कहानी // प्रतिशोध // ललिता यादव

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प्रतिशोध राजनंदनी और राजमोहिनी दोनों आपस में सहेलियाँ थी। नाम सुनकर तो ऐसा लगता है कि दोनों एक ही घर से संबंधित है, पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है...

प्रतिशोध

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राजनंदनी और राजमोहिनी दोनों आपस में सहेलियाँ थी।


नाम सुनकर तो ऐसा लगता है कि दोनों एक ही घर से संबंधित है, पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है। राजनंदनी जैसा कि नाम से ही राजकुमारी लगता है यह नाम के ठीक विपरीत राजनंदनी की पैदाइश वक्त के मारे एक गरीब परिवार में हुआ था। गरीबी इतनी की दो -दो दिन भूखे रहना पड़ता था। लेकिन, राजनंदनी दिल की राजकुमारी जरूर थी। उसका अंदाज, उसके ख्वाब उसके सपनों के राजकुमार सब राजघराने से जुड़े होते थे। दरियादिली इतना कि घर में थोड़ा सा भी खाने को हो तो वह सहेली रूपी प्रजा पर सब कुछ लुटा देती थी। गरीबी में पली राजनंदनी समय से पहले ही समझदार हो गई थी। गरीबी ने उसे सबकुछ सिखा दिया था फिर भी वह किसी राजकुमारी से कम नहीं थी। उसका हँसमुख व्यवहार होने के कारण गरीब हो या अमीर सभी के दिलों में वह राज करती थी सभी उसके दोस्त आसानी से बन जाते थे। वह अक्सर अपनी माँ से कहती थी-"माँ देखना एक दिन मैं बड़ी हो जाऊँगी तो बहुत पैसे कमाऊंगी जहाँ देखोगी वहाँ पैसा ही पैसा होगा तुम्हें कोई कमी न होने दूँगी। यह सुनकर माँ उसे गले से लगा लेती।" दरअसल राजनंदनी बचपन से गरीब नहीं थी बल्कि उसके पिताजी की बीमारी के कारण सारी संपत्ति बेचकर भी पिताजी को नहीं बचा पाए थे।

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धीरे-धीरे राजनंदनी बड़ी हो रही थी। जैसे-जैसे राजनंदनी बड़ी हो रही थी उसकी सुंदरता भी उसके साथ दिन दूना रात चौगुना बढ़ती जा रही थी। राजनंदनी की अल्हड़ जवानी लड़कों की नींद उड़ाने के लिए काफी थी, हर कोई उसे अपना बनाने को बेताब था। उसकी माँ को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। आए दिन मुहल्ले में लड़कों का जमावड़ा लगा रहता हर कोई राजनंदनी की एक झलक पा लेना चाहता था। कई लड़कों ने तो शादी की बात तक कह डाली पर राजनंदनी ने अभी तक किसी को घास नहीं डाला था। उसने अपनी माँ से स्पष्ट कहा कि - "मुझे इन फालतू लड़कों में कोई इन्टरेस्ट नहीं है मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ।" शुरू-शुरू में तो माँ समाज को लेकर चिंतित रहती थी वह डरती थी कि राजनंदनी पर कोई किसी प्रकार का दाग न लगा दे। कमबख्त जवानी होती ही ऐसी है। लेकिन राजनंदनी की इच्छा के आगे वह मजबूर हो गई।

राजनंदनी अपने ख्वाब के पंखों से उड़ान भरते हुए सी एम डी कॉलेज पहुँच गई। कॉलेज में भी उसका आकर्षक व्यक्तित्व सबको अपनी तरफ आसानी से खींच लेता था। और यहीं उसकी दोस्ती हुई काजल, मनीषा, शिखा, कुन्ती, मधुरानी, एकता और राजमोहिनी से इन सभी सहेलियों में राजमोहिनी कुछ खास करीब थी। राजनंदनी राजमोहिनी के साथ कुछ ज्यादा ही घुलमिल गई थी कारण था राजमोहिनी कि सम्मोहन शक्ति। जो कोई उससे एक बार मिल लेता प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। न जाने उसकी आँखों मे ऐसी कौन सी कशिश थी जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। दोनों सहेलियाँ एक दूसरे पर जान छिड़कती थीं। दोनों की सुंदरता देखने लायक थी अंतर था तो बस इतना कि राजमोहिनी अपने दिल का इस्तेमाल ईश्वर के प्रसाद की तरह करती थी। इन्हीं के दोस्तों की लिस्ट में कुछ लड़के अरविंद, कुणाल, प्रतीक, प्रभात, चैतन्य और अंशुमान आदि भी थे। अंशुमान की खासियत ये थी कि वह किसी को भी आसानी से अपना बना लेता था। प्रभात को हर बात में शर्त लगाने की आदत थी। सभी दोस्त आपस में बहुत अच्छे से रहते थे।

