प्र शांत महासागर की अशांत लहरें तट पर सर पटकतीं और फिर अथाह जल राशि में विलीन हो जातीं। लहरों का शब्द मेरे हृदय को और ज्यादा उद्वेलित कर ज...
प्र शांत महासागर की अशांत लहरें तट पर सर पटकतीं और फिर अथाह जल राशि में विलीन हो जातीं। लहरों का शब्द मेरे हृदय को और ज्यादा उद्वेलित कर जाता। हवा में नमी होने के बावजूद मेरे होंठ के ऊपर स्वेद बिंदु छलछला आये। मैं मानसिक उथल-पुथल से थका सा रेस्तरां के बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। तट के किनारे-किनारे ऊँची और खूबसूरत इमारतों की एक श्रृंखला थी। होटल विस्ताअलओशिआनो की गगनचुम्बी इमारत मेरे ठीक पीछे थी और सामने होटल के रेस्तरां का बरामदा जो कि तट को स्पर्श कर रहा था। पत्नी और बेटी भीतर रेस्तरां में थे और मैं तट पर टहलने आ गया था। रात नींद भी ठीक से नहीं आयी थी। बहुत सारे प्रश्न दिमाग में उठ कर परस्पर उलझ गये थे।
तट पर आज चहल-पहल नहीं थी। मेरे अतिरिक्त आज यहाँ सुरक्षाकर्मी ही दिखाई पड़ रहे थे जो अत्याधुनिक लेजर हथियारों से सुसज्जित थे। उत्तरी चिली अन्तोफगास्ता का यह तट आज भी उतना ही खूबसूरत नजर आ रहा था जितना चार दिन पूर्व था। उस दिन मैंने डॉ. अर्नाल्ड के साथ यहीं बैठ कर कॉफी पी थी। वे अटाकामा में आज से तीन दिन बाद प्रारम्भ होने वाली वैज्ञानिक संगोष्ठी के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गये थे। इस संगोष्ठी में मंगल से भी वैज्ञानिकों की टीम आ रही थी। किन्तु इस आयोजन से सप्ताह भर पहले ही वे अपने फ्लैट में मृत पाए गये। अगले दिन उनका सहायक और कल, अंतरिक्ष अनुसन्धान केन्द्र अटाकामा ;ैत्ब्।द्ध (जहाँ हम लोग कार्यरत हैं) का गार्ड भी उसी प्रकार की स्थिति में मृत मिले। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में रक्त में किसी प्रकार के न्यूरोटोक्सिन की पुष्टि हुई। पर यह कैसे हुआ कुछ पता न चला। इन घटनाओं ने मानसिक रूप से मुझे बहुत व्यथित कर दिया था।
आज सुबह कुछ बदलाव और मानसिक तनाव कम करने के उद्देश्य से मैं सेनपेद्रो डी अटाकामा स्थित अपने घर से परिवार सहित समुद्र तट के लिए निकल पड़ा था। कार की तेज गति, संगीत और श्यावली भी मेरी मानसिक हलचल को कम नहीं कर सके। बीस वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद यहाँ वर्षा हुई थी अतः वातावरण में कुछ नमी थी। यहाँ की लाल रंग की शुष्क पठारी भूमि पर नन्हे पौधे उग आये थे। जगह-जगह थाइम के बैंगनी रंग के पुष्प खिले हुए थे। वर्षा के बाद निचली भूमि में कहीं-कहीं पानी भर गया था। हमारे लिए यह दृश्य अभूतपूर्व था पर मेरी दृष्टि इसकी उपेक्षा कर रही थी और भीतर कहीं मस्तिष्क द्वारा मंथन की जा रही घटनाओं को देख रही थी। अटाकामा की पहाड़ियों पर कुछ दिन पूर्व खनन कार्य चला था। इससे यहाँ के आदिवासी नाराज थे। वे देवताओं के कुपित होकर महामारी फैलाने की आशंका जता रहे थे। उनके विरोध के कारण खनन कार्य बीच में ही रोक देना पड़ा था। उस दिन कॉफी पीते हुए अर्नाल्ड बोला था “संजय, हम बाईसवीं सदी में हैं, वैज्ञानिक विकास अपने चरम पर है और ये आदिवासी अपने रूढ़िवादी विचारों से मुक्त नहीं हो पाए हैं।”
