प्रविष्टि क्रमांक - 217 मोना कपूर मौनी पायल देखो सुधा, मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था और आज फिर कह रही हूं कि हमारे यहां ये नहीं चलेगा अगर...
प्रविष्टि क्रमांक - 217
मोना कपूर
मौनी पायल
देखो सुधा, मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था और आज फिर कह रही हूं कि हमारे यहां ये नहीं चलेगा अगर प्रिया ने अपना पति खोया है तो मैंने भी अपना जवान बेटा खोया है। अरे! समाज क्या कहेगा? कैसी औरत है जिसे पति के मरने के बाद विधवा होकर भी चैन नहीं है। अरे !उसके रंगहीन जीवन में अब दुबारा से रंगों की बरसात नहीं हो सकती, अब यह आभूषण, साज श्रृंगार उसके लिए नहीं है! मानती हूं कि वह तुम्हारी देवरानी बाद में लेकिन बहन पहले है, लेकिन मैं यह अनुमति कभी नहीं दूँगी शांति जी गुस्से में भड़कती हुई बोलने लगी।
लेकिन माँ, “एक पायल का ही तो सवाल है बस! क्या प्रिया के नसीब में इतना भी सुख नहीं कि वो अपने ही पति द्वारा उसकी शादी की पहली सालगिरह पर लायी हुई पायल को पहन सके? क्या गलत हैं इसमें?आप तो उसे अपनी बेटी बना कर लायी थी ना फिर अब क्या हो गया?और ये किस समाज की बात कर रही है आप शायद भूल गयी है आप कि इस समाज में या फिर यह कहूँ तो इस देश में रहने वाले लोगों की सुरक्षा करते हुए ही आपका बेटा शहीद हुए था! चार महीने बीतने को आये रोहित को गए हुए प्रिया तो मानो गुमसुम सी हो गयी..उसने खुद कुछ नहीं कहा,लेकिन एक औरत होने के नाते मुझे लगा कि शायद रोहित द्वारा प्रिया को इतने प्यार से दिया तोहफा उसे पहनने का हक मिलना चाहिए”! बाकी जो आप सही समझे कहते हुए सुधा उठी और अपने की तरफ चल दी इस बात से अंजान की प्रिया दरवाजे के पास खड़ी होकर सब सुन चुकी थी।
गुमसुम सी प्रिया सारी बातें सुनकर बिना कोई सवाल या जवाब किये अपने कमरे में जा दरवाजा बंद करके आईने के सामने बैठकर किस्मत के द्वारा खेलें हुए खेल से खुद के जीवन का तमाशा बनता देख रही थी!कही ना कही वो इस बात से अंजान ना थी कि ये समाज हो या फिर उसके खुद के करीबी रिश्ते ही क्यों न हो उसके भाग्य पर ग्रहण लगाने वाले इस कड़वे सच में सहानुभूति तो देंगे,दर्द पर मरहम तो लगाएंगे लेकिन साथ ही साथ ऐसी कटाक्ष रूपी बातें मरहम से जख्म को भरने की बजाय और गहरा करती जाएगी। कल तक जो श्रृंगार उसकी सुहागन होने की निशानी थी आज वो अभिशाप का रूप ले लेगा। उसकी बदकिस्मती की बातें तो हर कोई करेगा लेकिन कोई यह कह कर गर्व महसूस नहीं करवाएगा की उसके पति ने देश के लिए जान दी थी।
तभी बाहर के दरवाजे की बजी ड़ोर बेल से प्रिया सचेत हो गई और जल्दी से अपने आँसू पूछ कर रोहित के द्वारा दी गयी पायल को बक्से से निकाल अपने साड़ी के पल्लू में कसकर बांध कर रोहित के प्यार व एहसास को महसूस करती हुई अपने कमरे से निकल चल पड़ी दरवाजे को खोलने यह सोच कर कि रोहित की यह आखिरी निशानी अब मौनी पायल बन कर सदैव उसे रोहित के आसपास होने का एहसास दिलाती रहेगी व सदैव रोहित को उसमें ज़िंदा रखेगी।
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प्रविष्टि क्रमांक - 218
मोना कपूर
जुगनी
राम..राम,अम्मा..कैसी हो?? पचास साल की जुगनी अपने कपड़े का झोला अपने कंधे से उतारते हुए चारपाई पर बैठी अम्मा के पास रख कर बैठती हुई बोली..। मैं तो ठीक हूं जुगनी तू बड़े दिनों बाद दिखाई पड़ी सब ठीक तो है ना??बस अम्मा,कुछ दिनों से तबीयत खराब सी रह रही थी अब शरीर भी तो ढलने लगा है तो रोज़ कोई ना कोई नई बीमारी हो जावे...अब कर भी क्या सकती हूं! ये तो सही कह रही तू जुगनी एक तो अकेली ऊपर से औरत जात क्या क्या करेगी,समझ सकूँ मैं!