राजमोहिनी और राजनंदनी का प्रभाव इनके दोस्तों पर भी था। लड़के दोस्त आपस में कई प्रकार की बातें करते थे उनकी बातों में इनका नाम हमेशा रहता था। एक दिन तो प्रभात ने हद कर दी उसने सभी दोस्तों को चैलेन्ज किया कि इन दोनों को कौन पटा सकता है किसी की भी हिम्मत नहीं हुई तो अंशुमान ने चैलेंज स्वीकार कर लिया। अंशुमान किसी भी चैलेंज को बाएं हाथ का खेल समझता था । उसने इसे भी खेल ही समझा और अपने खेल को अंजाम देना शुरू कर दिया। राजमोहिनी के आकर्षक व्यक्तित्व से वह अच्छी तरह वाकिफ था और राजनंदनी की खूबसूरती से भी। फिलहाल ये दोनों शर्त के सिवाय और कुछ भी नहीं थी।

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अंशुमान की खासियत ये थी कि वह किसी को भी अपनी बातों से प्रभावित कर लेता था। न जाने उसके बोल में कौन सी मिश्री डली होती थी कि यदि कोई उससे एक बार बात कर ले तो वह उसे भूल नहीं सकता था। अंशुमान दोनों पर अपनी किस्मत आजमा रहा था। राजनंदनी समझदार थी उसे घर, परिवार, समाज के लोग क्या कहेंगे इसकी पूरी समझ थी। पर राजमोहिनी बिल्कुल बिंदास थी वह कहती भी थी कि-"जवानी ही तो बहकने के दिन है बुढ़ापे में कौन किसको पूछता है। गलती से मिस्टेक जवानी की उम्र में ही की जा सकती है।" अतः राजमोहिनी जवानी के जोश में बहकती जा रही थी। वह अंशुमान के जाल में फंस गई या यूं कहें कि राजमोहिनी ने अंशुमान को अपने जाल में फ़ांस लिया। वैसे भी राजमोहिनी कई लड़कों के दिलों को खिलौने की तरह खेलकर फेंक चुकी थी। अंशुमान भी वही कर रहा था जो राजमोहिनी उसके साथ करना चाहती थी अर्थात दोनों एक दूसरे को धोखा दे रहे थे। अंशुमान राजमोहिनी के प्यार में अपने शर्त को भी नहीं भूला था।

वह राजनंदनी पर भी डोरे डाल रहा था। राजमोहिनी और अंशुमान के प्यार के बारे में राजनंदनी जानती थी। राजमोहिनी के दिलफेंक आदत से भी वाकिफ थी। वह राजमोहिनी को सुधरने के लिए कहती थी पर वह उसकी बातों को हँस कर धुएं में उड़ा देती थी। इधर अब राजनंदनी के लिये भी विवाह के रिश्ते आने लगे। राजनंदनी की माँ सभी रिश्तों को न चाहते हुए भी ठुकराती जा रही थी। कुछ रिश्ते तो इतने अच्छे होते थे कि राजनंदनी की माँ पछता कर रह जाती थी। राजनंदनी की माँ राजनंदनी पर कोई भी रिश्ता थोपना नहीं चाहती थी। अंशुमान ने अपना काम जारी रखा था। आखिर तोता कब तक राम-राम नहीं बोलेगा। समय बहुत बलवान होता है राजनंदनी को ऐसा महसूस हो रहा था कि अब उसे अंशुमान अच्छा लगने लगा है, वह उसकी निगाहों से दूर हो जाना चाहती थी पर जितनी कोशिश करती उतनी ही असफल हो जाती। ऐसा कहाँ होता है कि इंसान जो चाहे पा जाए तकदीर हर किसी के साथ अजब-गजब के खेल खेलती है। जो राजनंदनी कभी किसी लड़के को घास नहीं डालती थी वह कब अंशुमान के दिल की गुलाम हो गई उसे पता ही नहीं चला। इधर राजमोहिनी जो दिलफेंक इंसान थी वह अंशुमान के प्यार को लेकर गम्भीर होती जा रही थी। उसे लग रहा था कि अंशुमान से बेहतर जीवनसाथी और कोई नहीं हो सकता।

