कहानी ( जीवनार्थ) "साहस की आँधी" // वन्दना पुणतांबेकर

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शादी के मण्डप में गाने औऱ डीजे की धूम से वहां का माहौल बड़ा ही शोर-गुल से भरा था . मीना ने स्वागत द्वार से देखा और अतिथियों की भीड़ को चीरते ह...

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शादी के मण्डप में गाने औऱ डीजे की धूम से वहां का माहौल बड़ा ही शोर-गुल से भरा था . मीना ने स्वागत द्वार से देखा और अतिथियों की भीड़ को चीरते हुए वह लड़के के पिता के पास पहुँची. उसके पीछे सुषमा ,माला,कुमुद भी उसके साथ पहुँच गई. शादी के रस्मों की तैयारियां चल र लड़के के पिता ने इनको देखा तो थोड़े नर्वस हो गए. तभी मीना ने जोर-जोर से ताली बजाकर हाय, हाय की ऊंची आवाज में बोलने लगी.
इनकी आवाजों को सुनकर डीजे की आवाज बंद हो गई. मंडप में एकदम सन्नाटा छा गया। मीना ने जो नेक मांगा था. वह लड़के के पिता ने देने से इंकार किया तो ,उन तीनों ने अपने ही अंदाज में नेक मांगने का तरीका अपनाया. लड़के की शादी में जो नेक मिलना था. आज वह उम्मीद से कम था. वह चारों शादी के मंडप से नेक लेकर लौट रही थी. तभी अचानक तेज बारिश होने लगी .भागते हुए वह चारों एक शेड के नीचे जा पहुँची. रात गहरा गई थी.


तभी मीना ने अपना गुस्सा कुमुद पर निकला . वहीं सड़क पर उस पर चिल्लाने लगी.
बोली..."तुम हमारी बिरादरी में एक धब्बा हो,तुमने अभी तक अपने बिरादरी के तौर-तरीके नहीं सीखे. यदि तुम अगली बार भी इसी तरह व्यवहार करोगी, तो में तुम्हें इस बिरादरी से बर्खास्त कर दूँगी. कुमुद के कमरे की चाबी उसके कदमों में फेंककर तीनों रिक्शा पकड़ कर चली गई.


चीरता हुआ सन्नाटा कुमुद के कानों में कुछ अनकही सी दास्तां बयां कर रहा था. सिसकती धड़कनों से उसने चाबी उठाई. और बारिश थमने का इंतजार करने लगी.
कई सालों से वह मीना की धमकियां सहते-सहते तंग आ चुकी थी. यह उसके जिंदगी की एक सबसे बड़ी मजबूरी थी. कि वह किन्नरों के रंग-ढंग को नहीं अपना पा रही थी.


कुमुद तन से तो किन्नर थी। पर मन और भावनाओं से एक अति संवेदनशील औरत थीं. उसे यह सब करना अच्छा नहीं लगता था . सात साल की उम्र में ही उसे अपने परिवार से दूर होकर इस बिरादरी में आना पड़ा. जब उसकी माँ को पता चला कि वह एक सामान्य लड़की नहीं है. फिर भी माँ ने पिता से छुपाकर कुमुद की सात साल तक परवरिश की। माँ नहीं चाहती थी. कि कुमुद उससे अलग हो. मगर समाज और परिवार के सामने उसे अपना निर्णय बदलना पड़ा. औऱ कुमुद को किन्नरों के समाज में भेजना पड़ा. वक़्त की मार ने कुमुद को ओर भी तोड़ दिया था. सात साल की उम्र से उसे किन्नर समाज में रहने पर मजबूर कर दिया था. बचपन से ही इस बिरादरी में छोड़ देते तो आज शायद उसकी दुनिया भी सुषमा मीना जैसी होती .


