पराक्रम-दिवस ये अमिट प्रहार है न जाति से न धर्म से ये वीरों की ललकार है। ये अमिट प्रहार है। निकल पड़े जांबाज अपने सीने पे उठा अब ज्वा...
पराक्रम-दिवस
ये अमिट प्रहार है
न जाति से न धर्म से
ये वीरों की ललकार है।
ये अमिट प्रहार है।
निकल पड़े जांबाज अपने
सीने पे उठा अब ज्वार है।
लेंगे हर शहीद के खूं का बदला
अब यही यलगार है।
ये अमिट प्रहार है।
कश्मीर है ताज सरज़मीन ऐ हिंद का
अख्श मिटा देगे पाक तेरी तब्दीर का
तू नापाकी करता बुजदिली
पीठ पीछे करता वार है,
सर कलम कर देंगे तेरा
वीरों का यही इकरार है।
ये अमिट प्रहार है
सीने में उठा ज्वार है
यलगार है यलगार है
ये अमिट प्रहार है।
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर
रावण
☆★★★★★
मन में बसा के रावण को तुम
व्यर्थ जलाने आओगे
अंहकार को जला कर देखो
राम दिलों में पाओगे।।
घर घर सीता तड़प रही है
कोनों के अंधियारों में
रावण घूम रहें है सारे
शहरों में बाजारों में
कुम्भकरण की नींद तुम सोये
राम राज कब लाओगे
मन के रावण को तुम मारो
राम दिलों में बसा लोगे
राम लखन की जोड़ी कहाँ अब
दोनों लड़कर आते है
भातृ प्रेम अब जहर बना
मर्यादा भी भूल जाते है
घर का भेदी विभीषण बनकर
कब तक आग लगाओगे।
मन के रावण को तुम मारो
राम दिलों में बसा लोगे।
नौजवां मेरे देश का अब बन्दूक भी है उठा रहा।
हनुमान अब लंका नही अयोध्या को जला रहा।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में
तुम कब तक बंटते जाओगे
मन के रावण को तुम मारो
राम दिलों में बसा लोगे।
@#अवि
अविनाश तिवारी
अवि के दोहे
★★★★★★
घड़ी
घड़ी घड़ी का फेर है,
मन में राखो धीर।
राजा रंक बन जात है,
बदल जात तकदीर।।
प्रेम
प्रेम न सौदा मानिये,
आतम सुने पुकार।
हरि मिलत हैं प्रीत भजे
मति समझो व्यापार।।
दान
देवन तो करतार है,
मत कर रे अभिमान।
दान करत ही धन बढ़ी,
व्यरथ पदारथ जान।।
व्यवहार
कटुता कभू न राखिये,
मीठा राखो व्यवहार
इक दिन सबे जाना है,
भवसागर के पार।।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा 495668
8224043737
[01/12 22:55] avinashtiwari: अवि के दोहे
★★★★★★★★★
मां
मां देवी का रूप है,
ममता की है खान।
करे तपस्या शिशु हित में
धरती की भगवान।।
पिता
पिता हृदय सागर बसे,
पर्वत सा जो गम्भीर।
कठोर बने पुत्र हित में
सँवार दे तकदीर।।
पुत्र/सुत
पुत्र वही जो मान रखे,
पिता की रखे लाज।
मर्यादा में काज करे
विवेकी हो विचार।।
भाई
भरत लखन सा भाई हो,
मन की जाने बात ।
अनुरागी जो चित रखे,
स्वार्थहीन व्यवहार।।
बहन
प्रेम की दीया बहना
अंगना जो दमकाय
बात बात में गुस्सा कर
मर्जी अपनी चलाय।।
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
#प्रेम पाश
प्रेम पाश बन जाये तो,
प्रेम नहीं अनुबन्धन है।
प्रेम उन्मुक्त नियंत्रण से,
प्रेम त्याग समर्पण है।।
प्रेम कोयल की मीठी बोली
प्रेम नैनों की आंख मिचौली।
प्रेम विमुक्त परिभाषा से,
प्रेम निर्वित अभिलाषा से।।
प्रेम बहना की रेशम डोरी,
प्रेम मां की सुरभि लोरी।
प्रेम पिता का अविरल भाग,
प्रेम पुत्र का चंचल राग।।
प्रेम नियंत्रण न माने,
प्रेम पाश को न जाने।।
प्रेम जीवन का अद्भुत गान,
प्रेम से हम बने इंसान।
प्रेम रिक्त तो शून्य संसार,
प्रेम जगत का है आधार।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
