लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 275 से 277 // नेहा शर्मा

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प्रविष्टि क्रमांक - 275 नेहा शर्मा रिश्ते ••••• आज कपिल चुपचाप छत पर बैठकर गहरी सोच में डूबा हुआ था। शहर से बड़े भाई साहब का फोन आया था कि ...

प्रविष्टि क्रमांक - 275


नेहा शर्मा

रिश्ते •••••

आज कपिल चुपचाप छत पर बैठकर गहरी सोच में डूबा हुआ था। शहर से बड़े भाई साहब का फोन आया था कि वे अपने पूरे परिवार के साथ गांव आ रहे हैं। पिताजी के चले जाने के बाद कभी भाई साहब और कपि के बीच सीधी मुंह बात तक नहीं हुई। फिर आज अचानक भाई साहब की गांव आने की बात ने कपिल को चिंता में डाल दिया। दो दिन बाद भाई साहब अपने परिवार के साथ गांव आते हैं। कपिल और पत्नी भाग्य परिवार की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। लेकिन इतना सब कुछ करते हुए भी कपिल भाई साहब से नजरे चुराता हुआ सा दिखता है। कपिल ने बचपन से अपने मन में यह भ्रम पाल रखा था कि भाई साहब हम सबको यहां गांव में छोड़कर वहां शहर में आलीशान जिंदगी जी रहे हैं। बड़ा बंगला है बड़ी गाड़ी है। सब कुछ तो है उनके पास। और हम यहां कम पैसों में अपना गुजर बसर कर रहे हैं। एक अच्छा खासा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस था। वह भी अब बंद होने की कगार पर है। चार-पांच दिन गांव में रहने के बाद भाई साहब वापस जाने के लिए अपना सामान गाड़ी में रखते हैं। लेकिन कपिल उन लोगों को गाड़ी तक छोड़े बिना ही अपने कमरे में बैठा हुआ टीवी देख रहा था। तभी भाई साहब कपिल के पास आते हैं और दो लाख रुपये कपिल के सामने रखते हुए कहते हैं कि यह लो कपिल पैसे और अपनी ट्रांसपोर्ट के बिजनेस को दोबारा से ऊंचाइयों तक पहुंचा कर पिताजी का नाम रोशन करो ।जो कि जब भी इस बिज़नेस का नाम आता है, तो पिता जी से जुड़ी हुई अनगिनत यादें ताजा हो जाती है। आखिर उनका यह तोहफा था तुम्हें।

कपिल- लेकिन भाई साहब आपको कैसे पता चला कि ट्रांसपोर्ट का बिजनेस घाटे में चल रहा है।

भाईसाहब - अरे पगले हमारा खून का रिश्ता है। जब तुम्हें कोई दुख होता है ना तो तुम्हारे उस दर्द का एहसास मुझे कोसों परे दूर तक तुम्हारी याद दिलाता है। हम चाहे कितने ही दूर क्यों ना हो। लेकिन हमारे दिल तो प्रेम की उस डोर से बंधे हुए हैं, जिसे माताजी- पिताजी ने अपने संस्कारों से हमारे दिलों में उपजाया है।

कपिल भाई साहब के पैरों में गिर जाता है। और भाई साहब से कहता है कि भाईसाहब मुझे माफ कर दीजिए। मैं बेवकूफ कभी आपके इस प्रेम को समझ ही नहीं पाया।

भाई साहब कपिल को गले लगाते हुए कहते हैं कि- कपिल ये जगहों का फासला कभी हमारे प्रेम और अपनेपन को कम नहीं कर पाएगा। हम सभी माला के मोतियों की तरह हैं। अगर एक भी मोती निकल गया तो माला टूट जाएगी।

कपिल को भाई साहब की बात समझ आ गई और कपिल आज पहली बार भाई साहब के घर से जाने पर दुखी होता हुआ दिखा ।

परिवार वाले दोनों भाईयों का इतना प्रेम देखकर प्रसन्नता से गदगद हो उठे।

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प्रविष्टि क्रमांक - 276

नेहा शर्मा

दूध का कर्ज ••••••••

शकुंतला दरवाजे पर से ही खड़ी होकर जोर से आवाज लगाती है - अरे ए जोगी। सुन तो जरा इधर आ।

जोगी- शकुंतला की बात सुने बिना ही दूध तोलने में मग्न था।

शकुंतला फिर से जोगी को अधिक तीव्र आवाज में- ए जोगी सुनता क्यों नहीं रे?  बहरा हो गया है क्या? जोगी- अरे हां- हां मैम साहेब अभी आते हैं।

जोगी अपनी साइकिल पर सवार होकर मेमसाहेब के सामने हाजिर हो जाता है । शकुंतला- क्यों रे जोगी बहुत दिनों से देख रही हूं ।तेरा लाया हुआ दूध दूध कम और पानी ज्यादा लगता है। तुझसे मैं कुछ कहती नहीं तो तूने तो यह रोज का ही बना लिया है। जोगी चुपचाप अपनी साइकिल के सहारे बैठा हुआ शकुंतला मैम साहब कि फटकारे सुनता रहा। लेकिन अचानक शकुंतला की निगाहें उसकी आंखों से से बहती हुई आंसुओं पर पड़ती है। शकुंतला चिंतित होकर पास ही में रखें एक बड़े से पत्थर पर बैठ जाती है।

शकुंतला- अरे ए जोगी हमेशा अपनी साइकिल पर गाने गाते हुए जोगी की आंखों में आज आंसू कैसे हैं।

