लो ग लगभग दौड़ते हुए अस्पताल की तरफ जा रहे थे। सभी के चेहरों पर आश्चर्य मिश्रित प्रश्न तैर रहा था। कैसे यह घटना उसके साथ घटित हो गयी? वह ...
लो ग लगभग दौड़ते हुए अस्पताल की तरफ जा रहे थे। सभी के चेहरों पर आश्चर्य मिश्रित प्रश्न तैर रहा था। कैसे यह घटना उसके साथ घटित हो गयी? वह तो अपने काम से काम रखने वाला युवक था। किसी ने आज तक उसे किसी को अपशब्द कहते हुए सुना ही नहीं था, लड़ने झगड़ने की बात कौन करे?
अतीव बलशाली होते हुए भी उसकी निगाहें प्रत्येक स्त्री से बातें करते समय नीची रहती थीं। वह कभी भी जोर से बोलता भी नहीं था। कठिन परिस्थितियों में उसके अम्लान आनन पर मुस्कान ही खेलती रहती थी। वह सुदर्शन सौम्य व्यक्तित्व का धनी एवं प्रखर मेधा का स्वामी था।
वह अस्पताल के एमरजेंसी में था। नर्स ने एकचित्त लोगों को बताया कि उसका आप्रेशन सफल रहा, उसके सीने से फायर की गयी बुलेट निकाल ली गयी है, पर अभी भी वह खतरे से बाहर नहीं हुआ है। उसकी युवा पत्नी अपूर्वा अपने दो वर्ष के बेटे के साथ, अर्धमुर्छित-सी एक बेंच पर बैठी थी पर उसका मन विगत घटनाकर्मों की वीथिकाओं में घूम रहा था।
कुरुक्षेत्र के सरोवर की मरम्मत करते समय एक मजदूर की कुदाल से एक हड्डी का टुकड़ा टकरा गया। उसने उसको निकाल लिया और उस टुकडे़ को वह सरोवर के जल में फेंकने जा रहा था, तभी कार्यकारी इंजानियर की दृष्टि उस हड्डी के टुकड़े पर पड़ गयी। कुतूहलवश उसने उस टुकडे़ को अपने हाथ में लिए समाचार पत्र में रखकर लपेट लिया।
उसने किस प्रेरणावश यह किया, उसे स्वतः स्पष्ट नहीं था। संभवता उसके मानस में महाभारत युद्ध काल की किसी अंकित छवि ने उसे यह प्रेरित किया हो।
एक दिन उसने अपने जैव प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ मित्र से उस हड्डी के टुकड़े की चर्चा की और उसको परीक्षण हेतु दे दिया।
डॉ. हलायुध ने सावधानी से उस अस्थि का निरीक्षण किया वह किसी पशु की न होकर उन्हें वह मानव की पसली की हड्डी प्रतीत हुयी। आधुनिक मानव की पसली की हड्डी के अनुपात में वह प्रत्येक दृष्टि से तीन गुना चौड़ी तथा भारी थी।
भारत में उस समय प्रौद्योगिकी अपने चरम पर थी विभिन्न विधायें विकसित की जा चुकी थीं तथा योरप और अमेरिका के वैज्ञानिक भारतीय प्रयोगशालाओं में कार्य करने हेतु आते जाते रहते थे।
भारतीय सेना को बलवान सैनिकों की विविध कार्यों हेतु आवश्यकता रहती थी और सेना को प्रयोगशालाओं में बलशाली संतति को उत्पन्न करने की दिशा में गुप्त रूप से शोध कार्य चल रहा था। उसके विषय में मात्र कुछ ही लोग जानते थे। मीडिया को भी कोई सूचना अथवा इस दिशा में, संकेत प्राप्त नहीं होता था। डॉ. हलायुध इसी गुप्त प्रयोगशाला में कार्यरत थे तथा वे बलवान शिशुओं को उत्पन्न करने के प्रोजेक्ट का निर्देशन कर रहे थे।
