तू मेरी बात नहीं मानता, तो मैं जिंदगी में फिर तुझसे बातें नहीं करूंगी, गैसकाण्ड की रात मौत उसे निगल लेगी, यह, काकी जानती थी 2 दिसम्बर 1984 ...
तू मेरी बात नहीं मानता, तो मैं जिंदगी में फिर तुझसे बातें नहीं करूंगी, गैसकाण्ड की रात मौत उसे निगल लेगी, यह, काकी जानती थी
2 दिसम्बर 1984 की शाम 5 बजे की बात है, मैं तब भोपाल कोर्ट में अपना काम निपटाकर छोला स्थित लोकोशेड रेल्वे कालोनी में काकी के पास रूका था। काकी को बताया फिल्म देखने जा रहा हूं वहीं से घर चला जाऊगा। काकी ने मेरा टिफिन देखा, मुझे समय नहीं मिलने से मैं रोटी नहीं खा सका। वह नाराज हो गयी कि समय पर खाना क्यों नहीं खाता और झट कोयले की सिगड़ी सुलगाकर एक गिलास दूध गरम कर मेरे हाथ में रखा और दो रोटी ले आयी । मेरे टिफिन की रोटी खाली कर उसे मॉज कर टिफिन मेरे बेग में रख दिया।मैंने रोटी खायी तभी काकी ने बताया कि गोपाल जीजा और दो भांजिया भी आयी है। मैंने रोटी खा चुका तब काकी ने कहा कहा जा रहे हो, मैंने बताया मुगले-आजम फिल्म देखूंगा और घर पहुंचकर कल जल्द आऊगा बहुत और कोर्ट में जितना काम छोड़ा है उसे पूरा करूंगा। काकी ने कहा जब आफिस में काम छोड़ा है तो घर क्यों जा रहे हो कल शाम को चले जाना आज रात मेरे पास रूक जाओ परन्तु मैंने उनकी यह बात नहीं मानी और घर (होशंगाबाद) को निकल आया .. दरवाजे पर छोड़ने आई काकी ने रुआंसा होकर कहा ...ठीक है तू मेरी बात नहीं मानता तो में अब तुझसे जिन्दगी में कभी बात नहीं करूँगी ...मैंने जल्दी से जूते पहने और काकी को उल जुलूल बातें न करने के लिए ताना देते ही घर से निकल पड़ा ...कुछ कदम चलने के बाद मन हुआ आज की रात काकी की बात मान ली जाए ..मैं इसी उधेड़बुन में गूंजबहादुर सिनेमा में मुगले आजम फिल्म देखने जा पंहुचा ...मन काकी के पास था ..फिल्म में नहीं लगा ...प्यार किया तो डरना क्या ...इस गाने को सुनकर बाहर निकला और काकी के पास पहुंचता कि टाकीज के बाहर एक पहचान के व्यक्ति मिल गए जो होशंगाबाद आ रहे थे ...मैं उनकी गाडी में सवार हो होशंगाबाद आ गया। मुझे आज दिन भर कोर्ट में मिलने आने वाले मित्रों की बहुत खुशी थी। देवी पडहार के बेटे मोती की बारात सीहोर को निकली थी तो कुछ बराती मित्र मुझसे कोर्ट में मिलने आ पहुंचे। मैंने सभी को कोर्ट की कैंटीन में नाश्ता कराया, तब मेरे पास पैसे नहीं थे और पहली बार कोर्ट की कैंटीन में मेरे नाम 68 रूपये की उधारी हुई थी। जिसे अगले दिन देने की बात के कारण रहा कि मैं काकी से पैसे लेने की बजाय घर होशंगाबाद की ओर निकला था।
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गैसकाण्ड की उस रात को दबे पॉव धीरे धीरे आने वाली मौत का एहसास काकी को पहले ही हो गया था तभी उसने मुझे रोकने का प्रयास किया यह मुझे अगले दिन सोचने को विवश होना पड़ा जब सुबह पिताजी अपने मरफी रेडियो पर समाचार सुन रहे थे जिसमें बताया गया कि भोपाल में गैस लीकेज से कई मौत हो गयी, और कई लोग घर छोड़कर भाग गये। समाचार में जैसे ही छोला रोड़ सहित आसपास के मोहल्लों में गैस से प्रभावितों और मरने वालों की खबरों का विस्तार से बताना शुरू हुआ वहीं रेल्वे कालोनी लोकोशेड सहित इब्राहिमपुरा, जुमेराती आदि अनेक मोहल्लों में इसके असर की बात आयी। समाचार सुनकर मन किसी अनहोनी की आशंका से भर गया। मझले काका काकी रोने लगे कि भाभी का क्या हुआ होगा बस मुझे रात को काकी द्वारा रोके जाने और जिद करने की बात याद आ गयी और मैं तत्काल भोपाल की ओर निकल पड़ा। मन आशंका से रोने लगा था कि पता नहीं काकी और उनके पास घूमने पहुंची मेरी दो भांजी और जीजा जी कैसे होंगे ...होशंगाबाद से भोपाल जाते समय कई बार लोगों ने रोका ,,मना किया मत जाओ ..ओबेदुल्लागंज में जिस टेक्सी से गए थे उसने मना कर दिया ...वहां से 4 घंटे तक ट्रेन का इंतजार किया ...लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी ...एक पुलिस के अधिकारी को बताया तो उसने हबीबगंज छोड़ देने का कहकर मदद की ...वहां से में रोशनपूरा पंहुचा और एक रिश्तेदार से स्कूटर ली ..पेट्रोल डलवाकर मैं काकी के पास पंहुचा जरुर था ...पर न वहां काकी मिली ...न उनका पता चला ..घर का सारा कीमती सामान गायब था। काकी जी संतोषी माता की भक्त थी और उन्होंने 7 किलो चांदी का छोटा सा मंदिर और चांदी की ही संतोषी माता की मूर्ति थी ...घर में सारा सामान चोरी हो गया था ...कुछ कपडे और बिस्तर बचा था ...में पुलिस थाने रिपोर्ट करने और काकी की जानकारी के लिए भी गया था ...पर कोई मदद नहीं मिली ..काकी को तलाशने का मेरा अंतिम प्रयास शमशान घाट था ...जहां का नजारा देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए ...लाशों को ऐसा अम्बार ...मुझे चक्कर आने लगे ...तबीयत ख़राब हो गई ...और मैं बीमार ही काकी की लाश तक के दर्शन नहीं कर सका ...काश पता नहीं क्यों ...काकी ने उसी रात को चन्द घंटों पूर्व क्यों कहा था की में तुमसे जिन्दगी में कभी बातें नहीं करुँगी ..काकी की मौत से पहले कहे गए उनके ये शब्द .मुझे अन्दर तक झकझोर रहे थे...जो आज भी मेरी आत्मा में आंदोलित करते हैं ...
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मेरी भोपाल वाली काकी के जीवन से जुडी बातें करने आज भी रूलाती है। काकी और काका जी की एक बेटी थी और वे रेल्वे में नौकरी करते तथा भोपाल यार्ड में रेल्वे कालोनी में रहते थे। उनके बेटा नहीं था तो वे मुझे मन ही मन अपना बेटा मानते थे और मेरे बालपन में ही उन्होंने मुझे 1974 में गोद लिया था...मैंने 3 वर्ष काका जी के साथ गुजारे. बाद में परिवार में किसी बात को लेकर मुझे भोपाल नहीं जाने दिया गया ...पर काका जी जब भी आते में उनके साथ भोपाल चला जाता ...उन्होंने मुझे दिल्ली, इन्दौर, झाँसी, जैसे कई शहरों की सैर कराई। तुलाराम मेरे बाबा थे जिनके बडे़ बेटा किशनलाल जो मेरे काका थे और भोपाल रेल्वे में नौकरी करते थे और एक बेटी थी, तुलाराम बाबा से किसी बात से नाराज होकर काकाजी उनसे दूर हो गये थे, परन्तु बाबा चाहते थे कि उनकी नातिक का व्याह वे करें और उन्होंने 1978 में विवाह कर दिया तभी से भोपाल में काका जी और काकीजी अकेले हो गए और मुझे बुलाते और अपनी परेशानी कहते .चूंकि उन्होंने मुझे पुत्रवत स्नेह दिया और उन्होंने हमेशा मुझसे कहा कि वे नौकरी छोड़कर तुम्हें दे देंगे लेकिन संयोग 1982 में काकाजी असमय ही सबको छोडकर चले गये।...काकी ने मुझे खूब मनाया कि मैं काकाजी की नौकरी पर चला जाउं पर परिवार में चल रहे मतभेदों के कारण ऐसा न हो सका और काकी ने काका जी की नौकरी कर ली ...2 दिसम्बर 1984 की वह कालरात्रि है जब काकी गैस रिसाव पर हुए मौत के तांडव में समां गई ...उनके साथ ही मेरी दो भांजी थी बे भी नहीं बच सकी. आज भी पूरा परिवार इस बात को लेकर दुखी रहता है कि काश इस घटना के बाद काकी जी और भांजियों का नश्वर शरीर का उचित क्रियाकर्म कर देते,उनके दर्शन हो जाते, पर भाग्य की विडम्बना रही कि यह अवसर समय ने हमें नहीं दिया। जब भी 2 दिसम्बर की यह रात आती है ...मुझे मेरी काकी और मेरी ये भांजिया बहुत रुलाती है और काकी द्वारा घर पर रूकने के आग्रह के बाद मैं होशंगाबाद आ गया, इसका दर्द झकझोरता है;; ; काश में उस दिन काकी की बात मान लेता और भोपाल में रूक जाता तो हो सकता है कि जानलेवा गैस से मैं काकीजी और भान्जियों को बचाकर सुरक्षित ले सकता था, पर समय ने जो तय किया था वह दर्द आज भी बना हुआ है।
आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार,
सिटीपोस्ट आफिस के पास, उर्मिलि किराना गली, मोरछली चौक होशंगाबाद
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