वि षैला काला धुआँ चारों ओर फैला हुआ था। दम घोंटती हवा अब प्राणवायु कहलाने लायक नहीं रह गई थी। हाइपर लूप ट्रेन यात्रियों से ठसाठस भरी थी। सबक...
वि षैला काला धुआँ चारों ओर फैला हुआ था। दम घोंटती हवा अब प्राणवायु कहलाने लायक नहीं रह गई थी। हाइपर लूप ट्रेन यात्रियों से ठसाठस भरी थी। सबकी नाक में फिल्टर लगे हुए थे, जिसके कारण तोते की चोंच जैसी दिखाई देती उनकी नाकें हास्यास्पद लग रही थीं। वे सब हाथ में थमे स्मार्टफोन में व्यस्त थे। इसलिए इतनी भीड़ होने पर भी वहाँ खामोशी छाई हुई थी।
इन सबके बीच पूरे चेहरे को ढकने वाला मास्क लगाए बैठा एक व्यक्ति किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। उस अजीब से मास्क के कारण उसका चेहरा किसी दैत्य जैसा दिखाई दे रहा था। ये डॉक्टर माया थे।
सहसा एक झटके के साथ ट्रेन रुक गई। लोग थोड़ा-सा लड़खड़ाकर फिर संभल गए। डॉक्टर माया उठकर खड़े हुए और ट्रेन से बाहर निकलकर यात्रियों की भीड़ में शामिल हो गए।
प्लेटफॉर्म से बाहर निकलते ही हवा में तैरता एक वाहन उनके निकट आ गया। “पुष्पक एयर टैक्सी में आपका स्वागत है सर।” एक मधुर स्वर उनके कानों में पड़ा। टैक्सी पर ग्लोब कमांडिंग मुख्यालय का प्रतीक चिन्ह चमकता दिखाई दे रहा था। चैन की साँस लेते हुए वह एयर टैक्सी में सवार हो गए। टैक्सी तीर की तरह ऊपर उठी और अपने गंतव्य की ओर चल दी।
पारदर्शी पदार्थ के बने इस वाहन से बाहर का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था। चारों ओर छाए घने स्मॉग के बीच नीचे जमीन पर लोगों की अपार भीड़ थी तो ऊपर आसमान में वाहनों की। लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद पुष्पक ने उन्हें मुख्यालय की इमारत के अंदर पहुँचा दिया, जहाँ एक भव्य कक्ष में उनके मित्र तारक उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
“कैसी रही तुम्हारी यात्रा?” डॉक्टर माया से हाथ मिलाते हुए प्रोफेसर तारक ने पूछा।
“तुम जानते हो मुझे यात्रा करना पसंद नहीं।” मास्क उतारते हुए डॉक्टर माया ने कहा।
“सच कहूँ तो इस मास्क में तुम्हें देखकर दानवराज माया कहना ज्यादा उपयुक्त लगता है। हा.. हा ...हा !” प्रोफेसर तारक ने ठहाका लगाया। डॉक्टर माया खिसिया कर हँस पड़े।
“बेटा कहाँ हैं? वषोंर् हो गए उससे मिले” आराम से बैठते हुए उन्होंने पूछा।
“विद्युन्माली रिपोटिंर्ग के लिए गया है। लगभग पूरी मायानगरी डूब चुकी है” प्रोफेसर तारक ने निश्वास छोड़ते हुए रिमोट उठाया। चारों ओर की स्क्रीन जैसी दीवारों पर डूबते शहरों के दृश्य दिखाई देने लगे।
“ग्लोबल वामिंर्ग, परमाणु युद्ध, जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर और डूबते नगर...बस कुछ समय और फिर डूबती हुई धरती मानव सभ्यता का नामो-निशान मिटा देगी। हमने अपने पर्यावरण में कितना विष घोल दिया” प्रोफेसर तारक ने गंभीर होकर कहा।
“यकीन नहीं होता कि अभी कुछ समय पहले तक बर्फीले पहाड़, कलकल बहती नदियाँ, दूधिया झरने और रंग-बिरंगे फूलों से भरे बाग- बगीचे सहज सुलभ थे। बसंत की मादक हवा में कोयल की कूक...बारिश में मोर का नाचना...” शून्य में निहारते डॉक्टर माया कहे जा रहे थे।
