1.......प्रीतम कभी सूरज सिन्दूरी हो जाये सांझ की दुल्हन मांग सजाये कभी कोई झोंका हवा का कहीं से आ के प्रीतम का घूंघट उड़ाये चाँद यूं ह...
1.......प्रीतम
कभी सूरज सिन्दूरी हो जाये
सांझ की दुल्हन मांग सजाये
कभी कोई झोंका हवा का
कहीं से आ के प्रीतम का
घूंघट उड़ाये
चाँद यूं ही हर रोज नजर आये
सितारों की बारात में
हवायें आधी रात में
दुल्हन के मेहंदी गीत गायें
श्रंगार कोई फिर नया हो जाये
भोर का सूरज फिर सिन्दूर सजाये
प्रीतम के अधर पे लाली लगा
नया सूरज माथे पर
सुनहरी हो जाये
हवाओं में मस्त हो हर किरण
सांझ तक झूमे गायें
प्यार से प्रीतम की बांहों में
हर दिन मुझे ले जाये
सपनों से दूर
कोई सूरज नया सा
रोज ये आये
राजेश गोसाईं
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2.... मदहोशी
तेरी हर अदा पे मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
शर्माई लाल हुई मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
नींद में अंगड़ाई मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
शबनम में नहाई मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
सितारों की मांग मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
देखा माथे चाँद मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
नव यौवन श्रृंगार मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
पायल ये झंकार मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
मृगनैनों का प्यार, रुत सावन की बहार देख ये
उड़ती चुनरी , मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
अधर लाल गुलाबी गाल , काली घटा सम बाल
ये लचक मचक मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
कंचन काया चूडी छनन छन ये गजरे की खुशबू
चेहरे पे बालों से झांकती आँख लौंग लिशकारा
बेचैन मन तरसती निगाहें यूं तेरे ही मयखाने में
मदहोश हो कर मैंने गीत लिखा मैंने मीत लिखा
राजेश गोसाईं
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3... दिल्लगी
तू मेरे पास क्या बैठी आज
वक्त की हर शय गजल हो गई
देखा जो तिरछी नजर से
हर नजर आज गजल हो गई
अंग अंग अंगड़ाई लेता हुआ
शरमाई हुई रुत गजल हो गई
नीली आँखें तेरी झुकी झुकी
शराबी गालों पे गजल हो गई
हम क्यों जायें मयखाने आज
जाम तो तू खुद हो गई
पैमाना तेरे हाथ से लिये आज
होठों पे मेरे यह गजल हो गई
दीवारों का साथ छूटा साकी
तेरी दीवानगी मेरी नजर हो गई
दिल की लगी दिल्लगी में तू
आज दिल से दिलबर हो गई
राजेश गोसाईं
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4....मुस्कान
मैं बन के गीत आऊंगा
मैं प्यार के गीत गाऊंगा
बस तुम उदास न होना
अंधियारी जिन्दगी है
महफिल तो लगी है
मैं चराग बन आऊंगा
बस तुम उदास न होना
मेरी चिता पर लगेंगे
तेरे अश्कों के मेले
मैं तस्वीर से निकल
मुस्कान बन आऊंगा
बस तुम उदास न होना
राजेश गोसाई
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5...जखीरा
मैं टूट के ना बिखर जाऊं
उन यादों की हवा से
जो अतीत के झरोखे से
आ कर मुझे हिला देती हैं
जिन्दगी का पेड़ हरा भरा है
डाल डाल फल भरा पड़ा है
पंछियों की चहचहाहट से
दिल को सुकून मिल रहा है
फिर क्यों गुजरे जमाने की
हवायें मुझे आज ले जा रही हैं
वापिस उस ओर
यादों का जखीरा बन गया
एक नाम तेरा दिल में
लकीरों को मिटा कर लकीर
लगा देता हूँ दिन गिन गिन कर
पहला अक्षर तेरे नाम का
छोड़ देता हूँ , शायद तू आये
इसे भी मिटाने को
पर तेरी आहट का अहसास
हिला जाता है मुझे
तू आये ना आये, मिले ना मिले
कैसे रोक दूं इन हवाओं को
जो बीते हुये कल से आ कर
आज मुझे हिला रही हैं
भविष्य की नींव डगमगा रही हैं
राजेश गोसाईं
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6..* * उस दिन * *
