पू रा शहर परेशान था, डरा हुआ था, पुलिस चिन्ता और तनाव में थी। सच पूछो तो पुलिस भी डरी हुई थी। यद्यपि पुलिस और लोगों के डर के कारण अलग-अलग थ...
पू रा शहर परेशान था, डरा हुआ था, पुलिस चिन्ता और तनाव में थी। सच पूछो तो पुलिस भी डरी हुई थी। यद्यपि पुलिस और लोगों के डर के कारण अलग-अलग थे। दरअसल बात यह थी कि शहर में चोरी की वारदातें इतनी बढ़ गयी थीं कि लोगों की रात की नींद हराम हो गयी थी। शहर के बहुत सारे गली, मोहल्लों तथा सोसायटीज में रात को लोग खुद पहरा लगाने लगे थे। चोरी की बढ़ी हुई वारदातों को लेकर मीडिया पुलिस की खाल खींच रहा था। चोरों ने पुलिस की इज्जत सरेआम लूट ली थी। पुलिस की इतनी मिट्टी पलीद हो रही थी कि वह लोगों को मुँह दिखाने से भी कतरा रही थी।
बहरहाल पूरा शहर आतंक के साये में जी रहा था। इस बीच एक ऐसी घटना घटी कि लोग थर्रा उठे। अब रात को पहरा देना भी मुमकिन न रहा। हुआ यह कि कल रात लोगों ने शहर के आसमान में मंडराते हुए दो तीन बड़े-बड़े साये देखे। लोगों में बातें होने लगीं कि आसमान में काले अबनूसी रंग के साये मंडराते हैं। उनके माथे पर सुलगते अंगारे जैसी लाल-लाल चमकती आँखें होती हैं। बहुत ही डरावना मंजर हो जाता है। डर के मारे लोग घर में दुबक कर बैठ गये। सोचने लगे कि ये कौन होगा। इतने बड़े कद काठी के कोई पक्षी नहीं हो सकता। ये काले साये तो आदमकद से भी बड़े-बड़े हैं। लोगों ने जैसे-तैसे रात बिताई। दिन भी गुजरा। किन्तु शाम होते-होते शहर में एक खबर फैल गई कि पुलिस ने चोरों के पूरे गिरोह को गिरफ्तार कर लिया है। चोरों ने 200 से ज्यादा चोरी कुबूल भी कर ली हैं। बात सुनकर लोगों ने चैन की साँस ली। चोर गिरफ्तार हो गये हैं इसी चर्चा में लोग कल रात वाले आकाश में मंडराते काले-काले मनहूस साये को प्रायः भूल गये। लेकिन दूसरे दिन की सुबह लोगों के रोंगटे खड़े कर देने वाली साबित हुई। सभी अखबारों की सुर्खियों में रहस्यमय, अनजान, मंडराते काले-काले मनहूस सायों का ही जिक्र था। खबर में कहा गया था, कल जो चोर गिरोह पकड़ा गया था उसका सुराग इन्हीं उड़ रहे अनजान सायों ने दिए थे।
आकाश में मंडराते अनजान, रहस्यमय सायों ने अपनी पहचान “चमगादड़’ नाम देकर कराई थी।
यह सुन लोग हक्का-बक्का रह गये। सब एक-दूसरे से पूछ रहे थे, यह कैसे संभव है कि कोई चमगादड़ पुलिस को चोरों के गिरोह का अता-पता बता दे? एक पक्षी पुलिस की खबरी कैसे हो सकती है? एक दूसरी बात भी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, चमगादड़ तो कई देखे हैं पर इतने बड़े-बड़े कदापि नहीं। जब चमगादड़ को लेकर लोगों में चर्चा का बाजार गर्म था तब उसी समय शहर के वरिष्ठ पुलिस आयुक्त ए.के. सिंह अन्य आला अफसरों के साथ गुप्त बैठक में व्यस्त थे। वरिष्ठ पुलिस आयुक्त श्री सिंह कह रहे थे- “यह चमगादड़ चाहे कोई भी रहा हो, लेकिन उसने हमारी ...अर्थात पुलिस की इज्जत रख ली है। आज से यदि शहर में चोरी बन्द हो जाती है तो समझो हम गंगा नहाए। लेकिन अब हमें हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना चाहिए। हम ये नये खबरी के सहारे बैठे नहीं रह सकते। हम पुलिस हैं और शक करना हमारी सफलता की पहली सीढ़ी है। यह भी सम्भव है कि चोरों को पकड़वाने वाले चमगादड़ ही चोर हो। ये उड़कर आसानी से कहीं भी जा सकते हैं। ये चोरी करके उड़ जाएंगे तो कौन उन्हें देख पायेगा? उन्होंने खुद को बचाने के लिए ये छोटे-मोटे चिंदी चोरों को हमारे हाथ में दे दिया हो और वे खुद चोरी करते फिरेंगे। शक करना हमारा फर्ज है। अब हमें यह सोचना है कि यह चमगादड़ हैं कौन तथा उन्हें पकड़ेंगे कैसे?
