मन्दिर-मस्जिद चर्च में,बाँट दिया भगवान । चलें चक्कियां धर्म की , पिसें अज्ञ नादान ।। पिसें अज्ञ नादान , धर्म की पीकर हाला । भिड़ें धर्म ...
मन्दिर-मस्जिद चर्च में,बाँट दिया भगवान ।
चलें चक्कियां धर्म की , पिसें अज्ञ नादान ।।
पिसें अज्ञ नादान , धर्म की पीकर हाला ।
भिड़ें धर्म के नाम , द्वेष की उगलें ज्वाला ।।
साक्षी है इतिहास , लड़ाते मुल्ला - पंडित ।
लड़ते देखे अज्ञ ,लड़े कब मंदिर - मस्जिद ? -1
भारत में आतंक से , जारी हा- हा- कार ।
शत्रु सुरक्षा भेदकर , भेज रहा हथियार ।।
भेज रहा हथियार , चल रहा धंधा काला ।
रोज फूटते बौम्ब , उगलते भीषण ज्वाला ।।
युवकों में भटकाव , फूट कर रही तिजारत ।
इनका करो इलाज,स्वस्थ हो अपना भारत ।।-2
धंधा करने हम गये , घर से कोसों दूर ।
किन्तु मुम्बई में हुए , सपने चकना चूर ।।
सपने चकना चूर , चल गए मुक्के - डंडे ।
प्रान्तवाद ने स्वप्न , कर दिए सारे ठंडे ।।
नाचा था उन्माद , सड़क पर होकर अंधा ।
भगे बचाकर जान ,छोड़ हम अपना धंधा ।। -3
शिक्षा कैसी दे रही ?, ये भारत सरकार ।
लिए कटोरा हाथ में , बच्चे हैं लाचार ।।
बच्चे हैं लाचार , रोज पढ़ने भी जाते ।
होकर दसवीं पास, नहीं हिंदी पढ़ पाते ।।
पढ़े लिखे अज्ञान , ज्ञान की तोड़ी इच्छा ।
पाता देश भविष्य ,भिकारी बनकर शिक्षा ।।-4
कैसी अद्भुत योजना ? मित्रो मिड - डे मील ।
कर दी है क्या सोचकर ? शासन ने तामील ।।
शासन ने तामील , न पढ़ पाता है बच्चा ।
बजते चम्मच थाल , महज खाने की इच्छा ।।
क्या होगा भवितव्य ? देश की हालत ऐसी ।
बच्चे ज्ञान विहीन , नीति भारत की कैसी ?-5
सच्चा मजहब जानता , प्रेम- दया भरपूर ।
अति की कट्टरवादिता , बन जाती नासूर ।।
बन जाती नासूर , ध्वंस के बादल छाते ।
बॉम्ब और बारूद , मौत के खेल दिखाते ।।
भारी हुआ विनाश , सीख ले, मूरख बच्चा ।
दया-धर्म का मूल , प्रेम है मजहब सच्चा ।।-6
भूखी सोये मुफलिसी , सहती गहरी पीर ।
लेकिन गर्दिश में कभी , बेचे नही जमीर ।।
बेचे नही जमीर , कर्म से खुशियां लाती ।
खाती है अपमान , सभी को प्यार खिलाती ।।
फिर भी है बेमोल , दशा पर संसद रोये ।
बीते सत्तर साल , मुफलिसी भूखी सोये ।-7
रोटी ,कपड़ा ,घर ,हुनर, नहीं दवा का टूंक ।
लेकिन दे दी पाक ने , बच्चों को बंदूक ।।
बच्चों को बंदूक , शिविर चौड़े में चलते ।
प्रेम - दया सब दूर , द्वेष के हाथों पलते ।।
फसा स्वयं की चाल , चली जो हमको गोटी ।
छीनें दहशत गर्द , पाक की इज्जत रोटी ।।-8
हारा रावण युद्ध में , हुआ बाद में खेद ।
दुश्मन भाई बन गया , दिया विभीषण भेद ।।
दिया विभीषण भेद , मिटी रावण की लंका ।
रहें विभीषण देश , होय कर्मो से शंका ।।
वतन विरोधी तत्व , बहाते विष की धारा ।
इनका किया इलाज , शत्रु भी हारा - हारा ।।-9
माली माला हित रखे , अपने नेक उसूल ।
रंग - बिरंगे रूप के , जोड़ें सुंदर फूल ।।
जोड़ें सुंदर फूल , महक भी मन को भाती ।
मंडप हो गुलजार , चढ़े अर्थी की छाती ।।
'दीपक' सुंदर पुष्प , रखे दुर्गंध निराली ।
मिले नही सम्मान , तजे माला से माली ।।-10
लंका पति का वध किया , तन का काम तमाम् ।
रावण मरा न आज तक , मार न पाए राम !!