“विकास को तो ये एक शैतान समझते हैं जो इन्हें धीरे-धीरे निगल रहा है” मैं अपना मुँह फाड़कर हथेलियों को अर्नाल्ड की ओर बढ़ाते हुए नाटकीय मुद्रा में बोला था। फिर हम खूब हँसे थे और इस बात के अगले दिन ही उसकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी थी। और फिर ..... क्या कारण हो सकता है इन सब घटनाओं का...... ? पत्नी विशाखा की आवाज से मेरी विचार श्रृंखला टूट गयी। वह खुशी से चिल्ला रही थी। “अवनि बेटा, देखो ओएसिस!!” अन्तोफगास्ता पहुँच कर मैंने विशाखा को यह बात बताई थी तो वह अचरज से बोली थी। “संजय, तुम इतनी बेसिरपैर की बातें कैसे सोच सकते हो? पुलिस अपना काम कर रही है। बेहतर यही होगा कि तुम भी अपने काम पर ध्यान दो।” पूरा दिन समुद्र तट पर बिताकर हम शाम को घर लौट गये। रास्ते में विशाखा ने कुछ गंभीर हो कर पूछा था “कहीं ऐसा तो नहीं कोई अर्नाल्ड से द्वेष रखता हो और उसने इन अफवाहों का लाभ उठा कर.....”
“हो सकता है। कई वरिष्ठ वैज्ञानिक उससे ईर्ष्या रखते थे। बहुत जल्दी उसने उच्च पद प्राप्त कर लिया था।”
आखिर 8 सितम्बर 2150 का वह महत्त्वपूर्ण दिन आ ही गया। मेरी नन्ही बेटी अवनि सुबह से दसियों बार पूछ चुकी थी, “पापा, मर्शियन्स कब आयेंगे?” उसने गुलाबों का एक सुन्दर गुलदस्ता मंगवा लिया था और नयी फ्राक पहने घूम रही थी। उनके स्वागत हेतु आज वह मेरे साथ ऑफिस जाने की तैयारी में थी। पर मैं अनमना था और किसी दूसरी ही चिंता में डूबा था। यद्यपि उनके स्वागत की सभी तैयारियाँ हमने पूर्ण कर ली थीं। सुरक्षा प्रबंध भी पुख्ता थे किन्तु पता नहीं क्यों मन में एक भय समाया हुआ था। आठ-दस दिन से यहाँ जो घटनाएँ घट रहीं थीं उसने हमारी पूरी टीम की नींद उड़ा दी थी। हम सतर्क हो गये थे और सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी। इस संगोष्ठी को स्थगित भी नहीं किया जा सकता था। इसकी तैयारियाँ काफी समय से चल रही थीं। किन्तु इन समाचारों को हमने मीडिया तक जाने से रोक दिया था क्योंकि इस वजह से संगोष्ठी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था। पर्यटकों के इस क्षेत्र पर भ्रमण पर भी कुछ समय के लिए रोक लगा दी गयी थी।
इस वैज्ञानिक सेमीनार में भाग लेने जो लोग मंगल से आने वाले थे, वे कोई विचित्र मुख-शरीर वाली प्रजाति के नहीं थे। वे पृथ्वी मूल के ही लोग थे। अभी कुछ वर्षों से मंगल पर मनुष्यों की एक बस्ती बसायी गयी है। आज से कोई 100 वर्ष पूर्व इस अभियान को आरम्भ किया गया था और मंगल पर आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधों और जन्तुओं की कुछ प्रजातियाँ भेजी गयी थीं। इन प्रजातियों को यही अटाकामा मरुस्थल के मरियाएलीना और अन्तोफगास्ता क्षेत्र में विकसित किया गया था। इस क्षेत्र की रक्त-वर्णीमृदा और जलवायु मंगल से बहुत कुछ साम्यता रखती है। यह पृथ्वी का शुष्कतम क्षेत्र है, डेथवैली से भी ज्यादा शुष्क! मनुष्य बस्ती नियंत्रित जलवायु युक्त एक छोटी बस्ती है। इनमें अधिकांश वैज्ञानिक ही हैं। पादप प्रजातियों के सफलतापूर्वक उग जाने से वहाँ की जलवायु और मृदा में भी कुछ परिवर्तन आने लगा है। मंगल पर अनुसंधान रत वैज्ञानिकों का एक दल यहाँ अटाकामा में आयोजित वैज्ञानिक संगोष्ठी में भाग लेने आ रहा था।
