प्रविष्टि क्रमांक - 91 अभी आता हूँ मंजु गुप्ता ' अभी आता हूँ। ' ऑटोवाले को कह अजनबी सोसाइटी में चला जाता है ………… ! तीन शब्दों...
प्रविष्टि क्रमांक - 91
अभी आता हूँ
मंजु गुप्ता
' अभी आता हूँ। ' ऑटोवाले को कह अजनबी सोसाइटी में चला जाता है ………… !
तीन शब्दों का यह वाक्य कितनी सारी संभावनाएं , होनी - अनहोनी के द्वार खोल देता है।
उदार , भोलाभाला वॉचमैन प्रताप नवी मुम्बई की रेशमा सोसाइटी में न जाने कितनी बार लोगों , आने - जानेवाली कारों के लिए मुख्य गेट खोलता बंद करता था।
काम से निवृत होकर वह अपने पाँच साल के बेटे के साथ वहीं खेलने लगा।
तभी अजनबी ने उसे कहा -
' मैं बीमार हूँ ऑटो स्टैंड से रिक्शा ले आओ। '
फुर्ती से वॉचमैन अपने बेटे को छोड़ ऑटो लेने के लिए कुछ कदम ही चला था कि लोट के अपने बेटे को साथ ले जाने लगा।
अजनबी ने उसे रोकते हुए कहा , ' नहीं , इस बच्चे को मैं देख रहा हूँ , तुम ऑटो ले आओ। '
वॉचमैन अनसुना कर बच्चे को साथ ले ऑटो ले आया।
[post_ads]
अजनबी उसमें बैठ ' ऐरोली , नवी मुंबई ' की सोसाइटी में ऑटो रुकवा के अंदर जाने लगा , तभी ऑटोवाले ने मीटर देख उससे पाँच सौ रुपये माँगे। मुस्कुराते हुए अजनबी ने कहा - ' रुको ! बस मैं अभी आता हूँ। '
ऑटोवाला अपनी रोजी रोटी के लिए अजनबी का पूरा एक घंटा इन्तजार किया ।लेकिन वह अजनबी नहीं आया।
वहाँ उसने उसकी छानबीन की. वह नदारद ……। ऑटोवाले को लगा कि उस शातिर ने मेरा शिकार किया ।
फिर संशय से भरा ऑटोवाला वापस वॉचमैन प्रताप के पास आया।
कहने लगा - ' मुझे पाँच सौ रुपये दो। '
हक्काबक्का प्रताप , ' किस बात के। '
' तुमने जिस आदमी को ले जाने को कहा था , वह तुम्हारा ही आदमी है। तुम्हीं तो मुझे लेकर आए। '
प्रताप , ' अरे नहीं ! मैं गरीब इतने रु पये कहाँ से दूँगा ? तुम्हें
रुपये नहीं दूँगा , मैं उसे नहीं पहचानता। '
ऑटोवाला धमकाते हुए , ' मैं पुलिस में जाता हूँ. '
' जहाँ जाना हो जाओ। मामला रफा - दफा करो लो पचास रूपये ' प्रताप ने कहा।
रुपये जेब में ठूंस पुलिस को ले आया ऑटोवाला।
पुलिस डपटते हुए , क्यों रे ! क्या गड़बड़ किया ?'
प्रताप , साहब , माई बाप ! मैं उसे नहीं जानता , उसके कहने से ही ऑटो लाया था। अजनबी वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया तो मेरा क्या
कसूर ? '
शोर सुन सोसाइटी के सेक्रेटरी ने आकर उन्हें समझाया - ' देखो ! हमारे प्रताप की कोई गलती नहीं है। ऑटोवाले को रुपए दिए या नहीं दिए , कैसे विश्वास कर लें ? '
कैसे तैसे मामला शांत किया।
ऐसे शातिर , बेईमान , धोखेबाज लोग समाज, देश को छल - कपट के जहरीले फनों से डस रहें हैं।आज कौन , किस पर कैसे विश्र्वास करे ?
प्रश्न बन अजनबी सवालों के घेरे में है ………।
क्या पता वह बच्चा चोर गिरोह का हो ?
कैसी सोच जनमानस की ? समाज में इन बदमाशों का खेल जारी है । दिन दहाड़े कोई न शख्स इनकी लूट का शिकार बन जाता है ।
ऑटोवाला नहीं बताता तो पता ही नहीं चलता ....... समाज को
इक्कीसवीं सदी को इन हैवानों से बचाना होगा। सजग , सचेत होना होगा। प्रताप की उदारता समाज को मानवता का संदेश दे रही थी.