अंशुमान जो सिर्फ शर्त जीतने की खातिर आँधी और तूफान से खेल रहा था। धीरे-धीरे राजमोहिनी का अतीत उसके सामने आने लगा और वह अंशुमान की नज़रों से गिरती जा रही थी। जिन लोगों का दिल कभी खिलौने की तरह इस्तेमाल किया था वे अब राजमोहिनी के साथ हुई राज की बातें अंशुमान के सामने ला रहे थे। अंशुमान अब राजमोहिनी से चिढ़ने लगा था। वह उससे छुटकारा पाना चाहता था पर राजमोहिनी किसी भी कीमत पर अंशुमान को खोना नहीं चाहती थी। राजमोहिनी लड़कों के दिलों को कभी भी खिलौने के सिवा कुछ न समझा वही राजमोहिनी का अब जीना हराम हो रहा था। घाट-घाट का पानी पिलाने वाली अब अंशुमान के आंखों की समुद्री लहरों में स्थिरता ढूँढने का प्रयास कर रही थी। इधर राजनंदनी भी बेचैन थी वह अपने को बचाने का जितना प्रयास करती उतना ही उलझती जा रही थी। कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज है उसने राजमोहिनी के प्यार वाली बात जानते हुए भी ये गलती कर ही दी। क्योंकि उस समय उसके मन में अंशुमान विराजमान था। उसने सीधे अपनी माँ से बात की और कहा-"तुम मेरे लिए बहुत परेशान रहती हो यदि चाहो तो एक बार अंशुमान को मेरे विवाह के लिए देख सकती हो।" माँ को कोई आपत्ति नहीं थी उसने कहा ठीक है मैं देखती हूँ। और आनन फानन में ये सोचकर कि कहीं राजमोहिनी उससे शादी न कर ले राजनंदनी ने बिना ग्रेजुएशन कम्पलीट किये विवाह के बँधन में बंध गई। अंशुमान राजनंदनी पर डोरे डाल रहा था पर शादी की बात से वह इंकार नहीं कर सका। राजमोहिनी तो ठगी सी रह गई। अब राजमोहिनी और राजनंदनी में बातचीत बन्द हो गया। ये तो होना ही था। पहले दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी अब उनकी दुश्मनी के किस्से लोगों के चर्चा के विषय थे।

राजनंदनी इकलौती संतान थी। उसकी माँ ने उसे बड़े लाड़ प्यार से पाला था। किसी भी चीज के लिए उसे कभी मना नहीं की थी। अंशुमान को भी शायद इसी चीज का लालच था कि वह इकलौती है तो उसके हर सम्पत्ति पर उसका अधिकार होगा। अंशुमान को इस शादी से बहुत कुछ दान दहेज की आशा थी लेकिन राजनंदनी का विवाह बहुत सादगीपूर्ण ढंग से हुआ था और एक आदर्श विवाह की तरह सिर्फ एक जोड़ी साड़ी में ही वह ससुराल आ गई थी। बस यही बात अंशुमान को खल गई। शादी के दूसरे तीसरे दिन से ही अंशुमान राजनंदनी को ताने मारने लगा। जलील करने लगा। वह जानबूझकर शादी की बात निकालता और दोस्तों के सामने उसे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। वास्तविक बात यह थी कि अब अंशुमान शर्त जीत चुका था। अब उसे राजनंदनी आँखों में खटकने लगी थी। जबकि राजनंदनी उसे अपना पति परमेश्वर समझती थी। पति को लेकर वह बहुत उत्साहित थी उसका सपना था कि "उसका पति सिर्फ उसी का हो, उसकी भावना को समझने वाला हो, उसके कदम से कदम मिलाकर चलने वाला हो, वह उसके साथ अपनी एक पहचान बनाना चाहती थी, वह एक ऐसा कंधा चाहती थी जिसमें वह प्यार से अपने को टिका सके।" लेकिन अंशुमान इतना स्वार्थी था कि उसे सिर्फ अपने से मतलब था। वह जितना उसके नजदीक जाती वह उससे उतना ही दूर भागता था। बल्कि राजनंदनी को जलाने के लिए वह उनकी सहेलियों के भी इस्तेमाल करने लगा। राजनंदनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे वह तो यह भी नहीं समझ पा रही थी कि उसने गलती कहाँ की है। पर इतना वह जरूर समझ गई थी कि अंशुमान उसके लायक नहीं है वह सिर्फ लोगों का इस्तेमाल करता है। अंशुमान झूठ को सच मे बदलने के लिए कुछ भी कर सकता था उसके लिए माता-पिता के सौगंध या देवी देवता की कसम उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था। वह आसानी से गीता पर हाथ रखकर आसानी से झूठी कसमें खा लेता था। और अपने झूठ को सच में बदल लेता था।