भारतीय वैज्ञानिकों ने, चन्द्रमा पर अपना ‘‘बेस’’ स्थापित कर लिया था, वहीं पर उन्होंने विलुप्त जीवों और पक्षियों की प्रजातियों को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। भारत के जंगलों में हाथी से उत्पन्न प्रागऐतिहासिक मैमोथ, सिंह और व्याघ्रों की आवाजें पुनः सुनायी पड़ने लगी थीं।
पक्षियों में विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चुके हारिल-ग्रीनपिजन, धनेश और जगंली मुर्गों की बागें जंगलों में गूँजने लगी थीं। मध्य प्रदेश का विशालकाय अरना-भैंसा भी इनविट्रो तकनीक का प्रयोग कर भैंस से उत्पन्न कर दिया गया था।
म्यांमार सरकार के सहयोग से सफेद हाथी भी संरक्षित और संवर्धित कर लिए गये थे।
अपने सहयोगियों की इस प्रकार की सफलता पर वैज्ञानिक विधि से विलुप्तप्राय जीवों को पुर्नउत्पत्ति पर डॉ. हलायुध अल्हादित थे।
कुरुक्षेत्र से प्राप्त उस पसली के टुकुडे़ से डी.एन.ए. के एक्सट्रैक्शन, फिर पालीमरेज चेन रिऐक्शन द्वारा संवर्धन और इनविट्रो फर्टीलाइजेशन की तकनीक, धन का प्रलोभन देकर स्वस्थ धात्री स्त्रीयों में प्रभावी ढंग से सफलता की ओर बढ़ रही थे। प्रसव-सदैव सिजेरिय द्वारा ही कराया गया क्योंकि उन शिशुओं का शरीर काफी बड़ा था तथा इनको सेना की प्रयोगशालाओं द्वारा विकसित विशेष प्रकार का दूध और खाद्य पदार्थ दिया जाता था, जिसके परिणाम स्वरूप वे एक मास के शिशु सामान्य शिशुओं की तुलना में चार मास के प्रतीत होेते थे।
डॉ. हलायुध और उनके सहयोगियों के प्रयास के परिणामस्वरूय पाँच हजार शिशु उत्पन्न किये गये थे। इनके रक्ताभ रंग, काले बालों, काली आँखों और उनके बलिष्ट हाथ पैरों को देखकर सामान्यजन चकित रहते थे।
वैज्ञानिकों का अनुमान था कि इन शिशुओं में शारीरिक क्षमता के साथ कुशाग्र बुद्धि भी रहेगी, जो इनको और विलक्षणता प्रदान करने में सक्षम होगी।
इन शिशुओं की शिक्षा मिलिट्री-सेना के स्कूलों में दी जाती थी वह भी निःशुल्क। सेना की अकादमी से, समय के साथ, यह सभी बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
अकादमी में अन्य प्रदेशों के छात्र और छात्रायें भी थीं। अपूर्वा भी इन्हीं में से एक थी। उसके पिता सेना के उच्च अधिकारी थे और स्वाभाविक थी उसकी सेना में जाने की अभिरुचि।
पाँच फिट नौ इंच लम्बी, तन्वी अपूर्वा को छः फिट दो इंच लम्बा, मजबूत कद काठी का पद्यनाभ आकर्षक लगता था। उसकी सौम्यता और चेहरे पर खिलती मुस्कान उसे प्रिय लगती थी।
एक दिन क्लास में वह अपूर्वा के बगल में बैठा था। शिक्षक के लेक्चर के नोट्स अपूर्वा तो ले रही थी, परन्तु पद्यनाभ ध्यान से सुनता ही रहा।
क्लास के बाद अपूर्वा ने उसंसे पूछा तुम नोट्स नहीं लेते।
पद्यनाभ ने अपने सर की ओर संकेत करते हुए कहा ‘‘वह इसमें है’’ और अपूर्वा को, चकित अपूर्वा को, देखकर वह मुस्कुरा दिया।
परीक्षाओं में पद्यनाभ सभी छात्रों में प्रथम रहा और अपूर्वा द्वितीय।
अपूर्वा ने उसे पिछाड़ने का निश्चय कर अगले वर्ष जम कर पढ़ना प्रारम्भ कर दिया। परिणाम आशातीत रहा। अपूर्वा सभी को पराजित करती कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुयी।