“बस-बस दार्शनिक महोदय, अब कुछ काम की बातें करें, जिसके लिए आप यहाँ आए हैं” प्रोफेसर तारक ने याद दिलाया।
“ओह हाँ” डॉक्टर माया ने झेंप कर कहा।
“बस कुछ ही पलों में अर्थ कमांडर मिस्टर ब्रह्मा चतुर्मुखी मीटिंग करने वाले हैं” प्रोफेसर तारक ने बताया।
“मीटिंग के लिए मुझे सशरीर यहाँ क्यों बुलाया गया है तारक? जबकि यह ऑनलाइन भी हो सकती थी” डॉक्टर माया ने संशय भरे स्वर में पूछा।
“दरअसल यह मामला अत्यंत गोपनीय रखा जा रहा है। ऑनलाइन मीटिंग से गुप्त सूचनाएँ लीक होने का खतरा बना रहता हैं। बहुत से शातिर हैकर ताक लगाए बैठे रहते हैं” प्रोफेसर तारक ने स्पष्ट किया।
थोड़ी देर बाद वे दोनों मीटिंग हॉल में पहुँच गए। विश्व के कई देशों के प्रतिनिधि वहाँ मौजूद थे। मीटिंग की अध्यक्षता अर्थ कमांडर मिस्टर चतुर्मुखी कर रहे थे। चाँदी से चमकते सफेद बालों वाले मिस्टर चतुर्मुखी अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति थे। उनके चेहरे पर छाई शांति ने डॉक्टर माया को सम्मोहित सा कर दिया।
“हमारे सुपर कम्प्यूटर ‘त्रिनेत्र’ की एनालिसिस के अनुसार ग्लोबल वामिंर्ग आज पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पृथ्वी का तापमान कई डिग्री बढ़ गया है। ध्रुवों की लगभग अस्सी प्रतिशत बर्फ पिघल चुकी है। समुद्र का जल स्तर दो सौ फीट बढ़ चुका है। विश्व के कितने ही समुद्र तटीय देश पानी में डूब गए हैं। बचे हुए संसाधनों पर कब्जा करने के लिए लोगों में मार-काट शुरू हो गई है” वॉल स्क्रीन पर उभरते विचलित कर देने वाले दृश्य दिखाते हुए मिस्टर चतुर्मुखी ने कहा। सभी ध्यानपूर्वक देख रहे थे।
“पहले तो ग्लेशियरों के पिघलने से नदियाँ सूख गईं और अब यह जल-प्रलय” बाहर से आए प्रतिनिधियों में से एक मिस रोमा विरक्त भाव से बोल उठीं।
“त्रिनेत्र की गणना के अनुसार हमारे पास बहुत कम समय बचा है। फिर लगभग पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। ब्रह्माण्ड में जीवन दुर्लभ है। हमें इसे सुरक्षित रखने का कोई उपाय ढूँढना ही होगा” मिस्टर चतुर्मुखी कह रहे थे।
“जाहिर सी बात है कि हमें धरती को छोड़ कर कहीं और बसना होगा” प्रोफेसर तारक ने अपनी राय प्रकट की।
“यह इतना आसान नहीं। हम आज भी किसी ऐसे ग्रह तक नहीं पहुँच सके हैं जहाँ पृथ्वी की तरह जीवन के फलने-फूलने लायक वातावरण हो। चंद्रमा और मंगल पर बसने के हमारे प्रयास अभी तक विफल रहे हैं” प्रोफेसर एडम कैली उद्विग्न स्वर में बोल उठे।
“एक उपाय है, जो हमें कुछ समय तक जीवित रखने में सक्षम है। हमें अंतरिक्ष में रहना होगा” मिस्टर विष्णु पालन्कर जो कि एक प्रसिद्ध वास्तुविद थे, विचारमग्न होकर बोल उठे।
“परंतु किस तरह?” सबकी प्रश्नवाचक दृष्टि उनकी ओर उठ गई।
“हमें ऐसे विशाल अंतरिक्ष स्टेशनों का निर्माण करना होगा जो जीवन की स्वयंभू इकाई हों। मनुष्य इनमें पृथ्वी के नगरों की तरह ही रह सके। यानी अंतरिक्ष में सेटेलाइट की तरह घूमते नगर।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है?” सभी समवेत स्वर में बोल उठे।
“इसकी जिम्मेदारी मैं आप पर छोड़ता हूँ डॉक्टर माया। आज धरती पर आपसे अच्छा कोई और इंजीनियर नहीं है। प्रोफेसर तारक आपकी सहायता करेंगे। अपनी टीम बनाकर काम शुरू कीजिए” कहते हुए डॉक्टर चतुर्मुखी उठ खड़े हुए।
