प्रविष्टि क्रमांक - 288 मोना कपूर मोह जाल माँ...माँ मेरा नाश्ता तैयार हुआ या नहीं! अगर नहीं तो जल्दी कर दो प्लीज ऑफिस के लिए रोज़ लेट हो जात...
प्रविष्टि क्रमांक - 288
मोना कपूर
मोह जाल
माँ...माँ मेरा नाश्ता तैयार हुआ या नहीं! अगर नहीं तो जल्दी कर दो प्लीज ऑफिस के लिए रोज़ लेट हो जाता हूं, नाश्ते के चक्कर में!ऐसा कहते कहते राम जल्दी जल्दी अपने ऑफिस की तैयारी में लगा हुआ था।
बस बेटा, कर रही हूँ! अब बूढ़ा शरीर है बेटा इतनी हिम्मत कहा है जैसी पहले थी। तो माँ थोडी जल्दी उठ जाया करो ना तुम्हें पता तो है कि निधि का भी ऑफिस होता है वो भी कहा संभाल पाती हैं रसोई का काम! ऊपर से तुम्हारा लाड़ला पोता आयुष उससे ज्यादा तो वो तुम्हें प्यार करता है तभी तो तुम्हारे पास छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं होती! कहते हुए राम डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और रमा जी द्वारा नाश्ते में बनाये गए आलू के गर्मागर्म परांठे खाने लगा।
अच्छा सुनो राम बेटा! सिर में बड़ा दर्द हो रहा है..वो कल रात मेरा चश्मा....!!!
अरे वाह! माँ आलू के परांठे बने हैं आज तो मजा आ जाएगा आपके हाथ के स्वादिष्ट परांठे खाकर..रमा जी की बात को बीच में काटते हुए कमरे से आती निधि तपाक से बोली। अच्छा माँ, प्लीज एक दो परांठे अलग से पैक कर देना वो मेरी सहेली है ना ऑफिस की उसे आपके हाथ के परांठे बहुत पसंद है। जी जरूर, निधि बेटा! रमा जी बोली।
अच्छा माँ चलता हूँ ध्यान रखना अपना और आयुष का भी! राम बेटा, सुनो तो ...मेरा। अभी नहीं माँ,पहले ही लेट हो गया हूँ आपको ऑफिस जाकर फोन करूंगा कहते कहते राम ने अपनी गाड़ी की चाभी उठायी और चला गया।
रमा जी भी धीरे धीरे निधि का लंच पैक करके अपना और आयुष का नाश्ता बना कर खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठी ही थी कि निधि भी ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गई थी।
अच्छा माँ, मैं भी चलती हूं, आज ऑफिस में इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है और हाँ माँ, आज जब भी आपको टाइम मिले लड्डू ज़रूर बना देना बहुत मन कर रहा है आपके हाथ के लड्डू खाने का,कल राम भी कह रहे थे।
लेकिन निधि बेटा..मेरा चश्मा!!!!!रमा जी की पूरी बात सुने बिना ही निधि आयुष को प्यार कर के फ़ोन मिलाती मिलाती ऑफिस के लिए निकल गयी।
ऐसा देख रमा जी अपनी आंखों में आये आँसुओं को आयुष से छुपाते हुए उसे नाश्ता कराने में लग गयी और दूसरे हाथ में पकड़े अपने टूटे चश्मे को उठा कर टेबल पर रख दिया और चुपचाप से सिर दर्द की दवाई खाकर लग गयी आयुष के साथ खेल में!!
लेकिन आज ना जाने क्यों रह रह कर रमा जी को राम के बाऊजी की कटाक्ष सत्य के रूप में बोली गयी बातें याद आ रही थी कि “जिन मोह के धागों में उलझ कर वो खुद के लिए जीना भूलती जा रही है एक दिन यही धागे उसके तन के साथ साथ मन को भी जख़्मी कर देंगे”!!!
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प्रविष्टि क्रमांक - 289
मोना कपूर
संघर्ष
डॉक्टर साहब..कैसे है अब बाबूजी?..उनकी हालत में कुछ सुधार आया या नहीं?
