कहानी - आखिर ऐसा हुआ क्या था... - डॉ आर0एस0खरे

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ये तो कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी कि कोई घर छोड़कर ही चला जाये । यूँ तो हर रोज छोटी-मोटी कहासुनी होती रहती थी, पर यह किस घर में नहीं होता । यह क...

ये तो कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी कि कोई घर छोड़कर ही चला जाये । यूँ तो हर रोज छोटी-मोटी कहासुनी होती रहती थी, पर यह किस घर में नहीं होता । यह कहावत भी तो वही कहा करती थी कि जहाँ चार बर्तन होंगे, वहाँ खड़कने की आवाज तो होगी ही । जब राजेश कभी इसकी किसी बात पर क्रोधित हो उठता, तब उसका ये डायलाग अपने आप निकल आता । वैसे अधिकांश समय तो राजेश की प्रतिक्रिया मुँह फुलाकर कुछ समय के लिए चुप हो जाने की रहा करती थी, उससे थोड़े समय के लिए भले उसे ही तनाव में रहना पड़े, पर घर में शांति तो छा जाती और वेमतलब की बहस बाजी रूक जाती ।

इक्के -दुक्के अवसरों पर ही राजेश ने तीखा पलटवार किया था । ऐसा क्यों किया था वह कुछ समय बाद स्वयं सोचने लग जाता । सोचते समय प्रारंभ में तो लगता कि उसके इस तरह के आचरण में वह कहीं से भी गलत नहीं था, लेकिन शोभा के तीखे तर्कों के आगे वह थोड़ी ही देर में धराशायी होने लगता और फिर विचार करने लगता कि नहीं, वह विशुद्ध रूप से पूर्णतः सही तो नहीं ही था। सौ अवसरों में से निन्न्यानवे अवसर ऐसे ही निकलते, जब वह पहले तो फन उठाता, फिर पीछे से दुबककर अपने बिल में घुस जाता ।

आज शोभा से हुई बहस बेमतलब की बहस थी जिसका उन दोनों से ही कोई लेना देना नहीं था । किसी तीसरे के लिए यह कहासुनी इतनी बढ़ जायेगी, कि शोभा बिना बताए घर छोड़कर चली जायेगी ? वह हैरान था। बहस तो हुई थी वह स्वीकारता है, दोनों ने गुस्से में शब्दों के द्वारा एक दूसरे को जलील भी किया था, यह भी सत्य है, आपसी तनातनी कुछ ज्यादा ही उभरकर आ गई थी, इससे भी इनकार नहीं, लेकिन इस पर घर छोड़कर चले चले जाना ? ये कौन से बात हुई ?

घर छोड़कर चले जाने पर उसे स्मरण हो आया कि, उसने भी एक बार यही अस्त्र आजमाया था और उसे इस बात पर हार्दिक आत्म संतोष हुआ था कि उस रात शोभा बेचैन होकर पूरी रात रोती रही थी, फिर उसने घबराकर बेटी को यू0एस0 में तथा बेटे को यू0के0 में फोन पर मेरे घर छोड़कर चले जाने के बारे में बता दिया था, जिससे दोनों मुझसे महीनों नाराज रहे थे कि मैंने शादी के तीस बाल बाद भी माँ को इतना परेशान किया । अब तो गाहे- बगाहे वे शोभा के सामने मेरी छज्जियाँ उड़ाने लगते हैं कि पापा! अब हरिद्वार के लिए कब प्रस्थान कर रहे हो सन्यासी बनने ?

बच्चों को कौन समझाये कि परिवार छोड़कर सन्यासी बन जाने का निर्णय इतना आसान नहीं होता । क्रोध में आदमी कुछ भी सोच ले पर गुस्सा ठंडा पड़ते ही वापस अपने दड़बे में ही लौट आता है । वे महापुरूष ही होते हैं जो अपने ऐसे निर्णय पर अडिग रहते हैं, साधारण मनुष्य तो आसानी से सन्यासी नहीं बन सकता ।