जोगी- नहीं मैम साहब कुछ नहीं बस यह तो ऐसे ही।

शकुंतला- देख जोगी तू अपनी मैम साहब से बात छुपाएगा। चल बता क्या हुआ है। जोगी मैम साहेब के सामने सिसकता हुआ। मैम साहब क्या बताऊं मैं अब आपको मैं रोज रोज उन कर्जदार से परेशान हो गया हूं। वे लोग मुझे धमकी देते हैं कि अगर पैसे समय पर नहीं लौटाए तो मेरी सारी भैसे खोल ले जाएंगे। अब आप ही बताइए यह भैंसे ही तो मेरी रोजी-रोटी है। अगर यह भी चली गई तो मेरा क्या होगा।

शकुंतला- जल्दी से अंदर जाती है और ₹50000 की एक मोटी सी गड्डी लाकर जोगी के हाथ में थमा देती है। और कहती है ले जोगी यह ले पैसे और पीछा छूटा अपने कर्जदारों से।

जोगी- न, न नहीं मैम साहब।

शकुंतला- अरे जोगी इसे एहसान ना समझियो तेरे पास जब पैसे हो जाए तब लौटा दियो।

जोगी- मैम साहब के सामने हाथ जोड़ता हुआ। अपनी साइकिल पर सवार हो जाता है।

अगली सुबह जोगी साइकल पर ए रुक जा रे जाने वाले••••••••••••• गीत गुनगुनाते हुए मैम साहेब के सामने हाजिर होता है। और शुद्ध दूध में मैम साहेब के बर्तन में डालते हुए खिलखिलाता हुआ हंसता है।

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प्रविष्टि क्रमांक - 277

नेहा शर्मा

एक पेड़ की कहानी•••••••

प्रतिदिन की तरह ही रामदीन तड़के सुबह कुल्हाड़ी को अपने कंधे पर रखकर जंगल की तरफ चल पड़ता है। रामदीन लकड़हारा अपने जीविकोपार्जन के लिए पेड़ों की लकड़ी काटता है। और उनको बेचता है। आज रामदीन अपने ठीक सामने उस घने हरे-भरे पीपल के पेड़ को अपनी कुल्हाड़ी से छलनी करने की सोचता है। रामदीन किसी फुर्तीले सिंह की भांति पेड़ पर चढ़ जाता है। और अपनी नुकीली कुल्हाड़ी से उस पर वार करता है। रामदीन लकड़हारा लगाता पेड़ को कुल्हाड़ी से काट रहा था। रामदीन को अब पेड़ काटते हुए दोपहर हो चली थी। और अब रामदीन पेड़ से नीचे उतर कर बचे हुए आधे घने पेड़ की छांव में सुस्ताने लगता है।

तभी लकड़हारे रामदीन को कोई दर्द भरी आवाज में पुकारता है।

लकड़हारे रामदीन तुम यह क्या कर रहे हो? तुम रोज हम पेड़ों पर अपनी कुल्हाड़ी से वार कर कर हमारी छांव में आराम करते हो।

रामदीन- कौन कौन है जो इतना दुखी••••।

रामदीन मैं वही लाचार पीपल का पेड़ जिसे तुमने अपनी कुल्हाड़ी से घायल कर दिया है। हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है रामदीन, जो तुम रोज एक नई पेड़ का बलिदान लेने चले आते हो। हम निरंतर तुम मनुष्य को अपना सब कुछ भेंट स्वरूप दे देते हैं।लेकिन बदले में हमें क्या मिलता है रामदीन बस यह नुकीली कुल्हाड़ी का प्रहार, जो हमारी हरियाली को कुछ क्षणों में उजाड़ देती है। और बचता है तो सिर्फ एक निर्जीव लकड़ी का ठूठ। रामदीन तुम रोज अपने स्वार्थ के लिए इस इश्वर रुपी प्रकृति को नष्ट कर रहे हो। तुम हम हरे- भरे पेड़ों को काटकर अपनी जीविका चलाते हो ना। इससे तो अच्छा यह होगा रामदीन कि तुम फलदार वृक्ष लगाओ और उनके फलों को बेचकर अपना जीविकोपार्जन करो। इससे तुम रोज जो वृक्षों को काटकर प्रकृति विनाश के भागीदारी बन रहे हो। उस पाप से बच सकते हो। रामदीन तुम्हारी इस कुल्हाड़ी ने हमें बहुत कष्ट पहुंचाया है। अब बस करो रामदीन।

यह कहते हुए पूरे जंगल में सिसकियों की ध्वनि गूंज उठती है ।

रामदीन तत्काल विस्मित होकर नींद से उठ खड़ा होता है और अपने द्वारा प्रतिदिन काटे हुए वृक्षों के ठूंठ को देखने लगता है। मानो आज समस्त जंगल उससे कह रहा हो कि बस अब रुक जाओ रामदीन।

रामदीन कुल्हाड़ी उठाकर चुपचाप घर की तरफ चल पड़ता है। अगली सुबह ने रामदीन को एक नया जीवन दे दिया था। जिसमें रामदीन लकड़हारा रामदीन की जगह पेड़ों का संरक्षक रामदीन बन गया था।

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नेहा शर्मा ।


शिक्षा-- बी•ए स्नातक मे अध्ययनरत।

विधा - कहानी, कविता, आलेख।

प्रकाशित रचनाएँ-- शब्द सरोकार, जगमग दीप ज्योति, शुभ तारिका, लघुकथा कलश, रचनाकार एवं इंटरनेट पत्रिका में प्रकाशित रचना।

vpo - बीजवाड़ चौहान

अलवर (राजस्थान )


E-mail--sharmaneha7832@gmail .com

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रचनाकार: लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 275 से 277 // नेहा शर्मा
लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 275 से 277 // नेहा शर्मा
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