वह अकेली वही खड़ी बारिश रुकने का इंतजार करने लगी.
रात बहुत गहरा गईं थी.,कुमुद को अपनी करनी पर अब मलाल हो रहा था. वह सोच रही थी. कि काश वह भी इनके साथ घर चली जाती तो उसे अभी अकेला नहीं रहना पड़ता..
मौसम ने बड़ा ही भयानक रुख ले लिया था. बारिश और बिजली की चमक लगातार अपना क्रोध रूप दिखा रही थी.
कुमुद को कोई रिक्शे वाला भी नजर नहीं आ रहा था. तेज बारिश और रात गहरा ने की वजह से सड़कों पर सन्नाटा पसर गया था. वह उसी शेड के नीचे बारिश रुकने का इंतजार करने लगी.
तभी एक कार आकर रुकी .कुमुद ने उससे लिफ्ट मांगी. कार का दरवाजा खोल कर वह अंदर बैठ गई भीगी होने के कारण सीट पर भी नमी आ गई थी. तभी कार चालक के उससे पूछा....,"कहां जाना है मैडम....?
उसने अपना पता बताया ,जब उसे पता चला कि उसने एक किन्नर को लिफ्ट दी है. तो उसने यह बोल कर उतार दिया कि वह उस राह पर नहीं जा रहा है.


बारिश अब थम सी गई थी. कुमुद अंधेरे को चीरते हुए पैदल ही घर की ओर चल पड़ी. तभी उसके कानों में किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. उसने देखा कि पास ही कूड़े के ठेर में कुछ हलचल दिखाई दी.
पहले तो वह घबरा गई ,मगर हिम्मत से पास जाकर देखा तो वहां एक नवजात शिशु कपड़े में लिपटा पड़ा था. बारिश की वजह से वह पूरी तरह भीग चुका था. कुमुद ने बिना सोचे उस शिशु को गोद में उठा लिया वह एक लड़की थीं.
इस काली रात में उसे ऐसा महसूस हो रहा था. कि उसे कोई चमकता हुआ हीरा मिल गया हो. वह उसे लेकर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ी. सुबह की पहली पौ फटने वाली थी. उसने यह फैसला लिया कि वह अब इस शहर को छोड़कर कहीं और बस जायेगी.
उसने उस बच्ची की चाय वाले से दूध और चम्मच लेकर उसे दूध पिलाया ओर अपने सूखे आँचल में लपेट लिया. गर्माहट की वजह से वह सो चुकी थी.
कुमुद को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. कि वह कहां जाय, क्या करे.


तभी सामने से सुषमा आते हुए नजर आई. जैसे ही उसने सुषमा को देखा वह पास ही बने बाथरूम में घुस गई. सुषमा ने उसे देख लिया था. वह भी उसके पीछे बाथरूम में घुस गई . उसने कुमुद की गोद में बच्ची देख हैरानी से पूछा...",कहां से चुराया रे इसे.....? , चल पुलिस को दे देते हैं. दीदी को पता चला तो तेरी खाल नोच लेगी,रात का गुस्सा थूक दे,जल्दी चल यहाँ से. वह गिड़गिड़ा कर बोली...," मैंने चुराया नहीं है, नाले के पास कचरे के ठेर पर मिली , लड़की है. में इसे अपने पास ही रखूंगी. मुझे पुलिस के पास नहीं जाना ....।
सुषमा चिल्लाई..,"पागल हो गई है क्या....?,क्या अपनी बिरादरी में कोई इसे पालने देगा.? इसे क्या नाम देगी ,जल्दी चल पुलिस को सौप देते हैं.
सुषमा उनका हाथ खींचकर जबरदस्ती ले जाने लगी.


आज कुमुद को न जाने कहा से इतनी ताकत आ गई थी. कि वह अपनी जगह से जरा भी नहीं हिली .
कुमुद बोली..",मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,में वैसे भी इतने सालों में तुम्हारे रहन-सहन को नहीं अपना सकी,अब तो मेरे जीने की यही एक उम्मीद है,मुझे मत रोको.
सुषमा को भी लगा कि शायद कुमुद सच कह रही है. वह आये दिन मीना की डांट फटकार खाती रहती हैं. इसे यह जीने की उम्मीद मिली है. तो में इसे नहीं रोकूँगी. उसने कुमुद को अपने ब्लाउज से कुछ रुपये निकालकर दिये और उसके सिर पर हाथ रख कर बोली..,"कर ले मन की भगवान तेरी हमेशा मदद करे, कभी भी जरूरत पड़े तो मुझे याद करना, में यहां सब कुछ सम्भाल लूंगी.
उसकी आँखों में आंसू देख कुमुद को भी उसके निर्णय पर गर्व महसूस हुआ. घर जाकर सुषमा ने मीना को बताया कि वह सारा इलाका छान आई ,कुमुद उसे कही नहीं मिली.


