साहित्यम्-फेस बुक पर ई-पत्रिका वर्ष-१ अंक-२ दिसम्बर २०१८ निशुल्क सम्पादकीय संबंधों के नित नए आयाम खुल रहे हैं. स्त्र...
साहित्यम्-फेस बुक पर ई-पत्रिका
वर्ष-१ अंक-२ दिसम्बर २०१८ निशुल्क
सम्पादकीय
संबंधों के नित नए आयाम खुल रहे हैं. स्त्री –पुरुष सम्बंधों के साथ साथ स्त्री-स्त्री पुरुष पुरुष ,किन्नर –किन्नर तक की आवाजें आ रही हैं.इसी के साथ बदलते रिश्तों पर कहानी ,कविता और व्यंग्य पढ़े. सहयोगी लेखकों –अर्चना चतुर्वेदी, माधव नागदा,शिवानन्द सिंह,सुधाकर आशावादी का आभार .
नए साल का पहला अंक – कविता 2019 अंक – जो मन कहे वो कविता लिखे .अच्छी कविता से ही पता चलेगा, आज की कविता का मिजाज़ 20-25 कवियों को शामिल कर सकेंगे. पारिश्रमिक थोडा ही सही मगर देय. .
यशवंत कोठारी
संपादक
Ykkothari3@gmail.com
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कहानी
एन आर आई
अर्चना चतुर्वेदी
– उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान से पुरस्कृत लेखिका
19 वर्षीय अनन्या माँ बाप और दो भाइयों की लाडली थी. सुन्दर तो इतनी थी कि जो भी देखता बस देखता ही रह जाता. बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, बड़ी बड़ी घनी पलकें, गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ खिली हुई रंगत और गालों पर डिम्पल, एकदम तराशा हुआ बदन, उस पर लम्बे घने बाल उसकी सुन्दरता में कई चाँद लगाते .हर दम हंसती मुस्कुराती अनन्या एक मुलाकात में ही किसी का दिल जीतने का हुनर जानती थी. मिस्टर और मिसिज शर्मा अपनी बेटी को देखकर निहाल हो जाते थे. जबसे अनन्या अठारह की हुई है उस के लिए बड़े बड़े घरों के रिश्ते आने शुरू हो गए थे लेकिन उसके माँ बाप का बस एक ही सपना था कि उनकी बेटी किसी एन आर आई से ब्याह कर विदेश जाए, इसलिए वो सिर्फ ऐसे ही लड़के की तलाश में थे. उन्ही दिनों अनन्या की चचेरी बहन सुजाता छुट्टियों में भारत आई. वह लन्दन के एक रईस एन आर आई को ब्याही थी शायद ये भी एक कारण था कि अनन्या के माँ बाप की आँखों में बेटी को एन आर आई से ब्याहने का सपना पलने लगा था.
उस दिन सुजाता उनके घर मिलने आयी तो मिसिज शर्मा बोली “सुजाता बेटी अब अपनी बहन के लिए भी कोई अच्छा सा लड़का खोज ले लन्दन में और बुला ले इसे अपने पास”
जी चाचीजी मैं भी यही चाहती हूँ इसलिए ही आपके पास आई हूँ” सुजाता बोली।
अच्छा कोई रिश्ता है क्या तेरी नजर में मिसिज शर्मा उत्साहित सी हो गयी .
हां चाची मेरे पति की बुआ का बेटा है. बाप का बिजनेस है और वो भी अच्छे से संभल रहा है इकलौता बेटा है उनका, उन्हें अपनी अनन्या जैसी सुन्दर सी बहु चाहिए बस” सुजाता ने बताया
अरे फिर क्या है बात चला तू जल्दी से मिसिज शर्मा को मानो मनचाही मुराद पूरी होती हुई लगी.
हां चाची मैंने सोचा एक बार आप लोगों से पूछ लू फिर बात करूँ ये देखो रोहित का फोटो” सुजाता पर्स से फोटो निकालती हुई बोली ।
तभी अनन्या के पिता यानी मिस्टर शर्मा आ गए .
“क्या बात हो रही है? किसका फोटो दिखाया जा रहा है? वे बोले .
अजी सुजाता रिश्ता लाई है हमारी अनु के लिए आप भी देखो” अनन्या की माँ ने खुश होते हुए फोटो पति की तरफ बढाया और उसके बारे में अब तक जो बात हुई एक साँस में बता डाली.