पद्यनाभ ने उसे बधाई दी।
सेना की प्रयोगशाला के प्रयास के फलस्वरूय जो शिशु उत्पन्न हुए थे, विकसित किये गये थे। उनमें से अधिकांश सेना में उच्च पदाधिकारी थे, परन्तु कुछ भारत-सरकार की सिविल-परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर, जन सामान्य में चर्चा का विषय थे।
वे सफल जिलाधिकारी, न्यायाधीश थे, तो कुछ उच्च कोटि के वैज्ञानिक थे। उनकी बुद्धि और विवेक का लोहा सभी मानते थे। ऐसे लोग समाज में ईर्ष्या का विषय थे।
इनकी संतति भी उन्हीं की भाँति थी, मेधा और सुगठिन शरीर युक्त। वे क्रीड़ा में, खेलों में श्रेष्ठ सिद्ध हुए थे।
सेना की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक के रूप में नियुक्ति के उपरान्त पद्यनाभ और अपूर्वा ने विवाह कर लिया। अपूर्वा भी सेना की ही प्रयोगशाला में वायोटेकनालोजी जैव प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक पद पर आसीन हो चुकी थी। जीवन सरलता, सफलता और सहजता से चल रहा था।
सेना में तथा परमाणु ऊर्जा विभाग में यद्यपि उस समय भी आरक्षण नहीं था पर जन जीवन में बढ़ते भ्रष्टाचार के केन्द्र में समाज के पिछडे़ वर्ग के लोग, उनके तथाकथित अदूरदर्शी नेतागण, जिन्हें राष्ट्र से, राष्ट्र की प्रगति से, उसकी गरिमा से, कोई संबंध नहीं था, प्रमुख थे। आरक्षण के मद में लिप्त शीर्ष स्थानों में बैठे लोगों का मुख्य ध्येय भोगवाद था, असुरी संस्कृति को स्थापित करना था। वे स्वकेन्द्रिन व्यक्ति थे, तथा इस वर्ग में भी जो जागरूक थे, अपने दायित्यों के प्रति निष्ठावान थे उनकी कोई सुनता ही नहीं था।
समाज का मुख्य लक्ष्य येन-केन-प्रकारेण धन प्राप्त करना था। प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है प्रकृति के इस शाश्वत नियम के अनुरूप ही प्रबुद्धजनों ने एक मंच गठित करने हेतु देशव्यापी प्रयास को प्रारम्भ कर दिया।
भ्रष्टाचार की सुरसा के मुख में, प्रवेश करने का, उसे नियंत्रित करने का, यह एक लघु प्रयास था। लोग इस नवगठित मंच से जुड़ने लगे थे।
नवगठित मंच की एक छोटी बैठक पद्यनाभ के यहाँ आयोजित थी। इसमें मात्र पद्यनाभ एवं अपूर्वा के मित्रगण ही निमंत्रित थे।
अपूर्वा ने मित्रों को जो कि पद्यनाभ की भाँति इस धरा पर उत्पन्न हुए थे, तथा उनकी महिला मित्रों-पत्नियों को संबोधित करते हुए कहा ‘‘आप को ज्ञात है, हो सकता है आप इसके भुक्तभोगी भी हों, कि देश की क्या गति, इन अदूरदर्शी लोलुप और अविवेकवान धूर्त राजनीतिज्ञों ने कर दी है। वास्तव में इन्हें राजनीतिज्ञ कहना इस शब्द का अपमान है। इस कारण इन्हें कपटी प्रवंचक एवं धूर्त ही कहना उचित होगा’’
आज इनको न तो हमारे संविधान की, सीमाओं की मेरा तात्पर्य देश की सीमाओं की, उसकी सुरक्षा कर रहे सैन्य बलों की और न ही न्यायपालिका की परवाह है। इनका एक मात्र लक्ष्य है धन संचय-वह भी असीमित। फलस्वरूय हमारे देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गयी है। इस कारण मैं आप लोगों से यह जानना चाहूँगी, कि इस विषम परिस्थिति में क्या किया जायें?’’ कहती हुयी अपूर्वा बैठ गयी।
