1... स्वर्ग से सुन्दर स्वर्ग से सुन्दर धरती ये सबसे पावन धाम करते हैं वंदन हम इसको शत शत प्रणाम ऋषियों की तप भूमि ये यज्ञ और बलिदान ...
1... स्वर्ग से सुन्दर
स्वर्ग से सुन्दर धरती ये
सबसे पावन धाम
करते हैं वंदन हम
इसको शत शत प्रणाम
ऋषियों की तप भूमि ये
यज्ञ और बलिदान
इस वटवृक्ष की छाँव में
खेले वीर जवान किसान
जन्म लिया इस धरती पर
यहीं निकले जान
जय जय हिन्दुस्तान......2
मात पिता और गुरु का
जग में है सम्मान
फिर भी हम जहाँ रहते हैं
वो भूमि बड़ी महान
है जग में इसकी
ऊँची आन बान व शान
मातृभूमि के आँचल में
जन जन की ये मुस्कान
जय जय हिन्दुस्तान......2
वीरों की पावन भूमि ये
वीरों का बलिदान
सरहद की मिट्टी में खेले
सो गये वीर जवान
मातृभूमि की रक्षा में
किया देश का मान
ऐसे वीरों को वतन का
कोटि कोटि सलाम
रौशन हो गया जिनकी लौ से
देश मेरे का नाम
जय जय हिन्दुस्तान......2
राजेश गोसाईं
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2.......जय हिन्द
आत्म शक्ति से ओतप्रोत हम
दीप प्रेम का जगायें
हम गीत नया यह गायें.....2
हो शक्ति मान देश मेरा यह
हम जय हिन्द ..जय हिन्द गायें...2
रहे अटल पथ हम आगे बढ़ते जायें
हर कदम देश सेवा में रहे
दिल में जोश जगायेंं
हम जय हिन्द ..जय हिन्द गायें.....2
इक इक पग पे हाथ उठा के
धरती अम्बर गूंज जाये
हम गीत नया यह गायें ......2
हम जय हिन्द ..जय हिन्द गायें.....2
ना रहे कोई जात पात
ना धर्म का हो कोई नारा
एक स्वर में एक ही गीत हो
जय हिन्द ..जय हिन्द सबका प्यारा
गले लगा के हाथ मिला के
जय हिन्द ..जय हिन्द गायें
हम जय हिन्द ..जय हिन्द गायें
हो शत्रु पर भारी सिंहनाद बन जायें
ले हाथ में तिरंगा प्यारा
हम विजयी विश्व कहलायें
विश्व शांति के श्वेत पटल पर
हम गीत अमन चैन के गायें......2
रहे देश में हर्ष उल्लास
चहूँ ओर शीतल छाया हो जाये
हम जय हिन्द..जय हिन्द गायें....2
राजेश गोसाईं
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3......हमदर्द....
बांटी थी खुशियां मैंने
गम के मेले में
कुछ संग चले
कुछ खुश रहे अकेले में
कुछ प्यार में डूबे थे
दर्द से परेशां
कुछ बेवफाई के नश्तर
दिल में चले थे
बांटे थे मुस्कराहट के मोती
हमदर्द बन के मैंने
जिनको दर्द मिला अपनो से
वो साथ ही मेरे चले थे
हजारों आंसू पोंछ के
मैं घर अपने आया था
खुशी और मुस्कान से
मेरे भी होंठ सबके संग खिले थे
राजेश गोसाईं
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4......मकां रेत में
धोखे, जिन्दगी में हमने बहुत खाये है
गैर तो गैर ही थे अपनो से ठुकराए हैं
शिकवे बहुत थे उम्र की कोठरी में मेरे
हर लम्हे में हम , अन्धेरों से टकरायें हैं
बेवफाई का आलम था गुलिस्तां में मेरे
गुलाब की बात क्या करें हम
जख्म फूलों से ही तो खाये हैं
चांदी की दीवार ना तोड़ी
प्यार की दीवार तोड़ आयें हैं
रिश्तों की बस्ती में हम
मकां रेत से बना आये हैं
इश्क के सितारे तो रहे गर्दिशों में हमेशा
हमने सपने दिन में ही सजायें हैं
ना लिख कोई गजल तू " राजेश "
बिछुड़ के भी कभी अपनों ने
दिल से दिल मिलाये हैं
राजेश गोसाईं
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5.........सनम
हमने पूछा है इन निगाहों से बार बार ए सनम
कौन रहता है इन आँखों की बस्ती में ए सनम
इश्क का मौसम तो रूठ ही गया इक मुद्दत से
क्युं बुलाती हैं मुझे फिर से ये हर बार ए सनम
हमने देखा है इन निगाहों में ये समन्दर प्यासा
क्यों डूबी कश्ती प्यार की मझधार में ए सनम
कातिल हैं अदायें तो कातिल का किया कत्ल
डूब तो हम पहले ही गये थे ,झील में ए सनम
कौन पूछेगा उजड़े चमन मे , खुशबू का हाल
महकते हुये प्यार को , प्यार ही रहने दो सनम
क्यों टूटे हुये सपने सजा रखें हैं इन पलकों पे
बहने दो जरा अश्क़ों को भी गालों पे ए सनम
राजेश गोसाईं
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6...... मेला....