क्या उस दिन की बात भी इतनी बड़ी थी कि मैं बिना बताए घर छोड़कर चला गया था ? राजेश उस दिन को स्मरण करने लगा कि झगड़े की “शुरूआत हुई कैसे थी ? आफिस से लौटते समय वह रास्ते में ही था कि नरेन्द्र मामा जी का फोन आया था कि वे और मामी जी भोपाल आये हुए हैं, शाम को सात बजे तक उसके घर आयेंगे । रात में वहीं रूकेंगे और कल की ट्रेन से वापस रायपुर लौट जायेंगे । नरेन्द्र मामा जी थे तो रिश्ते में मामा पर हम दोनों हम उम्र होने से दोस्त ज्यादा थे, मामा- भान्जे कम । बचपन से लेकर नौकरी लगने तक हम दोनों एक ही स्कूल -कालेज में साथ पढ़े थे और तब तक साथ ही मस्ती करते रहे थे जब तक कि नौकरी लग जाने से दोनों अलग- अलग शहरों में नहीं पहुँच गए । फिर हम दोनेां की शादियाँ हुई और अपनी अपनी दुनियाँ में खो गए । नरेन्द्र मामा पिछले माह ही सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे और मेरा अगले माह रिटायरमेंट का समय आ रहा था। घर पहुँचकर मैंने शोभा को बताया ही था कि नरेन्द्र मामा, ज्योति मामी जी के साथ अभी आने वाले हैं, रात में यहीं रूकेंगे और कल रायपुर वापस जायेंगे । पर यह सुनते ही उसका पारा चढ़ गया और ज्वालामुखी फूट पड़ा था -

“आपको पता था कि शाम सात बजे की टेªन से मेरे मम्मी-पापा आ रहे हैं, उनके रूकने के लिए पूरे दिन भर मैंने सफाई करके ये एक कमरा तैयार किया, अब मामा जी और मामी जी को कहाँ रूकायेंगे ? आपको मामाजी को “हाँ“ कहने के पहले मुझसे पूछ तो लेना था। अभी तुरंत आप उन्हें मना करिये, उनकी वहिन भी तो इसी “शहर में हैं वे वहाँ भी तो रूक सकते हैं ।”

मैंने शोभा को समझाने का प्रयास किया- “कितने वर्षों बाद तो वे लोग आ रहे हैं, उन्होंने अपने से होकर स्वयं ही बोल दिया कि रात में यहीं रूकेंगे, तो अचानक उन्हें मना करने की हिम्मत नहीं कर पाया, अब किसी तरह एक रात एडजस्ट कर लेंगे। मैं और मामा जी ड्राइंगरूम में लेट जायेंगे, तुम और मामी जी अपने बेडरूम में और मम्मी-पापा गेस्ट रूम में सो जायेंगे ।”

लेकिन शोभा अड़ गई थी कि नहीं, मैं उनको अभी बताऊँ कि मदर इन्लॉ , फारद इन्लॉ के अचानक आ जाने से उनको रूका पाना संभव नहीं होगा । इसी बात को लेकर बहस इतनी बढ़ गई थी कि मैंने गुस्से में कार निकाली थी और मोबाइल स्विच -आॅफ कर घर से निकल गया था। देर तक तालाब के किनारे बैठा रहा था लब तक कि अंधियारा नहीं गहरा गया था, फिर रेल्वे स्टेशन चला गया था जहाँ आने-जाने वाली टेªेनों और हांफती- भागती भीड़ को देखता रहा था। और अंत में होटल में रूम लेकर रात वहीं रूक गया था । क्रोध अभी भी शांत नहीं हुआ था और अनेक विचार आते जाते रहे थे । सुसाइड करने जैसा कोई खयाल तो नहीं आया था पर ये जरूर सोचता रहा था कि लोग ऐसी ही उत्तेजना (आवेश) में आकर सुसाइड करने जैसा निर्णय ले लेते होंगे ।

हाँ, सच कहें तो हरिद्वार या काशी जाकर किसी आश्रम में बस जाने का विचार जरूर आया था पर नींद की झपकी पूरी होने पर जब सुबह आंख खुली तो क्रोध शांत हो चुका था और दफ्तर के बहुत सारे पेंडिंग वर्क याद आने लगे थे ।

घर पहुँचा तो शोभा पूजा में भगवान के सामने हाथ जोड़े बैठी थी और उसके मम्मी पापा मार्निंग-वाक पर गये हुए थे । बेडरूम में पहुँचते ही शोभा उठकर आ गई और फिर देर तक आंसुओं की नदियाँ बहाती रही थी, जब तक कि मैने अपनी गलती मानकार माफी नहीं मांग ही थी । थोड़ी देर में यू0एस0 से बेटी का फोन आ गया था और उसने मुझे डांट लगाते हुए लम्बा सा लेक्चर पिला दिया था ।

