गुरूमंत्र चुनाव का समय था, प्रचार का दौर चल रहा था। विपक्षी दल का प्रत्याशी अपनी जीप पर प्रचार करते हुए जोर-जोर से चिल्ला रहा था,&qu...
गुरूमंत्र
चुनाव का समय था, प्रचार का दौर चल रहा था। विपक्षी दल का प्रत्याशी अपनी जीप पर प्रचार करते हुए जोर-जोर से चिल्ला रहा था," सत्ता पक्ष ने आज तक क्या किया, सड़कें बेहाल कर दी, अस्पताल बीमार कर दिये, शिक्षा का स्तर गिरा दिया, उन्होंने बुजुर्गों और निःशक्तजनों के लिए क्या किया, महिलाओं के लिए क्या योजना बनाई, कुछ नहीं।"
एक बुजुर्ग ने उस प्रत्याशी को रोका और कहा," बेटा, मैं तुम्हें जीत का एक गुरूमंत्र बताना चाहता हूँ।" अब कोई जीत का मंत्र बताने वाला मिल जाये तो फिर और क्या चाहिये। प्रत्याशी ने हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से बुजुर्ग से कहा," बताइये चाचाजी, आपकी कृपा होगी मुझपर।" बुजुर्ग व्यक्ति प्रत्याशी से बोले," बहुत आसान है, तुम ये जो दूसरों ने क्या किया या नहीं किया लोगों को बता रहे हो उसकी बजाय तुम उन्हें बताओ कि तुम जब जीतकर आओगे तो क्या और कैसे करोगे। तुम्हारे ऐसा करने से लोगों पर प्रभाव पड़ेगा।" मंत्र बताने के बाद बुजुर्ग ने पूछा कि कैसा लगा मेरा यह मंत्र? प्रत्याशी बगलें झांकने लगा और बिना उत्तर दिये खिसियाकर पतली गली से वहाँ से चलते बना।
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चूड़ियाँ
चौराहे पर दुकान थी रहीम चूड़ी वाले की, दुकान छोटी सी थी पर उसमें चूड़ियाँ बड़ी अच्छी मिलती थी, शनिवार और रविवार को तो रहीम की दुकान पर ऐसी भीड़ रहती थी जैसे बड़ी दुकानों में होती है।
मंगलवार को भी रहीम ने करीब ग्यारह बजे अपनी दुकान खोली तभी उसने एक लड़की को आते देखा, उसके पीछे एक लड़का भी था, लड़का शरीफ नजर आ रहा था, लड़के ने लड़की से पूछा," कहाँ जा रही हो?" सवाल पूछने का तरीका बेहूदा था इसलिये लड़की ने बिना जवाब दिये अपनी रफ्तार बढ़ा दी, लड़के ने भी गति बढ़ाई और पास जाकर लड़की से कहा," बता भी दो कहाँ जा रही हो, मैं तुम्हें छोड़ दूँगा।" यह कहकर लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ लिया, लड़के की शराफत का नकाब उठ गया था, लड़की ने पलटकर थप्पड़ जड़ दिया, लड़का तिलमिला गया और रोबीले स्वर में बोला," तुम्हारी इतनी हिम्मत, मुझपर हाथ उठाया तुमने।" इसके बाद लड़के ने जबरदस्ती लड़की को अपने पास खींचना चाहा, लड़की मदद के लिए चिल्लाने लगी, भीड़ इकट्ठा हो गयी पर सब तमाशबीन ही थे, एक लड़का उस असहाय लड़की को बचाने आगे बढ़ा तो उसके पिता ने उसे यह कहते हुए रोक दिया," बेटा, इस झंझट में मत पड़ो, चलो यहाँ से।" वो पिता और बेटा तो चल दिये और भीड़ फिर नजारा देखने लगी। रहीम उस लड़की को लड़के के चंगुल से छुड़ाने गया तो लड़के ने रहीम को जोर से धक्का दिया जिससे वह गिरते गिरते बचा।
