प्रविष्टि क्रमांक - 113 दीपक ‘ दानिश’ अकेले लोग .... स्टेडियम में मां-बेटे का अकेलापन मुझे कुछ अजीब-सा लगा । लेकिन यह मेरी फिक्र थ...
प्रविष्टि क्रमांक - 113
दीपक ‘ दानिश’
अकेले लोग ....
स्टेडियम में मां-बेटे का अकेलापन मुझे कुछ अजीब-सा लगा । लेकिन यह मेरी फिक्र थी । उस औरत की प्यार भरी आंखों में तो बस वह बच्चा था । वह टकटकी लगाए उसके एकाकी खेल को देख रही थी , सुबह के सुंदर परिदृश्य और पंछियों के सुरीले कलरव से एकदम बेखबर .....
इस मां की आंखों में चमकती ममता और उसके अकेलेपन ने हृदय में बचपन के साथी शरीफ की बेवा मां की यादें ताज़ा कर दीं । शरीफ और उसकी अम्मी हमारे घर के पास एक छोटे से झुग्गी-नुमा घर में रहते थे । अम्मी पास-पड़ोस के घरों में खाना बनाने का काम करके अपने बच्चे का लालन-पालन करती थी । उनके घर शायद ही कोई जाता रहा हो-- एक गरीब खाना बनाने वाली के घर कौन भला आदमी जाता और कौन अपने बच्चों को भेजता ?
पर उस भली औरत की जीवन के प्रति आस्था पर समाज की यह उदासीनता कभी कोई छाप न छोड़ सकी । अपने एकाकी जीवन में वह बड़े मनोयोग से रहा करती थी ।
शरीफ के लिए उसकी आंखों में बड़े सपने थे । और शायद वह उन्हीं के सहारे जी रही थी । उसके श्रम और सपनों ने कक्षा चार से ही अभिजात्यों के स्कूल में शरीफ को मेरा सहपाठी बना दिया था । शरीफ का रुझान खेल-कूद में था, और मुझे याद है कि शरीफ को उसकी पहली हाकी स्टिक उसकी गरीब मां ने पैंतालीस रुपयों में उस समय ला दी थी जब कि वह महीने में मुश्किल से चालीस रुपये ही कमा पाती थी ।
कालांतर में शरीफ राष्ट्रीय स्तर का हाकी खिलाड़ी बना और खूब नाम कमाया। उसकी मां ने अपनी ममत्व-साधना के सुपरिणाम देखे; और फिर बहू का मुख देखकर दुनिया से चली गई .....
मैं शरीफ से जब भी मिलता हूं , उसकी अम्मी की याद ताज़ा हो उठती है। वह जीवन के प्रति प्रेमपूर्ण और आस्थावान संकल्प , त्याग और एकांत-आनंद की प्रतिमूर्ति थी।
शरीफ की अम्मी के-से लोग अकेले होकर भी शायद अकेले नहीं होते । उनके संकल्प , संस्कार और स्वाभिमान उनके साथ चलते हैं ।
इस सुबह , उस अकेली मां और उसके अकेले खेलते बच्चे और उनके पीछे आईं स्मृतियों ने हृदय में एक गीत के यह बोल उकेर दिये हैं –
है फूलों के जलवों का कैसा सिला
न जिसमें कहीं कोई शिकवा , गिला
जो जाना तो लगता है जैसे कोई
मुझे हर पहर जानता है .....
करूं खुद को जैसे कि हैं रूप में
दरख्तों के साए कड़ी धूप में
जो सोचा तो देखा कि मेरे लिए
भी यूं ही कोई सोचता है .....
हो कोई भी , बस मुस्कुराता रहे
जहां भी हो , कुछ गुनगुनाता रहे
जो मांगा , तो पाया कि इक गीत में
मुझे भी कोई मांगता है .....
वो क्या है जो हर दिल का एहसास है
है आंखों में सबकी , तो क्या आस है
जो पूछा , लगा दिल में आकार कोई
मेरा हाले-दिल पूछता है .....
हो कैसा भी घर , हो तो फिरदौस हो
जो हो प्यार दिल में तो बेलौस हो
जो चाहा , तो पाया कि है पास में
कोई जो मुझे चाहता है .....