देखिये हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं है! इसीलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
जब जब अमित डॉक्टर साहब की यह बात सुनता उसका दिल और बैठता जाता! उम्मीद की किरण जगने से पहले ही बुझ जाती ऊपर से माँ के लगातार सवाल कि बाबूजी कब ठीक होंगे? उसे अंदर से तोड़ कर रखते जा रहे थे।
डॉक्टर से बात करके जैसे ही अमित मुड़ा पीछे माँ को खड़ा पाया! क्या हुआ अमित बेटा??क्या कहा डॉक्टर ने??बाबूजी ठीक तो हो जायेंगे ना??माँ की कपकपाती सी आवाज़ सुन कर अमित खुद को सँभालते हुए बोला ”हाँ, माँ आप चिंता मत करो, वो ठीक हो रहे हैं जल्द ही हमारे साथ घर वापिस लौटेंगे”।
“तू क्या समझता है अमित बेटा कि मुझे समझ में नहीं आता। पिछले पंद्रह दिन पहले से तेरे बाऊजी वेंटिलेटर पर है इसका मतलब जानती हूं मैं कि नकली सांसें दी जा रही हैं उन्हें! डॉक्टर रोज़ सुबह शाम आते है बस एक ही बात कह कर चले जाते हैं! मेरी बात मान,उन्हें घर ले चल.. कुछ नहीं होगा इनसे! बस अस्पताल के बिल बढ़ाने का तरीका है!.. कहते कहते अमित की माँ के आंखों में आंसू आ गए व रोते हुए ऊपर वाले से उनके प्राणों की मुक्ति की गुहार लगाने लगी।
यह क्या कह रही हो माँ! पिता है वो मेरे और तुम्हारे पति। भला कोई ऐसा कैसे बोल सकता है?अपना पूरा जीवन हमारे लिए जीया है उन्होंने तो आज जब मेरा फर्ज़ निभाने की बात आयी तो मैं पीछे नहीं रहूंगा! मानता हूँ कि अकेला हूँ, जिम्मेदारियां है लेकिन ये सब ज़िम्मेदारियां बोझ नहीं है मेरे लिए। तुम कुछ भी अनाप शनाप मत बोलो माँ! सब ठीक हो जाएगा कहते हुए अमित अपनी आँखों की नमी को छुपा मन पक्का करते हुए अपनी माँ को गले से लगाकर उन्हें हिम्मत देने लगा।
अफसोस था अमित की माँ को कि अपने मन में ऐसे विचार लायी। लेकिन वो डॉक्टर द्वारा अमित को बोली जाने वाली बातों को सुन चुकी थी कि “अब उनका बचना मुश्किल है और अगर बच भी गए तो उनका बाकी का जीवन व्यर्थ ही बीतेगा, बस बोझ बन कर रहेंगे वो”।
सदैव सही राह व अपने उसूलों पर चलने वाले बाबूजी ने जीवन के हर कदम पर संघर्ष ही संघर्ष पाया था। किस्मत, वक़्त व खुद के परिवार से मिली हर चोट पर दोंनो ने एक दूसरे को मरहम लगाते हुए साथ निभाया। वक़्त चाहे जैसा भी रहा,जब दोनों ने मेहनत करके एक-एक पाई जोड़कर अमित को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया और आज जब अमित के ज़िम्मेदार व समझदार होने के बाद कुछ पल खुशियों व सुख चैन के जीने का सोचा तो अचानक से बाबूजी के सीढ़ियों से गिरने के बाद हुए ब्रेन हैमरेज ने फिर से उनके जीवन में एक संघर्ष का मोड़ ला खड़ा किया ,जहां अब उम्मीद भी ना थी बस था तो सिर्फ संघर्ष वो भी उनका खुद का खुद की साँसों से जिसे उन्हें अकेले ही लड़ना था।
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प्रविष्टि क्रमांक - 290
मोना कपूर
घिन
अरे! कहां गयी.. मैंने कल यही तो रखी थी...हे भगवान! इतनी महंगी अंगूठी..कहां चली गई..घर से खुद कैसे गायब हो सकती है.. बुदबुदाते हुए रूचि अपने कमरे में तेज़ी से चीज़ों की उथल पुथल कर अपनी सोने की खोयी हुई अंगूठी ढूंढ रही थी
क्या हुआ??क्या खो गया तुम्हारा? जो इतनी जल्दी जल्दी ढूंढ रही हो।
देखो ना रोहन, मैंने कल यहां अपनी सोने की अंगूठी रखी थी आज वो नहीं मिल रही, ना जाने कहां चली गई!