मीटिंग समाप्त हो चुकी थी। डॉक्टर माया चकराकर रह गए। अचानक इतना बड़ा दायित्व। उनका दिमाग तेजी से काम करने लगा।
अंतरिक्ष नगरों का प्रारूप लगभग तैयार था। इन दो वषोंर् में डॉक्टर माया खाना-पीना-सोना सब भूल बैठे थे। स्वर्णा ही आकर उन्हें जबरदस्ती खाना खिला जाती। एक वही तो थी सुख-दुख की साथी। उनके बचपन की अभिन्न मित्र।
“देखो तो कितने दुबले हो गए हो माया? इस तरह कितने दिन काम कर पाओगे?” स्वर्णा ने उनका हाथ पकड़कर खींचा। डॉक्टर माया ने खीझ कर उसकी ओर देखा। नाम के अनुरूप ही सुनहरा रंग था उसका। घुँघराले लाल बालों की लटें उसके कंधों पर झूल रही थीं। वह मंत्रमुग्ध से देखते रह गए।
“तुम हो ना मेरा ध्यान रखने के लिए स्वर्णा” वह मुस्करा दिए।
“एक बार तुम्हारा यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाये फिर मैं तुम्हें एक पल भी खुद से दूर नहीं होने दूँगी” स्वर्णा की आँखों में उमड़ता अगाध प्रेम उन्हें विचलित कर गया।
“हमें कोई अलग नहीं कर सकता। हम हमेशा साथ रहेंगे” डॉक्टर माया ने भावुक स्वर में कहा। स्वर्णा ने आश्वस्त होकर उनके कंधे पर सिर टिका दिया। फिर यूँ ही न जाने कितने वर्ष बीतते चले गए थे।
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ग्लोब मुख्यालय के उसी कक्ष में एक बार फिर वे सभी लोग मौजूद थे। वे सभी उत्सुकता से वॉल स्क्रीन की ओर देख रहे थे। स्वर्णा और अपनी टीम के साथ डॉक्टर माया सबसे आगे खड़े थे। अचानक स्क्रीन पर एक दृश्य उभरा।
काले आसमान की पृष्ठभूमि में कृत्रिम उपग्रह की तरह घूमता सुनहरे रंग का अति विशाल अंतरिक्ष स्टेशन अनोखी चमक बिखेर रहा था।
“ये है मनुष्य का नया घर। इस विशाल स्टेशन को पृथ्वी से अंतरिक्ष में लॉन्च करना असंभव था। तो हमने पृथ्वी से पार्ट्स ले जाकर इसका निर्माण अंतरिक्ष में ही किया है। इसमें लगभग चार हजार लोग रह सकते हैं। पृथ्वी जैसा वातावरण उपलब्ध कराने के लिए यहाँ इमारतें, झीलें, सड़कें, बगीचे व झरने आदि भी बनाए गए हैं। यहाँ पर्याप्त मात्रा में भोजन, पानी, ऑक्सीजन व उसके पुनर्चक्रण की व्यवस्था है। यह सौर ऊर्जा से चलने वाला स्वचालित व स्वायत्त सिस्टम है” जड़वत खड़े वे सब डॉक्टर माया की बात सुन रहे थे।
“इसे एक विशेष गति से स्पिन किया जाता है जिससे उत्पन्न अपकेंद्रीय बल के कारण लोगों को पृथ्वी जैसा गुरुत्वाकर्षण अनुभव होता है। अपनी मंगेतर स्वर्णा के नाम पर मैंने इसका नाम स्वर्णपुर यानी गोल्ड सिटी रखा है” कहते हुए डॉक्टर माया ने स्वर्णा का हाथ थामकर होठों से लगा लिया। मिस्टर चतुर्मुखी ने बड़ी विचित्र सी दृष्टि स्वर्णा पर डाली।
इसी प्रकार रजतपुर यानी सिल्वर सिटी और लौहपुर यानी आयरन सिटी का भी निर्माण किया गया था। इनकी चमक चाँदी व लोहे की तरह होने के कारण इन्हें यह नाम दिया गया था। इनमें भी वे सब सुविधाएँ थीं जो गोल्ड सिटी में थीं।
“मानव इतिहास में आपका नाम उत्कृष्टि इंजीनियर के रूप में अमर रहेगा।” मिस्टर चतुर्मुखी ने डॉक्टर माया को गले लगा लिया। तालियों की गड़गड़ाहट से कक्ष गूँज उठा।