रिपुमर्दन कुछ सोचते हुए उठे और धीरे से कहा ‘‘यह समस्या जिसकी चर्चा अपूर्वा ने की वास्तव में तथाकथित राजनीतिज्ञों और उनके अनुयायियों द्वारा उत्पन्न की गयी है। जन सामान्य उससे जुड़ा नहीं है। वह भी हम सभी की भाँति क्लेशित है, त्रस्त है।’’
‘‘अनुयायियों से आपका तात्पर्य अरक्षित और आरक्षण समर्थित लोगों से है’’ वार्ता को बीच में रोकते हुए विशाला ने कहा।
‘‘आपका अनुमान शत प्रतिशत सही है। आप सभी इस तथ्य से परिचित हैं, कि यह आरक्षण का दानव मात्र भारत में है। विश्व के विकसित और विकासशील देशों में योग्यता और क्षमता के अनुरूप कार्य प्राप्त करने की परम्परा है’’ रिपुमर्दन अपनी बात पूरी नहीं कर सके, क्योंकि बीच में उनकी बात के समर्थन में पद्यनाभ के मित्र युधामन्यु ने दो शब्द कहना चाहा।
रिपुमर्दन का संकेत पाकर वे बताने लगे ‘‘विकसित देशों में किसी पद के लिए न तो आरक्षण है न ही आजीवन स्थायित्व का। लोग अनुबंध अन्तर्गत कार्य करते हैं और संतुष्ट न होने पर अनुबंध के पूरा होने पर अथवा बीच में ही त्याग पत्र देकर दूसरा कार्य करते हैं।’’
‘‘और यदि वे कार्य से निकाल दिए गये तो’’ युधामन्यु पर प्रश्न बाण चलाते हुए कौशकी ने पूछा।
‘‘उस परिस्थिति में उन्हें ‘अन-इम्प्लायमेन्ट’ की धनराशि सरकार प्रदान करती है जो भरण पोषण हेतु पर्याप्त होती है’’ युधामन्यु कर उत्तर था।
‘‘ओह यह तो बहुत सुन्दर प्राविधान है’’ सराहना करते हुए प्रद्युम्न ने कहा।
‘‘अनुमान है कि यह प्राविधान-नौकरी-दूसरी नौकरी के मिलते ही, समाप्त हो जाता होगा’’ कृतवर्मा की जिज्ञासा थी।
‘‘जी हाँ, वास्तव में वह व्यक्ति सबंधित विभाग को, नयी नौकरी-नये जॉब के विषय में, सूचना दे देता है।
‘‘पर यह बात उस समाज की है, जो अपने कर्तव्यों के प्रति सचेष्ट है, जागरूक है’’ विशाला ने कहा।
‘‘इतना ही नहीं, उस समाज में, उन देशों में जनसंख्या नियंत्रित है, परिवार नियोजित हैं तथा सभी जनसंख्या वृद्धि की समस्या से पूर्ण परिचित हैं। अपने देश की भाँति जहाँ एक वर्ग संख्या-जनसंख्या नियंत्रण की बात करता है, प्रयासरत है, वहीं दूसरा वर्ग उसे गलत मानकर दीन की दोहाई देकर जनसंख्या की वृद्धि में लगा हुआ है’’ सुकन्या की टिप्पणी थी।
‘‘विकसित और विकासशील देशों में यही प्रमुख अन्तर है’’ गहरी साँस लेते हुए प्रद्युम्न की टिप्पणी थी।
‘‘समस्यायें अगणित हैं, पर हमें अपना भावी कार्यक्रम भी तय करना है’’ अपूर्वा ने शान्त स्वर में समाधान चाहने के स्वर में कहा।
‘‘हम सभी जो इन परिस्थितियों में घुटन की अनुभूति करते हैं, उन्हें एक मंच पर एकत्र होकर सभी को इन ज्वलन्त समस्यायों से परिचित कराना होगा तथा निराकरण के क्या प्रयास किए जायेंगे, उसका भी संकेत करना होगा’’ रिपुमर्दन की सलाह थी।
आगामी सभा का आयोजन सिटी के एक होटल के सभागार में होना निश्चित हुआ था।