इस क्षेत्र के अति-शुष्क और निर्जन होने के कारण यहाँ रेडियो टेलीस्कोप्स स्थापित हैं। अन्तोफगास्ता में ‘अटाकामास्क्वायर किलोमीटर ऐरे’ (ASKA) ऑब्जर्वेटरी अनेक वर्षों से वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड के अनछुए रहस्यों से अवगत करा रही है। मैं और एक मेरा भारतीय मित्र यहीं कार्यरत है। अभी हाल ही में यहाँ अत्याधुनिक कैमरा और नवीनतम तकनीकयुक्त विशालकाय रेडियो टेलिस्कोप्स स्थापित की गयी हैं। इनके कार्यशील होते ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित समस्त रहस्यों से पर्दा हट जायेगा। इस संगोष्ठी का उद्देश्य अन्तरिक्ष के क्षेत्र में अनुसंधान की भावी रूपरेखा बनाना था। विश्व के सभी प्रमुख देशों से वैज्ञानिकगण यहाँ पधार रहे थे। ब्रह्मांड के रहस्यों से तो पर्दा हटाने की तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी हैं किन्तु हाल ही में कुछ दिनों के अंतराल में यहाँ जो घटनाएँ घटी हैं, उनके रहस्य से पर्दा अभी तक नहीं हट सका था।
आज शाम तक सभी देशों से वैज्ञानिक यहाँ पहुँचने वाले थे। हम नियंत्रण कक्ष में वर्चुअल स्क्रीन पर देख रहे थे कि मर्शियंस का थर्मोन्यूक्लियर शक्ति से संचालित स्पेस क्राफ्ट अन्तरिक्ष अनुसन्धान केन्द्र पर उतर चुका था। इस आधुनिक युग में सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है गति.....कम से कम समय में लक्ष्य तक पहुँचना। अभी कुछ ही समय में नासा से वैज्ञानिक दल छोटे पायलट रहित हाइपरसोनिक विमान से यहाँ सेनपेद्रो पहुँच जायेगा। अर्नाल्ड और गार्ड की रहस्यमयी मृत्यु के बाद आयोजन कड़ी सुरक्षा के बीच सादगीपूर्ण ढंग से संपन्न किया जाना था। अध्यक्षता का भार अब डॉ. एश्किन पर आ गया था। वे प्रारंभ से ही इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करना चाहते थे इसलिए कुंठित और असंतुष्ट दिखाई पड़ते थे। आज जब भी मेरी नजर उन पर पड़ती मुझे अनुभव होता कि विषाद की परत के पीछे छिपा प्रसन्नता और संतोष का भाव बार-बार उनके चेहरे से प्रकट हो रहा है। किन्तु मुझे अब इन सब विचारों और भावनाओं से ऊपर उठकर अनेक कार्य निपटाने थे।
हम सब बाहर परिसर में आ गये। अवनि अपने नन्हे हाथों में पुष्प गुच्छ थामे सबसे आगे थी। श्वेत पुष्प मालाओं से सब के स्वागत के पश्चात अनुसंधान केन्द्र के कांफ्रेंस हॉल में इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। डॉ. एश्किन ने डॉ. अर्नाल्ड को श्रद्धांजलि देते हुए कार्यक्रम का आरम्भ किया। “बड़े ही दुःख का विषय है कि हमारे प्रिय साथी डॉ. अर्नाल्ड हमारे बीच नहीं रहे। वे प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक थे और ASKA के विकास में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनकी और हमारे अन्य दो कर्मचारियों की आकस्मिक मृत्यु का पता अभी तक नहीं लग पाया है” उनकी आवाज भर आयी थी। मैं ध्यानपूर्वक उनके चेहरे के बदलते भावों को देख रहा था। जलपान के समय यही घटनाएं सब के बीच चर्चा का विषय रहीं। मंगल से आये लोगों में विशालाक्षी एक मात्र भारतीय थी। वह मेरे पास आ बैठी “मैं विशालाक्षी अय्यर” वह मुस्करा कर बोली। वह इन सारी घटनाओं को विस्तार से जानना चाहती थी।