पुलिस आयुक्त्त उधर अपने अफसरों के साथ सलाह मशविरा कर रहे थे तब म. स. विश्वविद्यालय के विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. गोस्वामी अपने खास छात्रों को आदेश के स्वर में सूचित कर रहे थे कि अब कोई नहीं जाएगा चमगादड़ बन कर आकाश में। यह कोई मनोरंजन का साधन नहीं है। आप सब जानते हैं कि हमारे एक ही प्रयोग से नगर के लोग कितने डर गये हैं? हम जिम्मेदार नागरिक हैं। सो दुबारा इस प्रयोग के लिए अनुमति नहीं दे सकता।
चमगादड़ हमारा सफल उड्डयन प्रयोग रहा, उसका उपयोग कर हमने चोरों को पकड़वाया भी। इस प्रयोग के द्वारा हमने यह सिद्ध कर दिया कि हमारी यह वैज्ञानिक खोज मानव उपयोगी तथा कल्याणकारी है। किन्तु अब दूसरा प्रयोग नहीं। अब कोई चमगादड़ बनकर रात को आकाश में उड़ेगा नहीं, यह मेरा आदेश है।
डॉ. गोस्वामी सदैव ऐसा सोचते थे, कोई ऐसी खोज करनी चाहिए जिससे मानव जीवन सरल, सुविधा पूर्ण हो सके। विज्ञान का प्रयोग मानव और समाज जीवन की समस्याओं के समाधान हेतु करना ही उनके जीवन का लक्ष्य रहा है। डॉ. गोस्वामी उनके पाँच खास छात्रों को लेकर गत दो सालों से ऐसे प्रयोग में व्यस्त थे जिससे पर्यावरण में फैले विषाक्त वायु, कीटाणु तथा अतिशय ट्राफिक के कारण बढ़ती दुर्घटना दर आदि पर नियन्त्रण हो सके। डॉ. गोस्वामी जाने-माने विज्ञानी थे। पर प्रकृति से वह निसर्ग प्रेमी थे। अतः जब भी फुरसत मिलती तब वह जंगल व पहाड़ियों की सैर को निकल जाते थे। विविध वृक्ष और पेड़-पौधे तथा पक्षियों के उड्डान के तौर तरीके आदि का अध्ययन करने में उनकी रुचि थी। पक्षियों के परों की बनावट, उड़ान में समाविष्ट एरो डायनेमिक सिद्धांतों का तो वे गहराई से अध्ययन करते थे। पंछी कैसे उड़ते है, उसकी हवा पर तैरने की तकनीकी, उसके परों की संरचना, पंछी का पर उपर उठाना तथा नीचे ले आने की रीति, समय, गति प्राप्त करने की प्रक्रिया, उपर से एकदम नीचे की ओर झपटना और दूसरे ही क्षण उपर की ओर उड़ान भरना इत्यादि क्रियाओं का बारीकी से अध्ययन करना उसका उद्देश्यपूर्वक कार्य था। उसको भी पंछी की तरह उड़ने की ख्वाहिश थी।
एक दिन डॉ. गोस्वामी अपने पाँच खास छात्रों को लेकर नगर के नजदीक रही सैकड़ों वर्ष पुरानी पहाड़ी पर गये। पहाड़ी पर जंगल था, उसमें प्राचीन गुफाएं थीं। डाक्टर इन गुफाओं में ऐसी कौन सी विशेषता है कि उसमें साधना करने वाले अध्यात्म के क्षेत्र में महामानव हो गये। गुफा में दीर्घ काल तक भूखे-प्यासे रह सकते थे। डॉ. गोस्वामी इसका रहस्य पाना चाहते थे। इस हेतु एक हफ्ते के लिए पहाड़ी पर रहने का आयोजन कर के आये थे। छात्रगण दिन भर जंगल में घूमते रहते थे पर डाक्टर एक गुफा में बैठे रहते थे। गुफा का पर्यावरण था उसका मन एवं शरीर पर हो रहे प्रभाव