. RAJESH MAHESHWARI 106, NAYAGAON CO-OPERATIVE HOUSING SOCIETY, RAMPUR, JABALPUR, 482008 [ M.P.] Email-authorrajeshmaheshwari@gmail.com जीवन...
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RAJESH MAHESHWARI 106, NAYAGAON CO-OPERATIVE HOUSING SOCIETY, RAMPUR, JABALPUR, 482008 [ M.P.] | Email-authorrajeshmaheshwari@gmail.com |
जीवन की सदी
बह रही सरिता
जैसे चल रहा जीवन।
तैरती वह नाव जैसे डोलती काया
दे रहा गति नाव को
वह नाव में बैठा हुआ नाविक,
कि जैसे आत्मा इस देह को
करती है संचालित
और पतवारें निरन्तर चल रही है
कर्म हैं ये
जो दिशा देती है जीवन को
कि यह जाए किधर को।
जन्म है उद्गम नदी का
और सागर में समाकर है समापन
शोर करती नदी पर्वत पर
उछलती जा रही है
और समतल में लहराती
शांत बहती जा रही है।
दुख कि जैसे करूण क्रन्दन
और सुख में मधुर स्वर में गा रही है।
बुद्धि-कौशल और अनुभव के सहारे
भँवर में, मँझधार में, ऊँची लहर में
नाव बढती जा रही है।
दुखों से, कठिनाईयों से
जूझकर भी साँस चलती जा रही है।
स्वयं पर विश्वास जिसमें
जो परिश्रमरत रहा है
लक्ष्य पर थी दृष्टि जिसकी
और संघर्षों में जो अविचल रहा है
वह सफल है
और जिसका डिग गया विश्वास
वह निश्चित मरा है।
उदय होगा सफलता का सूर्य
समाज दुहराएगा
आपकी सफलता की कथा
आप बन जाएँगें
प्रेरणा के स्रोत।
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आभार
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शिशु का जन्म हुआ
मन में प्रश्न उठा
हम किसके प्रति आभारी हों ?
माता-पिता के प्रति
जिनके कारण यह जीवन मिला।
वसुधा के प्रति
जो करती है शिशु का लालन-पालन।
ईश्वर के प्रति
जिसकी कृपा के बिना
संभव ही नहीं है
जन्म भी और लालन पालन भी।
विज्ञान तो कहता है
किसी के भी प्रति
आभार की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह संस्कार तो बस
क्रिया की प्रतिक्रिया है।
संतों का कहना
गुरू आपकी बलिहारी है।
इसलिये हम आभारी है
जन्मदाता माता-पिता के
पोषणकर्ता आकाश और धरा के
मार्गदर्शक गुरू के
और कृपा बरसाने वाले प्रभु के।
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अर्थ
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ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है
यह सृष्टि और सृष्टि में
सर्वश्रेष्ठ कृति है मानव
मानव जिसमें क्षमता है
सृजन और विकास की,
आविष्कार की और
समस्याओं के समाधान की
वस्तु विनिमय का समाधान था
मुद्रा का जन्म।
मुद्रा अर्थात् अर्थ
अर्थ में छुपी हुई थी क्रय-शक्ति
इसी क्रय-शक्ति ने
बाँट दिया मानव को
अमीर और गरीब में
अर्थ की धुरी पर
घूमती हुई अर्थव्यवस्था ने
निर्मित कर दी
अमीर और गरीब के बीच
एक गहरी खाई।
अमीर होता जा रहा है और अमीर
गरीब होता जा रहा है और गरीब
डगमगा रहा है सामाजिक संतुलन
असंतुलन से बढ़ रहा है असंतोष
असंतोष जिस दिन पार कर जाएगा अपनी सीमा
फैल जाएगी अराजकता और करेगी विध्वंस
हमारे सृजन और विकास का।
यदि कायम रखनी है अपनी प्रगति
जारी रखना है अपना सृजन
तो जगानी पडेगी सामाजिक चेतना
पाटना पडेगी अमीर और गरीब के बीच की खाई
देना होगा सबको आर्थिक विकास का लाभ।
पूरी करनी होगी सबकी भौतिक आवश्यकताएँ।
हर अमीर दे किसी गरीब को सहारा
बनाए उसे स्वावलंबी
कम होगी बेकारी तो कम होगा
समाज का अपराधीकरण
और बढेगी राष्ट्रीय आय।
इस संकल्प की पूर्णता के लिये
सबको करना होगा प्रयत्न
तभी सच्चा होगा
सशक्त भारत निर्माण का स्वप्न।
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संस्काधानी
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आँखों में झूमते हैं वे दिन
हमारे शहर में गली-गली में थे
साहित्य के सृजनकर्ता, संगीत के साधक,
तरह-तरह के रंगों से,
जीवन की विविधताओं को
उभारते हुये चित्रकार,
राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत
देश और समाज के उत्थान का
पोषण करने वाले पत्रकार
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज के
सकारात्मक स्वरूप को
प्रकाशित करने वाले अखबार
और थे इन सब को वातावरण
और संरक्षण देने वाले जन-प्रतिनिधि।
जिनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन में
नई पीढ़ी का होता था निर्माण
पूरा नगर था एक परिवार
और पूरा देश जिसे कहता था संस्कारधानी।
सृजन की वह परंपरा
वह आत्मीयता और
वह भाई-चारा
कहाँ खो गया ?