मेला....मेला.....मेला....
ये जिन्दगी का मेला......
यहाँ सांसों की महफिल है
यहाँ मौत का उत्सव
यहाँ लाशों का व्यापार
है इंसानो का खेला
मेला...मेला...मेला.....
ये जिन्दगी.......
ना कोई अपना पराया है
रिश्तों की दुकाने हैं
स्वार्थ का तमाशा देखो...
है सुख दुख का ठेला
मेला....मेला....मेला....
ये.जिन्दगी.....
खाली हाथ आया था खाली ही जाना है
जरुरत से ज्यादा फिर क्या कमाना है
ना साथ आया कोई ना संग जायेगा
नेकी कर फिर तू चल अकेला...
मेला....मेला....मेला......
ये जिंदगी.......
कठपुतलियों की रौनक
बाजार कलाबाजों का है
झूठ बेईमानी के मंच पर
चल रहा सांसों का रेला
मेला....मेला....मेला....
ये जिंदगी.....
ये जिंदगी का मेला
ये रंज ओ गम का मेला
कभी कम ना होगा
ये गम और खुशी का झमेला
माटी के पुतलों से सजा
है दुनिया का ये मेला
जिन्दा लाशों से चलता
है ये मौत का मेला......
मेला...मेला...मेला...
ये जिंदगी....
राजेश गोसाईं
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नूर ए जहां
जब तक सूरज चन्दा चमके
चमके भारत हमारा
ये विश्व गुरू हमारा
ये हिन्दुस्तां प्यारा
बहती रहे सदा यहाँ पर
अमृत यमुना की धारा
बढ़ता रहे भाईचारा
इस गुलिस्तां में हमारा
बहे युगों युगों तक पावन गंगा
लहराता रहे हर दिल में तिरंगा
हो नभ में सबसे सुन्दर सितारा
ये भारत देश हमारा
हो खुशबू इस किसलय की
सजा रहे नन्दन वन ये सारा
जो नूर ए जहां है हमारा
ये मधुबन प्यारा प्यारा
राजेश गोसाईं
7....फर्ज.....
देश प्रेम के लिये हम
कितना फर्ज निभाते हैं
हम राष्ट्र गान भी गाते हैं
हम राष्ट्र गीत भी गाते हैं
हम त्यौहार आजादी के सब
मिल जुल कर खूब मनाते हैं
संकट जब भी देश पे आया
हम राष्ट्र धर्म भी खूब निभाते हैं
देश प्रेम के गीत गाकर
घर घर में तिरंगा फहराते हैं
लेकिन कुछ लोगों को छोड़ भी दें तो
कितने लोग अपने दिल में
यह तिरंगा लगाते हैं
देश प्रेम के डंके तो हम खूब बजाते हें
बजता हो राष्ट्र गान जहाँ
वहाँ कितने लोग रुक जाते हैं
इस झण्डे को देख कर
कितने लोग शीश झुकाते हैं
देश प्रेम के लिये हम
कितना फर्ज निभाते हैं
हम गीत संविधान के भी गाते हैं
हम संसद में लड़ने जाते हैं
लोकतन्त्र के मंदिर में हम
स्वतंत्र कहाँ रह पाते हैं
कहाँ रह गया है
स्वतंत्र या गणतंत्र दिवस
अब तो गनतंत्र के साये में
जनतंत्र राष्ट्रीय त्यौहार मनाते हैं
घर घर में हम आपस में ही
लड़ लड़ के मर जाते हैं
पर देश प्रेम के लिये हम में से
कितने लोग देश के लिये मर जाते हैं
देश प्रेम के लिये हम
कितना फर्ज निभाते हैं
राजेश गोसाईं
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8.....सफर
जिस सफर पे चला.....
उस सफर पे मुझे...........
हमसफर अभी तो कोई ना मिला........
दर्द बहुत मेरे संग ही चले......
हमदर्द मुझे तो कोई ना मिला.........
हर मोड़ पे पत्थर मिले.....
हर राह में काँटों का किला......
जहाँ देखुं काँच के टुकड़े थे............
हम साया कोई ना मिला......
सिला गम का यहाँ बहुत ही चला........
हमदम मुझे तो कोई ना मिला.......
किस मोड़ पे किस को सदा दूं ......
कौन सुनेगा मैं किस को आवाज दूं......
साथी ना कोई यहाँ राही कोई ना मिला......
चला तो चला काफिला .....
काँटों का ही चला......
राह सारी मैं अकेला ही चला......
सहारा मुझे तो कोई ना मिला.....
दर्द मुझसे बोला मैं दर्द से बोला.....
बेदर्द जमाने में हमदर्द कोई ना मिला....
बर्फ की तरह हम सर्द हुये....
सिलसिला गर्द बेचैनियों का मिला....
चैन मुझे तो कोई भी कहीं ना मिला...