को नोट करते रहते थे। दो दिन बाद डाक्टर ने एक नई, संकरी तथा अधिक गहरी गुफा में प्रवेश किया। इसमें मध्याैर्ं तक तो प्रवेश रहता था, फिर अन्धेरा होने लगता था। गुफा में एक विशेष प्रकार की गंध फैली रहती थी। उन्होंने देखा कि गुफा में चालीस-पचास मीटर दूर बिल्कुल अन्धेरा छाया हुआ था। उन्होंने टॉर्च जलाया। टॉर्च के प्रकाश में उन्होंने देखा, सैकड़ों चमगादड़ लटक रहे थे। गुफा में फैली गंध चमगादड़ों की थी, उसकी समझ में आ गया। पंछी तथा उनकी उड़ान के विषय में उनका जो अध्ययन था उसी के परिणामस्वरूप उसके मन में एक नितांत नयी परिकल्पना साकार होने लगी। उनके मन में प्रतिघोष हुआ ः चमगादड़!! हाँ ....चमगादड़ !!
तुरंत गुफा से बाहर आ गये। पेड़ के नीचे एक शिला पर लेट गये। जाग्रतावस्था में स्वप्न देखने लगे। कब शाम हुई उन्हें पता ही नहीं चला। जब छात्रों की आहट सुनाई दी तो वे खड़े होकर बैठ गये। उनके चेहरे पर अनोखा स्मित था तथा आँखों में अनूठी चमक थी। साहब जी के चेहरे पर रही चमक को देख कर छात्रों को प्रतीत हो गया कि हो न हो, आज कुछ अजूबा होने वाला है ! लेकिन क्या ? जवाब पाने को तत्पर सब कैम्प साईट पर गये। आग जलाई गयी, खाना पकाना शुरू हुआ।
शाम ढलने लगी और उधर गुफा से सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ बाहर आने लगे। हालांकि छात्रों का ध्यान चमगादड़ों की ओर नहीं था। लेकिन डॉ. गोस्वामी घास पर लेटे-लेटे चमगादड़ों का निरीक्षण कर रहे थे। साहब जी की मुद्रा देख छात्रों को एहसास हो रहा था कि गुरुजी गहरी सोच में डूबे हुए हैं। किन्तु वे अनुमान नहीं लगा पाते थे कि साहब जी चमगादड़ों के विषय में सोच रहे हैं। काफी देर बाद डाक्टर साहब उठ खड़े हुए और पालथी मारकर बैठ गये। फिर छात्रों को सम्बोधन करते हुए कहने लगे, “सुनो, दोस्तों! आज से हमारे अनुसन्धान का विषय है चमगादड़। हम उनसे सीखेंगे कि आदमी कैसे उड़ सकता है। आज से हमारे मिशन का नाम “मिशन उड़ान’ रहेगा।
इस घोषणा के परिणामस्वरूप छात्रों में रोमांच की सिहरन सी फैल गयी। संदीप नामक छात्र ने अति उत्साह में पूछ भी लिया, “सर, हम उड़ेंगे कैसे?” “लो, संदीप तो उड़ने लगा” साहबजी ने मजाकिया स्वर में कहा। फिर गंभीर होकर कहने लगे, “हम उड़ेंगे जरूर। पर इसके लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी, चमगादड़ों के क्रिया-कलापों का अध्ययन करना होगा, उनके परों की संरचना समझनी होगी। एड़ी-चोटी का जोर लगाकर परिश्रम करना होगा। कल सुबह हमें मृत चमगादड़ों के शव ढूढ़ने होंगे। हमें अभी पाँच-छः दिन और रुकना पड़ेगा। मुझे दो एक साथियों की आवश्यकता रहेगी। जिसको जाना हो तो वे जा सकते हैं। मगर छात्रों ने सबके साथ रहने की इच्छा जताई। डाक्टर साहब ने खुशी-खुशी हामी भर दी। रात काफी हो चुकी थी अतः आँखों में आकाश में उड़ने के सपने संजोकर सब निद्राधीन हो गये।