वह चीखकर बोली..," कहां मर गई चार घंटे में तूने अच्छे से नहीं देखा होगा,वही कही आस पास होगी,वह सुषमा को खूब खरीखोटी सुना रही थी. सुषमा खामोशी से सब सुन रही थी.
लेकिन आज उसको अपने फैसले पर गर्व हो रहा था. उसने मन ही मन फैसला किया. कि कुमुद जहाँ भी रहे पूरी जिंदगी उसका साथ देगी.
इधर कुमुद के आँखों से आंसुओं की धारायें बह रही थी. मुठ्ठी में बंधे रुपयों को देख ,आज सुषमा उसे बहुत ही नेक दिल लग रही थी.
वह पास ही खड़ी ट्रेन में चढ़ गई. उसे खुद भी नहीं मालूम था. कि अब उसे करना क्या है। वह उस मासूम बच्ची को देखती ही जा रही थी.
तभी टी सी ने आकर पूछा, कहां जाना है..? सिर पर घूंघट ओढ़कर बोली..,"साब यह ट्रेन कहा तक जाती है।


दो बार टी सी ने घूर कर देखा।
"तुम्हें कहा जाना है...?
"इसका आखरी स्टाप जहाँ हो वहां उतार देना. टी सी अजीब नजरों से घूर रहा था. गोद में सोती नवजात बच्ची को देख कुछ न बोल।
ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुँच चुकी थी. सारा डिब्बा खाली हो चुका था. कुमुद को समझ नहीं आया कि कहा जाय . शाम होते ,होते बादलों ने फिर से अपना रुख बदल लिया. घनघोर बारिश के आसार नजर आने लगे.
थोडी दूर पैदल चलने पर उसे एक झुग्गी झोपड़ी वाली बस्ती नजर आई उसने अपने बदन के गहने उतार लिए. ओर बस्ती में प्रवेश कर गई. वहां कई औरतें नल पर पानी भर रही थी. उसे भी अब भूख प्यास लग रही थी. वह नल के पास जाकर पानी मांगने लगी. तो वहाँ खड़ी एक बुजुर्ग महिला पूछने लगी.
  "तुम कौन हो हमारी बस्ती में क्या कर रही हो...?
कुमुद ने अपनी कहानी बताई. तो वहां खड़ी एक अधेड़ महिला बोली, मेरे पास एक खोली हैं. काम चलता है तो देती हूं .
कुमुद में वह खोली लेली. देखा तो एक सीलन वाला छोटा सा कमरा. सामने एक चूल्हा बना था. दरवाजे के पास एक मटका रखा था.
रात होने लगी थी. भूख प्यास से व्याकुल कुमुद बच्ची को वही छोड़ खाने का इंतजाम करने लगी .
आज पूरी रात वह सो नहीं पाई विचारो का सिलसिला उसे सोने नहीं दे रहा था. सुबह, सुबह नल पर बर्तनों की आवाज से कुमुद की नींद खुल गई.
अलसाई आँखों से बाहर का नजारा देखा.


