ग़ज़ल गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़ ऐसा चाहिए कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरतें इंसान की जब खुल...
ग़ज़ल
गीत के सुर को सजा दे , साज ऐसा चाहिए
दिल तलक पहुँचे सदा अल्फ़ाज़ ऐसा चाहिए
कुछ छिपायें कुछ बतायें, फितरतें इंसान की
जब खुले खुशियाँ बिखेरे , "राज " ऐसा चाहिए
राह खुद अपनी बनाये फिर सजाकर मंज़िलें
रुख हवा का मोड़ दे 'अंदाज़' ऐसा चाहिए
जीत ले हर एक बाज़ी हौसले के जोर से
नाज़ हो अंजाम को, "आगाज़" ऐसा चाहिए
जो हटे पीछे कभी ना, जंग में डटकर लड़े
वीरता भी हो फिदा , "ज़ांबाज " ऐसा चाहिए
हरिशंकर पाण्डेय
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ग़ज़ल
जब उठी आवाज तब उसकी न सुनवायी हुई ।
हर कदम हर मोड़ पर मुफ़लिस की रुसवाई हुई ।
मुश्किलें आसान हैं दौलत के दम पर इस कदर
जेब है भारी उसे हर चीज दिलवायी गयी ।
जिसका कोई रहनुमा है ही नहीं उसको फ़क़त
शान-शौक़त की महज़ तस्बीर दिखलायी गयी।
पिस रही है अब गरीबी कुछ सियाशी पाट में
मज़हबी, क़ौमी सवालों में ये उलझाई गयी।
एक चिनगारी जो भड़की आग बढ़ती ही गयी
उन गरीबों की थी जो रोटी वो छिनवाई गयी।
उनकी सूरत गर बदल जाये तो कोई बात हो
मुफ़लिसी किश्मत में जिनके नाम ही पाई गयी।
हरिशंकर पाण्डेय
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मिलेगा मर्तबा , हस्ती को बचाये रखना !
सफर के वास्ते, कश्ती को सजाये रखना !
कोई तूफाँ तुम्हारा रास्ता क्या रोकेगा ,
अपनी यारी यूँ समुन्दर से बनाये रखना !
हुनर सफर में बुलंदी तलाश ले फिर भी ,
रहे गरूर ना नजरों को झुकाये रखना !
सामना होगा इंतिहान से हर बार सुनो ,
अपनी तालीम को जेहन में बसाये रखना !
वतन की मिट्टी के अनमोल नगीने बनकर ,
इसकी तहजीब और शोहरत को बचाये रखना !
हरिशंकर पाण्डेय
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गीत
मेरे साथ नदिया ने एक गीत गाया,
पहाड़ो से झरनों ने भी सुर मिलाया!
सभी पेंड़ - पोधे लगे गुनगुनाने,
फिज़ा ने मेरे संग आलाप गाया!
ये सारे नजारे, लगे मुझको प्यारे,
हवा कर रही है नये कुछ इशारे!
ये हरियाली, मन को लुभाने लगी है,
ये राहें मुझे अब बुलाने लगी हैं!
फूलों में खुशबू, नया रंग आया!
मेरे साथ नदिया.......
फूलों के आशिक ये भौंरे भी आये,
हसीं तितलियों की अलग हैं अदायें!
नर्तक बना मोर "पर" को सजाये,
मधुर "कूक" कोयल की कानो को भाये!
बड़ा प्यारा मंजर, चमन मुस्कराया।
मेरे साथ नदिया........
हरिशंकर पाण्डेय
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मुक्तक
सभी को मौत का है खौफ, अपनी जान प्यारी है!
मगर ज़ांबाज वीरों को, वतन की शान प्यारी है!
फना होने का डर , मन में कभी इनके नही आता,
हमेशा " मौत के साये " में इनकी " पहरेदारी" है!!!
हरिशंकर पाण्डेय
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. हे परमपिता परमेश्वर
हे परमपिता परमेश्वर, इस जग का पालन करनेवाले।
हे कृपासिंधु,घट घटवासी,हम सब के प्यारे रखवाले।।
माँ की ममता के सागर हो, एक पिता का अनुपम प्यार हो तुम।
बंधु-प्रेम, आदर्श भाव, प्रिय सखा-धर्म आधार हो तुम ।।
तुम दाता शक्ति, बुद्धि, विद्या के, संकट सब हरने वाले।
हे परमपिता परमेश्वर.......
त्याग, प्रेम,करुणा, मर्यादा, सत्य-मार्ग का ग्यान दिया।
शरणागत के समर्थ रक्षक, सब भक्तों का कल्याण किया।
बस प्रेम-भाव से शीस झुका, उसको झट अपनाने वाले।
हे परमपिता परमेश्वर.....