साहित्य, कला, संगीत और संस्कार
जन-प्रतिनिधि, पत्रकार और अखबार
सब कुछ जैसे
ठेकेदारों का कमीशन हो गया।
हर तरफ डी.जे. और धमालों की
कान फोडू आवाजों पर
भौंडेपन और अश्लीलता के साथ
कमर मटका रही है नई पीढ़ी।
आम आदमी
रोजमर्रा की जिन्दगी, महंगाई
और परेशानियों में खो गया है
सुबह से शाम तक
लगा रहता है काम में
कोल्हू का बैल हो गया है।
साहित्य-कला-संगीत की वह सृजनात्मकता
उपेक्षित जरूर है पर लुप्त नहीं है
आवश्यकता है उसके
प्रोत्साहन और उत्साहवर्धन की।
काश कि यह हो पाए
तो फिर से हमारा नगर
कलाधानी, साहित्यधानी और
संस्कारधानी हो जाए।
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एकता और सम्मान
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ताल के किनारे
मंदिर और मस्जिद।
सूर्योदय पर
मंदिर की छाया मस्जिद,
सूर्यास्त पर
मस्जिद की छाया में मंदिर,
सुबह एक के पहलू में दूसरा,
शाम को दूसरे के पहलू में पहला।
पूजा और इबादत, आरती और अजान
प्रार्थना और नमाज, सभी थे साथ साथ
एक दिन कहीं से आई
अफवाह की एक चिंगारी,
धधका गई आग
भड़का गई दंगा और फसाद
रक्त बहा मानव का
सिसक उठी मानवता।
मंदिर में भी ’म‘ और ’द‘
मस्जिद में भी ’म‘ और ’द‘
’म‘ और ’द‘ के मद ने
दोनों को भड़काया।
’द‘ और ’म‘ के दम ने
दोनों को लड़वाया।
मद और दम में फँसकर
एकता हुई खंडित टूट गया भ्रातृ प्रेम
खोया सद्भाव और पनपे कटुता और क्लेश।
किसी ने किसी का घर जलाया
किसी ने किसी का खून बहाया
किसी ने पति खोया
और कोई बेटे को खोकर
फूट फूट कर रोया।
अगर मद में आकर आदम
मदहोश नहीं हुआ होता
और झूठे दंभ में आकर
दम दिखलाने के लिये न निकला होता
तो कोई बेघर नहीं होता
कोई अपना बेटा, पति या पिता नहीं खोता।
कायम रहता है भाईचारा,
कायम रहती साम्प्रदायिक एकता
और कायम रहता सद्भाव।
नहीं रूकती बस्ती की तरक्की
और नहीं झुकती सभ्यता की नजरे।
हम क्यों भूल जाते है कि-
हमारी एकता में ही छुपी है देश की एकता।
हमारी प्रगति में ही छुपी है देश की प्रगति और
हमारे सम्मान में ही छुपा है देश का सम्मान।
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अधूरा सफर
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वह पथिक था, जा रहा था
रास्ता सुनसान था,
इसलिये घबरा रहा था
तभी उसके कान में
जैसे कि कोई फुसफुसाया
और उसने यह बताया
यह तो वह रास्ता है
जिस पर जाते हैं नेता
जिस राह पर नेता जाते है
उससे भाग जाते है
चोर, उचक्के और डाकू।
छोटा हमेशा बडों का सम्मान है करता
यही है हमारी संस्कृति
यही है हमारी सभ्यता।
पथिक को मिली राहत
चली गई उसकी सारी घबराहट।
चलते चलते आ गया चौराहा
वह घबराया अब कहाँ जाऊँ ?