मोहब्बत की किताब का
पहला पन्ना था उस दिन
जब हाथ बढ़ाया था मैंने
दिल छूने को उस दिन
टुकड़ों में बंट गया अरमान
बेचैन निगाहें थी उस दिन
आखरी पंक्ति की मौत में
बिछुड़ गयी जिन्दगी उस दिन
यादों की हवाओं में चिंगारी बन
जमाने में आग लगी थी उस दिन
बीते हुये लम्हों का कारवां गुजर गया
तस्वीरों पे धूल बन कर उस दिन
उदास हूँ पन्नों के फट जाने से
निराश भी बहुत था उस दिन
जिन्दगी मिल जाती जिन्दगी में
गर वो मिल जाती उस दिन
जमाना बीत गया देखे हुये उसे
हर मोड़ पे सदायें बिखर गई
हाथ दिल से बढ़ाया होता , रूह तक
काफिला यादों का रुक जाता उस दिन
रूह में तू ही तू , बस जिन्दा ही हूँ
पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक ही हूँ
हमसफर बन जाते हम , हम होकर
अरमानों की राख पे आशिया
ना बनता ...तुझसे बिछुड़ के ... उस दिन
/\
राजेश गोसाईं
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7......प्रेम पर्व
शहर में बरसात है
बिजली रूठ कर चली गई
आँधी तुफां की रात है
पानी आस पास है
मौसम मस्त खास है
अंधेरी यह रात है
गर्मी का विनाश है
ठण्डी हवा की आस है
चाय काफी की प्यास है
हरि हरि घास है
हरियाली भी साथ है
सुहाना सफर आज है
नहाई हुई रात है
प्रीतम का साथ है
प्रेम पर्व की बात है
राजेश गोसाईं
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8...झील सी आँखें
आँखों की झील में कहीं
आँखों से बात होगी
जो दिल से दिल मिलेगा
तो दिल की बात होगी
इन आँखों की मस्ती में कहीं
मस्त हो जाते हैं हम
जो कतरा शबनम मिल जाये
तो शबनम की बात होगी
इन आँखों की चाहत में कहीं
ढल ना जायें रातें
जो पूनम की रात होगी
तो रात की बात होगी
इन आँखों की रोशनी में कहीं
लड़खड़ा जाते हैं कदम
जो मयखाना ये खुलेगा फिर
तो पैमाने की बात होगी
इन आँखों की सीप में कहीं
छुपा लो हमे तुम
जो दिल को चैन मिलेगा
तो अश्कों की बात होगी
इन आँखों की गजल में कहीं
जम ना जाये महफिल
जो महफिल का रंग जमेगा
तो गीतों की बात होगी
तो प्रेम की बात होगी
राजेश गोसाईं
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9....अजनबी
दोस्ती तुम्हारी की चाह है अब भी
किसी निशा की चाँदनी में बैठ कर
बुनेंगे फिर हम नया
कोई सितारों का जाल
मैं गीत लिखूंगा तुम्हारा चाँद देख कर
तुम मुस्कुराना नैनों में मेरे ....फिर से
जब वैरी हुये थे हम दोनों तब भी
दोस्तों से कम ना थे हम अजनबी
तुम्हारी मुलाकात फिर लड़ाई की बात
बन्द पलकों के पीछे का सागर ताल
याद है सब मुझे आज तक ईर्ष्या तुम्हारी
जो तुम्हारे प्यार का सबूत थी शायद
मगर पानी का बुलबुला मात्र वो ख्वाब
पर आज मैं जानता हूँ तुम आओगी
फिर नई मुलाकात होगी
फिर से नई कोई बात होगी
लड़ाई में आँसुओं की बरसात होगी
पर तुम आओगी जरूर आओगी
किसी ठण्ड की अंधेरी रात में भी
या पूर्णमासी की चाँदनी में
तुम आओगी
फिर से अजनबी बनने को मेरी
आ भी जाओ अब पगली -अजनबी
इंतजार में है यह अजनबी
राजेश गोसाईं
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10....अक्स
तुम्हारे चाँद का कोई अक्स
अब भी मेरे दिल के
आईने में उतर आता है कहीं
तुम बहुत दूर हो मेरे से
मगर हर तरफ फिर भी
सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा
नजर आता है
नीले अम्बर की चादर में भी
तुम्हारा साया छुपा होता है
मगर हर ढलती सांझ को
तुम्हारा अलग ही रूप
उभर आता है
काले बादलों की ओट में भी
तुम कहीं सिमट के बैठी हो
मगर हवा का झोंका कोई
फिर तुम्हारा घूंघट
सरका जाता है
राजेश गोसाईं
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1..... यादों की शाम
यादों की शाम में
प्यार के गीत भरे
तेरे ही नाम में
प्यार के गीत भरे
आ जा के आँखों में
समन्दर हैं भरे भरे
यादों की ......