सिस्टर ने अपूर्वा को संकेत से पास आकर बुलाया। अपूर्वा ने अपने बच्चे को और फिर सिस्टर की तरफ देखा।
‘‘आपके पति की बेहोशी दूर हो चुकी है, वे आपसे मिलना चाहते हैं’’ सिस्टर ने बताया।
अपूर्वा अपने बेटे के साथ पद्यनाभ के बेड के समीप खड़ी हो गयी। पद्यनाभ अपने बेटे के सर पर हाथ फेर रहे थे- स्नेहयुक्त हाथ और अपूर्वा उनके पीले पड़ गये चेहरे पर अपनी मूक-दृष्टि टिकाए थी।
उसे बेड पर बैठने का संकेत देते हुए मंद स्वर में पद्यनाभ ने कहा ‘‘डाक्टरों के अनुसार मैं अब खतरे से बाहर हूँ। तुम रणंजय को लेकर घर चली जाओ, कल आ जाना’’।
भारी हृदय से अपूर्वा पद्यनाभ को छोड़कर जाने के लिए तत्पर हुयी।
वापसी पर उसको सान्त्वना देने के लिए, पद्यनाभ के शुभेच्छुओं से घर भरा था। रात्रि बढ़ रही थी, अपूर्वा ने सअनुरोध सभी को विदा कर अपनी चेयर पर बैठ गयी। वह थक गयी थी।
उसका बेटा भूखा या, उसने उठकर उसका आहार तैयार किया। उस पिलाया और खिलाया तथा इसके बाद उसने अपने लिए हल्का भोजन तैयार कर, क्षुधा शान्ति के लिए बैठ गयी।
बेटा तो सो गया पर अपूर्वा के नेत्रों से नींद कोसों दूर थी।
उसे याद आ रहा था कि किस प्रकार के विचार विमर्श के उपरात्त पद्यनाभ के मित्रों ने उसे इस मंच का अध्यक्ष बनाया था और सिटी हाल में सभा का आयोजन भी किया था।
पद्यनाभ और अपूर्वा कार ड्राइव करते सिटी हाल के पास पहुंचे ही थे, कि अनकी कार पर चप्पलों और पत्थरों की वर्षा, सड़क के दोनों तरफ खडे़, उनका नाम लेकर मुर्दाबाद के नारे लगाते, उनके प्रबल विरोधियों द्वारा शुरू हो गयी। यह कुकृत्य आरक्षण के समर्थक तथा कुछ किराये पर लाये गए लोगों द्वारा शुरू किया गया था। कुशल था कि उनकी कार को कोई विशेष हानि नहीं हुयी थी।
वे किसी तरह भीड़ में से निकलते हॉल तक पहुँचे। उनके मित्रों ने, उन 6 फिट से अधिक बलशाली विवेकवान युवकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। इस सुरक्षा घेरे में वे मंच तक पहुंचे थे।
सामान्य औपचारिकता के उपरान्त पद्यनाभ अध्यक्षीय संबोधन के लिए उठे।
सारा हाल लोगों से भरा हुआ था। लोग बातें कर रहे थे पर माइक पर पद्यनाभ का संबोधन प्रारम्भ होते ही, हाल में शान्ति छा गयी।
पद्यनाभ कह रहे थे...‘‘लोगों को भ्रम है कि हम लोग आरक्षण को विरोध में हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है-हम चाहते है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप कार्य मिले- कोई कार्य हीन- बेरोजगार न रहे तथा कार्य की संतुष्टि पर ही वह व्यक्ति दीर्घकाल तक, वह कार्य करता रहे। असंतुष्टि पर वह दूसरी नौकरी कर ले तथा उसे सारी सुविधायें जो पिछली नौकरी में थीं जैसे प्राविडेन्ट फंड, बीमा आदि, स्वतः इस नवीन नौकरी में भी उपलब्ध हों।
कोई रोजगार न पाने वालों को सरकार जीवन-यापन भत्ता दे जब तक उसे रोजगार न मिल जाये।’’
लोगों ने उसके उस वक्तव्य का तालियाँ बजाकर जोरदार ढंग से स्वागत किया था।