समय के साथ वक़्त गुजरता जा रहा था. कुमुद ने एक फैक्ट्री में बोरे भरने का काम चालू कर दिया था.रोजनदारी पर काम मिला था. खर्चा निकल जाता था.
आज उसकी बेटी बरखा 8 साल की हो गई थी. बारिश में मिली थी. तो उसका नाम बरखा रख दिया था. बरखा बहुत ही सुंदर थी. पास ही के स्कूल में पढ़ने जाती. कुमुद ने हर परिस्थिति से लड़ कर उसकी परवरिश की.
अब वह बड़ी हो गई थी. वह हर समय अपने पिता के बारे में पूछती मगर कुमुद कोई न कोई कारण से बात बदल देती.
बरखा को कॉलेज कंप्लीट करते ही अच्छी नौकरी मिल गई थी. घर के हालातों में भी अब सुधार आ गया था.
समय चलते कुमुद को किसी बीमारी ने घेर लिया था. उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. तब डॉ से बरखा को पता चला कि उसकी माँ एक किन्नर है. अब तो न जाने कितने सवालिया निशान उस पर लगने लगे. इन सवालों ने बरखा को तोड़ कर रख दिया था.


वह अब कुमुद की हर बात पर से बरखा का भरोसा उठ गया था . बरखा हमेशा यही सोचती की मुझे यह चुराकर लाई हैं. वह अपने असली माँ बाप के बारे में सोच कर परेशान रहने लगी..उसका मन अब कुमुद की सेवा में जरा भी नहीं लगता. वह एक दिन घर छोड़ कर भाग गई. और अपना स्वतन्त्र जीवन यापन करने लगी. इधर कुमुद की हालत बिगड़ती जा रही थी. आज पूरे तीन साल हो चुके थे. कुमुद से बरखा को अलग होकर बरखा एक अच्छे पद पर कार्यरत थी. आज उसे उच्च पद पर प्रमोशन मिला था. आज उसकी प्रमोशन पार्टी थी.
कुमुद के बीमारी की खबर जब सुषमा को लगी तो वह उससे मिलने चली आई. जब उसे यह पता चला कि जिस लड़की के लिए उसने सारा जीवन इतना संघर्ष किया. आज वह लड़की उसे पूछती नहीं है. वह खुद बरखा से जाकर मिली .


बरखा अपने पार्टी की तैयारी कर रही थी. तभी डोर बेल बजी सामने एक किन्नर को देख कर वह दंग रह गई.
सुषमा ने वह सारी बाते बताई की वह उसे किस हालातों में मिली. जब सच्चाई का पता चला तो बरखा बदहवास होकर अपनी माँ से मिलने पहुँची.
आज उसे अपने किये पर बहुत मलाल हो रहा था. वह कुमुद से लिपटकर खूब रोई. अब सारी गलतफहमियां दूर हो गई थीं। वह माँ को घर ले आई. तभी ऑफिस से फोन आया. कि मैडम आपको अवार्ड सेरेमनी में जल्दी पहुंचना है. उसने कुमुद को अपने साथ ले जाने का फैसला लिया. कुमुद को पार्टी में ले गई.
सभी को बताया कि आज में जिस जगह पर खड़ी हू. उंसकी हकदार में नहीं मेरी माँ हैं. सारा हाल तालियों से गूंज उठा.


कुमुद को आज सही मायने में नया जीवन मिला. सभी लोगों ने तहेदिल से कुमुद का स्वागत किया. और सम्मान से नवाजा गया.
बरखा ने अपने शब्दों में कहा कि हम सब उस भगवान के बनाये हुए बंदे हैं। शारीरिक कमियों से किसी भी इंसान को कम नहीं समझना चाहिए। आज मेरी माँ ने मुझे जिस साहस के साथ पाल,पोस कर बड़ा किया है. यह मेरे लिए गर्व की बात है.


कुमुद की जीवन भर की "साहस की आंधी" आज थम चुकी थी. उसके आँखों से अश्रुधारा बह रही थी. बरखा ने अवॉर्ड माँ के हाथों में रखा. वह माँ के सीने से लगकर गर्व महसूस कर रही थी.....।

वन्दना पुणतांबेकर
इंदौर(म.प्र)

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रचनाकार: कहानी ( जीवनार्थ) "साहस की आँधी" // वन्दना पुणतांबेकर
कहानी ( जीवनार्थ) "साहस की आँधी" // वन्दना पुणतांबेकर
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