हां बेटा सुजाता सब तेरा देखा भाला है और तू अपनी बहन का बुरा तो करेगी नहीं बात आगे बढ़ा हमें लड़का पसंद है ‘ मिस्टर शर्मा बोले .
जी चाचाजी मैं आज रात को ही बुआजी से बात करुँगी आप मुझे अनन्या का एक फोटो दे दीजिये. फोटो लेकर और खा पीकर सुजाता चली गयी .
मिस्टर और मिसिज शर्मा ख़ुशी से फूले नहीं समां रहे थे देखा जी कितनी भाग्यवान है हमारी बिटिया घर बैठे इतना अच्छा रिश्ता आ गया.
अब वे लोग बेसब्री से आगे की कार्यवाही का इन्तजार करने लगे .
तीन चार दिन बाद सुजाता फिर से आई वो बहुत खुश थी चाचाजी उन लोगों को अपनी अनु पसंद आ गयी है अगले महीने वे लोग इण्डिया आ रहे हैं और आपको सब कुछ जमा तो सगाई कर देंगे.
ये तो बहुत बढ़िया बात है सब खुश थे पर अनन्या अन्दर ही अन्दर डरी हुई थी. वो अपने माँ बाप से इतनी दूर नहीं जाना चाहती थी. जहाँ से आना भी मुश्किल हो पर उसकी चाहत की परवाह किसी को नहीं थी.
एक महीने बाद सगाई और तीन महीने बाद शादी करके अनन्या लन्दन चली गयी .
वहां महल सा घर और नौकर चाकर देख अनन्या की ख़ुशी का भी ठिकाना ना रहा. पति रोहित उसकी हर ख्वाहिश को सर आँखों पर रखते. अनन्या को लग रहा था मानो किसी परियों की दुनिया में आ गयी थी. लन्दन के ठाठ बाट और सबका प्यार जब उसने अपने घर वालों को बताया तो सुनकर सब उसके भाग्य को सराहने लगे.
अनन्या के सास ससुर और ननद भी बहुत अच्छी थी. सब उसका खूब ख्याल रखते कुछ दिनों बाद ही अनन्या प्रेग्नेंट हो गयी. अब तो रोहित उसका पहले से भी ज्यादा ख्याल रखने लगा था. उसका जो खाने का दिल करता वो तुरंत लाता उसकी हर सुख सुविधा का ख्याल सब लोग रखते. समय पर अनन्या ने बहुत प्यारी हेल्दी सी बेटी को जन्म दिया बेटी के जन्म के दो महीने बाद ही अचानक अनन्या को सबके स्वभाव में परिवर्तन महसूस होने लगा. अब रोहित उसे बात बात पर पीटने लगा था. सास ससुर और ननद भी उसके साथ दुर्व्यवहार करने लगे थे सिर्फ ननदोई सपोर्ट करते पर उनकी भी हालत इस घर में ज्यादा अच्छी नहीं थी. सुजाता अपनी बच्ची को लेकर इण्डिया जाना चाहती थी लेकिन धीरे धीरे बच्ची को भी उससे दूर रखा जाने लगा उसे उसके माँ बाप से बात तक नहीं करने दी जाती. आये दिन रोहित उसे कभी सिगरेट से जलाता कभी उसे कपडे उतार उस पर बर्फ डाल देता. हद तो तब हो गयी जब उसका ससुर ही उस पर गलत नीयत डालने लगा. धीरे धीरे उसे पता लग गया कि रोहित पहले ही किसी के प्यार में था और उससे शादी कर चूका था उन्हें अनन्या से सिर्फ बच्चा चाहिए था. पूरा का पूरा परिवार डबल फेस था लोगों को उनकी असलियत पता ही नहीं चल सकी. अनन्या खुद को असहाय महसूस कर रही थी.एक दिन मौका पाकर अनन्या अपनी बच्ची को लेकर इन्डियन एम्बेसी पहुँच गयी लेकिन पता नहीं कैसे रोहित को पता लग गया वो भी पीछे पीछे पहुँच गया और एम्बेसी में डाक्टरी पेपर दिखाए कि अनन्या मानसिक रोगी है और उसे घर वापिस ले आया. हालात ये हो गए थे कि रोहित उसी के सामने अपनी गर्ल फ्रेंड से सम्बन्ध बनाता और तो और उसे धमकी देता कि अपने दोस्तों से रेप कराऊंगा तुम्हारा अब कोशिश की भागने की तो. नारकीय जीवन जीते हुए जैसे तैसे छ महीने बीत गए थे ना तो अनन्या की बात उसके माँ बाप से करवाई जाती ना ही अब उसे उसकी बेटी से मिलने देते एक दिन रोहित ने बड़े प्यार से पूछा तुम इण्डिया वापिस जाना चाहती हो ? अनन्या खुश हो गयी. “मैं खुद तुम्हे और बच्ची को छोड़कर आऊंगा पर तुम कुछ बताना मत वहां कि यहाँ क्या हुआ बीजा के पेपर हैं कहकर रोहित ने कुछ पेपर साइन कराये और चला गया .
