1.जनक्रांत हे नारायण मुझको ऐसा वरदान दो कुछ ऐसा लिखूं जन-जन में क्रांति का संचार हो नस-नस में स्फूर्ति और देश भक्ति का प्रवाह हो घर -घर ...
1.जनक्रांत
हे नारायण मुझको ऐसा वरदान दो
कुछ ऐसा लिखूं जन-जन में क्रांति का संचार हो
नस-नस में स्फूर्ति और देश भक्ति का प्रवाह हो
घर -घर से हर बालक -बालिका मातृभूमि पर मिटने तैयार हो
हे जनार्दन मुझको ऐसा वरदान दो ।
राष्ट्रद्रोहियों के सर कट जाए कलम मेरी तलवार हो ,
अबला, निर्बला, बेबस का अभिशाप मिटाकर
हर स्त्री रणचंडी का अवतार हो ।
हे यशोदा नंदन मुझको ऐसा वरदान दो। मेरी कलम कुछ ऐसा कर दे
भ्रष्टाचार का नामोनिशान ना हो
हर अत्याचारी थरथर कांपे
नरसिंह का पुनः अवतार हो ।
हे जगन्नाथ मुझको ऐसा वरदान दो।
मेरे सैनिकों के पास भी दिव्य अस्त्र -शस्त्रों का भंडार हो
शत्रुओं को नेस्तनाबूद कर दे
हर तरफ भारत की जय जयकार हो
हे देवाधिदेव मुझको ऐसा वरदान दो।
2.मन की शक्ति
सर्वोच्च शक्ति है मन की शक्ति
इस पर नियंत्रण से ही होती है सफलता की प्राप्ति
जप, तप, उपवास से की जाती है इस पर नियंत्रण की युक्ति
उपवास करके भी हो अगर खाने पर आसक्ति
स्वादिष्ट मिठाईंया
अगर हमें अपनी और लुभाती
फिर निरर्थक है उपवास की युक्ति
तब बढ़ानी होगी हमें मन की शक्ति।
तप करके भी अगर ना मिले मन को शांति
निराशा अगर हमें हर समय घेरे रहती
तो बढ़ानी होगी हमें मन की शक्ति ।
जप के समय अगर चिंताएं है सताती
कोई टीस हृदय में
अगर है बार बार उठती
तो बढ़ानी होगी हमें मन की शक्ति ।
ईश्वर स्मरण के समय भी अगर न मिले विचारों से मुक्ति
भूली बिसरी यादें
स्मरण में है बाधा डालती
तो बढ़ानी होगी हमें मन की शक्ति ।
विद्या मंदिर में बैठकर भी
अगर हो चंचल मन की गति
हो रही हो अगर हर दिन
अभ्यास की क्षति
तो बढ़ानी होगी हमे मन की शक्ति।
प्राप्त करनी हो
अगर हमें यह विभूति
तो अपनानी होगी पूर्वजो की
साधना और ध्यान पद्धति
ऋषि दुर्वासा ,विश्वमित्र की यह धरती
हर किसी को
यही संदेश है देती
अगर करनी हो
अपने लक्ष्य की प्राप्ति
जप, तप,साधना
और ध्यान से बढ़ाओ मन की शक्ति
मन की शक्ति ही हमे हीन भावना से है उबारती
बढ़ेगी अगर मन की शक्ति
तभी होगी प्रगति
सर्वोच्च शक्ति है, मन की शक्ति
3.भय.....
