लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 291 व 292 // श्रीमती गायत्री शुक्ला

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प्रविष्टि क्रमांक - 291 श्रीमती गायत्री शुक्ला मृत्युभोज तीनों बच्चे सहमे-सहमे से बैठे थे। पापा को कभी इस तरह चिरनिद्रा में नहीं देखा था। आ...

प्रविष्टि क्रमांक - 291

श्रीमती गायत्री शुक्ला

मृत्युभोज

तीनों बच्चे सहमे-सहमे से बैठे थे। पापा को कभी इस तरह चिरनिद्रा में नहीं देखा था। आसपास जो बिलख बिलखकर रो रहे थे सब अजनबी लग रहे थे पर उनका रुदन बता रहा था कि पापा के कोई खास रिश्तेदार है| मीनू तीनों भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। उससे छोटा सोनू और सबसे छोटी नीतू। मीनू बी.कॉम.फ़ाइनल इयर में थी साथ ही ट्यूशन भी लेती थी। लाड़ला बेटा सोनू अभी बारहवीं में था और नीतू नवमी में। पापा को कभी बुखार भी आया हो ,बच्चों को याद नहीं। कल रात सीने में तेज़ दर्द हुआ था और कुछ घंटों की अफरा - तफरी के बाद थी भयावह शांति। बच्चे वो सब कर रहे थे जो उन्हें करने बोला जा रहा था। बीच बीच छुपकर माँ को देख आते जिसे भीड़ ने घेर रखा था भाव शून्य बैठी थी सुनैना। हृदय विदारक दृश्य था वो जब सुनैना को पति के अंतिमदर्शन के लिए लाया गया। निःशब्द थी सुनैना ,पर भीड़ विलाप कर रही थी। ताऊ जी ने पूरा मोर्चा सम्हाला था। लोगों में अच्छा रोब जम रहा था। समय किसी का सगा नहीं होता चलता ही जाता है। सुनैना और बच्चे अपने ही घर में अजनबी बन गए थे। किसी तरह तीन दिन बीते ,अस्थि चुनने के बाद सभी करीबी रिश्तेदार भी वापसी की भूमिका बांध चुके थे। दिन- भर तो लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराने आते रहे ,रात के भोजन बाद ताई जी ने सुनैना को अपने पास बैठाया और प्यार से समझाते हुए मुद्दे पर आई। वो जानना चाहती थी कि सुनैना के पास खर्च के लिए कितनी रकम है। सुनैना बहुत समझदार थी ,तभी तो पाई पाई जोड़कर अपनी गृहस्थी चला रही थी। पति प्राइवेट स्कूल में टीचर थे ,और ट्यूशन भी लेते थे। कड़ी मेहनत के बाद बस इतना कमा पाते कि परिवार का पेट भर जाता और बेटी की शादी के लिए कुछ जुड़ जाता। सुनैना ने ताई जी को बताया दीदी, बस एक लाख की एफ.डी.है ,और कुल मिला कर लगभग पंद्रह हजार ही मेरे हाथ में है। ट्यूशन के बच्चे इस माह की फ़ीस देंगे तो पाँच हजार और हो जायेंगे ,मैं उनसे बात करुँगी। ताई जी तो सन्देश वाहक थी ,सो ताऊ जी तक संदेसा पहुंचा दिया। एक औरत होने के नाते वो सुनैना का दर्द महसूस कर रही थी ,पर चाहकर भी कोई मदद नहीं कर सकती थी ,मर्द के हाथों की कठपुतली जो ठहरी। सुबह चाय बाद मीटिंग बैठी ,हिसाब लगाया गया। इलाहाबाद जाना ,वहां का खर्चा ,ब्राह्मण भोज, तेरहवीं भोज ,पूजा पाठ ,कुल मिलाकर मोटा – मोटी एक लाख तो खर्च हो ही जायेगा। अभी तीन दिनों में ही मेरा पंद्रह हजार लग गया है ,सुनैना ने देवर जी को कहते सुना तो अपराधबोध से भर गयी। ताऊ जी ने फटकारा ,ये वक्त इन बातों का है? चलो देखो आगे के काम। रिजर्वेशन हुआ कि नहीं ,कार्ड का कौन देख रहा है ? सुनैना ने उस वक्त तो राहत की सांस ली ,पर मन अधीर था , अब क्या होगा ?कैसे होगा ?अकेले देखकर मीनू माँ के पास आई ,सहमते हुए उसने माँ से कहा ‘’ माँ ,...क्या ये सब जरुरी है ? ‘’ सुनैना ने बेटी को लाड़ किया और समझाया हां बेटा,हम जिस समाज में रहते है ,वहां सब कुछ जरुरी है। तू चिंता मत कर ...हम एफ.डी.तुड़वा लेंगे। लेकिन माँ वही तो अब हमारी जमा पूंजी है, पापा की मेहनत की कमाई। आगे के खर्चों का क्या होगा? माँ हम नहीं करेंगे ये सब फिजूलखर्च। बेटा तेरे पापा की आत्मा की शांति लिए करना होगा। मीनू झल्ला उठी माँ ...क्या इस तरह फिजूल खर्ची से मिलेगी पापा की आत्मा को शांति ?किस युग में जी रही ओ माँ ...कह दो ना ताऊ जी से हम नहीं करेंगे ये कोई मृत्युभोज। बेटा....तू परेशान मत हो, ताऊ जी है न।