नहीं नहीं बताउंगी आप प्लीज मुझे छोड़ आइये” अनन्या उसके सामने हाथ जोड़ने लगी .
नियत दिन अनन्या और रोहित निकले, बच्ची रोहित की गोद में थी. आज अनन्या बहुत खुश थी वो सोच रही थी एक बार इण्डिया पहुँच जाऊं फिर कुछ भी करके अपनी बच्ची को पाल लुंगी. अब कभी वापिस नहीं आउंगी. वो प्लेन में बोर्ड हो गयी लेकिन ये क्या! रोहित नजर क्यों नहीं आ रहा वो बद्वाहस हो गयी लेकिन फ्लाईट उड़ने का वक्त हो गया था. उसे उतरने की अनुमति नहीं मिली रोती कलपती अनन्या आखिरकार अकेली दिल्ली पहुंची और वहां से टेक्सी से अपने घर. दरवाजे की घंटी बजी तो अनन्या की माँ ने दरवाजा खोला तो एक बार तो आँखों पर भरोसा नहीं हुआ इतनी कमजोर सी लुटी सी हालत में उबकी बेटी खड़ी है. अनन्या उनसे लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया और जब उसकी कहानी सुनी तो उनके पैरों तले की जमीं खिसक गयी थी.पिता ने और भाइयों ने हिम्मत बधाई वो बहुत गुस्से में थे नहीं छोड़ेंगे हम उस कमीने को कोर्ट में घसीटेंगे अदि अदि
पर अनन्या पूरी तरह टूट चुकी थी .
एम्बेसी के द्वारा उन पर केस किया गया कई पत्र भेजे गए कई साल केस चला जिसका जवाब मिला कि अनन्या खुद तलाक लेकर अपनी मर्जी से आई है और अपनी बेटी की कस्टडी उसने खुद रोहित को दी है. अनन्या से बीजा के पेपर के साथ धोखे से सभी पेपर साइन करवा लिए गए थे. अब वो पूरी तरह बर्बाद कर दी गयी थी.ना तो उसको बेटी मिली ना ही पति से कोई पैसा मिला दो साल में मानो वो दो जन्म देख चुकी थी. जीने की चाहत ख़त्म हो चुकी थी. घरवालों ने जैसे तैसे समझा बुझा कर आगे पढाया आज बीस वर्ष बीत चुके हैं अनन्या खुद का बिजनेस करती है. उसके पास सब कुछ है पर आज भी वो सिर्फ अपनी बेटी को मिलने के लिए तरसती है कभी फेसबुक तो कभी गूगल पर उसकी तलाश करती है. वो एक बार अपनी बेटी को देखने के लिए तरस रही है. उन लोगों ने सुजाता की फेमिली से भी सारे रिश्ते तोड़ लिए ताकि उनकी खबर अनन्या तक ना पहुंचे. और अनन्या के माँ बाप खुद को दोषी मानते हैं एन आर आई लड़के की चाहत ने आज उनकी बेटी को कहीं का नहीं छोड़ा था.
