लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 85 से 89 // लता तेजेश्वर 'रेणुका'

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प्रविष्टि क्रमांक - 85 ©लता तेजेश्वर 'रेणुका' 1. शिकायत *************** एक बच्चा क्लास रूम में चुप चाप बैठा हुआ था, उसे क्लास टीचर...

प्रविष्टि क्रमांक - 85

©लता तेजेश्वर 'रेणुका'

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1. शिकायत

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एक बच्चा क्लास रूम में चुप चाप बैठा हुआ था, उसे क्लास टीचर ने पास बुलाया और पूछा, "बोलो रघु तुम आज इतने चुप क्यों हो?"

"मुझे माँ को छोड़ कर कहीं चले जाने को मन करता है टीचर पर सोच रहा हूँ कहाँ जाऊँ।" सिर झुकाकर नाराज़ सी आवाज़ से कहा।

टीचर ने कहा, "अच्छा ये बात है लेकिन माँ को छोड़ कर कोई कहीं जाता है भला और तुम्हें क्या शिकायत है माँ से?"

"माँ मुझ पर हमेशा शासन करती है, अकेले कहीं जाने नहीं देती। रमेश से खेलता हूँ तो डाँटती है। हमेशा पढ़ने को कहती है, शक करती है कि मैं कहीं रमेश के साथ बाहर चला जाऊँगा।"

"रमेश क्यों ?

"रमेश मुझे बहुत अच्छा लगता है। वह हमारा ग्रुप में सबसे साहसी लड़का है, सिगरेट पीता है, यूँ स्टाइल से। मुझे उसकी तरह बनना है।" रघु ने कहा।

"अच्छा ऐसी बात है, तो ठीक है चले जाना पर बोलो कहाँ जाओगे?" टीचर सत्यवती ने पूछा।

"कहीं भी.." उसने सिर उठा कर कहा।

"ठीक है फिर आँखें बंद करके सोचो कि कहाँ जाओगे?" मासूम से रघु ने कहा, "पता नहीं।"

"तो फिर एक काम करते हैं, हम एक खेल खेलते हैं।" रघु ने खुशी से सिर हिलाया। टीचर ने पूछा, "तुम्हारे घर में एक प्यारा सा कुत्ता है ना उसका नाम क्या है?"

कुत्ते का नाम सुनते ही उसकी आँखें ज्योत सी चमकने लगे। वह खुशी से कहा, "उसका नाम बबलू है टीचर, मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ। वह अभी बहुत छोटा है। "

"अच्छा, बहुत प्यार करते हो उसे।" थोड़ी देर रुक कर सत्यवती टीचर ने कहा, "अब तुम आँखें बंद करके ये सोचो और बताओ कि अगर वह ठीक से खाना नहीं खाया तो क्या करोगे?"

"खाने को कहता हूँ ना मेरी बात मानता है वह।"

"फिर भी नहीं खाए तो क्या करोगे?"

"डाँटता हूँ और एक लकड़ी ले कर बैठता हूँ वह भूखा रहेगा तो बीमार पड़ जाएगा ना।" मुँह फुलाकर कहा।

"अगर वह अचानक कहीं रास्ते पर चला जाए या रास्ता भटक जाए तो तुम क्या करोगे?"

रघु आँखें बड़ी करके छाती पर हाथ रखकर कहा, "अरे बाप रे किसी गाड़ी के नीचे आ गया तो ? बाहर बहुत से गंदे कुत्ते हैं कोई काट ले तो उसे बुखार हो जाएगा, इसलिए उसे गेट के अंदर ही रखते हैं और गेट भी बंद कर देते हैं टीचर।" यह सोचकर ही घबरा गया और कहा।

"अब देखो, तुम अपने कुत्ते के बीमारी के बारे में सोच कर घबरा जाते हो और उसका इतना ख्याल करते हो, वह नहीं खाता है तो उसे खिलाने के लिये डाँटते भी हो।"