अरे! “मैडम साहिबा, यही कही होगी तुम ध्यान से देखो। अच्छा मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है तुम पहले मेरा नाश्ता लगा दो फिर मेरे जाने के बाद आराम से ढूंढती रहना और जब चमेली आंटी आएगी ना सफ़ाई करने उन्हें भी अपने साथ लगा लेना”।कहते हुए रोहित डाइनिंग टेबल पर जा बैठा।
उलझे मन से रोहित को नाश्ता करवा कर व उसके जाने के बाद रूचि फिर लग गयी अपनी अंगूठी ढूंढने कि तभी घड़ी पर नज़र पड़ी कि यह क्या दस बज गए और चमेली आंटी अभी तक आयी नहीं काम पर..आगे तो नौ बजे ही आ जाती है। कल शाम भी नहीं आई रसोई भी गंदी पड़ी हुई है। ना जाने क्या बात है। अभी दो महीने हुए नहीं लगे हुए और इनके ड्रामे शुरू। ऊपर से एक नयी मुसीबत कि घर में सामने पड़ी हुई चीज ही गायब हो गई, आज तक तो ऐसा नहीं हुआ। इससे पहले भी कामवाली लगी हुई थी मजाल हो एक भी चीज गायब हो जाए! मन में आये विचारों की सुनामी ने रूचि को सोचने पर मजबूर कर दिया था कि कही उसकी अंगूठी चमेली आंटी ने तो नहीं उठा ली। कल सुबह मुझे अंगूठी उतार कर टेबल पर रखते हुए देख भी रही थी। सच कहते हैं छोटे लोग होते ही ऐसे है इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। आने दो आज उसे,बताती हूं अच्छे से।।
गुस्से में लाल पीली हुई रूचि ने जब डोरबेल की आवाज़ सुन कर दरवाजा खोला तो सामने चमेली आंटी को खड़ा पाया इससे पहले रूचि कुछ बोलती चमेली आंटी पहले ही बोल पड़ी।”माफ करना,रूचि बेटा कल शाम नहीं आ पाई। छोटे बेटे की तबीयत बिगड़ गई थी उसको अस्पताल से दवाई दिलवाई इसीलिए आज भी लेट हो गई। तुम परेशान ना हो,मैं जल्दी से सारा काम कर देती हूं” कहते हुए चमेली आंटी रसोई में चली गई।
रसोई में बर्तन साफ कर जब चमेली आंटी कमरे में झाड़ू लगाने गयी तो रूचि भी पीछे पीछे आ गयी वह कुछ बोलती इससे पहले ही उसके पैर से एक चीज़ आकर टकरा गई। उसने देखा तो वो उसकी खोई हुई सोने की अंगूठी थी जो चमेली आंटी के झाड़ू लगाने के बाद बैड के नीचे से बाहर निकली थी।
रूचि कुछ कहती कि अचानक से उसकी पांच साल की बेटी बोल पड़ी। ”सॉरी मम्मा, कल अपनी गुड़ियों के साथ खेलते समय आपकी यह रिंग मुझसे नीचे गिर गयी थी, और मैं आपको बताना भूल गई थी”।
यह सारी बात जान निःशब्द सी खड़ी रूचि को अपनी छोटी सोच के कारण खुद से घिन हो रही थीं।
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आदरणीय महोदय, आपकी रचना सराहनीय है, आपकी सलाह, सुझाव हमारे लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए विनम्र निवेदन है कि लघुकथा क्रमांक 180 जिसका शीर्षक राशि रत्न है, http://www.rachanakar.org/2019/01/2019-180.html पर भी अपने बहुमूल्य सुझाव प्रेषित करने की कृपा कीजिए। कहते हैं कि कोई भी रचनाकार नहीं बल्कि रचना बड़ी होती है, अतएव सर्वश्रेष्ठ साहित्य दुनिया को पढ़ने को मिले, इसलिए आपके विचार/सुझाव/टिप्पणी जरूरी हैं। विश्वास है आपका मार्गदर्शन प्रस्तुत रचना को अवश्य भी प्राप्त होगा। अग्रिम धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचनाएं
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