राजेश गोसाईं
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9......गिट्टे (पंजाबी )
चल मनजीते
गिट्टे खेडांगे
निम दी छां तले
रल मिल बेठांगे
चल मनजीते
गिट्टे खेडांगे
हाल दिल दा वंड के
ठण्डे सा लवांगे
फिर वी कदी तू रुसीं
कदे मेरे हंजु आवन गे
चल मनजीते
गिट्टे खेडांगे
चीटिंग ना करीं
वारी दा इंतजार करीं
चाहे मेरे नंबर
अपणे लेई जोड़ लवीं
लड़ांगे ते प्यार वी वंडावांगे
रुसेयां नू मनावांगे
जिद्दा छड के असी
दिलां च वस जावांगे
राजेश गोसाईं
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10.....नजर
जहाँ मुनियों की धरती है
हिन्दुस्तान नजर आता है
जहाँ धर्म की ज्योति है
इंसान नजर आता है
मुझे तो फख्र है कि मैं , पैदा यहाँ हुआ
जहाँ देखूं हर शख्स
मुझे भगवान नजर आता है
मुहब्बत है फूलों से
चाँद तारों से भी हम प्यार करते हैं
किसी के दामन में सागर
हर आँचल में दुलार मिलते है
जहाँ दिलों में ईमान नजर आता है
ऊंच- नीच ना कोई
हर आँख आसमान नजर आता है
तिरंगा एक फहरा है
अमन का जहान कहते हैं
जहाँ देखूं ये पहरा है
सिपाही हर दम तैयार रहते हैं
जहाँ एकता का त्यौहार
हिन्दुस्तान शक्तिमान नजर आता है
वहाँ देखूं गले मिलता
हिन्दु -मुसलमान नजर आता है
राजेश गोसाईं
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11....मैं चाहता हूँ
दिल के सागर में चलती कविता
कहीं उतार देना चाहता हूँ
किसी की वेदना कोई हालात
कुछ दर्द बेचैनी के पलों को
लफ्जों में बदलना चाहता हूँ
प्रेरणा ले निराला से कोई
दिनकर टैगोर या गुलजार से
निकले तरकश का तीर ज्युं
अर्जुन बन जाना चाहता हूँ
लड़े जो वीर सरहद पर
जोश उनका बन जाऊं
राष्ट्र की मधुबन में शान से
कलम के फूल बन जाना चाहता हूँ
कबीर तुलसी के शब्द सुमन
गले लगा कर सूर के सुर
प्रदीप के शब्दों से मैं
देश प्रेम लिखना चाहता हूँ
राजेश गोसाईं
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12..... अंधियारा
छोड़ दो हिन्दू मुस्लिम का नारा
गर हिन्दुस्तान प्यारा है
तोड़ दो धर्म जाति की दीवारें
जिनमे केवल ईंट और गारा है
लडना हो तो खूब लड़ो मगर
देश के लिये लड़ने की बात करो
काट डालो एक एक सर
जो गद्दार ए वतन हमारा है
सूली पे चढ़ जाओ मगर
खत्म करो पहले गैरेपन को
या दहशतगर्दों को फाँसी पे लटका कर
कह दो सारे जहाँ से अच्छा वतन हमारा है
सोने की चिडिया वाले देश में
सोने के खेत चमक रहे
चाँदी के आकाश में भी मिलता
भारत के चाँद का अद्भभुत नजारा है
हीरे मोती बहुत पर्वत से सागर तक
खानों में भी रत्नों के भण्डार भरे
फिर भी राम कृष्ण रहीम खानों में
कोई बताये क्यों होता बंटवारा है
कब तक कहेंगे मैं हिन्दु हूँ
कब तक कोई अपने को मुस्लमान कहेगा
कब तक जाति धर्म के नाम पर चलेगा
माँ भारती की छाती पे आरा है
जागो देश के प्यारे बन्धुओ
हिन्दुस्तान का सम्मान करो
कहाँ गया बलिदानियों का भारत
जो हर आँख का तारा है
सबसे प्यारा सबका सहारा
भारत विश्व गुरू हमारा है
कहाँ गया आजादी के दिवानों का
हिन्दुस्तान जो प्राण प्यारा है
प्रतिबिम्ब कोई दर्पण का मत बनना
हकीकत में पूरा कर दो सपना
माँ भारती का शीश ना झुकने पाये
रौशन कर दो हर चौराहा जहाँ अंधियारा है
राजेश गोसाईं
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13....लोरी
सुन के लोरी तेरी माँ
जब हम सो जाते थे
तेरा हाथ सर पे होता था
हम दुनिया से लड़ जाते थे
आज गीत देश के गाकर
तेरे साथ साथ हम में
माँ भारती का भी
बल हो जाता है
परन्तु......
लड़ते हैं सारे जग से
तेरी रक्षा खातिर
मगर भाई भाई होकर भी
क्युं आपस में लड़ जाते हैं
जर जोरू और जमीं के लिये
तो खून सदा बहाते हैं
पर मातृ भूमि के लिये
हम खून कहाँ बचाते हैं
राजेश गोसाईं
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