‘‘पर हमारे सामने एक विकट समस्या है.. वह है जनसंख्या विस्फोट की। यद्यपि इस वैज्ञानिक युग में इसको नियंत्रित करने के लिए विविध साधन उपलब्ध हैं, परन्तु कुछ लोग-बहुत बड़ी संख्या है, वे इस नियंत्रण-परिवार नियंत्रण पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। फलस्वरूप यह सरकार के लिए चेतावनी एवं आर्थिक भार है। कम अथवा स्थिर जनसंख्या होने पर, बेरोजगारों का भत्ता बढ़ सकता है- ऐसा मेरा अनुमान है।’’
‘‘यह अनुमान गलत है-तुम हमको बरगलाने की साजिश रच रहे हो... तुम झूठे हो... सत्ता के भूखे दलाल हो... खुद सारी सुविधायें भोग रहे हो... हम मूर्ख नहीं हैं... तुम बैठो नहीं तो हम तुम जैसों को बोलने नहीं देंगे’’... पद्यनाभ चुप हो गए। उसी समय सभा से उठकर कुछ लोग मंच पर चढ़ आये। उन्होंने पद्यनाभ को मारना शुरू कर दिया। पद्यनाभ के सहयोगी भी बचाव पर उतर आये।
सभा हाल में घोर अशान्ति छा गयी। चीखों और आवाजों से हाल गूंज रहा था... उसी समय एक पटाके के फटने की सी आवाज आयी। पद्यनाभ गिर पडे़ उनके सीने से खून बह रहा था...।
मित्रों ने अपूर्वा और उसके बेटे को घेरकर कार में, पद्यनाभ के साथ बैठाकर, तेजी से भीड़ को चीरते हुए, अस्पताल की तरफ चल दिए।
पद्यनाभ इमरजेन्सी में थे और परिचितों, शुभेच्छुओं से घिरी अपूर्वा, अपने बेटे के साथ किन मानसिक अवस्था में बैठी थी, इसे सोचकर उसकी नींद उड़ चुकी थी। वह अपनी बेड पर बैठ गयी।
रात आँखों में कटी।
डॉक्टरों की सलाह पर, पद्यनाभ को तीन दिनों के बाद, घर पर जाने की, इजाजत मिली। चलते समय अपूर्वा से मुख्य सर्जन ने कहा था ‘‘आपके पति की हडि्डयाँ काफी चौड़ी और मजबूत हैं। इतनी चौड़ी-मजबूत हडि्डयाँ अब कम ही देखने को मिलती हैं, इसी कारण 9 मिलीमीटर की पिस्टल की गोली हड्डी को तोड़ न सकी, उसी में फँस गयी और बचा ली उसने आपके पति की जान। इन्हें कल फिर ड्रेसिंग बदलवाने आना होगा-गुड लक।’’
शाम को पद्यनाभ अपने शुभेच्छुओं से घिरे थे। वे मात्र बातों को सुन रहे थे उत्तर देने में उन्हें कष्ट प्रतीत होता था।
एक सप्ताह के बाद पद्यनाभ काफी ठीक थे। उनके चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान लौट आयी थी। तत्काल आये आगंतुक मित्र ने उनका कुशल क्षेम पूछने के उपरान्त पूछा आगे का क्या विचार है?
कुछ पलों के मौन के उपरान्त पद्यनाभ का उत्तर था ‘‘जिसने मुझे मारने के विचार से गोली चलायी थी, वह हमारी विचारधारा के विरोधियों में से रहा होगा। वे हताश हैं, उनका मनोबल टूट रहा है, इस कारण मैं अपने विचारों को सामान्यजन तक पहुँचाने के प्रयास पर अडिग रहूँगा। लोग सत्य के तथ्य को देर से समझते हैं- पर समझते हैं-अवश्य। वह दिन शीघ्र ही आयेगा जब यह आरक्षण जातिगत न होकर आर्थिक आधार पर दिया जायेगा। उसी समय से राष्ट्र का नव-निर्माण वास्तव में प्रारम्भ होगा।’’
ई-मेल ः rajeevranjan.fzd@gmail.com
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