पशु-पक्षी-कीट-पौधे सभी के नमूने धीरे-धीरे इन अंतरिक्ष नगरों में पहुँचाए जा रहे थे, ताकि उनके जीनोम सुरक्षित रह सकें। कला व संस्कृति से जुड़ी दुर्लभ वस्तुएँ पहुँचाना अभी शेष था।
आज इस मुख्यालय में यह अंतिम गोपनीय मीटिंग चल रही थी। मिस्टर चतुर्मुखी गंभीरता से स्क्रीन पर दी जाती प्रस्तुति को देख रहे थे।
“मित्रों, सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विचार-विमर्श के बाद, हमारे सुपर कम्प्यूटर ने सर्वोत्तम जेनेटिक गुणों वाले विशिष्ट मनुष्यों का चयन कर लिया है। इसका खुलासा चुने गए व्यक्ति की लॉन्चिंग के समय ही किया जाएगा। हमें योजनाबद्ध तरीके से चयनित लोगों को वहाँ पहुँचाना होगा।” वे सभी गंभीर मुद्रा बनाये चर्चा में व्यस्त हो गये।
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चारों ओर फैली अथाह जलराशि के बीच उनका स्टीमर तैर रहा था। स्वर्णा ने जिद करके उन्हें यहाँ मिलने के लिए बुलाया था। हालाँकि डॉक्टर माया अत्यधिक व्यस्त थे। ठीक एक हफ्ते बाद अंतिम बैच को धरती छोड़नी थी। सारा कार्य बड़े गोपनीय ढंग से पूरा किया जा रहा था। किसी को भनक भी लग जाती तो अराजकता फैल सकती थी।
“क्या हम पृथ्वी पर कभी वापस नहीं आएँगे डॉक्टर माया?” स्वर्णा उनसे पूछ रही थी।
“पता नहीं, शायद कभी धरती माँ का कोप शांत हो जाए। मनुष्य के दखल दिए बिना प्रकृति स्वयं परिस्थितियों को ठीक कर सकती है। यदि तब तक हम जीवित रहे तो अवश्य लौटेंगे और अतीत की गलतियाँ बिलकुल नहीं दोहराएँगे” उनके बालों में उँगलियाँ फिराती स्वर्णा न जाने किस सोच में डूब गई थी।
आखिर वह दिन आ गया था, जब दो घंटे पहले मिस्टर चतुर्मुखी ने डॉक्टर माया को तैयार रहने का निर्देश दिया। उन्हें अपने जाने-अनजाने साथियों के साथ पृथ्वी से प्रस्थान करना था, पर स्वर्णा कहीं गायब थी। वह परेशान होकर उसे ढूँढ रहे थे कि एक कागजी संदेश कोई उनके हाथ में थमा गया। तिरछी सी यह लिखावट स्वर्णा की थी।
“मैंने बहुत कोशिश की डॉक्टर माया, पर मन इतना निष्ठुर नहीं बन सका कि अपने संगी-साथियों को जल-समाधि लेने के लिए छोड़कर चुपचाप धरती से भाग जाऊँ। मुझे इसी धरती माँ की गोद में मरना है। हमारा साथ बस यहीं तक था। मुझे क्षमा करना माया। हो सके तो हर रात पृथ्वी की ओर देखना। मेरा मन बहल जाएगा कि मेरा प्रियतम मुझे देख रहा है।” .... सदा तुम्हारी स्वर्णा।
तो वह अंतिम पल था जो स्टीमर पर उन्होंने स्वर्णा के साथ बिताया था। डॉक्टर माया की आँखों से निकलकर दो आँसू धरती पर गिर पड़े। उन्होंने कागज को मुट्ठी में कस कर भींच लिया। अब स्वर्णा की यही एकमात्र निशानी उनके पास थी। भारी कदमों से वह लॉन्च पैड की ओर चल दिए।
“आपका बहुत-बहुत आभार। चयन सूची में आपका नाम नहीं था। परंतु फिर भी आपने स्थिति को बहुत अच्छी तरह संभाल लिया वरना डॉक्टर माया कभी जाने को राजी न होते। आपका यह उपकार हम नहीं भूलेंगे” मुख्यालय के किसी गुप्त कक्ष में मौजूद मिस्टर चतुर्मुखी कह रहे थे। सिर झुकाए लुटी सी बैठी स्वर्णा की आँखें छलछला रही थीं। पुनः अपने प्रिय से मिलने की अब कोई आस नहीं बची थी।
चारों ओर जल ही जल था।
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