"हाँ टीचर।"

"फिर तुम्हारी माँ अगर तुम्हारे लिये फिकर करती है और तुम्हें ऐसे गंदे कुत्तों या गलत लोगों से बचाने को सख्ती करती है तो वह गलत कैसी हुई रघु?" प्यार से सिर पर हाथ रख कर पूछा।

रघु आँखें नीचे करके बहुत देर सोचता रहा, फिर खड़ा हो कर कहा, "सॉरी टीचर, मैं फिर कभी माँ के बारे में ऐसा नहीं सोचूँगा।"

"फिर कभी घर छोड़कर या माँ को छोड़ कर जाने की बात करोगे?"

"नहीं टीचर, माँ भी मुझे बहुत प्यार करती है। अब मैं कभी घर छोड़कर जाने की बात नहीं करूँगा।" रघु ने कान पकड़ कर कहा।

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प्रविष्टि क्रमांक - 86

©लता तेजेश्वर 'रेणुका'


2. भीख

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एक भिखारी रोज़ मंदिर के सामने भीख माँगने बैठता था। एक दिन स्कूल जाती हुई एक बच्ची ने उससे पूछा, "रोज़ आप यहाँ बैठे क्या करते हैं? और लोग आप को पैसे क्यों देते हैं?"

भिखारी ने जवाब दिया, " बेटा मैं यहां बैठ पुण्य बेचता हूँ। मंदिर में आते जाते लोग यहां अपने पाप छोड़ कर पुण्य खरीद कर ले जाते हैं।"

बच्ची ने पूछा, "पुण्य? वह क्या होता है?

"बेटा, पुण्य वह होता जिसे पा कर लोग स्वर्ग जा सकते हैं?"

"ओ..," होंठों को गोलाकार कर आवाज़ निकाली फिर गालों पर ऊँगली रख कर सोचते हुए पूछा, "...और स्वर्ग क्या होता है?"

भिखारी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "बेटा, स्वर्ग वह होता है जिसे पाने के बाद मनुष्य की और कोई ख्वाहिशें नहीं रह जाती।"

"हम्म.., " कह कर उस बच्ची ने होंठों पर हाथ रख कर कुछ सोचा फिर इधर उधर देखा और रास्ते के किनारे से एक फूल तोड़ ले आई। उसने उस फूल को भिखारी को देते हुए कहा, "अंकल ये मेरी आज तक कमाई हुई पुण्य है इसे आप रख लीजिए।" भिखारी के आँखें अश्रु से भर आई। वह उस मासूम सी बच्ची की ओर देखता रह गया।


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प्रविष्टि क्रमांक - 87

© लता तेजेश्वर 'रेणुका'


3.निर्मल बाबू

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निर्मल बाबू ठीक से सोकर उठे भी नहीं थे, उनकी पत्नी उन्हें जगाई। "ओ जी उठिए, बिट्टू को बुखार है।"

दिन भर काम करने के बाद भी रात भर नींद सो नहीं पाते निर्मल बाबू। आज तो इतवार का दिन है, सोचा मज़े लेके सोयेंगे। पर अब बिट्टू को बुखार है, क्या करें? पत्नी का हुक्म है तो मानना पड़ेगा ही। निर्मल बाबू के आँख खुल भी नहीं रहे थे, थकान के मारे शरीर उठने को इंकार कर रहा था। 55 साल के तो हो चुके हैं, बच्चे बड़े हो गए पर अपने ही धूम में रहते हैं। न घर की चिंता न माता पिता की सेहत की, खुद मस्त रहे तो बस। उसने हलके से आवाज़ से धर्मपत्नी से कहा, "मुझे बहुत नींद आ रही है, थकान से पूरी शरीर में दर्द है। आज आप ले जाओ डॉ के पास।"