मैं मामा जी को फोन लगाकर माफी मांगने की सोच ही रहा था कि उन्हीं का कॉल आ गया था । पहले तो उन्होंने उलाहना दी, फिर खुद ही बोले- “ मैं समझ गया था कि ऑफिस का कोई अर्जेन्ट काम आ गया होगा । मंत्री जी या बॉस के पास होगे तभी मोबाइल स्विच आफ कर लिया होगा । फिर हम लोग अनु दीदी के यहाँ चले आये थे । ज्योति ने शोभा से बात की तब पता चला कि तुम्हारा कोई विधानसभा प्रश्न चर्चा में लग गया है, जिससे मंत्री जी के यहाँ जाना पड़ा तुम्हें । अच्छा, हम लोग तो दोपहर की ट्रेन से वापस निकल जायेंगे, रायपुर, अगर अभी तुम्हारे पास वक्त हो तो हम लोग आधा घंटे में आ जाते हैं, फिर मिलकर तुम आफिस निकल जाना ।” शोभा पास ही खड़ी सुन रही थी, तो उसने मुझसे मोबाइल लेते हुए कहा- “ मामा जी, आपकी ट्रेन तो अब दोपहर में तीन पचास पर है, अतः दोपहर का खाना साथ ही खायेंगे, ये भी एक बजे तक दफ्तर से आ जायेंगे, सभी लोग लंच साथ में लेंगे ।”

नरेन्द्र मामा जी ने सहमति व्यक्त कर दी थी, बोले “ठीक है, मैं अपना सामान साथ लेकर ही आ जाऊँगा तो लंच के बाद राजेश मुझे स्टेशन छोड़ते हुए दफ्तर निकल जायेगा।”

मैं सोचने लगा, इतनी बड़ी समस्या जिसके लिए मैं घर छोड़कर चला गया था, उसका समाधान इतनी आसानी से हो रहा है कि किसी को भी बुरा नहीं लगा और उसी ने इतनी लाइटली लिया, और शोभा की प्रत्युत्पन्नमति भरी समझदारी कि ’सभी लंच साथ कर लेंगे’। उसे अपने आप पर कोफ्त हुई थी कि कल मैंने जो किया वह उपयुक्त नहीं था । मैं सोचने लगा कि औरतें बड़ी-बड़ी घरेलू समस्याएँ कैसे चुटकी बजाते हल कर लेती हैं, यह अबूझ पहेली ही है हम पुरूषों के लिए ?

पर आज जो शोभा ने किया क्या वह उपयुक्त था ? उसने तो छोटी से बात को बतंगड़ बना दिया, तिल का ताड़ खड़ा कर दिया । बात सीमा न लांघ जाए, इसीलिए मैंने अपनी घड़ी उठाई थी और ईवनिंग-वाक के लिए निकल गया था । यद्यपि उस समय शाम के पांच ही बजे थे जबकि घूमने जाने का मेरा समय छह बजे क है । एक घंटे बाद लोटकर आया तो दरवाजे पर ताला लगा था और उसमें कागज का एक पुर्जा फंसा था। कागल खोला तो शोभा की राइटिंग में लिखा था, “मैं हमेशा के लिए जा रही हूँ, चाबी तुलसी के गमले के नीचे रखी है ।”

थोड़ी देर तक तो आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। ताले को फिर से देखा, फिर तुलसी का गमला हटाया तो नीचे चाबी रखी मिली।

ताला खोलकर अंदर प्रवेश किया तो सब कुछ यथावत मिला । उसका सूटकेश अपनी जगह रखा था, सभी बैग भी यथा स्थान थे । तो क्या मेरी तरह ही बिना कुछ सामान लिए चली गई है। पर मैं तो अपनी गाड़ी लेकर गया था और वालेट मेरे साथ था । फिर आदमी तो कहीं भी जा सकता है, कही भी रात काट सकता है, पर औरत जात के लिए क्या यह आसान है ?

रात बढ़ने लगी, तो थोड़ी चिन्ता हुई । मोबाइल लगातार स्विच आफ ही आ रहा था । किससे पूछूँ, कहाँ जाऊँ ? जिससे भी पूछूँगा , वही इस तरह की बातें करने लगेगा । सोचेगा कि ये कैसे बुड्ढे- बुढ़िया है? इस उम्र में भी आपस में इस तरह झगड़ते है ? बेटे- बेटी को विदेश में फोन लगाकर पूछें तो अभी मुझे ही डपट पड़ेगी और दोनों परेशान हो जाएँगे ।

रिश्तेदारों के यहाँ तो वह जा नहीं सकती, वे उलटे उसे ही दोष देंगे। तो फिर क्या किसी मंदिर में बैठी होगी ? अब मंदिरों के पट बंद होने का समय भी हो चला है, रात के दस बजने वाले हैं ।

क्या थाने में जाकर एफ.आई.आर. दर्ज कराऊँ । क्या-क्या, कैसे-कैसे प्रश्न पूछेगा? शर्मसार पहले कर देंगे, खोजबीन की बात तो बाद की बात है ।

हार थककर पहले बेटी को फिर बेटे को बताया तो दोनों पहले तो शॉक्ड हो गये, उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ , फिर बेटी ने रोते-रोते काफी भला बुरा कहा और बेटे ने बेहद गुस्से में । बेटे ने पांच मिनट ही आन लाईन एफ.आई.आर. दर्ज करा दी और अपने दोस्त, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मलय को सूचित कर दिया । दस मिनट में ही पुलिस थाने का इंस्पेक्टर अपनी टीम सहित सायरन बजाते हुए जी से घर आ गया ।