हर किसी को है, कोई ना कोई भय
भय से ही होता है शारीरिक क्षय
किसी को मृत्यु का भय
तो किसी को असफलता का भय
किसी को ऊंचाई का भय
तो किसी को जल का भय
किसी को आग का भय
तो किसी को अंधकार का भय
जब तक नहीं पाओगे भय पर जय
तब तक जीवन लगेगा संकटमय
भय के कारण ही मिलेगी केवल परजय
जीवन लगेगा निरस, बेबस और चिंतामय
अगर बनाना चाहते हो जीवन को आनंदमय
तो उठो करो पहले यह दृढ़ निश्चय
बिना डरे लूंगा मैं हर निर्णय
पहल करूंगा हर वक्त, झटका कर निकाल फेकूंगा भय
विचलित हुए बिना दूंगा अपने हौसले का परिचय
आगे बढूंगा हर वक्त होकर मैं निर्भय
तभी तो होगा मेरा और मेरे देश का अभ्युदय।
अपने कृतित्व सेकर दूंगा मैं सबका जीवन मंगलमय
हे ईश्वर ऐसी शक्ति देना आनामय
देश की गरिमा रख सकु अक्षय।
4.बप्पा और टीचर
देखना चाहते थे गणपति बप्पा इस बार
बच्चे किन्हें करते हैं ज्यादा प्यार,
शिक्षक हैं महत्वपूर्ण या मेरा त्यौहार।
खुश हो गए बप्पा देखकर
बच्चों का शिक्षकों के प्रति प्यार,
बच्चों से जाकर बप्पा ने किया
एक विचित्र सवाल।
मुझसे ज्यादा क्यों है तुम्हें
अपने टीचर्स से प्यार,
बच्चों ने कहा बप्पा
आए हो तो समझो हमारी परेशानी,
और कर दो ऐसा चमत्कार
आप की तरह ही हो साल में टीचर का दर्शन एक बार।
ना कोई पढ़ाई ना होमवर्क
ना हो शिक्षकों का अत्याचार,
ऐसा कर सकते हो तो बोलो
हम करेंगे टीचर से ज्यादा आपको प्यार।
बप्पा ने सोचा यहाँ से भागने में ही है समझदारी,
किसी टीचर ने सुन लिया तो होगी
मुर्गा बनने की अब मेरी बारी।
5.भारत भूमि
भारत की इस विलक्षण भूमि को
करो शत शत प्रणाम,
हर एक को इसने अपनाकर
दे दिया शत्रुता को विराम।
आक्रमणकारी तुर्क हों
या हों लुटेरे अंग्रेज,
सबका स्वागत किया इसने
बिछाई फूलों की सेज।
लुटेरे बन बैठे शासक
शुरू हुआ उनका राज,
देशभक्त पर गोलियाँ चलाई
पहना हिंदुस्तान का ताज।
200 वर्षों तक खून बहाया
मिटा दिए सारे तख्तो ताज,
फिर भी हम मेहमान समझकर
निभाते रहे अतिथि देवो भव का रिवाज।
भारत की इस विलक्षण भूमि को
करो शत शत प्रणाम,
हर एक को इसने अपना कर
दे दिया शत्रुता को विराम।
खूब लूटा भारत को
बिल्कुल कंगाल बनाया,
देख हर तरफ भुखमरी
फिरंगी बहुत हर्षाया।
कुछ ना बचा यहाँ अब
यह सोच जाने का मन बनाया,
जाते जाते विभाजन का
अंतिम आघात पहुँचाया।
माउंटबेटन के इस निर्णय को भी
हमने हँसते-हँसते गले लगाया,
भारत की इस विलक्षण भूमि को
करो शत-शत प्रणाम,
हर एक को इसने अपनाकर
दे दिया शत्रुता को विराम।
70 वर्षों में फिर से हमने
एक नया हिंदुस्तान बनाया,
सभी धर्म जाति को लेकर
एक नया उपवन सजाया।
भुखमरी, कंगाली का यहाँ से
नामो निशान मिटाया,
हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन
फिर सोने की चिड़िया कहलाया।
भारत की इस विलक्षण भूमि को
करो शत-शत प्रणाम,
हर एक को इसने अपनाकर
दे दिया शत्रुता को विराम।
निशस्त्रीकरण की शर्त रख कर
विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाया,
प्रेम, अहिंसा, शांति का संदेश देकर
विश्व गुरु कहलाया।
विश्व की डगर पर मेरा
तिरंगा हर तरफ लहराया,
भारत की इस विलक्षण भूमि को
करो शत-शत प्रणाम,
हर एक को इसने अपनाकर
दे दिया शत्रुता को विराम।
6.बेटी
देवों में है जो महान देव,
बिना पार्वती के वे भी हैं असंभव,
सभी देवताओं ने जिसे है शक्ति रूप माना,
जिसके बिना असंभव था महिषासुर पर विजय पाना,
माँ, बहन, पत्नी बनकर
समाज में दिलवाती है वह आपको मान और सम्मान,
इसीलिए अपनी अर्धांगिनी बनाकर
महादेव जी ने दिया उसे उच्च स्थान।
मान्य है आपको शक्तिरूप में
उसे पूजना और करना अराधना,
पसंद है आपको उसे माँ और पत्नी के रूप में पाना,
फिर क्यों नहीं है पसंद उसका
केवल बेटी के रूप में आना?