दोपहर का वक्त था ,सुनैना अपने कमरे में थी। ताई जी ऊपर के हाल में सो ही थी। घर में एक ही कमरा था ,बैठक ,रसोई ,छोटा सा आँगन और ऊपर हाल अभी - अभी बना था जहां शर्मा जी ट्यूशन पढाया करते थे , और रात में बच्चे वही पढ़ते ,सोते। अभी ताऊ जी ,ताई जी वही सो जाया करते बाकी सब अपने घर जाते थे ,जो इसी शहर के रहने वाले थे। बच्चे स्कूल ,कॉलेज गए थे। सुनैना लेटी थी , आँखें तो बंद थी ,पर मन अशांत। अचानक दरवाजे पे आहट हुई। सुनैना उठी दरवाजे तक गयी तब तक दबंग कद काठी का पुरुष अन्दर प्रवेश कर चुका था। सुनैना ने अपने बदन को पूरी तरह पल्लू से ढक लिया ,और कोने में जाकर खड़ी हो गयी। ताऊ जी कभी इस तरह अन्दर आते नहीं थे ...आज क्या हुआ ? इसी उधेड़- बुन में थी सुनैना ,ताऊ जी उसके एकदम करीब थे , बड़े प्रेम से उन्होंने बात छेड़ी....तुम चिंता मत करो , मैं हूँ न ...सब ठीक कर दूंगा। मेरा भी तो छोटा भाई था| सुनैना कुछ सहज हो गई| बस अ .. तुम एक बात मान लो ..कहते हुए ताऊ जी सुनैना के कंधों पर अपना मजबूत हाथ रखा। जी ...क्..क ..क्या ?ताऊ जी ने बड़ी बेशर्मी से सुनैना को जकड़ लिया , और कहा हमें खुश कर दिया करो बस ... और क्या। सुनैना ने पूरी ताकत से ताऊ जी को धकेला खुद भी बहुत दूर छिटक गयी ...शर्म नहीं आपको ?अरे ये नखरे न दिखाओ ...सारा खर्च उठाऊंगा और क्या चाहिए ?पैसे पेड़ पे नहीं उगते ..आगे तुम्हें भी पूरा जीवन अकेले बिताना है ,वादा रहा ..एक पैसे की कमी न होने दूंगा ... कहते कहते उसने सुनैना के गालों पे हाथ फेरा। सुनैना के कानों में जैसे किसी ने पिघला शीशा डाल दिया , उसने पूरे बल से एक झन्नाटेदार चांटा रसीद किया ताऊ जी के गालों पर , और भाग कर रसोई में खुद को बंद कर लिया। आज उसे अहसास हुआ वह विधवा हो गई ,फूट फूटकर रोई आज।