तभी उसे घेर लिया पक्ष और
विपक्ष के कार्यकर्ताओं ने
उसकी सारी पूँजी छीन ली
चुनाव में प्रचार के लिये।
वे गए तो आ गए किन्नर
धन नहीं मिला तो
उतार ले गए उसके सारे कपडे।
सामने जो दिखा रास्ता
वह उसकी पर भागा
और टकरा गया लुटेरों से
उसे देख वे पहले गरजे
फिर उस पर बरसे
कैसे की तुमने हिमाकत
चड्डी बनियान पर निकलने की
यह है हमारे गिरोह का निशान
इसे पहनकर तुमने किया है
हमारे गिरोह का अपमान।
वह गिडगिडा रहा था
मुझे भी अपने गिरोह में शामिल कर लो
वे फिर चिल्लाए तुम हो पिटे पिटाये
इसलिये चड्डी बनियान में यहाँ तक हे आये।
चुपचाप भाग जाओ
पहले बनो ताकतवर फिर हमारे पास आओ।
तभी खुल गई नींद
उसका सपना बिखर गया था।
वह बिस्तर के नीचे पडा था।
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आनंद
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आनन्द क्या है
एक आध्यात्मिक पहेली।
दुख में भी हो सकती है
आनन्द की अनुभूति।
सुख में भी हो सकता है
आनन्द का अभाव।
इस पहेली को बूझने के लिये
देखने पड़ेंगे जीवन के चित्र-
कठिनाइयों और परेशानियों से
घबराकर भागने वाला
जीवन को बना लेता है बोझ
डूबता-उतराता है
निराशा के सागर में,
समझता है संसार को
अवसादों का घनघोर घना जंगल।
जिसमें होता है साहस
जिसमें होती है कर्मठता
जिसमें होती है सकारात्मक सोच
और जिसमें होता है
संघर्ष का उत्साह
वह जूझता है परेशानियों से
हल करता है कठिनाइयों को
और ऐसा करते हुए
सफलता की हर सीढ़ी पर
अनुभव करता है वह
एक अलौकिक संतुष्टि
एक अलौकिक प्रसन्नता
स्वयं पर भरोसा
और एक अलौकिक सौन्दर्य युक्त संसार
यही आनन्द है।
धन, संपदा और वैभव
देते हैं केवल भौतिक सुख
आदमी आनन्द की तलाश में
जीवन भर भागता रहता है
भौतिक सुखों के पीछे।
सुख भौतिक हैं वे बाह्य हैं
आनन्द आध्यात्मिक है
वह आन्तरिक है।
सुख की अनुभूति होती है शरीर को
आनन्द की अनुभूति होती है
हृदय को और हमारी आत्मा को।
आनन्द का उद्गम हैं हमारे विचार,
हमारे सद्कर्म,और हमारी कर्मठता।
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अंधकार
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सुबह हुई
और जाने कहाँ चला गया
अंधकार।
चारों ओर फैल गया
प्रकाश।
अंधेरे को हराकर
विजयी होकर उजाला
जगमगाने लगा चारों ओर।
लेकिन जब
उजाले में आ गया
विजय का अहंकार
तब फिर आ गया अंधेरा
और निगल गया सारे प्रकाश को।
क्योंकि प्रकाश के लिये
जलना पड़ता है
सूरज को
बल्ब को
दिये को
या किसी और को।
लेकिन अंधकार के लिये
कोई नहीं जलता।
प्रकाश शाश्वत नहीं है
शाश्वत है अंधकार।
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जीवन की नियति
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संसार है नदी,
जीवन है नाव,
भाग्य है नाविक,
कर्म है पतवार,
पवन व लहर है सुख तथा
तूफान में भँवर है दुख।
पाल है भक्ति
जो नदी के बहाव
हवा के प्रवाह और
नाव की गति एवं दिशा में
बैठाती है सामंजस्य।
भाग्य, भक्ति और
कर्म के कारण
व्यक्ति को मिलता है
सुख और दुख।
यही है जीवन की
सद्गति और दुर्गति।
इसी में छुपी है
इस जीवन की नियति।
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जीवन पथ
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हम है उस पथिक के समान
जिसे कर्तव्य बोध है
पर नजर नहीं आता है सही रास्ता।
अनेक रास्तों के बीच
हो जाता है दिग्भ्रमित।
इस भ्रम को तोड़कर
रात्रि की कालिमा की देखकर
स्वर्णिम प्रभात की ओर
गमन करने वाला ही
पाता है सुखद अनुभूति और
सफल जीवन की संज्ञा।
हमें संकल्पित होना चाहिए कि
कितनी भी बाधाएँ आएँ
कभी नहीं होंगे विचलित
और निरूत्साहित।
जब धरती पुत्र
मेहनत, लगन और सच्चाई से
जीवन में करता है संघर्ष
तब वह कभी नहीं होता पराजित
ऐसी जीवन शैली ही
कहलाती है जीवन की कला
और प्रतिकूल समय में
मार्गदर्शन देकर
दे जाती है जीवन-दान।
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