सुबह दो-तीन छात्र राशन पानी लेने नीचे जा रहे थे तब डाक्टर साहब ने कहा, “हमें एक वीडियो कैमरे की आवश्यकता रहेगी, मैं चमगादड़ों की उड़ान को शूट करना चाहता हूँ। हमारा सारा शोधकार्य चमगादड़ों की उड्डयन पद्धति पर ही निर्भर है। फलतः उनकी हर तरह की उड़ानों को हमें शूट करना होगा। ठीक है, तो तुम लोग एक अच्छा-सा वीडियो कैमरा लेकर आना।”
अब डाक्टर साहब ने बाकी छात्रों को साथ लेकर चमगादड़ों के शवों को ढूँढना शुरू किया। वैसे गुफा से तो चमगादड़ के शव नहीं मिले। वह निराश होकर गुफा से बाहर आकर पेड़ के नीचे बैठ गये। थोड़ी देर बाद छात्र चमगादड़ के दो शव लेकर आए। एक सामान्य आकार का था पर दूसरा उससे थोड़ा बड़ा था। दोनों के सर सड़ चुके थे, पर पंख सलामत थे और पूरे फैले हुए थे। डॉ. गोस्वामी ने बिना समय गंवाए मृत चमगादड़ों के परों के नाप लेना शुरू कर दिया। एक के दोनों पर मिलाकर 01.5 मीटर की लम्बाई के थे, तो दूसरे के परों की लम्बाई तकरीबन .01 मीटर से अधिक थी। डॉ. गोस्वामी उन दोनों पक्षियों की उम्र का अंदाजा लगाने लगे। दो दिन तक खोजबीन करने के पश्चात डाक्टर का कारवां नगर की ओर वापस चल पड़ा। अब उनके पास चमगादड़ के भिन्न-भिन्न कद के 09 शव थे ।
घर पहुँचने पर भी डाक्टर के मन में चमगादड़ों के ही विचार घुमड़ते थे। सोने की चेष्टा की पर सो न सके। वे उठ खड़े हुए और चमगादड़ों के मृत शरीर लेकर लैब में चले गये। उनके घर के पीछे ही लैब थी। लैब के टेबिल पर चमगादड़ के नौ मृत शरीर को रखकर डॉ. सोच रहे थे। मन में एक साथ कई बातें उभर रही थीं। मन में आ रहे विचारों में से कोई विचार छूट न जाए यह सोच उन्होंने नोट करना शुरू कर दिया। डॉ. गोस्वामी ने घड़ी की ओर देखा तो ज्ञात हुआ कि पूरे आठ घंटे गुजर चुके थे। यद्यपि आंखों में नींद नहीं थी पर सोना जरूरी था।
सुबह चाय नाश्ता करके वे सीधा लैब में चले गये। कम्प्यूटर पर चमगादड़ सम्बन्धी वेबसाइट खोलकर आवश्यक सूचनाएं इकठ्ठी करने लगे। छात्रों के आने से पहले डाक्टर ने कई प्रिंट निकाल लीं। छात्रों के आने पर उनके हाथों में प्रिंट थमाकर कह दिया कि इनको गौर से पढ़ो तथा चमगादड़ के परों के विषय में कोई सूचना मिले तो इसे रेखांकित करे। अब मैं थोड़ा विश्राम करूँगा। शाम होते ही मुझे जगा देना।
मगर डाक्टर स्वयं ही जाग गये। सबके लिए चाय नाश्ता लेकर लैब में आए, “हाय! एवरी बडी! गुड इवनिंग टू ऑल! क्यों दोस्तों! पढ़ लिया क्या? कोई महत्वपूर्ण बात मिली? “सभी छात्र अपनी-अपनी प्रिंट लेकर आ गये। सभी टेबिल के चारों तरफ बैठ गये। फिर एक-एक ने अपने प्रिंट खोलकर रख दिए। डाक्टर ने हरेक प्रिंट को गौर से देखा। बहुत सारे हाईलाईटस थे। इसका अर्थ यह हुआ कि चमगादड़ के पंखो के सम्बन्ध में काफी सूचनाएं प्राप्त हुई थीं। अब उन सूचनाओं के पढ़ना था तथा उनका सूचीकरण करना था।