है आखिर भरम क्या किसी चोट का
है आखिर करम क्या किसी ओट का
जो देखा , तो देखा कि उस पल कोई
मुझे प्यार से देखता है .....
और मैं शायद फिर से शरीफ और उसकी अम्मी को देख आया हूं ....
दीपक ‘ दानिश’
परिचय .
नाम : दीपक 'दानिश'
पता : 839 मालवीय नगर , इलाहाबाद , पिन 211003.
ई मेल : deepakdanish9562@gmail.com
जन्म
इलाहाबाद,उ.प्र.
दि.09.05.1962
शिक्षा
एम.ए.(आधुनिक इतिहास) ;इलाहाबाद वि. वि.;
एम.बी.ए.(वित्त),इग्नू ।
संप्रति
एन.टी.पी.सी.(लि.),मेजा में अपर महा प्रबंधक (वित्त) के पद पर कार्यरत ।
साहित्य-सेवा
हिन्दी व उर्दू में काव्य-सृजन , विशेषकर ग़ज़ल , नज़्म , क्षणिकाएँ व हाइकु ।
रचनाएं : 'साहित्य-अमृत', 'अभिनव इमरोज़' व 'ग़ज़ल के बहाने' (नई दिल्ली);'संयोग-साहित्य'(मुंबई);'अभिनव-प्रयास'(अलीगढ़);'अर्बाबे-क़लम' (देवास); 'नया-दौर' व ‘लारैब’ (उर्दू-लखनऊ); 'सुख़नवर' , 'रिसाल-ए-इंसानियत' व 'कारवाने-अदब ' -उर्दू (भोपाल);'अट्टहास' (लखनऊ); 'गोलकोण्डा दर्पण';'आंध्र-प्रदेश-उर्दू' व ‘ तेलंगाना-उर्दू‘(हैदराबाद); 'प्रतिश्रुति'; ' शेष ' व 'कृति ओर'(जोधपुर);'सरस्वती सुमन'(देहरादून);’शाइर’(उर्दू-मुंबई); ‘रूहे-अदब’ व ‘फ़िक्रो-तहरीर’ (उर्दू-कोलकाता);’सबक़े-उर्दू’(उर्दू-भदोही,उ.प्र.); 'जहांनुमा'(गंगोह,उ.प्र.); ‘ नव-पल्लव’(लखीमपुर, उ.प्र.) ;’अदबनामा’ (जालौन, उ.प्र.);’बालवाणी’(लखनऊ); ‘राजस्थान पत्रिका (जयपुर); ‘ अमर उजाला’ (नई दिल्ली) तथा 'परती पलार'(अररिया,बिहार) आदि पत्र- पत्रिकाओं तथा अनेक काव्य-संकलनों में प्रकाशित ।
आकाशवाणी,ई.टी.वी-उर्दू तथा अखिल- भारतीय व आंचलिक मंचों से हिन्दी तथा उर्दू काव्य-पाठ ।
विशेष
अपने संस्थान की साहित्यिक संस्थाओं- "हिन्दी-साहित्य साधना" तथा "बज़्मे-अदब" की
अध्यक्षता तथा इनके माध्यम से स्थानीय व आंचलिक कवि-गोष्ठियों,कवि-सम्मेलनों
तथा अखिल-भारतीय मुशायरों का आयोजन तथा उर्दू व हिन्दी भाषाओं तथा साहित्य का प्रचार-प्रसार ।
वर्ष 2008 में "बज़्मे-अदब",शक्तिनगर की स्मारिका ' अहद ' के प्रकाशन में संपादकीय भूमिका ।
अन्य
समीक्षार्थ प्राप्त पुस्तकों पर समीक्षा-लेखन ।
समीक्षाएं'सम्तुल्य'(उज्जैन);'पालिका-समाचार'(उर्दू-नई-दिल्ली);अर्बाबे-क़लम(देवास);
'सुख़नवर' व ‘ रिसाला:-ए-इंसानियत’ (भोपाल);'गोलकुण्डा दर्पण'(हैदराबाद); 'कृति ओर'(जोधपुर); तथा 'आवाज़े-मुल्क'(उर्दू-वाराणसी) में प्रकाशित ।
अपने संस्थान के सांस्कृतिक-कार्यक्रमों के लिए गीतों की रचना व नाट्य-लेखन ।
दीपक ' दानिश '
COMMENTS