीने भी दो -----
                     पीने दो मुझे ओ यारा ----
गिन गिन के प्याले क्या पीना
घुट घुट के जीना क्या मरना
‘‘सागर’’ सब करो किनारा ----- पीने भी दो ----!!
      ---------
      हिन्दी का विरोध ---
आग कैसी ये देखो ,   सुलगने लगी
सपनों की नगरियॉं ,  जलने लगी
है जिनकी जन्म और कर्म भूमि ये
नजरों में उन्हीं के, ये खलने लगी
                 आग कैसी ये देखो ------
हिन्दी है हम वतन के इस देश में
हिन्दी बालों पै टूटे सितम देश में
राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा की परवाह नहीं
उनकी नीति घिनौनी जो चलने लगी
                     आग कैसी ये देखो ------
हिन्दी से पहचान हिन्दुस्तान की
हिन्दी भाषा है जॉं हिन्दुस्तान की
खुद को हिन्दू कहें परहेज हिन्दी से
सूरतें उनकी कितनी बदलने लगीं
                    आग कैसी ये देखो ------
हमने सबको गले से लगाकर रखा
शिवाजी था मराठा घर अपने रखा
फर्क हमने किया ना भाषा -भेस में
फिर भी गोलियां हमपर ही चलने लगीं
                    आग कैसी ये देखो ------
चन्द गद्दार मनमानी करने लगे
देश को टुकडों में ही करने लगे
दे दो फांसी इन्हें देर किस बात की
भारती माँ गुजारिश ये करने लगी
                    आग कैसी ये देखो -------!!
            ------
              ये शब्दों के शूल अगर चुभ जाते हैं -----
सदा रसाई रख तू , अपनी वाणी में
रम जाये जो मधु , छलकते पानी में
जीवन में कडवाहट सी भर जाते हैं
ये शब्दों के शूल , अगर चूभ जाते हैं
जीवन में कडवाहट सी -----------
वाणी जैसा वार नहीं , तलवारों में
वाणी जैसी अगन नहीं , अंगारों मे
मन आंगन,घर,बाहर तक, जल जाते हैं
ये शब्दों के शूल ----------
लहू बहाकर, लाल धरा को कर डाला
कुरू क्षेत्र सा, रण शब्दों ने दे डाला
महारथी भी, तीरों पर टंग जाते हैं
ये शब्दों के शूल ---------
हो जाये तो , थोडा दर्द दवाया कर
कभी कभी मन को भी, समझाया कर
ढह जाते जो , जन्म - जन्म के नाते हैं
ये शब्दों के शूल ---------
देख भुलाकर कडवी-कडवी बातों को
याद ना कर मिलनें वाले,आघातों को
लौट,लौटकर आते हैं , टकराते हैं
ये शब्दों के शूल ---------
हरियाली मुरझा जाती है, गॉव में
धूप सुलग उठती है , ठण्डी छांव में
अन्तर तक में , घाव बहुत कर जाते हैं
ये शब्दों के शूल , अगर चुभ जाते हैं ----!!
       --------

    हैप्पी वैलेन्टाईन्स डे
प्यार पै भारी फाईन है ,देखो वैलेन्टाईन है
जो भी मांझी संग पकडा
डण्डों का बदन पर साईन है ----- देखो वैलेन्टाईन है
घर से संभल ,संभल जाना , बीवी को भी मत संग ले जाना
बैठे जो कहीं होटल में संग
मीडिया की वहॉ लम्बी लाईन है ----- देखो वैलेन्टाईन है
फूल के बदले शूल मिलें , राहों में जो किसी से पेच लडें
मोहब्बत का नशा उतरे नीचे
खाकी का गुस्सा टाईन है ------देखो वैलेन्टाईन है
तैरहा में मिलो पन्द्रहा में मिलो ,चौदह में एस0एम0एस0 युद्ध करो
यादों में गुम होकर देखो
ख्वाबों की खुली बाईन है ------ देखो वैलेन्टाईन है
हर ओर खौफनाक पहरे , मिलने पर बादल है गहरे
सरे - राह मिलने पर कर्फ्यू
सपनों की खुली सब लाईन है ----- देखो वैलेन्टाईन है
बजरंग दल यूं फुफकार रहा ,पश्चिम को वो ललकार रहा
वैलेन्टाईन पर रोक लगाने को
शिव सेना ने खोली ज्वाईन है ----- देखो वैलेन्टाईन है
इंकलाब करो मिलने वालों ,खुलकर मिलो मिलने वालो
कह दो जमाने से तुम ‘‘सागर’’
पी हमने इश्क की वाईन है ------ देखो वैलेन्टाईन है !!
      -----
     
       गीतकार - डॉ0 नरेश कुमार ‘‘सागर’’
ग्राम - मुरादपुर - सागर कॉलोनी , गढ रोड - नई मण्डी
       जिला - पंचशील नगर - हापुड ‘‘उ0प्र0’’

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर 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रचनाकार: डॉ0 नरेश कुमार ‘‘सागर’’ की कविताएँ
डॉ0 नरेश कुमार ‘‘सागर’’ की कविताएँ
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