“मेरा अभिन्न मित्र था अर्नाल्ड। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक होते हुए उसे प्रकृति से गहरा लगाव था। देखो इस कक्ष की आंतरिक सज्जा, यह उसी की कल्पना है।” विशालाक्षी ने एक बार समूचे कक्ष में अपनी दृष्टि घुमायी। पूरे कक्ष में हरीतिमा छाई हुई थी। पादपों की अत्यंत आकर्षक और दुर्लभ किस्में जेली के समान अर्द्ध ठोस पोषक माध्यम में लगायी गयी थीं। “अद्भुत! लगता ही नहीं है कि हम पृथ्वी के शुष्कतम क्षेत्र में हैं” वह बोली।
“हम दोनों इसी सप्ताहांत में समुद्र तट पर भ्रमण के लिए गये थे। दुर्भाग्य से यह हमारी अंतिम मुलाकात थी। उस दिन हमारे बीच बहुत बातें हुई थीं। यहाँ पहाड़ियों पर कुछ दिन पूर्व खनन कार्य हुआ था जिसे आदिवासियों के अंधविश्वास के चलते अब रोक दिया गया है। अर्नाल्ड बता रहा था कि वह उस क्षेत्र में घूम कर आया है। हाल ही में हुई वर्षा इस क्षेत्र में यह अति दुर्लभ घटना है। कई घंटे वहां घूम कर उसने दुर्लभ प्राकृतिक दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया था। इस संगोष्ठी के सम्बन्ध में भी हमारी बातें हुईं। यहाँ स्टाफ में उसकी अध्यक्षता के विरोध में स्वर उठ रहे थे। इस मुलाकात के अगले दिन ही वह अपने फ्लैट में मृत पाया गया।”
“सुना है, उसे विष दिया गया?”
“उसके रक्त में न्यूरोटोक्सिन पाया गया। एक दिन पूर्व वह मेरे साथ था। पुलिस ने मुझसे भी गहन पूछताछ की। इन सब बातों ने मुझे बेहद आहत किया है, विशालाक्षी। वह मेरा अंतरंग मित्र था।”
“मुझे बेहद दुःख है। तुम इस समय अत्यधिक तनाव से गुजर रहे हो। पुलिस को तुम पर संदेह है और तुमको एश्किन पर। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इसे दैवीय प्रकोप मान रहे हैं। पर तुम चिंता न करो यह रहस्य शीघ्र ही सुलझ जायेगा” वह आत्मीयता के साथ बोली। मध्यान्ह सत्र प्रारंभ हो चुका था। हमने अपना-अपना स्थान ग्रहण कर लिया।
पांच दिवसीय संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हो गयी थी। पुलिस की विभिन्न कोणों से केस की पड़ताल पुनः आरम्भ हो गयी। विशालाक्षी और उनकी टीम को कुछ माह तक नासा रुकना था। जाने से पहले उन लोगों ने खनन क्षेत्र में भ्रमण की इच्छा प्रकट की। अन्तरिक्ष अनुसंधान केन्द्र में कार्यरत मेरे साथी वहाँ जाने के नितांत अनिच्छुक थे किन्तु विवशता में उनको अतिथियों के साथ चलना पड़ा। निर्जन भूमि पर सर्प की तरह पसरी काली चिकनी सड़क पर हमारी गाड़ी 150 किमी प्रति घंटा की गति से दौड़ रही थी। मरुस्थलीय भूमि के वक्ष पर उभरी हुई रक्ताभ पहाड़ियाँ, कहीं कोई खारे पानी की झील, कहीं-कहीं उगे पिमिनेत्तो के वृक्ष! मरुस्थल का अपना सौन्दर्य है। लगभग 10 मिनट में हम खनन क्षेत्र में पहुँच गये। वर्षण से वहाँ खोदे गये गड्ढ़ों में पानी भर गया था। नम भूमि पर नन्हे पौधे उग आये थे। थाइम के बैंगनी छोटे पुष्पों के बीच-बीच में चटख लाल, बड़े और आकर्षक पुष्प खिले हुए थे। आदिवासी इस क्षेत्र को पवित्र मानते थे। मानवीय गतिविधियों से रहित इस स्थान का सौन्दर्य बिलकुल अछूता था।