कल सुबह फिर आने का आदेश देकर डाक्टर ने छात्रों को विदा किया। अब डाक्टर ने प्रत्येक सूचना को गौर से पढ़ना आरम्भ किया। वह देर रात तक पढ़ते रहे। सुबह बड़े तड़के उठकर पढ़ना शुरू कर दिया। सुबह दस बजते ही सभी छात्र आ गये। डाक्टर ने कहा, “दोस्तों! मैंने अधिकांश सूचनाएं पढ़ ली हैं, शेष जो बची हैं, वे पढ़ लेता हूँ। तब तक आप अपने-अपने प्रिंट लेकर बैठ जाइए तथा चमगादड़ के पंखों की संरचना संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं को नोट करते चलो।
इतना कर लेने के पश्चात् हम इन्हें पढ़ेंगे तथा तय करेंगे कि क्या हम ऐसे पंख बना सकते हैं? पंख बना सकते हैं तो किन-किन चीजों की आवश्यकता रहेगी, आवश्यक ये चीजें उपलब्ध होंगी, तो कहाँ उपलब्ध होंगी? सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह होगा कि हमारे द्वारा तैयार किये गये पंखों को लगा कर उड़ने का साहस कौन करेगा?
निरंतर अध्ययन, अनुसन्धान तथा परिश्रम के परिणाम स्वरूप डाक्टर ने पंख बनाने का साँचा तैयार कर लिया था। अब इसका अधिकृत व्यक्ति के पास इसका ड्राइंग तैयार करवाने के लिए उन्होंने नगर के अग्रणी स्थापित तथा मित्र भुवन देसाई को बुलावा भेजा। डॉ. गोस्वामी ने मित्र भुवन देसाई को “ओपरेशन चमगादड़’ के विषय में सम्पूर्ण जानकारी दी। मनुष्य की आकाश में उड्डयन की युगों से चिर संचित मनोकामना परिपूर्ण करने के लिए हमने इस अभियान का श्री गणेश किया है।” श्री भुवन देसाई ने डॉ. गोस्वामी को बधाई दी, और पूछा, “इसमें मैं क्या सेवा कर सकता हूँ?” बड़े उत्साह से डॉ. गोस्वामी ने कहा, “बस आप इन सूचनाओं के आधार पर पंखों के ड्राइंग बना दीजिए। प्लीज! “श्री भुवन देसाई के चेहरे पर उभर रही असमंजस की रेखाओं को पढ़कर डॉ. गोस्वामी कहने लगे, “भुवनजी क्या आपको मैं पागल लगता हूँ? देखिए हर हालत में हमें यह अभियान को सफल करना है। इसके लिए हमने इतनी तैयारी भी कर ली है।” इतना कहकर डाक्टर ने कागज को मेज पर फैलाकर रख दिया। इस पर खींची गई रेखाएं तथा तत्त्संबन्धी विवरण को गौर से पढ़कर पंखों की डिजाइन की तैयारी में लग गए। पन्द्रह दिनों के बाद डिजाइन आने के बाद ब्लू प्रिंट तैयार करवाने के लिए एरोडायनेमिक इंजीनियर सुरिन्दर सिंह खन्ना को बुलाया गया। इनको भी “ओपरेशन चमगादड़’ के विषय में सम्पूर्ण जानकारी देने के पश्चात् कहा गया कि हमें ऐसे पंख तैयार करने हैं जो 60 से 70 किलोग्राम वजन वाले मनुष्य को बिना किसी आधार के हवा में उठाएं रख सकें। इंजीनियर खन्ना ने वर्षों तक विदेशों