"मेरे तो अब बहुत सारे काम हैं जी, अब मेहंदी लगा के रखी हूँ, सर धोना है। आज इतवार ही तो है। आज के दिन तो स्त्रयों को आज़ादी चाहिए न, रोज़ रोज़ के काम से एक ही दिन तो फुरसत मिलती है व भी आराम करने नहीं दोगे क्या? आज आप की छुट्टी है, दिन भर आराम ही तो करना है जल्दी उठ भी गए तो क्या हुआ। आप ले जाओ बिट्टू को डॉ के पास।"

"आज इतवार है भागवान डॉ भी छुट्टी पर होगा।"

"इसलिये डॉ प्रफुल्ल जी के घर ले जाओ, वह जरूरत पड़ने पर इतवार को भी चिकित्सा करते हैं।" अब निर्मल बाबू क्या करें नहा धो कर तैयार होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था । घसीटते हुए शरीर से बिट्टू को गोद में उठाकर हाज़िर हुए पशु चिकित्सालय में। कम्पाउण्डर को कुत्ते को दिखाकर कहा, "बिट्टू को बुखार है, पत्नी के घर से लाया गया कुत्ता है जी अगर इसे कुछ हुआ तो मेरा हाल बेहाल हो जाएगा। डॉ को दिखाना है।"

"डॉ तो है नहीं रविवार जो है, पत्नी के मैके गए हैं।"

"तो क्या करें अब आप ही इलाज़ करो इसका। पत्नी के मैके से आया है जरा संभल कर चिकित्सा करो कंपाउंडर बाबू।" कहकर यहीं पड़ी चेयर पर बैठ गये निर्मल बाबू। कम्पाउण्डर ने विमल बाबू को सिर से पैर तक देखते हुए कहा, "सर आप बहुत बीमार दिख रहे हो, पास में अस्पताल है पहले आप अपना इलाज़ करवाइए ।"

"नहीं पहले इसका इलाज़ करो कम्पाउण्डर बाबू।"

"जरूर करूँगा पर पहले आप का चिकित्सा हो जाए। आप बहुत बीमार लग रहे हो, चलिए डॉ के पास ले जाता हूँ।" कह कर वह निर्मल बाबू को पास वाले अस्पताल में ले गया।

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प्रविष्टि क्रमांक - 88

©लता तेजेश्वर रेणुका


4.दृढ़ संकल्प

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"मेरे पिता बीमार है, मुझे जाना चाहिए।" राघव को उद्देश्य करते भारती ने कहा।

"अभी नहीं यहाँ घर कौन संभालेगा?" राघव दाढ़ी बनाते हुए जवाब दिया।

"बेटी बड़ी हो गई है वह घर संभाल लेगी और आप भी तो हो। वैसे भी कुछ दिन की ही बात है जैसे कि उनकी तबीयत में सुधार आएगी तो मैं लौट आऊँगी।" भारती

"मैं नहीं चाहता कि तुम अभी मायका जाओ।" राघव ।

"देखो जी मेरे पिता बीमार है, बेटी के नाते मेरा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है उनकी देखभाल करने का। अगर यहाँ सब ठीक है तो मेरे जाने में क्या परेशानी है?" भारती।

"क्यों कि मैं नहीं चाहता कि तुम अभी जाओ वैसे मेरी बात को टालने की कोशिश मत करना। मैं तुम्हारा पति हूँ, मेरा बात मानना तुम्हारा कर्तव्य है।" राघव।

"मेरे माता पिता के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है, मैं तुम्हारी बीवी हूँ तो उनकी बेटी पहले हूँ।" भारती।

"लेकिन उन्होंने तुम्हारी शादी मुझसे कर दी है तो तुम मेरी जिम्मेदारी हुई। अब तुम पर उनका कोई हक नहीं बनता।" भारती की ओर देखते राघव ने कहा।

"उन्होंने मेरी शादी जरूर करवाई है लेकिन खुद से मुझे अलग नहीं की है जी, उनके प्रति मेरा कुछ कर्तव्य तो बनता है ना?"भारती भी जाने की ठान ली।

