भारत का लोकतंत्र मैं भारत का लोकतंत्र जन गण मुझमें समाया है। संसद मेरा मंदिर जनता ने मुझे बनाया है। मैं गरीब की रोजी रोटी भूखों...
भारत का लोकतंत्र
मैं भारत का लोकतंत्र
जन गण मुझमें समाया है।
संसद मेरा मंदिर
जनता ने मुझे बनाया है।
मैं गरीब की रोजी रोटी
भूखों का निवाला हूँ,
मैं जनों का स्वाभिमान भी
भारत का रखवाला हूँ।
मैं जन हूँ जनता के खातिर
जनता द्वारा पोषित हूं
बन अधिकार जनता का मैं
पौधा जन से रोपित हूं।
ऐसे जनतंत्र को दाग लगाने
भेड़चाल तुम न चलना
मत बिकना कभी नोटों से
प्रजातन्त्र अमर रखना।
कहना दिल्ली सिंहासन से
ये जनता का दरबार है।
भूले से भी भरम न रखना
ये तेरी सरकार है।
अमर हमारा लोकतंत्र है
खुशियां रोज मनाते है।
ईद दीवाली वैसाखी क्रिसमस
मिलकर हम मनाते हैं।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा 495668
इन्तजार
रास्ते भी बंद हैं और बंदिशें हजार है।
आज भी और कल भी इंतजार है इंतजार है इंतजार है।
वक्त सिमटता रेत सा उजड़ा सा बाजार है।
आकांक्षाएं अपरिमित सपने
हजार है।
कल भी आज भी इंतजार है इंतजार है इंतजार है।
राजनीति निज हितों का साध्य
बन इठला रही,
धृतराष्ट्र दुर्योधनों के राह चलती जा रही
चक्रव्यूह में अभिमन्यु दुर्योधनी सेना से लड़ें
छल कपट छिद्र लोभ साधे
शकुनि पासे से भिड़े।
लूट रही द्रौपदीयाँ कृष्ण पर ऐतबार है
भीष्म शैया पर लेटे हैं बन्धित विचार है
कल भी आज भी इंतजार है इंतजार है इंतजार है।
अग्नि परीक्षा सीता की और कितनी बार हो।
कब तक इस युगों में राम का
वनवास हो
भरत नहीं लक्ष्मण नहीं भातृप्रेम मर रही,
शूर्पणखाएं ताड़कायें स्वांग धर के
घूम रहीं।
रामराज्य का स्वप्न क्यों नहीं साकार है।
कल भी आज भी इंतजार है इंतजार है इंतजार है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
: प्रेम अगन(हाइकू)
सरसों फूले
मन बहका है
बासन्ती प्रेम।
कर श्रृंगार
लजरत अंखिया
नैन अधीर।
कोयल कूके
आजा मेरे सजना
मन के मीत।
सुन मितवा
लगन तोसे लगी
करूँ जतन।
प्रेम अगन
बैरी बन पपीहा
आग लगावे।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
मां(हाइकू)
जीवन पथ
प्रेम और संघर्ष
दुलारा बेटा
मनमोहन
बलिहारि जाँऊ मैं
तेरी मुस्कान
मां हूँ मैं
लड़ूंगी भूख से मैं
ये अग्निपथ
समर्पित है
तुझ पे ये जीवन
राज दुलारा
©अवि
अविनाश तिवारी
जांजगीर चाम्पा
कोई तो है
*********
बीज से पौधा फिर बीज
क्रम है निरन्तर
नियंता भी है
सुनो कोई तो है।
सुख और दुख अंतर्निहित
मन के भाव द्वन्दित
इन्हें सुलझाता है कौन
सुनो कोई तो है
नदिया से गागर गागर में सागर
बूंदों का बनना
फिर नीचे गिरना
क्रम अनवरत
कोई तो है
जीवन और मृत्यु
चिर निरन्तर अनुक्रम
पाप और मोक्ष
कर्मो का निर्वहन
संतृप्त की खोज
आत्म अन्वेषण
सुनो कोई तो है
आत्मा परमात्मा
परम् सुख जीवात्मा
मोह का बन्धन
प्रेम अनुबन्धन
बंधे है सब नियति की डोर