मीनू आ गयी थी , उसी ने सुनैना की तन्द्रा भंग की। क्या बात है माँ ,यहाँ किचन में क्यों बैठी हो... तबीयत तो ठीक है ना ,चक्कर तो नहीं आया ? चलो, कमरे में चले। कमरे का नाम सुनते ही वह सहम सी गयी। मीनू ने सहारा देकर उठाया , दोनों सोफे पर बैठी। सुनैना ने मीनू का हाथ कसकर पकड़ा ,और अपना फैसला सुनाया बेटा तू सही कहती है, मृत्यु भोज नहीं होगा। माँ ..अ.. अ..अचानक तुम्हारे विचार क्यों बदल गए ? किसी ने कुछ कहा क्या ?अब तक ताई जी भी आ चुकी थी ,उन्होंने समझाया अरे , चिंता ना कर रुपयों पैसों की , ये है ना सब देख लेंगे , जब बाहर वालों की इतनी मदद करते है तो क्या घर पे हाथ खींच लेंगे ? सुनैना उनके भोलेपन पे मुस्करा कर रह गयी। वाह री पतिव्रता नारी ...तू कब समझेगी की पुरुष है कितना बड़ा मदारी ,हुंह| अपने आप से कह उठी सुनैना रात के भोजन के बाद सुनैना ने अपना फैसला सबके सामने रखा ,अब तक सुनैना की ननद ,बच्चों की बुआ जी भी आ चुकी थी। ये क्या जो मन में आया बोले जा रही है ........भाई को तो खा गई ,अब क्या उसकी कमाई पे एश करेगी ? बुआ जी का तीर था ये। चोचले हैं सब ..ताऊ जी ने अपना पासा फेंका ।सुनैना ने उन्हें घूरा .. वो नज़रें ना मिला सके ,उठकर चलते बने। देवर – देवरानी ने कोई विरोध नहीं जताया ,उन्हें तो पहले ही डर था ,जाने कितनी रकम देनी पड़ेगी मदद के लिए। सुनैना का मन शांत था। जो उसने सोचा था किया। शांति पूर्वक छोटी सी पूजा संपन्न हुई ,जिसमें घर के खास सदस्य शामिल थे और गरीब बच्चों को भरपेट भोजन कराया गया। पति की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना क, और दान के रूप में एक गरीब बच्चे की साल भर की पढाई का खर्च उठाने का फैसला सुनाया। सुनैना ने मृत्युभोज की परंपरा तोड़ दी थी ,और उसके मन पर कोई बोझ भी नहीं था।

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प्रविष्टि क्रमांक - 292

श्रीमती गायत्री शुक्ला

नई दिशा

सुबह सबको बिदा करने के बाद जूही ने अपनी चाय बनाई और रोज की तरह अखबार लेकर बैठ गई। सुबह बस हेडलाइन पढ़ने का ही समय मिल पाता था। एक खबर पर जाकर जैसे उसकी नज़रें जम सी गई| वैसे यह कोई खास खबर नहीं थी ,ये सब तो आम बात हो गई थी। शीर्षक था वही घिसा पिटा ‘’चलती कार में गैंगरेप ‘’. जूही स्वयं को रोक न सकी इस खबर को पढ़ने से। एक साँस में पूरी खबर पढ़ ली। अब तो चाय का क घूंट भी हलक से नीचे नहीं उतरा। खबर कुछ यूँ थी ...एक युवती जिसके गोद में ढाई साल का बच्चा था नौकरी के लिए इंटरव्यू दिलाने गई थी। दिए गए पते के आस पास ही उसने किसी से उस ऑफिस का पता पूछा किसी तरह वहां पहुंची। लेकिन वहां ज्यादा भीड़ – भाड़ नहीं थी ,वहां के मैनेजर ने कहा अगले मोड़ पर हमारा हेड ऑफिस है ,आप बायो डाटा के साथ वहां पहुंच जाइये बॉस ही सलेक्ट करेंगे ,आप चाहे तो कम्पनी की गाड़ी से जा सकती है। गाड़ी वहां जा ही रही है। युवती ने बच्चे को सम्हाला और उत्साहपूर्वक कार में जाकर बैठ गई। गाड़ी में ड्राईवर के अलावा कोई न था। गाड़ी जैसे ही कैंपस से बाहर निकली ,अचानक दो जेंटलमेन सवार हो गए। युवती ने सहम कर मोबाइल निकालना चाहा - सब बेकार। वह चीखती रही बेबस सी पर बंद ए. सी . कार में ही उसकी चीख रह गई। गाड़ी अनजाने रास्ते पर दौड़ रही थी और वह युवती पल - पल रौंदी जा रही थी। बच्चे को भी चलती गाड़ी से ही कही झाडियों में फेंक दिया क्योंकि वह उनकी हवस पूरी करने में बाधा डाल रहा था। गाड़ी सूनी सड़कों में घूमती रही तब तक जब तक सभी संतुष्ट न हो गए। उसके बाद युवती भी अधमरी हालत में सड़क के किनारे फेंक दी गई। जूही की रूह कांप उठी वह तिलमिला उठी ,क्योंकि वह भी एक औरत थी ,उस दर्द को महसूस करने की कोशिश कर रही थी जो उस युवती ने ,एक माँ ने सहा होगा। मन ही मन धिक्कार उठी ,क्या पढ़े लिखे ,क्या अनपढ़ सब एक है। मर्दों की जात ऐसी होती है , बस औरत मिल जाये ,कभी भी ,कही भी ,कोई भी,छि :........दानवराज है। अरे दानवों के भी कुछ उसूल होते हे ,ये गिद्ध तो बच्चियों को भी नोच खाते है,...हुंह|