देखे यह रैना काली
नहीं दिल में चैना... मतवाली
तू ही बता दे क्यों
उदास हैं ये पल मेरे
मिलन को प्यासा है मन
यादों के बादल उमड़े
आ जा के आँखों में
समन्दर हैं भरे भरे
यादों की .......
शीतल पवन भी बनी अगन है
वक्त की चुभन भी बनी लगन है
पानी के दीप भरे
नैनों में प्रीत तरे
आ जा के आँखों में
समन्दर हैं भरे भरे
यादों की शाम में
तेरे ही नाम में
प्यार के गीत भरे
राजेश गोसाईं
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2... तुम्हारे प्यार में
तुम्हारे प्यार के मन्दिर में
दीप बन कर जल जाऊं मैं
तुम्हारे मन के आँगन में
प्रीत बन कर फल जाऊं मैं
जब से मिला है प्यार तुम्हारा
मीत बन के अमर हो जाऊं मैं
जग माने ना माने ,
हर रीत तोड़ के दौड़ आऊं मैं
आँखों ही आँखों में समन्दर पार
साहिल तुमसा पाकर , तर जाऊं मैं
जिन्दगी रौशन हो गई अब मेरी
काली रातों में फिर क्यों जाऊं मैं
खुशबु बन के गुलिस्तां में मेरे
बसन्त की तरह आये हो जब से
बाँहों को सावन में फिर से
हर बार झूला बना कर सजाऊं मैं
राजेश गोसाईं
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3......दीप
प्यार का कोई दीप जल जाये
तो मैं गीत गाऊं
दिल में जब कोई समा जाये
तो मैं गीत गाऊं
सावन रिमझिम संग गुनगुनाये
तो मैं गीत गाऊं
कोई बाँहों में भर कर शर्माये
तो मैं गीत गाऊं
चाँद चौंधवी का मन भाये
तो मैं गीत गाऊं
कोई पंछी कानों में चहचहाये
तो मैं गीत गाऊं
बिछुड़े हुये आज मिल जायें
तो मैं गीत गाऊं
रूठे हुये फिर मान जाये
तो मैं गीत गाऊं
"राजेश - 'का कोई मीत बन जाये
तो मैं गीत गाऊं
यह बोल कोई आवाज बन जाये
तो मैं गीत गाऊं
राजेश गोसाईं
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4....चाँद
यूं तांक झांक करता रहता है
यह चाँद की गन्दी आदत है
ये लुका छुपी खेल में रहता है
रात में इसकी बुरी आदत है
मैंने चाँद को समझाया बहुत है
मेघों ने आकर छिपाया बहुत है
पर्वत के पीछे जाने की आदत है
यह पेड़ों के भी संग बैठा रहता है
धरती पे इसको लाना मुमकिन नहीं
बच्चों के साथ खेलने की आदत है
चाँदनी रात में प्रीतम की बाँहों को
गले लगा यह मस्ती करता रहता है
भोर होने पे भी ये जोश में रहता है
अंधियारी रात में सोने की आदत है
यहाँ वहाँ सब जगह खेलता रहता है
होश में भी मदहोश करता रहता है
सितारे भी इससे नाराज रहते हैं
दूर हो कर टिम टिम करते रहते हैं
इसे रात को रूठने की आदत है
यह आसमां पे इतरा के रहता है
लुक छुप हर दिल में ये रहता है
बिंदी बन माथे पे लगा रहता है
इसे सुहागन बनाने की आदत है
फिर भी धोखे सबको देता रहता है
राजेश गोसाईं
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5...... धूल का गुबार
क्यों ढूंढते हो दिल की तस्वीर में मुझको
जहाँ ना यादें हैं किसी की ना किसी का है प्यार
सम्भाल लो इन निगाहों को जो जलाती हैं बार बार
इन अंगारों में ही तो पिघला था मेरा - तेरा प्यार
इक खामोश सी मजार का दीया
ना बना किसी का रोशन गुलजार
उजड़ी हुई तम्मनाओं के चमन में
बना मोहब्बत की फसल ए बहार
ना ढूंढो मुझे उन लम्हों में चिंगारी है जहाँ प्यार
राख का ढेर हूँ उड़ा देगी कहीं कोई बयार
अंत है उन चाहतों के सफर का अब
जिन्दगी की राह में
जहाँ , ना मैं नूर किसी का था
ना मैं किसी का प्यार
अंदाज ए सांसों का रुका हुआ काफिला
मिलेगा मुझमें सिर्फ धूल का गुबार
राह ए गर्दिशों में रहा हूँ
ढूंढ लेना सितारों में कहीं भी यार
राजेश गोसाई
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6....... करीब थी
