1. जिम्मेदारी की चादर मैं हूँ अध्यापक बच्चों को इतिहास-भूगोल राजनीति-शास्त्र पढ़ाता हूँ अनेक बार अध्यापन में देश को कृषि प्रधान बत...
1.
जिम्मेदारी की चादर
मैं हूँ अध्यापक
बच्चों को
इतिहास-भूगोल
राजनीति-शास्त्र
पढ़ाता हूँ
अनेक बार अध्यापन में
देश को
कृषि प्रधान बताता हूँ
उन्हीं छात्रों को
छुट्टी के बाद
दुकानों पर
बाल श्रमिक पाता हूँ
हालात पाठ्य-पुस्तकों को
गलत साबित करते हैं
कितने नौनिहाल
भीख मांग कर
पेट भरते हैं
अक्सर ये बच्चे
वक्त से पहले ही
बड़े हो जाते हैं
जिम्मेदारी की चादर ओढ़
बचपन की चारपाई से
खड़े हो जाते हैं
-विनोद सिल्ला©
2.
करके तो देखिए
उनकी दाढ़ी
ऐसे क्यूं
उनकी मूंछें
ऐसी क्यूं
उनकी चोटी
उनकी टोपी
ऐसे क्यूं
उनका ये क्यों
उनका वो क्यों
इनके अलावा भी
अनेकों हैं गंभीर मुद्दे
संसद में जिन पर
हो सकती है चर्चा
हो सकता है विकास
नेता जी
सांप्रदायिकता ही नहीं
विकास भी
दिलवा सकता है वोट
करके तो देखिए
-विनोद सिल्ला©
3.
पास-पास रहते भी
मिट्टी
वैसी ही
अटारी की है
वैसी ही बाघा की है
वैसी ही जलवायु
अटारी की है
वैसी ही बाघा की है
अनेकों बार
इकट्ठे झेला दोनों ने
सूखा, ओलावृष्टि, अतिवृष्टि
और भी अनेकों प्रकार की
प्राकृतिक आपदाएं
आज भी
अटारी की
गुरबाणी की आवाजें
गूंजती हैं बाघा में
बाघा की अजान
सुनती है अटारी में
दोनों गांवों के नागरिक
होते थे शामिल
एक-दूसरे की
गमी-खुशी में
लेकिन कांटेदार तारों की
बाड़ ने
कर दिया बहुत दूर
पास-पास रहते भी
-विनोद सिल्ला©
4.
देशभक्ति
छब्बीस जनवरी के बाद
आज स्वतंत्रता दिवस पर
पूरे यौवन पर थी देशभक्ति
खूब बजे
देशभक्ति के गीत
जो आज शाम को
रख दिए गए
संभाल कर
छब्बीस जनवरी तक
खूब दिए गए भाषण
देशभक्ति से ओत-प्रोत
तमाम वक्ता
कल फिर खो जाएंगे
रोज मर्रा के
कार्यकलापों में
छब्बीस जनवरी तक
देशभक्ति भी करेगी
विश्राम
-विनोद सिल्ला©
5.
बेटी
जीवन की
सबसे अनमोल
नियामत है बेटी
कुदरत की
सबसे हसीं
अमानत है बेटी
तपते मरुस्थल में
शीतल जल है बेटी
आज है बेटी
कल है बेटी
भीषण गर्मी में
ठंडी बयार है बेटी
अंतिम सांस तक
मां बाप की
खिदमतगार है बेटी
प्यार है बेटी
झंकार है बेटी
पूरा संसार है बेटी
-विनोद सिल्ला©
6.
बेपरवाह
हम
प्राकृतिक आपदाओं से
हो कर बेपरवाह
करते हैं प्रकृति का
अंधाधुंध दोहन
झेलते हैं उसका
दुष्परिणाम
सबसे पहले इंसान ने
किया खिलवाड़
खुद के साथ
हो कर बेपरवाह
बांट लिया
असंख्य जातियों में
अनेक धर्मों में
उन जातियों-धर्मों ने
कर लिया
विकराल आपदा का
रूप धारण
आज झेल रहा है इंसान
भेदभाव के रूप में
या दंगों के रूप में
-विनोद सिल्ला©
7.
ताजा खबर
बिलकुल
ताजा खबर है
जो अखबार में भी
नहीं आई
किसी चैनल ने भी
नहीं बताई
आकाशवाणी ने भी
नहीं सुनाई
चौपालों में भी
जिसकी चर्चा
नहीं चली
यह खबर
सोशल मीडिया पर भी
नहीं आई
किसी वेब चैनल
पर भी नहीं
खबर यह है कि
गुम हो गया भाईचारा
इस नवदौर में
-विनोद सिल्ला©
8.