मार न पाए राम , जगत में रावण छाया ।
मारें दहशत गर्द , खूब उत्पात मचाया ।।
हे भारत के वीर , बजा दो रण का डंका ।
मिट जाए आतंक , जलाओ अरि की लंका ।।-11
रोना होगा लाजमी , यदि लग जाए डंक ।
आदिकाल से आदमी , झेल रहा आतंक ।।
झेल रहा आतंक , लड़ा था जटायु अड़कर ।
गए देश हित प्राण , मरा रावण से लड़कर ।।
मारा रावण दुष्ट , खुशी था कोना - कोना ।
रहें न दहशत गर्द , दूर हो सबका रोना ।।-12
मीठा लिपटे हाथ को , रहा प्यार से चाट ।
अरि ने मौका देख कर , लिया हाथ ही काट ।।
लिया हाथ ही काट , नीच स्वार्थी अलबत्ता ।
तुझसे अच्छा खूब , होय दुनिया में कुत्ता ।।
चाटे जिसको श्वान , न काटे चाहे नीठा ।
तू ऐसा मगरूर , काट कर खाए मीठा ।।-13
दीपक माटी का बना , बाती में हैं प्रान ।
जले स्नेह इस उम्र का , लौ मानो मुस्कान ।।
लौ मानो मुस्कान , तेल भी तिल-तिल घटता ।
तन-मन का अनमोल ,कोष सांसो का लुटता ।।
डुबकी लगा उजास,जले तन चाहे फक-फक ।
दुनिया हो गुलजार , जलो तुम ऐसे दीपक ।।-14
बचपन के दिन लद गए ,छह कम हुए पचास ।
शुद्ध हवा,जल,खाद्य था,स्वाद भरा था खास ।।
स्वाद भरा था खास , जिस्म में ताकत होती ।
अब तो हवा खराब, नहीं शुचि सब्जी - रोटी ।।
मिलें न जैविक वस्तु ,पड़ी है ऐसी अड़चन ।
पतझड़ हुआ बसंत , रसायन लूटे बचपन ।।-15
अवसर आया द्वार पर , खो देना मत आप ।
वरना करते ही रहो , वर्षों पश्चाताप ।।
वर्षों पश्चाताप , सफलता कर से भागे ।
रूठ जाए तकदीर , नहीं यदि जल्दी जागे ।।
कहता ‘दीपक’ सत्य,फूटती किस्मत अक्सर ।
करी नहीं पहचान , भाग्य फूटा खो अवसर ।।-16
मन में असफलता छिपी , रहे सफलता धूल ।
खिलते नहीं बबूल पर ,कभी कमल के फूल ।।
कभी कमल के फूल,सफलता मिलती उनको ।
रखें आत्म विश्वास , धैर्य,श्रम,साहस जिनको ।।
निष्ठा, दृढ़ संकल्प , बुद्धि सच होती जिनमें ।
रखें मधुर व्यवहार , लक्ष्य की पीड़ा मन में ।।-17
रखता स्वस्थ शरीर को , नित्य किया व्यायाम ।
ठीक रखे मस्तिष्क को, अध्ययन सुबह-शाम ।।
अध्ययन सुबह - शाम, ज्ञान का कोष बढ़ाता ।
देता सुख आनंद , तिमिर को दूर भगाता ।।
करें सभी सम्मान , प्रेम की वाणी चखता ।
ज्ञानी बने महान , हंस का कौशल रखता ।।-18
जलधर जल लेकर गया,भू- ने दिया उधार ।
सूद सहित वापिस किया,बरसी अमृत धार ।।
बरसी अमृत धार ,नहीं कम सज्जन होते ।
लेते - देते खूब , ज्ञान के पौधे बोते ।।
सबसे अच्छा दान, ज्ञान की बांटें कल्चर ।
लगें नहीं ठग चोर, बरस बन ज्ञानी जलधर ।।-19
तू कर अपने आप की , स्वयं हिफाजत आज ।
हर चिड़िया को मारने , डाल - डाल पर बाज ।।
डाल-डाल पर बाज, क्रांति का बिगुल बजा दे ।
कहता बहता खून , अरिन को सख्त सजा दे ।।
मानवता हित छीन , शत्रु का खूनी खंजर ।
दुनिया करे सलाम ! बगावत ऐसी तू कर ।।-20
✍ शिव कुमार ‘दीपक’
गाँव - बहरदोई
पोस्ट- आरती
जनपद- हाथरस (उ०प्र०)
पिन- 281307
आदरणीय मेरी कुंडलियां प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार सादर
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