कोई तो है
तो क्यो नकारते
तुम अदृश्य सत्ता
क्यों झुठलाते
निर्विकार रूप
सत्य असत्य की कसौटी
परमेश्वर का सत
हां यही है यही है
अनादि अनीश्वर का रूप
हां कोई तो है
कोई तो है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
राधिका श्याम बिन
######$$$$##
ऋतु बसन्त श्रृंगार बिन
जल बिन मछली स्वांस बिन
हिय की धड़कन स्वांस बिन
पंछी कलरव की गूंज बिन
राधिका कैसे श्याम बिन।
नैन अधीर छलकत नीर
काहू न बुझे मन की पीर
बढ़त घटत जिय धड़कत है
श्याम दरस को मन तरसत है।
सुनहु सखी सुध बुध मैं खोवत
चित न लगी मन बैचेन
कैसे रहे राधिका श्याम बिन।
गोपी विलोकत वाट निहारे
यमुना तट की घाट पुकारे
सकल धेनु मुकचित उचारे
आजा किशन नन्द दुलारे
राधा खड़ी जोहत ताकत
रहे दिन रैन।
कैसे रहे श्याम लुटे सुख अउ चैन
धीरज नही धरत मन मे
टीस बढ़ी जु भारी
हुक उठी उर अंतर ज्वाला
आजाओ बाँके बिहारी।
सुधि ले लीन्हो मन के मोहन
कहत हैं व्याकुल नैन
ले गयो चितचोर चैन
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
वर्तमान पता प्रतापपुर
सूरजपुर
गौरव(हाइकू)
********
गर्व है हमे
कारगिल विजय
जय जवान।
अद्भुत सौर्य
जय हिंद की सेना
शेर ए हिन्द।
मां के लाल
नमन है तुझको
वीर सपूत।
तेरी प्रतिज्ञा
अखण्ड हो भारत
लिया शपथ।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर
चाम्पा
[17/12 17:14] avinashtiwari:
राहत
......
मेघ बरसे
अनचाही बारिश
टूटती आस
खड़ी फसल
हो रही है बर्बाद
रोता किसान
खेत हैं सूखे
भूख कौन मिटायें
बंजर धरा।
रस्सी के फंदे
शाहकारों का कर्ज
लम्बी गर्दन।
कर्ज से मुक्ति
शासन की राहत
कृषक हंसा।
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
[17/12 17:39] avinashtiwari:
शून्यता से पूर्णता
अनन्त तुम्हारा विस्तार है।
सृष्टि के कण कण में विराजित
तेरा ही साम्राज्य है।
आख्यान तुम व्याख्यान हो
अपरिमेय संपूरित ज्ञान हो
हे अनादि अनदीश्वर तुम्ही
सांख्य विषय कला और विज्ञान हो।
सूत्र हो सूत्र धार हो
नियति तुम करतार हो
हो परिभाषित संचिता
अपरिभाषित तुम भरतार हो।
जग नियंत्रक परिपालक
संहारक प्राणवान हो
उदित जीव जीवात्मा
के बस तुम्ही आधार हो।
हूँ अबोध शिशु तेरा
मर्म न तेरा जान सका
आदि तुम अंत तुम
परम् सत्य न पहचान सका।
तुम नसों में बहते रुधिर
स्वांस और उच्छ्वास हो
रोम रोम में बसते प्रभु तुम
प्रतिपल मेरे पास हो
कण कण में निवास हो।
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
छत्तीसगढ़
सतनाम का दीप(दोहा)
****************
सतनाम का दीप जले ,
दूर करे जो अंधकार।
मानस तन अनमोल है,
सत जीवन आधार।।
एक माटी के सुत सभी,
सत सबकी पहचान।
आडम्बर में जो रहे,
नर है मरि समान।।
सादा जीवन जी मनुवा,
मत कर रे अभिमान।
मनखे मनखे एक रहो,
बने रहो इन्सान।।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
छत्तीसगढ़
COMMENTS