समझ से परे
मरने के बाद
स्वर्ग से
या फिर
नर्क से
कोई नहीं आया
वापस लौट कर
फिर
स्वर्ग का मजा
और
नर्क की सजा
का वर्णन
किसने किया
ग्रंथों में
समझ से परे है
-विनोद सिल्ला©
9.
बैंक मूर्छित हैं
सरकार संग
आती थी
हर रोज
उनकी फोटो
संचार के माध्यम से
बैंक हिम्मत न
जुटा पाया
कर्ज देने से
इंकार करने की
आज सभी बैंक
मूर्छित हैं
उनके विदेश गमन से
थोड़ी-थोड़ी संजीवनी
चोरी-छुपे
ली जा रही है
आम-जन के
खातों से
ताकि होश में
लाए जा सकें बैंक
-विनोद सिल्ला©
10.
तब अवतार नहीं लिया
असुर व राक्षस
थे यहीं के वासी
समय-समयपर
आते रहे भगवान
लेकर अवतार
असुरों का
राक्षसों का
करते रहे संहार
बताते रहे
उसे धर्मयुद्ध
लेकिन यहीं पर आए
मुगल, फिरंगी,
गुण, शक, डच
फ्रांसीसी, पुर्तगाली व
अन्य विदेशी आक्रमणकारी
तब नहीं लिया
किसी ने अवतार
तब नहीं किया
धर्मयुद्ध का ऐलान
होने दिया
देश गुलाम
जाने क्यों?
-विनोद सिल्ला©
11.
श्रृंगार
मेरी मां
नहीं देखीं मैंने
कभी भी
श्रृंगार किए
मैंने देखा
सदैव उनको
ममता, मैत्री,
करूणा के
श्रृंगार लिए
बहुएं नहीं
आईं उसके घर
आई हैं दो बेटियाँ
जिन्हें मां ने
मां के ही
स्नेह-दुलार दिए
सासु नहीं
बनी कभी भी
रही तत्पर
मां का
प्यार लिए
मेरी मां
नहीं देखीं मैंने
कभी भी
श्रृंगार किए
-विनोद सिल्ला©
12.
बहुत देखे हैं
उसने मुझसे
ईर्ष्या-वश कहा
तेरे जैसे
बहुत देखे हैं
मैंने कहा
उपयोगी वस्तुओं का
उत्पादन
बड़ी मात्रा में
होता है
सुनकर वो
अवाक रह गया
-विनोद सिल्ला©
13.
आंसू
आँसू
नहीं छोड़ते साथ
उम्रभर
हर गमी-खुशी में
दे देते हैं दस्तक
सबसे पहले
ये नहीं आते
औपचारिकता निभाने
या मात्र दिखावा करने
ये शायद नहीं जानते
दुनियादारी की बातें
औपचारिकता
दिखावा
आदि-आदि
-विनोद सिल्ला©
14.
मेरी जेब के रुपए
उन्हें
मैं स्वीकार्य नहीं
लेकिन मेरी जेब के
रुपए स्वीकार हैं
उन्हें
मुझसे परहेज है
मेरी जेब के
रुपयों से नहीं
उन्हें
मुझसे नफरत है
मेरी जेब के
रुपयों से नहीं
वो नहीं चाहते
मेरी देहली लांघना
लेकिन चाहते हैं
मेरी जेब के
रुपए पाना
-विनोद सिल्ला©
15.
डरा-डरा हूँ
डरा-डरा हूँ
भीड़ से
सहमा-सहमा हूँ
भीड़ से
जाने कौन
भीड़ का हिस्सा
घड़ दे कोई
नया-सा किस्सा
ठहरा दे मुझे
बच्चा चोर
या ठहरा दे
गौ मांस खोर
या लगा दे
आरोप कोई और
बन न जाऊं
जनसमूह का ग्रास
अमन-चैन का न
हो जाए ह्रास
डरा-डरा हूँ
भीड़ से
सहमा-सहमा हूँ
भीड़ से
-विनोद सिल्ला©
16.
जिम्मेदारी की चादर
मैं हूँ अध्यापक
बच्चों को
इतिहास-भूगोल
राजनीति-शास्त्र पढ़ाता हूँ
अनेक बार अध्यापन में
देश को कृषि प्रधान बताता हूँ
उन्हीं छात्रों को छुट्टी के बाद
दुकानों पर
बाल श्रमिक पाता हूँ
हालात पाठ्य-पुस्तकों को
गलत साबित करते हैं
कितने नौनिहाल
भीख मांग कर
पेट भरते हैं
अक्सर ये बच्चे
वक्त से पहले ही
बड़े हो जाते हैं
जिम्मेदारी की चादर ओढ़
बचपन की चारपाई से
खड़े हो जाते हैं
-विनोद सिल्ला©
17.