जूही के मन में सवाल कौंधा ...बच्चे का क्या हुआ होगा ?फिर वह आगे पढ़ने लगी ..बच्चे को आस पास के झुग्गी झोपड़ी वालों ने बचा लिया उसका इलाज अस्पताल में चल रहा है। युवती को सड़क किनारे गटर के पास अर्ध नग्न अवस्था में अचेत पाया गया ,उसका इलाज सरकारी अस्पताल में चल रहा है। समाचार समाप्त हो चुका था ,लेकिन जूही का मन भर गया था दरिंदगी की घिनौनी तस्वीरों से। वह सोचती रही क्या भूल कर दी उस मासूम माँ ने ?उस मजबूर औरत ने ? जाने कैसी मजबूरी में बेचारी गोद में बच्चा लिए नौकरी के लिए निकली होगी। उन जानवरों की हवस का शिकार हुई ,उनके बिछाये जाल में फंसी चिड़िया का सब कुछ लुट चुका था। अरे वो तो गोद में बेटा था ,बेटी होती तो उसे भी नोच खाते ,इन नीचों को तो औरत के हर रूप से तृप्ति मिल जाती है। क्या फर्क पड़ता है ,ढाई साल की बच्ची हो या बाईस साल की युवा। जूही अब उस औरत का भविष्य सोच रही थी ..अब क्या होगा उस बेचारी का ?पति का प्यार ,सम्मान मिलेगा ...? चाहकर भी मर नहीं सकती माँ जो ठहरी। अगले ही पल लगा क्यों औरत बेचारी बनकर रह जाती है ?

अचानक कॉल बेल बजी और जूही की तन्द्रा भंग हुई। दरवाजे पर बेटी रुनझुन को देखकर चौक गई ...सवालों की झड़ी लगा दी, क्या हुआ तुझे ?कैसे वापस आ गई ? कहा से आ गई ?बता ना ...अरे मम्मी आप चुप हो तब तो कुछ बताऊं न। अब यही खड़ी रहोगी ,अन्दर तो चलो। अब बोल भी ...कुछ नहीं मम्मी सायकल पंचर हो गई न तो मैं वापस आ गई। यही तो तुम लोगों की आदत है बेटा पहले से देखना चाहिए न , तुम्हें पता नहीं जमाना कितना ख़राब है .........न जाने क्या क्या बोलती रही जूही। रुनझुन को कुछ समझ नहीं आ रहा था ,मम्मी इतना क्यों बोल रही है ?जूही जब मन की भड़ास निकाल चुकी तब शांत होकर बोली ,बेटा मैं तुझे कराटेक्लास भेजूंगी। ये ड्राइंग क्लास बंद कर। पर क्यों मम्मा ...आप ही तो चाहती थी न मैं सीखूं..| हाँ बेटा ,पर अब मुझे लगता है अपने बचाव का हुनर आना हर लड़की के लिए सबसे पहली जरुरत है। बाकी सब तो तुम न भी सीखो चलेगा पर पर कराटे तो हम दोनों सीखेंगे I इसी आत्मविश्वास के साथ जूही ने बेटी को गले लगा लिया। एक नई दिशा उसे नजर आ रही थी , नारी शक्ति जगाने की।

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श्रीमती गायत्री शुक्ला

साईं - विहार,सी.ब्लाक 501

दलदल शिवनी, मोवा

रायपुर , (छ . ग)

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रचनाकार: लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 291 व 292 // श्रीमती गायत्री शुक्ला
लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 291 व 292 // श्रीमती गायत्री शुक्ला
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