में विमान निर्माण कम्पनियों में काम किया था। अतः वह जानते थे कि इस प्रकार के पंख तैयार करने के लिए उसमे कौन-सा मैटेरियल का प्रयोग करना होगा, पंख का आकार प्रकार कैसा होगा आदि। “ठीक है, मैं कोशिश करूँगा। “धन्यवाद!” डाक्टर ने बड़े उत्साह के साथ कहा। तब इंजीनियर खन्ना जी ने आगे कहा, “विदेशों में मेरे कई मित्र हैं, इनका सम्पर्क करके जानकारी लूंगा कि विदेशों में इस प्रकार के प्रयोग हुए हैं तो इनके क्या परिणाम थे और एक बात, उड्डयन नियंत्रण सिस्टम भी तैयार करनी होगी। काम तो दिलचस्प है किन्तु है बड़ा चेलेन्जिंग ! वक्त तो लगेगा, डाक्टर! “कोई चिंता नहीं, हम इंतजार करेंगे....” आज डॉ. गोस्वामी का सीना बाँसों उछल रहा था।
अब उन्होंने अपने साथियों के साथ उड़ान सम्बन्धी विविध पक्षों पर अध्ययन करना शुरू कर दिया। दो सप्ताह में काफी जानकारी इकट्ठी कर ली। अब उन सब का विश्वास बढ़ता गया। डाॉ. गोस्वामी के निर्देशन में जो योजना तैयार की थी वह अब साकार होने जा रही थी। सबको अब खन्ना जी के आगमन की प्रतीक्षा थी। और वह दिन भी आ गया खन्ना जी बड़े उत्साह के साथ आ पहुँचे। भुवन देसाई तथा खन्ना जी दोनों ने सलाह मशविरा करने के बाद खन्ना जी ने भुवन देसाई द्वारा तैयार की गई पंखों की डिजाइन का एरोडायनेमिक तकनीक के परिप्रेक्ष्य में जाँचा परखा। कतिपय महत्वपूर्ण सुझाव दिये। भुवन देसाई इन सुझावों के अनुसार पंखों की डिजाइन में संशोधन करने के काम में व्यस्त हो गये। पन्द्रह दिनों के बाद फिर तीनों मिले। फिर पंखों की डिजाइन तय हुई। डॉ. गोस्वामी ने एक कुशल बढ़ई को बुलाया। उसे डिजाइन दिखाने, समझाने के पश्चात आरम्भ में एक मॉडल बनाने को कहा। कुछ ही दिनों में बढ़ई ने अपनी कारीगरी दिखाते हुए सुंदर मॉडल प्रस्तुत किया। खन्ना जी, भुवन देसाई तथा डॉ. गोस्वामी ने जाँचा परखा। तीनों ने इसे मान्य किया। डॉ. गोस्वामी ने डिजाइन के अनुसार पंख बनाने का अन्तिम आदेश दे दिया। उधर इंजीनियर खन्ना जी ने उड्डयन के लिए आवश्यक उपकरण इकत्र करना शुरू कर दिया। डॉ. गोस्वामी ने इसरो के उच्च अधिकारी डॉ. श्री रघुनाथ आयंगर जो अपने मित्र थे, उनसे मार्गदर्शन पाने का निर्णय किया। तुरंत फोन लगाया। निर्धारित दिन पर डॉ. गोस्वामी पंखों का मॉडल लेकर पहुँच गये। बरसों बाद दोनों मित्र मिले थे सो जमकर मिले। “अॉपरेशन चमगादड़” के विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेने पश्चात् डॉ. रघुनाथजी ने कहा, डॉ. कलाम साहब के साथ काम करते वक्त उन्होंने बड़े इत्मीनान के साथ कहा था- क्यों नहीं, विमान उड़ सकता है तो मानव भी उड़ सकता है। इससे डॉ. गोस्वामी का विश्वास और भी बढ़ गया। पूछा, “कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?”
