9 तीन बिल्ली बकरे ग्रफ़ [1] यह लोक कथा भी पाँच नौर्स देशों में से नौर्वे देश की लोक कथाओं से ली गयी है। यह कहानी एक पहाड़ी के ऊपर से शुरू होती...
यह लोक कथा भी पाँच नौर्स देशों में से नौर्वे देश की लोक कथाओं से ली गयी है।
यह कहानी एक पहाड़ी के ऊपर से शुरू होती है। वहाँ हवा बहुत तीखी और ठंडी थी। आसमान बिल्कुल साफ और नीला था। हरे हरे घास के मैदानों में हवा के चलने से घास इधर उधर हिल रही थी।
उस पहाड़ी के ऊपर तीन बिल्ली बकरे रहते थे – एक सबसे बड़ा, एक बीच का और एक सबसे छोटा।
उस दिन बड़े वाले बिल्ली बकरे का मन नहीं लग रहा था तो वह अपने दोनों छोटे भाइयों से बोला — “मैं रोज रोज उसी मैदान में से खाना खाते खाते थक गया हूँ। मैं उस नदी के उस पार वाले मैदान में से खाना खाना चाहता हूँ। ”
छोटा भाई बोला — “नहीं बड़े बिल्ली भाई, हम लोग उस नदी को पार नहीं कर सकते। वह नदी तो बहुत गहरी है और उसका बहाव भी बहुत ज़्यादा है। हम लोग तो उसमें बह जायेंगे। ”
बीच वाला भाई बोला — “इसके अलावा हम लोग पुल पर से भी नहीं जा सकते बड़े भाई। क्योंकि उस पुल के नीचे एक बहुत बड़ा ट्रौल[2] रहता है। अगर हम लोग उस पुल के ऊपर से जायेंगे तो वह हमको खा जायेगा। ”
बड़े बिल्ली बकरे ग्रफ़ ने अपने बड़े बड़े गोल सींगों वाला सिर इधर उधर हिलाते हुए कहा — “मैं उस ट्रौल से नहीं डरता। ” कह कर उसने जमीन पर अपना बड़े खुर वाला पैर पटका – एक बार, दो बार, तीन बार।
वह फिर बोला — “उसको मुझे खाने के लिये आने तो दो फिर हम देखते हैं कि कौन जीतता है। ”
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बीच वाला बकरा बोला — “पर जब वह तुमको खाने के लिये वहाँ आयेगा तो हम लोग तो उसको देखने के लिये वहाँ होंगे नहीं क्योंकि वह हम दोनों को तो पहले ही खा चुका होगा। ”
बड़ा बकरा घास के मैदान में चारों तरफ नाचता हुआ चिल्लाया — “नहीं, ऐसा नहीं होगा छोटे भाई। तुम देखना ऐसा नहीं होगा। ”
उसके बड़े बड़े खुरों ने उस घास के मैदान में नाचने से बड़े बड़े गड्ढे बना दिये थे। वह बोला — “मेरे दिमाग में एक प्लान है। ”
सो तीनों बकरों ने अपने सिर एक साथ मिलाये और आपस में एक दूसरे से बहुत देर तक फुसफुसा कर बात करते रहे फिर उठे और उस चौड़े घास के मैदान को पार करके पुल की तरफ चल दिये।
यह पुल उस तेज़ बहने वाली नदी के ऊपर बना हुआ था जो उस घास के मैदान को दो हिस्सों में बाँटती थी – एक घास का मैदान उस पुल के इस तरफ था और दूसरा घास का मैदान उस पुल के दूसरी तरफ था।
छोटे बकरे ने हिम्मत के साथ एक लम्बी साँस भरी और लकड़ी के उस ऊबड़ खाबड़ पुल पर अपना पैर रखा। जैसे जैसे वह उस पुल पर आगे की तरफ चलने लगा उसके छोटे छोटे खुर उस पुल को इधर उधर हिलाने लगे।
एक बड़ी गोल आँखों के जोड़े ने पुल के नीचे से अँधेरे में से झाँका। वे ट्रौल की आँखें थीं। ट्रौल बोला — “यह कौन है जो मेरे पुल पर से जा रहा है?”
