प्रविष्टि क्रमांक - 96 सेवा सदन प्रसाद कुछ वही सोच जैसे ही खबर मिली कि मैं दादा बन गया हूं, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुशी तब और बढ़ गई...
प्रविष्टि क्रमांक - 96
सेवा सदन प्रसाद
कुछ वही सोच
जैसे ही खबर मिली कि मैं दादा बन गया हूं, मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। खुशी तब और बढ़ गई जब बेटे ने कहा - “पापा, बिल्कुल नार्मल डिलिवरी हुई है और गुड़िया जैसी बेबी ... यू आर नाऊ ‘बिग बॉस यानि दादा बन गये”।
तभी छोटा बेटा ‘स्वीट्स’ लेकर आ गया । मैं सारे सोसायटी के लोगों को स्वीट्स बांटने लगा। एक हफ्ते से इंक्वायरी मैसोजों से मोबाईल भर गया था।
अब तो बधाईयों का तांता लग गया। ”आप तो दादा बन गये ..... घर में लक्ष्मी आ गई .... ”पहली बेटी, धनाची पेटी।” बेटी बचाओ अभियान में बेटे की सक्रिय भूमिका से गौरान्वित महसूस करने लगा। फेसबुक पे देखा - बेटा, बहू भी काफी खुश है।
इतनी सारी बधाईयां पाकर खुशी और बढ गई। लोग एक के बदले दो-दो पेडे़ खाने लगे। तभी गेट पे तैनात वॉचमन पे नजर पड़ी। उसे लगा - सारी मिठाईयां इधर ही खत्म हो जायेगी।
मैं तुरंत वॉचमैन के करीब पहुंचा और उसकी ओर भी स्वीट्स का पैकेट बढा दिया। पेड़ा देखकर ही उसके मुंह में पानी आ गया। वह पेड़ा लेकर मुंह में डालने के पहले पूछा - ”सर, अमेरिका से क्या खबर आया ? मैने गर्व से कहा - ”मैं दादा बन गया और मेरा बेटा एक लड़की का बाप”
तब उसके हाथ रूक गये।
”अरे खाओ .... रूक क्यों गये ?”
”खाता हूं सर .... आपलोग समझदार हो .... बेटी पैदा होने की खुशी में पहली बार पेड़ा खा रहा हूं वर्ना गांव में तो चुप्पी छा जाती है।
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प्रविष्टि क्रमांक - 97
सेवा सदन प्रसाद
पत्थरबाज
जन्नत सी कश्मीर में जहन्नुम सा माहौल। अब सेब थैले में भरकर नहीं बास्केट में भर कर ले जाना पड़ता क्योंकि थैले में भरा सेब दहशत पैदा कर देता।
बस गिने - चुने नवजान ही बचे थे। जिन्हें वतन से प्यार था, वे फौज में चले गये और जिन्हें सिर्फ कश्मीर से प्यार था, वे आंतकियों के खेमे में पहुंच गये।
करीम मियां ने अपने जमाने में वाकई में कश्मीर में जन्नत का नजारा देखा था। कश्ती में प्रेमी-जोडियों का प्रेमालाप, डल झील की शर्मिंन्दगी और बर्फ के ओलों की शरारत। सैलानियों को जब घूमा कर लाता तो लोग काफी तारीफ करते। हर रोज उसे ईदीदी मिलती।
अचानक माहौल बदल गया। ओले की जगह गोले बरसने लगे। सात समंदर पार से आनेवाला पर्यटक सही सलामत वापस चला जाता पर कश्मीर का ही निवासी अंधेरी रात में आतंकियों का शिकार हो जाता। भला हो बडे़ बेटे हामीद का जो फौज में चला गया। काश! अनीस भी कोई सही रास्ता पकड़ लेता तो करीम मियां को काफी तसल्ली मिल जाती। पर वह तो बहकावे में आकर पत्थरबाज बन गया।
डल-झील के करीब बैठा करीम मियां कश्मीर की हरी वादियों की यादों में खोया था तभी दनादन गोलियां चलने की आवाजें सुनाई पड़ी। मुड़कर देखा तो एक तरफ से जवान गोलियां चला रहे थे तो दूसरी ओर से जेहादी पत्थर।
चंद मिनटों के बाद सब शांत हो गया। कुछ पत्थरबाज भाग गये और कुछ मारे गये। करीम मियां दौड़ पड़ा उस ओर। करीब जाकर देखा तो स्तब्ध रह गया - सामने अनीस की लाश पड़ी थी। वह सर थाम कर बैठ गया। बहुत साहस कर जब उठा तो देखा-सामने हामीद खड़ा है बंदूक लिये। जवान अपनी गोली के शिकार को देखने आया था। पर यह पत्थरबाज तो उसका ही ......।
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प्रविष्टि क्रमांक - 98
सेवा सदन प्रसाद
खुद्दारी
बिरजू कोठी के सामने गाड़ी लगाकर गाड़ी के अंदर बैठ गया। कोठी के अंदर चल रहे शानदार पार्टी में शरीक होने के लिए ही विक्रम सिंह आये थे।
तभी बिरजू की नजर एक लड़के पे पड़ी। शायद उसे भी-झूठन का इंतजार हो, गेट पे जमा हो चुके कुत्ते की तरह। बिरजू को उसपे तरस आ गया। वह गाड़ी से उतरकर उसके करीब गया और पांच रूपये का एक सिक्का निकाल कर उसकी ओर बढ़ाया।