“हमें यह बताइए कि ये पंख बनाने में कौन-सी चीजों की आवश्यकता होगी?”
“चन्द्र पर भेजे गये यान को तैयार करने में जिस फाइबर का प्रयोग किया गया था वही फायबर उपयोगी होगा। इसके अतिरिक नाइट्रोजन गैस चाहिए। वह तो आसानी से मिल जाएगी। उड़ते समय दिशा तथा ऊँचाई पर नियन्त्रण रखने के लिए ओग्मेंटेड रियालिटी उपकरणों की भी आवश्यकता रहेगी। ये सारी चीजें कहाँ और कैसे मिलेंगी, इसकी जानकारी इसरो तथा नासा से प्राप्त की जा सकती है।” डॉ. रघुनाथजी ने बताया।
दूसरे ही दिन डॉ. गोस्वामी ने इसरो के चेयरमेन डॉ. रामानुजम, जो डॉ. गोस्वामी के मित्र थे, फोन लगाया। फोन पर सारी जानकारी देकर कहा कि हमे विशेष प्रकार के फायबर की आवश्यकता है। सुनकर डॉ. रामानुजम बहुत ही खुश हुए। उन्होंने उत्साह के साथ कहा कि यह फायबर तो बडौदा से ही मिल जाएगा। इसरो भी वहाँ से खरीदता है। उन्होंने फैक्टरी के मालिक का नाम व फोन नंबर दिया। डॉ. रामानुजम ने नासा से ओग्मेंटेड कोम्युनिकेशन ग्लास भी मंगवा देने का आश्वासन दिया।
डॉ. गोस्वामी फैक्टरी के मालिक श्री विनोद पटेल से मिले। डॉ. गोस्वामी के अभियान की बात सुनकर विनोदजी खुश हुए तथा कहा कि आपको जो चाहिए वह फायबर यहाँ है मगर भारत सरकार की अनुमति के बिना आपको हम नहीं दे सकते। किन्तु जो फायबर सरकारी विज्ञानियों ने अमान्य किया है, उनमें से मैं दे सकता हूँ। डॉ. गोस्वामी ने इन्हें देखा-परखा और हामी भर दी। विनोद पटेल ने बिना कोई रूपये लिए, डाक्टर को दे दिया। घर पहुचते ही छात्रों को बुलाकर पंख बनाना शुरू कर दिया। जो पंख तैयार हुए उनमें छोटे छोटे कई पॉकेट बने हुए थे। इन पॉकेटों को एक तरफ से खुले रखे गये थे ताकि पतली टयूब से परस्पर को जोड़ा जा सके। इन छोटे छोटे पोकेटों में नाईट्रोजन गैस भरने के लिए पंख के दोनों तरफ वाल्व लगाये गये थे। उड़ने वाले व्यक्ति शरीर के साथ पंख को बांधे रखने के लिए फायबर से बेल्ट भी बनाया गया था।
डॉ. गोस्वामी ने छोटा-सा कम्प्युटर तैयार किया था जो टेबलेट के आकार का था। इसमें इलेक्ट्रोनिक सर्किटों के साथ कई प्रकार के सेंसर लगे हुए थे। उस टेबलेट को पंखो के साथ जोड़ा गया था।
डॉ. रामानुजम ने नासा से ओगमेंटेड कोम्युनिकेशन ग्लास मंगवा दिए थे। उनको भी पंखों के साथ जोड़कर मकान की छत पर जाकर परीक्षण किया गया था। अब समय था अंतिम परिक्षण करने का। इसके लिए हलके-फुलके पुतले को पंखों के साथ बाँधकर थोड़ी ऊँचाई तक उड़ाया गया। सभी परीक्षण सफल रहे। अब डाक्टर के हौसले बुलंद हो गये।
यह तो पहले से ही तय था कि रामदेव, सतीश तथा दीपेश प्रथम उड़ान भरेंगे। अतएव उनके शरीर को ध्यान में रखकर ही पंखो की रचना की गई थी।