हे प्रभुवर, मै हूँ अज्ञानी, चरणों में मस्तक रखता हूँ।
यह कृपा सदैव रहे सब पर,पार्थना यही बस करता हूँ।
हे ईश्वर, हम सब याचक हैं, तुम हो दाता देने वाले।
हे परमपिता परमेश्वर, इस जग का पालन करनेवाले।
हे कृपासिंधु,घट घटवासी,हम सब के प्यारे रखवाले।।
हरिशंकर पाण्डेय
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मुक्तक
कुछ करने का सच्चा जुनून,जज़्बे का साथ निभाता है। पर्वत का सीना चीर के "माझी" लंबी राह बनाता है!
जब इन्कलाब का नारा दे ,कुर्बान जवानी कर डाले,
आज़ादी का मकसद लेकर वह भगत सिंह बन जाता है!
माझी: दशरथ माझी(बिहार)
हरिशंकर पाण्डेय
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एक कविता परम वीरों के नाम
हे वीर सपूतों, क्रांतिवीर,तुम भारत मां की बने शान!
साक्षी इतिहास है बता रहा,हैं कार्य तुम्हारे अति महान!!
राणा प्रताप ने मुगलों को रण का कौशल दिखलाया था।
"सर कट जाए पर झुके नही", ऐसा संकल्प निभाया था।
वीर शिवाजी की चतुराई, युद्ध -कला के वीर बने।
मुगलों के दांत किए खट्टे,दुनिया के लिए नज़ीर बने।
झांसी की लक्ष्मीबाई का अंगरेजों ने लोहा माना।
रण का ऐसा जलवा देखा, नारी के साहस को जाना।
वीरों की अमर शहादत से, बढ़ गया देश का स्वाभिमान!
हे वीर सपूतों........…....
राजगुरू, सुखदेव, भगत सिंह, आज़ादी के सेनानी।
थे निडर,युवा,त्यागी योद्धा,यह बात फिरंगी ने मानी।
"लाला" पर हमले का बदला, पापी स्कॉट को मार दिया।
ब्रिटिश सभा में बम फेंका,ना भागे ना इनकार किया।
आज़ादी के मतवाले थे,"आज़ाद", सदा संग्राम किया।
आखिरी सांस तक लड़े और अंतिम गोली से प्राण दिया।
सब अमर हमारे दिल में है,कर दिया उन्होंने कीर्तिमान!
हे वीर सपूतों........…...
सेना के वीर जवानों का ,अनुपम उत्साह निराला था।
वे लड़े सदा निर्भय होकर,उनका जलवा भी आला था।
थी जीत सदा उनको प्यारी,दुश्मन पर हमला करते थे।
भारतमाता की जय हो यह मुख से प्रिय शब्द निकलते थे।
कितने जांबाज़ जवानों ने भारत की लाज बचाई है।
जब बिगुल बजा रण का,सबने हंसकर बंदूक उठाई है।
यशवंत हो तुम हो पराक्रमी, गाएं गुण धरती आसमान।
हे वीर सपूतों, क्रांतिवीर,तुम भारत मां की बने शान!
साक्षी इतिहास है बता रहा,हैं कार्य तुम्हारे अति महान!!
हरिशंकर पाण्डेय
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एक भजन
श्री राम आपका नाम अधर पर आता है।
हे रघुनंदन तन मन पुलकित हो जाता है।
मातृ- पिता ,गुरु के सच्चे सेवक कहलाए,
मर्यादा ,संस्कार,धर्म की रीति निभाए।
सत्य निष्ट , मर्यादा पुरषोत्तम कहलाए।
त्याग,प्रेम,आदर्श की निर्मल ज्योति जगाए।
दशरथ नंदन के गुण सारा जग गाता है।
श्री राम आपका नाम .....................
हे रघुनंदन....…....
मानवता रक्षा हेतु असुर संहार किया।
बन सखा,गुरु सब भक्तों का उद्धार किया।
सच्चे भाई,पति,पुत्र का एक संस्कार दिया।
अवध बना आदर्श, प्रजा को प्यार दिया।
पालनहारे तू सबका परम विधाता है।
श्री राम आपका नाम ......
हे रघुनंदन तन मन .........
हरिशंकर पाण्डेय
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मुक्तक
१)जब तक कदम रुके रहे , तब तेज थी हवा,
नजरें उठाई जैसे ही तूफान रुक गया
एक पैतरे के साथ ही बिजली चमक उठी,
उसने उड़ान ली तो आसमान झुक गया।
२) कितनी प्यारी है ये महफ़िल ये सुहाना मंजर,
मन में हलचल है इसे भूल नहीं पाऊंगा
मेरी किस्मत में जुदाई तो लिखी है फिर भी,
मेरा दावा है तुम्हें याद बहुत आऊंगा।
३) मेरी है आरज़ू अब सारे गम बदल जाएं,
बहे उल्फत का दरिया साथ मौजों की रवानी तक
खुदा से आप की खातिर दुआ बस इतनी मांगूंगा,
ख़ुशी का नूर चेहरे पर रहे ताजिंदगानी तक।
हरिशंकर पाण्डेय
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