और इसके बाद ही एक बालों वाली बाँह पुल के नीचे अँधेरे में से बाहर निकली और उसने पुल की रेलिंग पकड़ ली जो उस छोटे बकरे के पास ही थी।
वह छोटा बकरा अपनी छोटी सी आवाज में बोला — “यह मैं हूँ ट्रौल दादा, सबसे छोटा बिल्ली बकरा जिसमें केवल हड्डियाँ और खाल ही है। मैं मोटा होने के लिये उस पार वाले घास के मैदान में घास खाने जा रहा हूँ। ”
तभी ट्रौल के दूसरे हाथ ने भी उस रेलिंग को पकड़ा और वह अपनी इतनी गहरी आवाज में बोला कि सारा का सारा पुल हिल गया — “मैं तुमको खाने आ रहा हूँ। ”
छोटा बिल्ली बकरा यह सुन कर सिर से पैर तक काँप गया पर फिर भी हिम्मत करके बोला — “तुम मुझे खाने आ रहे हो? पर मैं तो बहुत छोटा हूँ। मैं तो तुम्हारे जितने बड़े ट्रौल के मुँह के लिये एक कौर के बराबर भी नहीं हूँ। तुम मेरे बड़े भाई के आने का इन्तजार करो। वह मेरे पीेछे ही आ रहा है। वह मुझसे बहुत बड़ा है तुम उसको खा लेना। ”
ट्रौल को यह बात कुछ ठीक सी लगी। इस छोटे से बकरे के पीछे क्यों लगना जबकि इससे बड़ा बकरा इसके पीछे आ रहा है।
सो ट्रौल चिल्लाया — “तो मेरे पुल से हट जाओ और यहाँ तब तक नहीं आना जब तक तुम बड़े और मोटे न हो जाओ। ” और यह कह कर वह पुल के नीचे अँधेरे में खिसक गया।
छोटा बिल्ली बकरा बोला — “ठीक है जनाब। धन्यवाद। ”
और अपनी जीत की खुशी मनाता हुआ पुल के पार दूसरे घास के मैदान में चला गया। वह खुश था कि उनका प्लान काम कर रहा था।
जब छोटा बिल्ली बकरा दूसरी तरफ पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गया तब उनके बीच वाले भाई ने उस पुल पर अपना कदम रखा। उसके बीच के साइज के खुर उस पुल पर ट्रप ट्रप करके आवाज कर रहे थे और उसके कदमों से वह पुल इधर उधर हिल भी रहा था।
उसके खुरों की आवाज़ सुन कर एक बार फिर एक बड़ी गोल आँखों के जोड़े ने पुल के नीचे के अँधेरे में से झाँका। वे ट्रौल की आँखें थीं। ट्रौल बोला — “यह कौन है जो मेरे पुल पर से जा रहा है?”
और इसके बाद ही एक बालों वाली बाँह पुल के नीचे से अँधेरे में से बाहर निकली और उसने पुल की रेलिंग पकड़ ली जो उस बीच वाले बकरे के पास ही थी।
वह बीच वाला बकरा अपनी छोटी सी आवाज में बोला — “यह मैं हूँ बीच वाला बिल्ली बकरा ट्रौल दादा, जिसकी जाड़े की वजह से केवल हड्डियाँ और खाल ही रह गयी हैं। मैं मोटा होने के लिये पुल के उस पार वाले घास के मैदान में घास खाने जा रहा हूँ। ”
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ट्रौल की टेढ़ी मेढ़ी लम्बी नाक के दोनों तरफ दो जलती हुई अंगारे जैसी आँखों ने पुल की रेलिंग के बीच से झाँका और वह बोला — “मैं तुमको खाने आ रहा हूँ ओ बिल्ली बकरे। ” उसकी आवाज इतनी मोटी और भारी थी कि उससे सारा पुल हिल गया।
बीच वाला बकरा हँसा और बोला — “तुम मुझे खाने आ रहे हो? पर तुम मुझे क्यों खाना चाहते हो? मैं तो जाड़े की वजह से वैसे ही बहुत पतला हो रहा हूँ।
मैं तो तुम जैसे बड़े ट्रौल का केवल एक या दो कौर जितना बड़ा हूँ। तुमको मेरे बड़े भाई का इन्तजार करना चाहिये। वह मुझ से बहुत बहुत बड़ा है। उसको खा कर तुम्हारा पेट भर जायेगा। ”
ट्रौल को यह बात कुछ ठीक सी लगी। उसने सोचा इस बीच वालेे बकरे के पीछे भी क्यों लगना जबकि इससे बड़ा बकरा इसके पीछे आ रहा है।