जुगनी झूठी मुस्कुराहट लिए झट से बोल पड़ी “अम्मा चाय ना पिलाओगी,इतने दिनों बाद आई हूं तुमसे मिलने”।अरी,कैसे ना पिलाऊंगी, रुक तो ज़रा कहते हुए अम्मा “गुंजा अरी ओ गुंजा कहां है तू ??ज़रा चाय नाश्ता लेकर तो आ”।।गुंजा...ये कौन है अम्मा, कोई रिश्तेदार आया है क्या?? जुगनी कुछ आगे पूछती उससे पहले ही एक सफ़ेद रंग की साड़ी में लिपटी एक ऐसी मासूम सी लड़की को पाया जो एक हाथ में चाय का बड़ा सा गिलास संभालने के साथ साथ दूसरे हाथ से अपने सिर के पल्लू को बार बार उतरने से बचाने की पूरी संभव कोशिश में लगी हुई थी क्योंकि शायद दोनों ही उसके लिए महत्वपूर्ण थे।। अम्मा जी चाय!कहते हुए गुंजा चाय का गिलास चारपाई के पास पड़े लकड़ी के तख्त पर रख तुरंत जुगनी के पैर छू कर प्रणाम करने लगी!जुगनी के कंपकंपाते हाथ मन में अजीब सी घबराहट के चलते आशीर्वाद देने को उठे भी लेकिन गुंजा के सिर तक पुहंच ना सके।।
अम्मा, ये कौन हैं तुरंत जुगनी ने पूछा?? अरे ये, ये तो मेरे जगन की ब्याहता है!क्या बात कर दी तुमने अम्मा...जगन तो दो साल पहले ही हमें छोड़ चल बसा था फिर ये गुंजा?? जुगनी कुछ आगे पूछती अम्मा बोल पड़ी,अरी जुगनी! जगन और गुंजा का ब्याह बचपन में ही हो गया था अब जगन तो रहा नहीं लेकिन गुंजा ब्याहता तो थी ना उसकी अब हमारी बहू व जिम्मेदारी है इसीलिए पिछले हफ्ते गौना कर लाये उसका..अगर जगन होता तो वो अपने अकेले बूढ़े अम्मा, बाऊजी को संभालता ना अब वो तो रहा नहीं तो उसकी जिम्मेदारी उसकी ब्याहता ही तो उठाएगी ना??वैसे भी हम औरतों की किस्मत तो ऐसी ही होवें।
खैर छोड़ इन सब बातों को तू चाय पी..सुन्न सी पड़ी जुगनी को हाथ से हिलाते हुए अम्मा बोली! ना अम्मा अब मन ना कर रहा चाय पीने का दिल कच्चा सा लागे फिर कभी पी लूंगी अब चलती हूं कहते हुए जुगनी अपना झोला लेकर निकल पड़ी अपने घर की ओर !निःशब्द सी जुगनी को आज गुंजा में अपना अतीत दिखाई दे गया था कि कैसे चालीस साल पहले जुगनी बाल विवाह के जाल में फंसकर अपने ब्याहता की आकस्मिक निधन के बाद उसकी विधवा बन कर ससुराल आकर,ज़िम्मेदारियों के बोझ तले ऐसी दबी कि बचपन से ही जीवन का हर रंग सफेद रंग में बदल गया! नफरत हो गयी थी उसे समाज की उन कुरीतियों से जो आज गुंजा को एक नई जुगनी बना रही थी।
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बहुत खूब बेहतरीन लघुकथाएँ
जवाब देंहटाएंBahut acchi katha
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