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अर्चना चतुर्वेदी , ई 1104 आम्रपाली जोडिएक सेक्टर 120 नॉएडा २०१३०७
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कविता -
प्रतिरोध
माधव नागदा
- अकादमी से पुरस्कृत वरिष्ठ कवि
चिड़िया
पहचानती है अपना दुश्मन
चाहे वह
बिल्ली हो या काला भुजंग
वह
जिस चोंच से
बच्चों को चुग्गा चुगाती है
और
किसी लुभावने मौसम में
चिड़े की पीठ गुदगुदाती है
उसी चोंच को
हथियार बनाना जानती है
आभास होते हुए भी
कि
घोंसले में दुबके बच्चे
पंख उगते ही
उड़ जायेंगे फुर्र से
अनजानी दिशाओं में,
आता देख
भयंकर विषधर
चिड़िया टूट पड़ती है उस पर,
जान जोखिम में डाल
करती है दर्ज
अंतिम दम तक
अपना प्रतिरोध|
भविष्य में नहीं
वर्तमान में जीती है चिड़िया
इसीलिए हारकर भी
हर बार जीतती है चिड़िया०००
(२)
बचा रहे औरत का चिड़ियापन
मौसम आ गया है
फिर से
पत्नी और चिड़िया के बीच
नोक-झोंक का,
पत्नी
घर संवारने की जिद्द में
उजाड़ देती है घोंसले
चिड़ियां घर बसाने की आकांक्षा में
बिखेर देती है
पत्नी का झाड़ू
और
गूंथ देती है तिनका-तिनका
किसी रोशनदान, आले या अलमारी की
ऊपरवाली ताक में|
चिड़िया को नहीं मालूम
कि
इन सबका कोई मालिक भी है
वे तो सारी दुनिया को
अपना समझती हैं
और अचंभित होती हैं
कि कोई क्यों उन्हें
अपनी दुनिया से
बेदखल कर देना चाहता है|
एक दिन
छिटककर बिखर जाता है
पत्नी के हाथ से झाड़ू
चिड़ियां बेखौफ़ चुनती हैं तिनके
आले, रोशनदान में
बस जाती हैं बस्तियाँ
पत्नी
टुकुर-टुकुर ताकती है रोशनदान को
और प्रमुदित होती है
सुनकर चीं चीं कलरव|
मुझे किसी
दुरभिसंधि की बू आती है
मेरी हैरानी भाँप
पत्नी
दीवार पर टँगे कैलेन्डर को
एक पल
तिरछी नजर से देखती है
फिर
छिपा लेती है मुँह मेरे सीने में
(जैसे कोई चिड़िया स्वयं को घोंसले में)
कैलेन्डर पर
एक शिशु की
भोली मुस्कराहटों के
इन्द्रधनुषी रंग छितरे हुए हैं|
पत्नी की आंखों में
फुदक रही है मासूम चिड़िया
वही
सर्वव्यापी अपनत्व
वे ही मुलायम डैने
आकाश को माप लेने का
वैसा ही हौसला;
सोचता हूं
बचा रहे औरत का चिड़ियापन
बची रहेगी दुनिया |
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लाल मादडी, नाथद्वारा –राजस्थान
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शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
कविता –
जियूँ कितना !
जिन्दगी इतना बता दे !!
उमर से उकता गया हूँ
दर्द की संवेदना को
आँसुओं का घर मिला है
सर्जना के कंठ को प्रिय
कोकिला का स्वर मिला है
पर विवशता की गुफा में
हो विवश ढुकता गया हूँ
भूख के प्रवचन करीबन
अंत तक सुनता रहा हूँ
जो मिली धुनकी जनम की
रात-दिन धुनता रहा हूँ
मोह-माया के अयन में
बेवजह रुकता गया हूँ
सांत्वना की डगर में कुछ
शांति के घोड़े चुने हैं
साधना की बस्तियों में
कष्ट के कोड़े चुने हैं
पीठ पर था बोझ इतना
धनुष सा झुकता गया हूँ
संगमरमर के शहर का
दूर है संगीत अब तक
अक्षरा है लिख न पायी
साँझ का नवगीत अब तक
अवसरों के मोड़ पर हर
अबुझ बन चुकता गया हूँ
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शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
'शिवाभा' ए-२३३ गंगानगर
मेरठ-२५०००१ (उ.प्र.)
दूरभाष- ९४१२२१२२५५
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व्यंग्य कथा
प्रश्नों के घेरे में सफ़र
- डॉ. सुधाकर आशावादी
-व्यंग्यकार
दोनों सफर में थे।
टीन एजर्स भी नहीं, जो कल्पनाओं में ही जी रहे हों।
दो यात्रियों वाली सीट थी,सो किसी तीसरे के दखल का प्रश्न ही नहीं था।
युवक ने प्रश्न किया - ' कहीं आप वो तो नहीं ?'
युवति वही थी , सो बिना विलम्ब के उसने प्रतिप्रश्न किया - 'आपने कैसे पहिचाना ?'