वक्त
वक्त
नहीं करता
किसी की परवाह
और उनकी तो
बिल्कुल नहीं करता
जो वक्त की
परवाह नहीं करते
वक्त
सबका आता है
जो करता है
वक्त की कदर
वक्त भी करता है
उसकी कदर
ये वक्त ही है
जो निकल रहा है
मुट्ठी से
बालू रेत की तरह
-विनोद सिल्ला©
18.
सूर्य के सात घोड़े
अनेकों
पौराणिक कथाओं में
वर्णित है
सूर्य के रथ को
खींचते हैं
सात घोड़े
परन्तु सूर्य है स्थिर
करता है सिद्ध
विज्ञान का शोध
करती है परिक्रमा
सूर्य के चारों ओर पृथ्वी
समझ नहीं आता
विज्ञान सही है
या पुराण
अपेक्षित है
आपका मार्गदर्शक
-विनोद सिल्ला©
18.
पायल
नहीं लगती पायल
गहनों सी
कदम-कदम पर
लगती है पर्यायवाची
बेड़ी की
जो स्नेह से
डाली गई
नारी के पाँव में
लगाने को अंकुश
उनकी गति पर
करने को सीमित
उनकी स्वतंत्रता
लांघ न दे
घर की देहली
कहीं निकल न जाए
पुरुषों से आगे
बेड़ी को दे दिया
आकर्षक नाम
पायल
-विनोद सिल्ला©
1.
अमरता
ढूंढ़ता है इंसान
अमरता का रहस्य
पूजा-पाठ में
धर्म-स्थलों में
धर्म-ग्रंथों में
तंत्र क्रियाओं में
नाना प्रकार के
क्रिया-कलापों में
जबकि अमरता मिलती है
रोजमर्रा के कार्य
संजींदगी से करने से
भले ही देह
हो जाती है नष्ट
लेकिन कार्य
रहते हैं
अजर-अमर
इंसान के
जाने के बाद भी
-विनोद सिल्ला©
2.
सरकारों के बाप
जब भी
बदलती है सरकार
बदल जाती हैं नीतियाँ
नई नीतियाँ
बनाती है सरकार
अपने बाप के नाम पर
बदल जाती हैं
पुरानी नीतियाँ
जो थीं
पुरानी सरकार के
बाप के नाम पर
बदल जाती हैं
छात्र-छात्राओं की पुस्तकें
हो जाते हैं शामिल
पाठ्यक्रम में
नई सरकारों के बाप
निकाल दिये जाते हैं
पाठ्यक्रम से
पुरानी सरकारों के बाप
राष्ट्रहित सदैव
रहता है उपेक्षित
-विनोद सिल्ला©
3.
शहर में विधायक
शहर की सभी सड़कें
जा रही थीं बुहारी
सफाईकर्मी थे
तर-ब-तर पसीने में
प्रशासनिक अमले की गाड़ियाँ
लगा रही थी गश्त
पत्रकार भी
कैमरा उठाए
थे भागमभाग
सफेदपोश भी
शहर में जुटते से
हुए प्रतीत
आम लोगों में थी चर्चा
शायद आज विधायक
शहर में ही है
-विनोद सिल्ला©
4.
राजनीति
उनका व्यवहार
एकान्त में
था बड़ा आकर्षक
जैसे वो
अपने हैं मेरे
और लोगों के सामने
बदले-बदले
आए नज़र
मैं देखकर
यह बदलाव
रह गया आवाक
शायद इसी को
कहते हैं
राजनीति
-विनोद सिल्ला©
5.
सरपंच का चुनाव
वो मुंहफट
कटुभाषी
व झूठ फरेब वाला
जीत गया
गाँव में
सरपंच का चुनाव
हरा दिया
लोगों ने
एक मृदुभाषी
न्यायप्रिय
सत्यवादी को
जाने क्यों
सभी उससे
डरते थे?
-विनोद सिल्ला©
6.
गणतन्त्र दिवस
आज था
गणतन्त्र दिवस
सरकार के साथ ही
बदल गए
आयोजन के तौर-तरीके
बदल गए
मुख्यवक्ता के वक्तव्य
बदल गई
मंच की गरिमा
जबकि गणतन्त्र दिवस
हमेशा की तरह
वही था
संविधान का
लागू होना
बदल गया था
बाकी सब कुछ
-विनोद सिल्ला©
7.