' अभी आता हूँ। बेईमान अजनबी लापता हो गया ……।'
तभी बिल्ली बेखबर चूहे पर झपटी ।
--
प्रविष्टि क्रमांक - 92
मंजु गुप्ता
सुबह के समय उदार , दयालु रोशनदान ने चोंच में तिनकों को दबाए एक चिड़िया को अपनी ओर आते हुए देखा तो वह रोशनदान फूला न समाया . चिड़िया रानी के स्वागत में गुनगुनाने लगा .
परेशान चिड़िया ने तिनकों को रोशनदान में रख के विनम्रता से रोशनदान का अभिवादन कर निराशा से भरे स्वर में रोशनदान से कहने लगी -
" दोस्त रोशनदान ! इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काट के कंक्रीट के जंगल बना दिए हैं . जिससे हम विलुप्त होने के कगार पर हैं . इंसानों के दिल भी कंक्रीट के मकानों की तरह निष्प्राण हो गए है. उनकी संवेदना तो मर गयी है . अब हमारे रहने के लिए स्थान ही नहीं बचा है . कुछ दिनों के लिए तुम मुझे थोड़ी सी स्पेस दे दो . यहाँ मैं तिनकों से घोंसला बना के अंडे दूँगी और अंडे सेने की प्रक्रिया से जब बच्चे बाहर आ जाएँगे तब मैं उन्हें उड़ना सिखा के यहाँ से अपने वंश को ले के दूर चली जाऊँगी . "
रोशनदान ने आत्मीयता से चिड़िया को कहा -
" सखी ! यहाँ पर निश्चिन्त होकर जब तक तुम चाहो रह सकती हो . यह तुम्हारे बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान है . हाँ सखी ! महत्त्वकांक्षी इंसानों ने सीमेंट की गगनचुंबी इमारतें बनाकर मेरा अस्तित्व ही खत्म कर दिया है . अब तो इंसानों की नयी नस्ल तो रोशनदान के नाम को भी नहीं जान सकेगी . मैं तो उस कोठी वाले मालिक का आभारी हूँ . जिसने मेरी महत्ता को जान के आक्सीजन से भरी शुद्ध हवा का उपयोग करने के लिए मुझे जीवित रखा है . अच्छा हुआ मैं तुम्हारे काम में आऊँगा . दोस्त वही जो आवश्यकता पड़ने पर दोस्त के काम आए . चिड़िया रानी ! पेड़ों के न रहने से चारों ओर कैसी ग्लोबल वार्मिंग हो रही है . पर्यावरण भी खतरे की घंटी बजा रहा है . ऐसा लगता है कि इंसान का प्रकृति से कोई संबंध ही न हो ."
[post_ads_2]
तभी रोशनदान में से गर्म हवा का झोंका आया . जो तपते सूरज की ओर इशारा कर रहा था .
कुछ दिनों बाद घोंसले में प्रसव पीड़ित चिड़िया ने धीरे - धीरे तीन अंडे दिए और एकाग्रता से बारी - बारी से अंडे को सेने लगी .
कुछ दिनों में नवजातों की चीं - चीं की आवाज रोशनदान को सुनायी दी . रोशनदान खुशी के मारे उछल पड़ा और रोशनदान अभिभूत हो के जच्चा रानी चिड़िया को कहने लगा - " तुम इंसानों से कितनी अच्छी हो . तुमने मादा और नर का बिना लिंग जांच करे और बिना लैंगिक भेदभाव के ही वंश को बढ़ाया है . आज तो इंसान नारी के गर्भ में कन्या के होने से कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप कर रहा है . सचमुच चिड़िया रानी ! तुम तो समाज और संसार में कुदरत के जीने के अधिकार का मानवीय अहसास जगा रही हो . "
तभी मुस्कुराती हुईं शीतल हवा रोशनदान को कहने लगी - " भाई रोशनदान ! तुमने चिड़िया को संरक्षण देकर अच्छा ही किया . जिससे चिड़िया की प्रजाति विलुप्त होने से बच गयी . "
मंद - मंद बहती हुई हवा रोशनदान के संग चिड़िया के नवजात शिशुओं को गोद में ले के सोहर गाने में मस्त हो गयी .
--
मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुम्बई
आदरणीय, आपकी रचना सराहनीय है विनम्र निवेदन है कि लघुकथा क्रमांक 180 जिसका शीर्षक राशि रत्न है, http://www.rachanakar.org/2019/01/2019-180.html पर भी अपने बहुमूल्य सुझाव प्रेषित करने की कृपा कीजिए। कहते हैं कि कोई भी रचनाकार नहीं बल्कि रचना बड़ी होती है, अतएव सर्वश्रेष्ठ साहित्य दुनिया को पढ़ने को मिले, इसलिए आपके विचार/सुझाव/टिप्पणी जरूरी हैं। विश्वास है आपका मार्गदर्शन प्रस्तुत रचना को अवश्य भी प्राप्त होगा। अग्रिम धन्यवाद
जवाब देंहटाएं