रहीम को न जाने क्या सूझा, वह दुकान से कई चूड़ियाँ ले आया और भीड़ के हर व्यक्ति को देते हुए बोला," ये चूड़ियाँ पहन लो, ये लड़कियों के हाथों के लिए नहीं है, तुम्हारे जैसे हाथ पर हाथ रखकर खड़े रहने वालों के हाथों में ये ज्यादा अच्छी लगेगी, इन्हें पहनकर घर जाओगे तो तुम्हारे माता पिता को भी तुमपर नाज होगा और वे बोलेंगे कि ऐसी चूड़ियाँ अपने लिए और ले आना।" रहीम के इस झकझोरते कथन ने भीड़ में शर्म और गुस्से का संचार किया, भीड़ आगे बढ़ने लगी, यह देख लड़के ने डर के मारे लड़की का हाथ छोड़ा और भागने लगा। रहीम को फिर कुछ सूझा और चूड़ियों का एक अच्छा सा सेट लड़के को रोककर दिया और कहा," बेटा, इन चूड़ियों को घर जाकर अपनी बहन को पहनाना और आइंदा किसी लड़की के साथ ऐसी हरकत करते समय बहन की चूड़ियों वाली कलाई को याद कर लेना।" लड़का शर्म से पानी पानी हो गया, लड़की से माफी मांगी और अपनी हर बहन की रक्षा की कसम खाई।
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मदद से चूकें नहीं
"दो दिन से भूखा हूँ साहब, कुछ मदद करो साहब, भगवान आपका भला करेगा।" भिखारी के ये शब्द सुनते ही दानिश ने जेब से पचास रूपये का नोट निकाला और भिखारी को देते हुए कहा," यह लो, जाकर पहले खाना खाओ।" भिखारी दुआ देते हुए चले गया। एक दिन फटे पुराने कपड़े पहने एक बच्ची दिखी तो उसे पास की कपड़े की दुकान पर ले गया और बच्ची से बोला," बेटी, तुम यहाँ से ड्रेस पसंद कर लो, जो तुम्हें पसंद होगी मैं दिला दूँगा।" पहले तो बच्ची ने मना किया पर दानिश के बहुत कहने पर दो ड्रेस पसंद कर ली। दानिश ने दुकानदार को पैसे दिये, बच्ची ने दानिश को धन्यवाद दिया और खुशी खुशी घर चली गयी। दानिश ने सोच रखा था कि घर से ऑफिस के रास्ते में कोई भी जरूरतमंद मिला तो वह उसकी मदद करेगा, वैसे तो उसके ऑफिस का समय आठ बजे का था पर अपने इस सेवाभाव को अंजाम देने के लिए दानिश एक घंटे पहले ही निकल जाता।
ठंड बहुत थी उस दिन, दानिश वैसे ही ऑफिस के लिये थोड़ा लेट हो गया था, मनोज, जो कि उसका सहकर्मी था, ने लिफ्ट मांगी, अब मना करना अच्छा नहीं लगता सो दोनों साथ हो लिये। रास्ते में किसी गरीब व्यक्ति को ठंड से ठिठुरता देख दानिश ने अपनी आदत के मुताबिक कार रोकी। मनोज बोला," क्या हुआ, कार क्यों रोक दी?" दानिश ने गरीब व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा," उसकी सहायता करने के लिये।" मनोज बोला," ऐसे लोग तो सड़क पर बहुत मिलते हैं, तुम कहाँ इसकी मदद करने को रूक रहे हो, तुम्हें पता नहीं ज्यादातर तो झूठ बोलकर, दिखावा करके हमें लूटते हैं। हमें वैसे ही देर हो रही है, अभी चलो, मदद करना ही है तो आते समय कर लेना।" दानिश ने घड़ी देखी, सच में देर हो रही थी इसलिये शायद पहली बार दानिश को वहाँ से मन मसोसकर आगे बढ़ना पड़ा। लौटते हुए दानिश सुबह वाले उस ठंड में कुड़कुड़़ाते हुए व्यक्ति को देखने सुबह वाली जगह पर रूका, वहाँ बहुत भीड़ लगी थी, दानिश ने उतरकर देखना चाहा कि माजरा क्या है? उसने जो देखा वह उसकी आँखों को रूलाने के लिए काफी था क्योंकि उस गरीब की ठंड के कारण मौत हो गयी थी।
दानिश ने भीगी पलकों से तय किया कि आज के बाद वह किसी भी पथ भ्रमक से भ्रमित हुए बिना अपने सही पथ को नहीं छोड़ेगा और चाहे कितनी भी देर क्यों न हो रही हो वह किसी की ओर मदद का हाथ बढ़ाने में देर नहीं करेगा।
दर्शना जैन
रामकृष्णगंज, खंडवा
म.प्र. - 450001
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