लड़के के चेहरे पे क्रोध उभर आया पर अपने क्रोध को काबू में करते हुए बोला - ”मुझे भीख नहीं चाहिए। हां भूखा जरूर हूं। अगर आप चाहें तो गाड़ी पे फटका मार देता हूं फिर जो उचित लगे दे देना।”
”पर यह गाड़ी तो मेरे सेठ की है। मैं तो एक मुलाजिम हूं। पर तुम्हारे इस जज्बे़ को सलाम करता हूं, अतः फटके मार फिर पैसे ले लेना।
तभी कोठी के अंदर से एक दरबान पकवानों से भरी एक थाल लेकर ड्राइवर के पास आया और बोला - ”मालिक ने भिजवाया है, लो खा लो।”
बगैर - भोज में शामिल हुए, ये पकवान भरी थाल, मेहरबानी है या भीख। उसका वजूद तिलमिला गया, खुद्दारी उसकी भी जागी पर नौकरी की परवाह कर थाल ले लिया।
तब तक लड़का फटका मार चुका था। बिरजू थाल लड़के की ओर बढा कर बोला -” ये लो तुम्हारी मेहनत का मेहनताना। मैं तो घर जाकर पत्नी के साथ खाना खा लूंगा। तब भूख से व्याकुल लड़का खाने पे टूट पड़ा।
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प्रविष्टि क्रमांक - 99
सेवा सदन प्रसाद
मो. 9619025094
‘मेन टू’
इतनी भीड़ देखकर चौदह-पंद्रह वर्ष का लड़का घबरा गया। चारों तरफ से मिडियावालों ने घेर रखा था। सवालों की बौछार और लड़का खामोश। पता नहीं भयभीत था या परेशान। एक रिपोर्टर ने कहा - ”घबराओ नहीं, साफ-साफ बताओ। मैडम ने आपके साथ क्या सलूक किया है ?”
फिर मिडिया वाले ने भी कहा - ”घबराओ नहीं और न ही डरने की जरूरत है। जो भी सच्चाई है, स्पष्ट बयान करो। हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं।”
लड़के के चेहरे पे भय एवं घबराहट की स्थिति बनी रही। तभी नारी सुरक्षा समिति की अध्यक्षा ने चेतावनी भरे लहजे में कहा - ”बहकावे एवं भावावेश में गलत बयान मत देना। तुम अभी नाबालिग हो, मुसीबतें बढ भी सकती है। इस संदर्भ में तुम्हारे माता पिता ने कुछ भी नहीं कहा है।”
लड़का तब चीख पड़ा - “मेरे माता-पिता ने कभी भी मेरी शिकायत पे ध्यान ही नहीं दिया। वे लोग मैडम को सही और मुझे ही सदा गलत समझते रहे। पर मेरे सहपाठियों ने मेरा साथ दिया। यह मैडम टयूशन पढाने के बहाने मेरा शारीरिक शोषण करती रही। विरोध करने पर धमकी देती थी कि अगर मुंह खोला तो फेल कर दूंगी और इसी क्लास में सड़ते रहोगे।”
अचानक सन्नाटा छा गया। तब चंद मिनटों बाद चारों ओर से आवाजें गूंज उठी - ”मेन टू भी।”
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प्रविष्टि क्रमांक - 100
सेवा सदन प्रसाद
वीरांगना
सारा गांव रोने लगा पर सुभद्रा की आंखों से आंसू नहीं बहे। वह अपलक तिरंगे में लिपटे अपने शहीद पति के शव को निहारती रही और अपने बिलखते बेटे को भी।
सुभद्रा की आंखों में इंतकाम की भावना स्पष्ट झलकने लगी। बहुत ही मुश्किल से अपने सीने पे पत्थर रख कर इस गम को सहने का प्रयास की। अंततः जब वह पति के शव से लिपटी तो फूट-फूट कर रो पड़ी। मां को रोता बिलखता देख पुत्र भी “पापा-पापा” कहकर रोने लगा।
शहीद की अर्थी के साथ रक्षामंत्री खुद उसके घर पहुंची थी। औरत की पीड़ा और संवेदना एक औरत ही अच्छी तरह समझ सकती है। तब रक्षा मंत्री उसके करीब पंहुची और सांत्वना देती हुई बोली - “तुम इस शहीद की पत्नी ही नहीं ब्लकि भारत की एक वीरांगना भी हो। सारा मुल्क तुम्हारे साथ है। सब की संवेदनाऐं अपने आंचल में लपेट कर लाई हूं। सारी सरकारी सुविधाएं एवं वीरता का पुरस्कार तो तुम्हारे पति को मिलेगा ही, इसके अलावे भी तुम्हारी कोई ईच्छा हो तो निसंकोच बोलो।”
सुभद्रा पल भर के लिए खामोश हो गई। उसके आंसू भी थम गये। सुभद्रा पुनः एक बार अपने पति को निहारी, लगा उसकी इच्छा अधूरी रह गई है। फिर गर्व से अपने बेटे को निहारी। अन्ततः बोल पड़ी - ” बालिग होते ही मेरे बेटे को भी सेना में शामिल कर लें।”
रक्षा मंत्री के इर्द-गिर्द मौजूद सेना के श्सारे अधिकारियों ने सुभद्रा के सम्मान में सर झुका दिये। किसी कोने से आवाज गूंज उठी - “भारत माता की जय”।
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