सो ट्रौल चिल्लाया — “तो मेरे पुल से हट जाओ और यहाँ तब तक मत आना जब तक तुम बड़े और मोटे न हो जाओ। ” और यह कह कर वह पुल से नीचे अँधेरे में खिसक गया।
छोटा बिल्ली बकरा बोला — “ठीक है जनाब मैं जा रहा हूँ। ” और अपनी जीत की खुशी मनाता हुआ वह भी पुल के पार दूसरे घास के मैदान में चला गया।
वहाँ जा कर वह अपने छोटे भाई के पास पहुँच गया। वह भी खुश था कि उनका प्लान काम कर रहा था। वहाँ पहुँच कर दोनों पुल की तरफ यह देखने लगे कि देखें अब बड़े वाले बिल्ली बकरे पर क्या बीतती है।
अब बड़े बिल्ली बकरे ने लकड़ी के उस ऊबड़ खाबड़ पुल पर कदम रखा – टौम्प टौम्प। उसके बड़े बड़े खुरों ने उस पुल के तख्तों को झुकाना शुरू कर दिया और जैसे जैसे वह आगे बढ़ता गया उस के बोझ तले वह पुल चरचराने लगा।
एक बड़ी गोल आँखों के जोड़े ने पुल के नीचे से अँधेरे में से झाँका। वे ट्रौल की आँखें थीं। ट्रौल गरजा — “यह कौन है जो मेरे पुल पर से टौम्प टौम्प करता जा रहा है?”
यह कह कर वह एक ही कूद में उस पुल के ऊपर आ गया। उस बड़े और बालों वाले ट्रौल को देख कर बड़े बिल्ली बकरे ने अपनी आँखें सिकोड़ी और बड़े आदर से अपना बड़ा सिर झुका कर बोला — “यह मैं हूँ ट्रौल जी। ”
ऐसा करने से उसके दोनों बड़े सींग उस ट्रौल की तरफ हो गये और यह कह कर वह ट्रौल की तरफ दौड़ पड़ा। वह जा कर ट्रौल से टकरा गया। बड़े बकरे ने ट्रौल को अपने सींगों पर उठा लिया था। सीगों पर उठा कर उसने ट्रौल को ज़ोर से ऊपर उछाल दिया।
“आह। ” ट्रौल चिल्लाया। उसके पुल पर से पैर उखड़ चुके थे और वह हवा में बहुत दूर ऊपर तक उछल चुका था।
वहाँ से वह सिर के बल पुल के ऊपर गिर पड़ा। इससे वह पुल ऊपर से ले कर नीचे तक ज़ोर की आवाज के साथ ज़ोर से हिल गया।
फिर बड़े बिल्ली बकरे ने ट्रौल के ऊपर अपने बड़े खुर ज़ोर ज़ोर से रखे जिससे ट्रौल पुल के लकड़ी के तख्तों पर कुचल गया। उसके बाद उसने उसको फिर अपने बड़े बड़े सींगों के ऊपर उठाया और अबकी बार उसने उसको उठा कर नीचे नदी में फेंक दिया।
पानी का बहाव तेज़ था। ट्रौल उस पानी में बहता हुआ दूर चला गया और फिर वहाँ कभी नहीं देखा गया। बड़ा बिल्ली बकरा भी पुल के पार उस घास के मैदान में जा कर अपने दोनों भाइयों से मिल गया।
अब वे तीनों भाई उस पुल पर से कभी भी आ जा सकते थे सो सारी गरमियाँ तीनों भाइयों ने दोनों घास के मैदानों की घास खूब प्रेम से खायी।
इतनी बढ़िया और मुलायम घास खा खा कर तीनों भाई खूब मोटे हो गये और आराम से रहने लगे।
[1] Three Billy Goats Gruff – a folktale from Norway, Europe. Adapted from the Web Site :
http://americanfolklore.net/folklore/2010/10/three_billy_goats_gruff.html
retold by SE Schlosser.
[2] A troll is a supernatural being in Norse mythology and Scandinavian folklore. In origin, troll may have been a negative being in Norse mythology. In Old Norse sources, beings described as trolls dwell in isolated rocks, mountains, or caves, live together in small family units, and are rarely helpful to human beings – see its picture above.
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.
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