लम्हा लम्हा थम गया जब वो मेरे करीब थी
मैं छू ना सका उसको जब वो मेरे करीब थी
इक मृगतृष्णा की भांति , अहसास हुआ था
वो बादल स्वाति नक्षत्र का बड़ा सुनहरा था
मैं चकोर ही बन गया जब वो मेरे करीब थी
मैं प्यासा ही रह गया ,जब वो मेरे करीब थी
तिरछी नजरों का जादू जो दिल पे चला था
उन जुल्फों में हो बेकाबू , इक तीर चला था
जब कातिल अदाओं पे घायल , मैं हुआ था
मैं मर भी ना सका था जब वो मेरे करीब थी
इन लम्हों में इक लम्हा ऐसा भी अजीब था
जब उसने मेरे से मेरे दिल का पता पूछा था
मैं बता ना सका उसको , तुफां जो अंदर था
वो मुस्कुरा के चली गयी जो बहुत करीब थी
इक उड़ती हुई खुशबू मिली इश्क की हवा में
बन्द मुट्ठी की रेत फिसलती हुई दिल जहां में
क्षितिज सम दूर खड़ी थी , जो मेरे करीब थी
इक लहर बन के बह गई , जो मेरे करीब थी
राजेश गोसाई
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7........गवाही
मेरे लिखे हुये खत में
सितारों की गवाही थी
ये चाँद भी जानता है
मैंने नींदे कितनी गवाई थी
स्याह रातों में मेरी
ये बड़ी तन्हाई थी
कभी आँखों में बस के
कभी दिल में तू समाई थी
बता दे इस कातिल को तू
कत्ल करने क्यों आई थी
मेरे लिखे हुये खत में
सितारों की गवाही थी
तुझे मैं रोज कहता था
खिली हैं तुम पे नूर की कलियां
कभी धार अलहड़ सी नदिया
कभी टुकड़ा चाँद का बन के
मेरे वास्ते आसमां से तू आई थी
मेरे लिखे हुये खत में
सितारों की गवाही थी
शबनम के मोती बिखरे
तेरे गुलाबी चेहरे पे
जुल्फ एक पगली सी आई थी
सितारों ने भी मांग तेरी जब ये सजाई थी
बागों में बहारें ले कर
बाहों में मेरी तू शर्माई थी
मेरे लिखे हुये खत में
सितारों की गवाही थी
राजेश गोसाईं
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8......नूर ए जहां
जब तक सूरज चन्दा चमके
चमके भारत हमारा
ये विश्व गुरू हमारा
ये हिन्दुस्तां प्यारा
बहती रहे सदा यहाँ पर
अमृत यमुना की धारा
बढ़ता रहे भाईचारा
इस गुलिस्तां में हमारा
बहे युगों युगों तक पावन गंगा
लहराता रहे हर दिल में तिरंगा
हो नभ में सबसे सुन्दर सितारा
ये भारत देश हमारा
हो खुशबू इस किसलय की
सजा रहे नन्दन वन ये सारा
जो नूर ए जहां है हमारा
ये मधुबन प्यारा प्यारा
राजेश गोसाईं
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9.......तिरंगा
युगों युगों तक लहरायेगा
ये तिरंगा हमारा
विजयी विश्व बन जायेगा
इक दिन भारत हमारा
होगा अमन शांति भाईचारा
बहेगी अमृत गंगा धारा
प्रेम चैन बंसी बजायेगा
इक दिन भारत हमारा
युगों युगों तक लहरायेगा
ये तिरंगा हमारा
होगा कोई ना पेट खाली
रोज होगी होली दिवाली
खुशहाल सब हो जायेगा
इक दिन भारत हमारा
रोजगार मिल जायेगा
उन्नत जन जीवन होगा सारा
विकास पथ पे चल जायेगा
इक दिन भारत हमारा
युगों युगों तक लहरायेगा
ये तिरंगा हमारा
राजेश गोसाईं
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10.........बे काबू
तेरे हाथ की लकीरों में
कुछ तो है जादू
ना मैं काबू ना तू काबू
कत्ल भी किया मुस्करा कर
होठों ने कातिल का ही,
हो बे काबू
ना मैं काबू ना तू काबू
नशे में भी निशाना हो गया
इन आँखों का
तेरी नजरों का है जादू
ना मैं काबू ना तू काबू
पर्दा हो गया बेपर्दा
तेरे बेपनाह प्यार का
गुनाहगार मैं या तू
ना मैं काबू ना तू काबू
राजेश गोसाईं
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रचनाकार में सभी वर्गों के लिए उपयोगी रचनाएं हैं।
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