हाहाकार
★★★★★
हाहाकार मची चहुँ ओर पसरा सन्नाटा है,
कश्मीर से दिल्ली तक
बारूद का बोल बाला है।
भाषा की अभिव्यक्ति मिली,
ये टुकड़े भारत के करते हैं।
जिस थाली में ये खाते नापाकी
उसमें ही छेद करते हैं।
बहुत मांग चुके आज़ादी
अब इनको सबक सिखाना है,
पथ्थर बाजो को उनकी
आज़ादी दिलवाना है।
हाहाकार मचा दो सेना
देश द्रोही पर देर नहीं,
इनकी बोली हमारी गोली
गीदड़ों की अब खैर नहीं।
छुपकर ये घात लगाते,
कायरों की जमात है।
नाहर बनकर टूट पड़ो
इनकी क्या औकात है।
ये उन्मादी और फसादी
आतंक इनका ईमान है
अर्जुन बन कर टूट पड़ो
ये हमारा हिंदुस्तान है।
जो आंख उठा भारत पर
वो आंख निकाल कर जाएंगे
अबकी छेड़ोगे हिंदुस्तान
तो लौहार में तिरंगा फहराएंगे
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
उड़ान
★★★★★■
: हां मैने बन्द कर दिए वो रास्ते
जो संकीर्ण पुलियों से जाते थे,
हां मैंने बन्द किये दरवाजे
नाउम्मीदी के राह रोक जो जाते थे।
हां मनाही है मेरे लिए निराश होना
बिन प्रयास लिये हार बैठना
हां मनाही है यहां हार की
क्योकि यहां जय होती है
गिलहरी प्रयास की।
कि जब बून्द बून्द से सागर भरता है
तो व्यथित मन क्यों रोता है।
हौसला फौलादी और असीम तेरी
चाह हो।
बन जा परवाज तू सफल तेरी उड़ान हो।।
तुम ऐसे तो न थे
मिलते थे हंसकर तुम
सब को गले लगाते थे।
एक दूसरे की खुशियों में
जमकर महफ़िल सजाते थे।
राम भी तेरा रहमान भी अपनाया था।
ईद दीवाली क्रिसमस मिलके तूने
मनाया था।
आज फिर क्यों फर्क इंसानों में आया है।
राम रहीम के बंदों को अलग क्यों
बताया है।
तुम ऐसे तो न थे.......२
खेला करते रामलीला तुम देकर अजान भी
रखा करते कुरान रामायण के साथ भी।
कितने बैसाखी पर जमकर तुम नाचे थे
ईद के जश्न पर बताशे भी बांटे थे
क्यों जुम्मन अलगू से आज अलग होता है।
नफरत के बीच इनमें कौन बोता है।
मंदिर में रंगरोगन कलीम ने कराई है
मस्जिद की चराहदीवारी हरीश ने
सजाई है।
फिर आज कैसे ये जहर घुल रहे है।
क्यों अयोध्या में राम तम्बू में रहे हैं।
फर्क इंसान में ऐसे तो न थे
तुम तो ऐसे न थे..2
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
लालसा
★★★★★★★★★
कुछ कहि कुछ अनकही बात
रह गई है लालसा।
संपूरित होते सपने अधूरे
रह गई है लालसा।।
छूँ लूं अपरिमित गगन और मुठ्ठी भर आकाश,
किन्तु
रह गई है लालसा।
दीप बन हरने चली तमस
घनघोर रात की
स्वर्णिम सबेरा आएगा,
रह गई है लालसा।।
वट वृक्ष सा परिवार
खण्डित रिश्ते कुटित व्यवहार
रह गई है लालसा।
घुटती सांसे उजड़ता कानन
क्रांकीट का विस्तार फैलता
एक जाल
रह गई है लालसा
घटता पानी उछलती हयाएँ
उन्मुक्त बाजार बिकता ईमान
रह गई है लालसा।
सपनों के पूरे होने की
बातों के पूरे होने की
रिश्तों को सहेजने की
अंधेरा दूर करने की
उन्मुक्त सांस लेने की
है अधूरी लालसा
रह गई है लालसा
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
हमारा लोकतंत्र
★★★★★★★
कौन जीतेगा
लोकतंत्र का पर्व
जन का बल
बिकते वोट
खरीददार कौन
धन का बल
आशा अनन्त
उम्मीद है कायम
नया सबेरा
जन की सेवा
लोकतंत्र की जय
देश प्रथम
लोक का हित
मतभेद भुलाएं
कल की सोंचें
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
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