क्षेत्र से कुछ मीटर दूर हमने अपनी गाड़ियाँ रोक दीं और भीतर से ही वहाँ के दृश्यों को निहारने लगे।
“कितने आकर्षक पुष्प हैं! क्या नाम है इस पौधे का?” लाल पुष्पों की तरफ इंगित कर मेरा भारतीय मित्र विनोद बोला। हममें से कोई भी उस पौधे से परिचित नहीं था।
“मैंने कहीं देखा है इस पौधे को” विशालाक्षी अचानक से बोल पड़ी।
“कहाँ? क्या इसे मंगल पर उगाया गया है?” मैंने पूछा।
“बिलकुल नहीं। किन्तु मैंने वहाँ के पुस्तकालय में, किसी पुस्तक में इसके चित्र देखे हैं। मुझे इसका नाम भी याद आ रहा है........‘सुपे’ नाम है इसका। हम अभी इसे देख सकते हैं।” उसने अपने हाथ में पहनी एक डिवाइस के बटन को दबाया। हमारे सामने वर्चुअल स्क्रीन आ गया था। उसने सर्च किया तो एक पुस्तक हमारे सामने थी। डॉ. क्रिस्टोफरक्लाइन द्वारा लिखित पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ लाइफ ऑन मार्स’।
पुस्तक के पृष्ठ संख्या 65 उस पौधे का चित्र था और साथ में विवरण भी.....
“यह एक स्थानीय दुर्लभ कैक्टस प्रजाति है। मंगल की जलवायु के अनुकूल बनाने के लिए इसमें जो नए जीन डाले गये उन्होंने इस पौधे में कुछ विशिष्टताएँ उत्पन्न कर दीं। इसके विकास और पुष्पन की गति आश्चर्यजनक रूप से तीव्र हो गयी। इसके लाल रंग के आकर्षक पुष्पों को देख कर सब मुग्ध रह गये क्योंकि इस कैक्टस में पुष्पन एक दुर्लभ घटना थी किन्तु इस पुष्प के पराग कण अत्यधिक विषैले थे और उनके निकट संपर्क से एक कर्मचारी की मृत्यु हो गयी थी। ये सूक्ष्म पराग कण, नासिका के भीतर श्लेष्मा झिल्ली से चिपक कर घुल गये थे और विष रक्त प्रवाह में पहुँच गया। इसी कारण पौधे की इस किस्म को ‘सुपे’ नाम दिया गया अर्थात ‘मृत्यु का देवता’। बाद में इस प्रजाति के पौधों और बीजों को नष्ट कर दिया गया।”
“ओह तो यह है हत्यारा!” मेरे मुँह से अनायास ही निकला।
“एक खूबसूरत और मासूम हत्यारा।” हमारा एक साथी बोला। अर्नाल्ड के जाने का दुःख मुझे आज भी था लेकिन जैसे मेरे सर से एक बड़ा बोझ उतर गया था। मस्तिष्क में निरंतर चल रही हलचल अब शांत हो गयी थी।
“ऐसा लगता है कि इसके बीज खनन के दौरान भूमि में से निकले हैं। किसी पात्र में बंद करके इन्हें गाड़ दिया गया होगा और खनन कर्मियों ने इन्हें मुक्त कर दिया।” मैंने अनुमान लगाया। “यह भी एक संयोग रहा कि इस वर्ष यहाँ वर्षा हुई और ये बीज अंकुरित हुए, नहीं तो वर्षों तक इस बंजर भूमि पर ये सुसुप्त पड़े रहते।”
किन्तु इन्हें नष्ट करने की बजाय भूमि में गाड़ा क्यों गया, यह भी अतीत के गर्भ में दबा एक रहस्य ही था जो शायद अनसुलझे ही रहे।
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सुन्दर रोचक रोमांचक विज्ञान कथा। रहस्य अंत तक बरकरार रहता है और पाठक को पढने के लिए विवश कर देता है। आभार।
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