'मैंने कॉलिज कैम्पस में आपके पोस्टर देखे थे, सो पहिचान लिया , वैसे भी कौन होगा , जो सेलिब्रिटीज को नहीं पहिचानेगा।'
बातों का सिलसिला यूँ प्रारंभ हुआ। दोनों में से किसी को ऐसा प्रतीत ही नहीं हुआ का यह उनकी पहली मुलाकात है। वह उसके इस अंदाज़ से प्रभावित हुई। पचपन किलोमीटर का सफर कब समाप्त हो गया ,पता ही नहीं चला। दोनों ने अपने अपने घरों की ओर प्रस्थान किया, किन्तु आकर्षण दोनों ओर से बराबर था। वह उसका नाम पहले से ही जानता था तथा अपना पूर्ण परिचय वह भी दे चुका था। दोनों आपस में अजनबी नहीं रह गए थे। फिर दोनों का मिलना जुलना प्रारंभ हुआ। पहले ही सुनिश्चित कर लेते थे, कितने बजे किस बस से गंतव्य के लिए निकलना है , कहाँ मिलना है, कब लौटना है। संचार क्रांति भी इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही थी।
सुमित ने रिया को जीवनसंगिनी बनाने के स्वप्न देखने शुरू कर दिए। उसकी आँखों में सिर्फ रिया का चेहरा ही जैसे रम गया हो। वह रिया की पारिवारिक स्थितियों के अन्वेषण में जुट गया। जानकारी कराई कि रिया के पिता कैसे स्वभाव के हैं, वे इस सम्बन्ध को स्वीकार करेंगे भी या नहीं। रिया के परिवार में अन्य कौन कौन हैं ? रिया को अपनाने के लिए किस प्रकार के प्रयास किये जाएं, जो रिया आँखों से उतर कर अंक में समा जाए।
रिया भी सुमित के परिवार के संदर्भ में जिज्ञासु हो गई। सुमित के परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति किस प्रकार की है ? क्या सुमित का परिवार भी सुमित की भांति आधुनिक उन्मुक्तता में विश्वास रखता है ? परिवार में स्नेह और सद्भावों की क्या स्थिति है ? सुमित ने एक सुलझे हुए व्यक्ति की तरह रिया की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए परिवार की सच्चाई उगल दी. कि माँ और पिताजी में सदैव अनबन रहती है। धन की कोई कमी नहीं है। परिवार में दो भाई और एक बहिन है। बहिन सबसे बड़ी है। उसकी आयु भी कम नहीं है। उसके विवाह हेतु अनेक प्रयास किये जा रहे हैं, किन्तु सफलता नहीं मिल पा रही है।
रिया की आयु भी विवाह योग्य है, सुमित अडिग है कि विवाह उसी से करेगा लेकिन शर्त एक है कि पहले उसकी बड़ी बहिन का विवाह हो , तभी वह सर पर विवाह का सेहरा बांधेगा। इसमें रिया को भी आपत्ति नहीं है, मगर रिया की भी शर्त है - शादी के उपरांत अनावश्यक बंधन नहीं सहेगी। अपनी उन्मुक्त जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं करेगी। सासू माँ यदि झगड़ालू हुई, तो उनकी एक न सुनेगी। सुमित को उसकी शर्त मंजूर है, फिर भी वह चाहता है कि परिवार में रिया उसके परिवार में आकर सामंजस्य बना कर रहे। समय द्रुत गति से बढ़ रहा है। सुमित और उसका परिवार बेटी के विवाह के लिए तनिक भी चिंतित नहीं है। तीस बरस की अवस्था पूर्ण कर लेने पर भी वर पक्ष में कोई न कोई कमी निकालकर विवाह सम्बन्ध तय करने से पीछे हट रहा है। कहीं लड़का अच्छा मिल रहा है, तो उसकी पारिवारिक स्थिति आड़े आ जाती है, कहीं परिवार उपयुक्त है तो लड़का कन्या के योग्य प्रतीत नहीं होता। कन्या ने बीडीएस की उपाधि प्राप्त की है, किन्तु व्यावहारिक रूप से वह दंत चिकित्सा के कौशल से वंचित है। बिना रूचि के उसे यह उपाधि दिलाई गई है निजि डेंटल कॉलिज से। उस समय उसके कुछ सीनियर्स ने उसके सम्मुख विवाह हेतु प्रस्ताव रखा भी था, किन्तु परिवार को प्रस्ताव पसंद थे , पैसे की चमक के सम्मुख डेंटल सर्जन का कद कुछ बौना प्रतीत हो रहा था , उसके परिवार को। परिवार उसके लिए प्रशासनिक अधिकारी वर ढूंढना चाहता था। जैसे जैसे उसकी आयु बढ़ती गई , वैसे वैसे उसका शरीर भी बेडोल होना प्रारंभ हो