"उन्होंने शादी में कन्यादान भी किया है, इसलिये अब तुम पर मेरा हक़ है, अगर मैं ना चाहूँ तो तुम नहीं जा सकती।" राघव अपनी जिद्द पर अड़े रहा, अब उसका अहम की बात थी क्यों के भारती मान नहीं रही थी।

एकदम चुप हो गयी भारती। राघव की इस बात का कोई जवाब नहीं था उसके पास। दान जैसी शब्द से खुद के ऊपर विश्वास खो कर एक बोझ और कैदी जीवन का एहसास होने लगा उसे।

अपने कमरे के खिड़की से बाहर देखते हुए भारती सोचने लगी आखिर माता पिता कन्यादान कर बेटियों को सिर्फ पराया ही नहीं कर देते साथ ही किसी के एहसानों के बोझ के तले हमेशा के लिए दबा देते हैं। दान का पात्र हो कर इस कन्यादान के बोझ लिए बेटियाँ कब तक अपनी इच्छाओं का बलिदान करेंगी?

राघव भारती से कोई जवाब न पा कर अपने अहम को शांत कर मुस्कुराते हुए बाहर निकल गया।

राघव के जाने के बाद भारती सोच में डूब गयी। 'मैंने सालों से अपने हाथों से इस परिवार को बनाया है इस परिवार पर जितना हक़ राघव का है उतना ही मेरा। अगर मैं ससुराल में सास ससुर का सेवा कर सकती हूँ तो मेरे खुद के माता पिता का क्यों नहीं। मैं जाऊँगी और जरूर जाऊँगी दृढ़ निश्चय के साथ उठ खड़ी हुई भारती।'

राघव जब घर लौटा देखा भारती अपना सूटकेस तैयार कर रखी थी, राघव को यह उम्मीद भी नहीं था कि भारती उसके रज़ामन्दी के बगैर ही जाने का फैसला लेगी। भारती घर की चाबी राघव के हाथ थमा कर कहा, "अगर मेरे माता पिता ने मेरा कन्यादान किया है तो मैं उस दान की शब्द को ठुकराती हूँ। क्यों कि मैं कोई दान का वस्तु नहीं। मैं इंसान हूँ और मुझे अपने लिए फैसला लेने का पूरा हक है।" राघव चाबी अपने हाथ में लिए निरुत्तर खड़ा था।

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प्रविष्टि क्रमांक - 89

© श्रीमती लता तेजेश्वर 'रेणुका'


5. आदमखोर भेड़िए

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"बेटी शहर में एक आदमखोर भेड़िया घुस आया है, घर से बाहर मत निकलना।" कहते हुए 8साल की बेटी धरती को घर पर छोड़ दरवाजा बंद करके बाहर निकला ही था सौरभ, तभी रघुनाथ ने घर के कुछ दूर से आवाज़ दिया, "सौरभ जल्दी चल भेड़िए को पकड़ने कुछ पुलिस वाले आये हैं उनके साथ जंगल में जाना है।"

सौरभ के जाने की कुछ ही देर बाद "पापा पापा, मुझे बचाओ।" रोती बिलखती आवाज़ घर के अंदर से बाहर तक सुनाई दी। चिल्लाने की आवाज़ सुनकर उस रास्ते गुजरती अक्षरा दौड़ कर आई और जोर जोर से दरवाज़े पर दस्तक देने लगी। तभी 55 साल की एक आदमी ने अपने कपड़े हाथ में लिए दरवाजा खोल कर बाहर की ओर भाग गया।

धरती की आवाज़ पर लोग चौकन्ना हो गये थे। बाहर निकलते ही उसे दबोच लिया। धरती को समझ में नहीं आ रहा था आदमखोर भेड़िए जंगल में होते हैं या गाँव के गलियों में।


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रचनाकार: लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 85 से 89 // लता तेजेश्वर 'रेणुका'
लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक - 85 से 89 // लता तेजेश्वर 'रेणुका'
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