इसी सच झूठ के फेर में शादी के तीन साल कब निकल गए पता ही नहीं चला और राजनंदनी दो बच्चों की माँ भी बन गई। अंशुमान की हरकतें राजनंदनी को अंदर से तोड़ रही थी। राजनंदनी ने फैसला कर लिया कि वह इस तरह घुट-घुट कर नहीं जी सकती, लेकिन अंशुमान से अलग होना मतलब अपना घर तोड़ना था और वह अपना प्यारा सा घोंसला किसी भी कीमत पर नहीं तोड़ना चाहती थी। वह बच्चों को उसके प्यार से अलग नहीं करना चाहती थी। क्योंकि अंशुमान बच्चों से बहुत प्यार करता था। आखिर उन बच्चों में अंशुमान का खून था अतः लगाव होना स्वाभाविक था। उसने सोचा जीने के और भी कई तरीके हैं। वह अपनी मंजिल जो अंशुमान के प्यार के कारण अधूरी रह गई थी उसने उसी को आधार बनाया। सर्वप्रथम तो उसने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया। और जुट गई प्रशासनिक अधिकारी बनने की तैयारी में। राजनंदनी ने सोचा घर पर शायद उतने अच्छे से तैयारी न कर पाऊँ क्यों न कोचिंग ज्वाइन कर लूं। और राजनंदनी ने आशा कोचिंग सेंटर ज्वाइन कर लिया।

कुछ दिन तो उसका कोचिंग ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन कहते हैं जब दुःख का पहाड़ आता है तो वह एक तरफ से नहीं आता वह सब तरफ से आता है। राजनंदनी के साथ भी ऐसा ही हुआ। हुआ यह कि राजमोहिनी वहीं कोचिंग देने के लिए एक टीचर के रूप में वहीं पहुँच गई। जब वह अपना क्लास लेने पहुँची तो राजनंदनी को देखकर वह भी सन्न रह गई। राजमोहिनी में कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि उसकी सुंदरता पहले से अधिक बढ़ गई थी। आसमानी सूट में वह और भी गजब ढा रही थी। कमर तक काले लम्बे बाल उसकी सुंदर काया को और निखार रहे थे। उसने अपना परिचय आकर्षक ढंग से दिया पहली ही नजर में सब मंत्रमुग्ध हो उसकी बातें सुन रहे थे। राजनंदनी का समय काटना मुश्किल हो रहा था। दो दिन तो वह क्लास ही नहीं गई। उसने अंशुमान को भी नहीं बताया था राजमोहिनी टीचर के रुप में उसके कोचिंग सेंटर में आई है। उसे एक बार फिर अपना लक्ष्य याद आया उसने मन को कड़ा किया और फिर से क्लास जाने लगी। वह रोज राजमोहिनी का सामना करने लगी। दुर्भाग्य से एक घटना और घट गट

ी। हुआ यूँ कि अंशुमान कोई लड़की को एडमिशन के लिए कोचिंग सेंटर ले के गया था और वहाँ उसकी मुलाकात राजमोहिनी से हो गई। राजमोहिनी अंशुमान के दिये दर्द को भूल नहीं पाई थी और उसके प्यार को भी औऱ तो और राजमोहिनी अभी शादी भी नहीं की थी। अंशुमान उसे देखा तो देखता ही रह गया। वह उसे पाने के लिए लालायित होने लगा। वह राजनंदनी के ऊपर दबाव बनाने लगा कि वह राजमोहिनी को खाने पर बुलाए। राजनंदनी उनके पहले प्यार के बारे में जानती थी । तो अंशुमान ने अपनी शराफत के लिए ये परिचय भी दिया कि वह दो बच्चों का पिता है पहले की बात और थी। राजनंदनी ने भी सोचा सही बात है अब ये लोग क्या करेंगे । लेकिन कहते है इंसान की फितरत कभी नहीं बदलती। यही बात अंशुमान और राजमोहिनी पर भी लागु हुई ।
राजनंदनी अपना दोस्ती का रिश्ता समझकर उसे निभाना चाहती थी पर राजमोहिनी के अंदर तो कुछ औऱ ही खिचडी पक रही थी। वह राजनंदनी से अंशुमान को छीनना चाह रही थी और अंशुमान से प्यार में धोखा का बदला लेना चाह रही थी। अर्थात वह दोनों से अपना बदला लेना चाह रही थी। अंशुमान तो उस पर पहले से ही लट्टू था।