फिर क्यों नहीं है पसंद उसका
केवल बेटी के रूप में आना?
7.माँ
सभी रिश्तों की बुनियाद है माँ,
सभी भावनाओं का मिलन स्थल है माँ,
भगवत गीता का उपदेश है माँ,
बाइबल का प्रवचन है माँ।
कुरान की आयतें है माँ।
विश्व का सबसे पवित्र ग्रंथ है माँ,
सभी रिश्ते की बुनियाद है माँ,
सागर की गहराई है माँ,
आसमान की ऊंचाई है माँ।
सृष्टि का गूढ़ रहस्य है माँ,
सभी रिश्तों की बुनियाद है माँ,
सूर्य का प्रकाश है माँ,
चंद्रमा की शीतलता है माँ।
शिवाजी की शूरता है माँ,
राम की मर्यादा है माँ,
विपत्ति में धैर्य है माँ,
सभी रिश्ते की बुनियाद है माँ।
पथिक के लिए शीतल छाया है माँ,
अनाथ बालक की सिसकियाँ है माँ,
हर रोते बालक की लोरी है माँ,
दया और करुणा का पर्याय है माँ।
दुष्टों का संहार है माँ,
पराजित के लिए आश्रय स्थल है माँ,
निर्बल के लिए बल है माँ,
सभी रिश्तों की बुनियाद है माँ।
8.भय
हर किसी को है कोई ना कोई भय,
भय से ही होता है शारीरिक क्षय।
किसी को मृत्यु का भय,
तो किसी को असफलता का भय,
किसी को ऊँचाई का भय,
तो किसी को जल का भय।
किसी को आग का भय,
तो किसी को अंधकार का भय,
जब तक नहीं पाओगे भय पर जय,
तब तक जीवन लगेगा संकटमय।
भय के कारण ही मिलेगी केवल परजय,
जीवन लगेगा नीरस, बेबस और चिंतामय,
अगर बनाना चाहते हो जीवन को आनंदमय,
तो उठो, करो पहले यह दृढ़ निश्चय,
बिना डरे लूँगा मैं हर निर्णय,
पहल करूँगा हर वक्त,
झटका कर निकाल फेंकूँगा भय,
विचलित हुए बिना दूँगा अपने हौसले का परिचय।
आगे बढूँगा हर वक्त होकर मैं निर्भय,
तभी तो होगा मेरा और मेरे देश का अभ्युदय,
अपने कृतित्व से कर दूँगा मैं सबका जीवन मंगलमय,
हे ईश्वर ऐसी शक्ति देना आनामय,
देश की गरिमा रख सकूँ अक्षय।
9.दीपावली
दीपावली का यह पर्व
है बहुत ही खास,
14 वर्ष का वनवास
पूर्ण कर लौटे थे श्री राम
अयोध्या अपने निवास।
इसी दिन श्री कृष्ण ने
नरकासुर का वध कर
जीता था
जनता का विश्वास,
इसी दिन महावीर स्वामी ने
लेकर निर्वाण
समाप्त किया था
अपना जीवन प्रवास।
इसी दिन 1577 में
अमृतसर में हुआ
स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास,
धनतेरस से प्रारंभ होता है
दीपावली का यह उल्लास।
धन्वंतरि की पूजा कर
प्राप्त किया जाता है स्वर्ण का प्रभास,
नरक चतुर्दशी के बाद आता है
भाई दूज का पर्व खास।
लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए
किया जाता है घर का विन्यास,
दीपों को जलाकर किया जाता है
प्रकाश आसपास।
अमावस्या की तिथि और
होता है कार्तिक मास,
धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी
महालक्ष्मी का निवास।
इस दिन रखा जाता है
महालक्ष्मी का उपवास,
होती खूब आतिशबाजी
और मिठाइयों की मिठास।
महालक्ष्मी आशीष देने
आती हैं उनके पास,
जहाँ होती है साफ-सफाई
और सजावट खास।
लक्ष्मी के आने का
होता है आहसास,
सत्य की होती है जीत
झूठ का हमेशा नाश,
दीपावली का यह पर्व जगाता है
हम सब में यह विश्वास।
- अनुपमा रवींद्र सिंह ठाकुर
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