जन सेवा
किए जाते हैं खर्च
कई-कई लाख रुपए
छपवाए जाते हैं इश्तिहार
लगवाए जाते हैं होर्डिंग
किया जाता है दावा
ईमानदार होने का
होती है मारो-मार
किए जाते हैं वादे
जनसेवा के
हो जाते हैं दंगें
घुल जाता है ज़हर
गाँव की फिजां में
चुनाव जीतने पर
मिलता है वेतन
नाममात्र ही
बांटी जाती हैं फिर भी
बोतलें शराब की
इतना सब
मात्र जनसेवा के लिए तो
कोई नहीं कर सकता
-विनोद सिल्ला©
8.
शब्दों का अर्थ
उनके शब्द
स्पष्ट थे
परन्तु
उन शब्दों के
नहीं थे
अर्थ स्पष्ट
सबने अपने-अपने
विवेक से
निकाले अर्थ
उन शब्दों के
अर्थ का
कर दिया अनर्थ
वो शब्द
किसी को भाए
तो किसी को
कचोटते नजर आए
-विनोद सिल्ला©
9.
नहीं सिखाई मोहब्बत
बच्चे खेलते-खेलते
लगते हैं लड़ने
हो जाते हैं
आधे इधर
आधे उधर
हो जाती है गुटबन्दी
जब वो होंगे बड़े तो
गुटबन्दी भी
होगी बड़ी
अगर वो सीख जाते
मोहब्बत
जो उनकी
उम्र के साथ-साथ
हो जाती बड़ी
फिर न कोई
हिन्दू होता
न कोई मुसलमान
सभी होते इंसान
-विनोद सिल्ला©
10.
व्यक्ति का मूल्यांकन
व्यक्ति वही था
बस आज
नहीं था पैदल
बदल गया
लोगों का नजरिया
व्यक्ति वही था
बस पैंट-कोट में था
अपरिचित भी
इज्जत से पेश आए
व्यक्ति वही था
बस आज
बड़े आदमी को साथ था
परिचित भी बदले-बदले
नजर आए
मुझे लगा व्यक्ति का मूल्यांकन
उसके गुणों से नहीं
बाहरी आवरण से
होता है
-विनोद सिल्ला©
परिचय
नाम - विनोद सिल्ला
शिक्षा - एम. ए. (इतिहास) , बी. एड.
जन्मतिथि - 24/05/1977
संप्रति - अध्यापन
प्रकाशित पुस्तकें-
1. जाने कब होएगी भोर (काव्यसंग्रह)
2. खो गया है आदमी (काव्यसंग्रह)
3. मैं पीड़ा हूँ (काव्यसंग्रह)
4. यह कैसा सूर्योदय (काव्यसंग्रह)
5. जिंदा होने का प्रमाण(लघुकथा संग्रह)
संपादित पुस्तकें
1. प्रकृति के शब्द शिल्पी : रूप देवगुण (काव्यसंग्रह)
2. मीलों जाना है (काव्यसंग्रह)
3. दुखिया का दुख (काव्यसंग्रह)
सम्मान
1. डॉ. भीम राव अम्बेडकर राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2011
(भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
2. लॉर्ड बुद्धा राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2012
(भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
3. उपमंडल अधिकारी (ना) द्वारा
26 जनवरी 2012 को
4. दैनिक सांध्य समाचार-पत्र "टोहाना मेल" द्वारा
17 जून 2012 को 'टोहाना सम्मान" से नवाजा
5. ज्योति बा फुले राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2013
(भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
6. ऑल इंडिया समता सैनिक दल द्वारा
14-15 जून 2014 को ऊना (हिमाचल प्रदेश में)
7. अम्बेडकरवादी लेखक संघ द्वारा
कैथल में (14 जुलाई 2014)
8. लाला कली राम स्मृति साहित्य सम्मान 2015
(साहित्य सभा, कैथल द्वारा)
9. दिव्यतूलिका साहित्य सम्मान-2017
10. प्रजातंत्र का स्तंभ गौरव सम्मान 2018
(प्रजातंत्र का स्तंभ पत्रिका द्वारा) 15 जुलाई 2018 को राजस्थान दौसा में
11. अमर उजाला समाचार-पत्र द्वारा
'रक्तदान के क्षेत्र में' जून 2018 को
12. डॉ. अम्बेडकर स्टुडैंट फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा
साहब कांसीराम राष्ट्रीय सम्मान-2018
13. एच. डी. एफ. सी. बैंक ने रक्तदान के क्षेत्र में प्रशस्ति पत्र दिया, 28, नवंबर 2018
पता :-
विनोद सिल्ला
गीता कॉलोनी, नजदीक धर्मशाला
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद (हरियाणा)
पिन कोड-125120
ई-मेल vkshilla@gmail.com
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