गया तथा वर की व्यावसायिक प्राथमिकताओं का कद भी घटना शुरू हो गया। रिया के स्वप्नों का राजकुमार आखिर कब तक अपने पद पर आसीन रहता। वैचारिक धरातल पर रिया को ऐसा प्रतीत होने लगा कि कहीं वह सुमित के प्रेम में छली तो नहीं जा रही। विवाह के सम्बन्ध में रखी गई शर्त के अंतर्गत समयसीमा तो सुनिश्चित थी ही नहीं। साल दर साल तीन साल केवल आश्वासनों की बलि चढ़ गए। समस्या का समाधान ही नहीं निकला। सुमित भी तो विवश था। जब तक घर में बड़ी बहिन अविवाहित हो, छोटा भाई विवाह की कल्पना भी कैसे कर सकता है।
रिया किसी भी परिस्थिति में समझौता करने के स्थिति में नहीं तो उसने सुमित पर विवाह हेतु दवाब बनाना शुरू किया - 'आखिर कब तक यूँ ही प्रतीक्षा की जाती रहेगी। यदि समाज सुमित के परिवार पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है,तो रिया का परिवार इससे कैसे अछूता रह सकता है , कि विवाह योग्य होने पर भी उसके लिए वर की तलाश क्यों नहीं की जा रही है ?' सुमित भी लम्बी प्रेम प्रक्रिया से ऊबने लगा , सो नई नई शर्ते खुलकर व्यक्त करने लगा - 'पहले मेरी माँ है बाद में कोई और है, माँ का कहना है यदि रिया इस घर में बहू बनकर आई, तो वह उसे नहीं स्वीकारेगी।' बहुत दिनों बाद सुमित को अपने श्रवण कुमार होने का भान हुआ है। वह अपने आप को माँ का आज्ञाकारी सिद्ध करने पर तुला है। निसंदेह रिया के लिए यह अकल्पनीय स्थिति है, यौवन के तीन वर्ष उसने केवल आश्वासन की बलिवेदी पर स्वाहा कर दिए है। रिया के सम्मुख सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह यही है कि वह क्या करे ? सुमित के आश्वासनों का स्मरण सुमित को कराती रहे या अपने सुखद दाम्पत्य पथ की तलाश में नया सफर शुरू करे। आधुनिक परिप्रेक्ष्य ने यही तो सौंपा है रिया सरीखी युवतियों को।
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शास्त्री भवन , ब्रहमपुरी , मेरठ – 250002
आपकी ई पत्रिका के दोनों अंक रचनाकार में देखे और प्रकाशित रचनाओं का रसास्वादन भी किया.आप का यह अभियान निस्संदेह काबिले तारीफ़ ही नहीं, काबिले गौर भी है.बड़ी अहम् बात ये कि अंग्रेजी के बदते प्रभाव के इस दौर में इस माध्यम से हिंदी की सेवा और उसके सत्साहित्य में वृद्धि होगी.अच्छी रचनायें और रचनाकार सामने आएंगे. आप ने जो पत्रं-पुष्पम् का विधान रखा है, वह तो इस माध्यम पर एक नई शुरुआत होगी. मेरी शुभकामनायें!सादर नमन्!
जवाब देंहटाएंआपकी ई पत्रिका के दोनों अंक रचनाकार में देखे और प्रकाशित रचनाओं का रसास्वादन भी किया.आप का यह अभियान निस्संदेह काबिले तारीफ़ ही नहीं, काबिले गौर भी है.बड़ी अहम् बात ये कि अंग्रेजी के बदते प्रभाव के इस दौर में इस माध्यम से हिंदी की सेवा और उसके सत्साहित्य में वृद्धि होगी.अच्छी रचनायें और रचनाकार सामने आएंगे. आप ने जो पत्रं-पुष्पम् का विधान रखा है, वह तो इस माध्यम पर एक नई शुरुआत होगी. मेरी शुभकामनायें!सादर नमन्!
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