आखिरकार वह रात आ ही गई...जब मनुष्य सदियों से देख रहे सपने को साकार होना था। अब मनुष्य पंछी की तरह अपने पंखो के द्वारा आकाश में उडे़गा, हवा में तैरेगा।
पूर्व तैयारी के रूप में रामदेव, सतीश और दीपेश ने दो दिनों से भोजन में मात्र प्रवाही द्रव्य ही लिए थे। कपडे भी कम ही पहने थे, एक शोर्ट तथा बनियान। अपना वजन कम करने के लिए सावधानी बरती थी।
उड़ान के लिए काउंटडाउन शुरू हो गया। तीनों ने पंखों को अपनी पीठ पर फायबर बेल्ट से कसकर बाँध लिया। पंखों के बेल्ट के साथ उड़ान को नियंत्रित करने वाला कम्प्यूटर लगाया गया था उसका परीक्षण कर लिया गया था। कम्प्युटर पर अलग-अलग बटन (स्वीच) लगाये गये थे। उनको क्रम दिया गया था। नम्बर 1 बटन को दबाने से पंखों के पॉकेट्स में नाईट्रोजन भरना शुरू हो जाता था। पंखों के पॉकेट्स गैस से पूरे भर जाने के पश्चात ही शरीर हवा में ऊपर उठने लगता था। जब यात्री को नीचे आना होता था तब गैस को कम करते जाना था।
तीनों यात्री उड़ान भरने को तैयार थे। यद्यपि यह पहला प्रयोग खतरे से खाली नहीं था। सो डॉ. गोस्वामी की खुशी में चिंता भी मिली हुई थी। उन्होंने यात्रियों को पंखों में गैस भरने के आदेश दे दिया। पंखों के छोटे-छोटे पॉकेट्स में गैस भरता गया वैसे ही तीनों यात्री भी धीरे-धीरे जमीन से ऊपर उठने लगे। जैसे ही तीनों ने हवा में संतुलन प्राप्त कर लिया कि डॉ.गोस्वामी ने गैस का दबाव धीरे-धीरे बढ़ाना के निर्देश दिए। गैस का दबाव बढ़ते ही तीनों के शरीर ऊपर ही ऊपर उठने लगे। सफलता की खुशी में डूबे डाक्टर ऊपर नजर उठाए, इससे पहले तो तीनों मानव चमगादड़ आकाश में पहुँच कर उड़ने का आनन्द ले रहे थे। अब तीनों छात्रों ने पंखों का परीक्षण शुरू किया। दाएँ-बाएँ मुड़ना, ऊपर-नीचे होना, अचानक से दिशा बदलना, डाइव लगाना, गैस का प्रेशर कम-ज्यादा करना आदि। सब कुछ ठीक काम कर रहा था। डॉ. गोस्वामी की कल्पना वास्तविकता में रूपांतरित हो चुकी थी। तीनों मानव चमगादड़ पंखों का ठीक से परीक्षण कर लेने के पश्चात् निकल पड़े नगर की सैर करने। काफी समय बीत जाने पर भी जब ये दिखाई नहीं दे रहे थे तब डाक्टर के धीरज के बाँध टूटने लगे थे। किन्तु पूरे एक घंटे के बाद जब तीनों लौटे तब डाक्टर को तसल्ली हुई। तीनों ने सफलतापूर्वक धरती पर लैडिंग किया। इस सफलता के कारण सब का सीना बाँसों उछल रहा था।
दूसरे दिन मानव चमगादड़ पुनः नगर के आकाश में उड़ने लगे। इस बार डॉ. गोस्वामी भी उड़ रहे थे। उड़ान के दौरान उन्होंने भी पंख आदि उपकरणों का परीक्षण किया। उनको अब विश्वास हो गया कि उनकी खोज शत प्रतिशत सफल रही है।
छात्रों के साथ विचार-विमर्श करने के पश्चात् इसका पेटंट लेने का निर्णय लिया गया।
ई-मेल ः rrandhariya@gmail.com
COMMENTS