-अंकल हुआ क्या था ? आपने आंटी पर हाथ उठाया होगा तभी गुस्से में उन्होंने ऐसा किया होगा ? पूरा घटना सही-सही बताइये तभी हम लोग आपकी मदद कर पायेंगे । आंटी के हाल के दो- तीन फोटो दीजिए सभी थानों को सर्कुलेट करना हैं । यहाँ शहर में आपके और आंटी के दोस्त रिश्तेदार हैं, - सभी के डिटेल एड्रेस और कांटेक्ट नम्बर बताइये । पहले भी कभी ऐसा हुआ है कि घर छोड़कर गई हों ? और कहाँ-कहाँ जा सकती है, सोचकर बताइये । उनके मोबाइल का लास्ट लोकेशन तो शाम पांच तीस का यहीं का आ रहा है, उसके बाद से मोबाइल बंद है । क्या ऐसी कोई गम्भीर बीमारी थी जिससे परेशान रही हों ? कोई मानसिक बीमारी, जैसे रात में नींद में चलने जैसी ?

उसी समय इंस्पेक्टर के बॉकी-टॉकी पर सूचना आई कि, किसी महिला ने राजा भोज सेतु से बड़े तालाब में छलांग लगाई है। गोताखोरों को बता दिया गया है । इंस्पेक्टर ने मेरे चेहरे को गौर से देखा तो मेरा दिल बैठने लगा, क्या शोभा एक छोटी सी बात पर इस हद तक जा सकती है ? वो तो कहा करती थी कि जब तक नाती-पोतों को गोद में नहीं खिला लूँगी इस दुनिया से जाऊँगी नहीं । अभी तो बेटे -बेटी की शादी की तैयारियों में लगी रहती थी ।

साहस जुटाकर इंस्पेक्टर से पूछना चाहा कि जो औरत बड़े तालाब में कूदी है, क्या उम्र होगी उसकी ? उसने क्या कपड़े पहन रखे हैं ? पर मेरे कुछ पूछने के पहले ही इंस्पेक्टर ने पूछा -

-अंकल क्या आंटी सुसाइड करने की घमकी दिया करती थी ? कभी कहा हो कि बड़े तालाब में कूद कर जान दे दूँगी ? कोई सुसाइड नोट छोड़ा हो ?

-बड़ी मुश्किल में दबी आवाज में ’नहीं ’ निकला । चश्मा साफ करने के बहाने से आँखों के गीले हो गये कोरों को पोंछा ।

-अंकल आप परेशान मत होइये । आपकेा दुःखी करने के लिए ये सब नहीं पूछ रहा हूँ, हम लोग थोड़ी सी सही जानकारी मिलने पर अपनी खोज को सही दिशा दे सकते हैं ।

-“नहीं बेटे । मैं गलत क्यूँ बोलूँगा । मेरे मुँह से अनाया ही बेटा शब्द निकल गया था, पता नहीं ये उसके अंकल कहने के जवाब में था या उसके इतने सहृदय होने से । सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि पुलिस इंस्पेक्टर इतना मानवीयता से भरा इंसान है या बेटे के दोस्त ए0सी0पी0 के कारण इतना विनम्र व्यवहार कर रहा है ।

वॉकी-टॉकी पर उसी समय फिर आवाज गूँजी -“गोताखोरों ने महिला की लाश निकाल ली है । डेथ हो चुकी है । ”

-एक बार फिर से दिल की धड़कन तेज हो गई । दिल कड़ा करके इस बार पूछ ही लिया- इंस्पेक्टर साहब! जिस औरत की लाश मिली है उसकी उम्र क्या है ? क्या कपड़े पहने हैं ?

-परेशान मत होइये अभी मोबाइल पर फोटो सर्कुलेट हो जायेगी , तो आपको भी दिखाते हैं । लीजिए आ गई फोटो । डिजिटल वर्ल्ड का यही तो कमाल है । यह तो तीस-पैंतीस वर्ष की लड़की लग रही है, जींस टॉप में है ।

राजेश को बड़ी राहत मिली कि वह उसकी शोभा नहीं थी ।

--


डॉ0 आर0 एस0 खरे

11, सियाराम परिसर

सौम्या एनक्लेव, चूना-भट्टी

भोपाल- 462016

Khare_rs1@yahoo.co.in

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रचनाकार: कहानी - आखिर ऐसा हुआ क्या था... - डॉ आर0एस0खरे
कहानी - आखिर ऐसा हुआ क्या था... - डॉ आर0एस0खरे
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