राजमोहिनी जान बूझकर राजनंदनी को जलाने के लिए अंशुमान से मिलती। राजनंदनी सब जानती थी वह टूट चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने घोंसले को किस तरह बचाए। उसका कोचिंग जाना जारी था वह उनके सामने किसी भी प्रकार से कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी। वह जितना उन दोनों को एकसाथ देखती थी उतना ही वह उनसे नफरत करती थी तथा जितना नफरत करती थी उससे कहीं ज्यादा उसका जुनून तैयारी के प्रति बढ़ जाता था। उतना उसका लक्ष्य मजबूत होता जाता था। ऐसा लगता था उन दोनों को साथ देखना राजनंदनी के लक्ष्य प्राप्ति में रामबाण औषधि की तरह कार्य कर रहा था। जिस तरह काली अन्धेरी रात के बाद अवश्य सूर्योदय होता है ठीक उसी तरह राजनंदनी का भी भाग्योदय हो गया। समय बदला राजनंदनी ने पी एस सी की परीक्षा पास की और डिफ्टी कलेक्टर के पद पर आसीन हो गई। राजनंदनी माँ से पैसा कमाने की बात कहती थी वह सपना अब पूरा हो गया था। जितनी बेइज्जती अंशुमान करता था उतना ही अधिक अब वह सम्मानित हो रही थी। राजनंदनी की एक अच्छी पहचान बन गई थी।

अंशुमान दो नाव में पैर रखे हुए था। राजमोहिनी राजनंदनी के घर को उजाड़ने की कोशिश में लगी थी। राजनंदनी के डिफ्टी कलेक्टर बनने के बाद से उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था। वैसे भी जब औरत जब अपने में आती है तो किसी का नहीं सुनती है। एक बार तो राजनंदनी ने सोचा कि इन की दुनियां से दूर हो जाऊं पर फिर वह राजमोहिनी की चाल को समझ गई थी कि वह यही तो चाहती है। राजनंदनी ने अपनी चाल का पैंतरा बदल लिया। उसने राजमोहिनी को रास्ते में लाने के लिए अपने एक प्रशासनिक साथी कमलेश तिवारी की मदद ली। कमलेश को अपने घर बर्बाद होने की बात बताई। कमलेश ने उसे वचन दिया कि जो भी वह उसकी मदद जरूर करेगा। एक दिन राजनंदनी ने खुद राजमोहिनी को कमलेश से मिलवा दिया। कमलेश आकर्षक व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था। राजमोहिनी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। और वह एक अधिकारी के पद पर था। राजमोहिनी का अंदाज तो पहले से ही गजब ढाने का था। राजमोहिनी अवसरवादी थी उसने इस सुनहरे अवसर को लपक लिया। अब वह अंशुमान को किसी कचरे से कम नहीं समझ रही थी। वैसे भी अब उसका अंशुमान से मन भर गया था। वह राजनंदनी और अंशुमान के दिल पर दरार डाल चुकी थी। वह अंशुमान से पीछा छुड़ाना चाहती थी।

राजमोहिनी की खूबसूरती में कमलेश भी बहकने लगा था। दोनों जल्द से जल्द एक हो जाना चाहते थे। अच्छी नौकरी की चाह में कमलेश भी घर बसाने में पीछे रह गया था। वह बार-बार राजनंदनी को धन्यवाद देता था कि उसने राजमोहिनी से मिलाया। राजनंदनी की चाल में बड़ी आसानी से राजमोहिनी फँस गई थी उससे अब निकल पाना भी असम्भव था। अंशुमान अब धीरे-धीरे घर की तरफ लौटने लगा था। बच्चों को फिर से प्यार करने लगा था। राजनंदनी और राजमोहिनी दोनों ने अपने अपने फितरत के अनुसार प्रतिशोध लिया था पर राजनंदनी के प्रतिशोध लेने का तरीका आत्मा को सुकून देने वाला था।
                                           डॉ (श्रीमती) ललिता यादव
                                            बिलासपुर छत्तीसगढ़

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रचनाकार: कहानी // प्रतिशोध // ललिता यादव
कहानी // प्रतिशोध // ललिता यादव
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