प्राची अक्टूबर 2018 : कहानी // पूर्व मंत्री जी की जेल और उनकी आत्मकथा // रमेश मनोहरा

SHARE:

कहानी पूर्व मंत्री जी की जेल और उनकी आत्मकथा रमेश मनोहरा कि सी पूर्व मंत्री का जेल जाना अब कोई मायने नहीं रखता है। जेल जाना ससुराल जाने की त...

कहानी

पूर्व मंत्री जी की जेल और उनकी आत्मकथा

रमेश मनोहरा

किसी पूर्व मंत्री का जेल जाना अब कोई मायने नहीं रखता है। जेल जाना ससुराल जाने की तरह हो गया है। मंत्री पद पर रहते घपले-घोटाले करो और जब उन पर न्यायालय में केस दायर हो जाए लड़ो, उन्हें क्या लड़ना- लड़ना तो उनके वकील को है. मुकद्मा कितने सालों तक चले यह संभव नहीं, अतः मंत्री पद का पहले खूब दुरुपयोग करके घपले-घोटाला करता है, फिर उन घपले-घोटाले को लेकर विपक्ष हंगामा करता है। तब भी बेशर्मी से रहते हैं।

यदि वे मुकद्मा हारकर जेल भी चले गये, तब भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसे ही पूर्व गृहमंत्री विश्वनाथ घपले-घोटाले करने के कारण जेल काट रहे हैं। उन्हें 10 साल की सजा हुई है. गृहमंत्री थे। कई थानों, जेलों का उद्घाटन किया था. जिस जेल का उन्होंने कभी उद्घाटन किया था, उसी जेल में आज वे सजा काट रहे हैं, यह कैसी विडम्बना है।

उन्हीं विश्वनाथ के पास उनकी पत्नी सुशीला बैठी हुई है। कभी-कभी वो उनसे मिलने आती हैं। चिंतन के क्षणों में दोनों अपनी बातें करके सुख-दुख बांट लेते हैं। ऐसे में विश्वनाथ कहते हैं, ‘‘ये 10 वर्ष कब बीतेंगे?’’

‘‘धीरज रखें।’’ पत्नी सुशीला कहती, ‘‘आँख मींचते ही बीत जायेंगे।’’

‘‘यहाँ तो एक-एक पल एक-एक वर्ष के बराबर लग रहा है।’’

‘‘विश्वास रखें, ये भी दुःख भरे दिन बीत जायेंगे।’’ पत्नी सुशीला जब यह विश्वास दिलाती है, तब विश्वनाथ के भीतर का क्रोध बढ़ जाता है। ऐसे में सुशीला जब आज उनसे मिलने आई, तो बोलीµ ‘‘सुनो जी.’’

‘‘हाँ भागवान, क्या कहना चाहती है?’’ आवश्यक कार्य करते हुए विश्वनाथ बोलेµ

‘‘आपको जेल में अब फुरसत ही फुरसत है।’’

[post_ads]

‘‘हाँ सो तो है।’’

‘‘मैं चाहती हूं इस फुरसत के क्षणों में आप अपनी आत्मकथा लिखें।’’

‘‘मगर इससे होगा क्या?’’

‘‘अरे आप लेखक की श्रेणी में आ जायेंगे।’’

‘‘एक घपलेबाज मंत्री को कौन लेखक मानेगा।’’ समझाते हुए विश्वनाथ बोले- ‘‘फिर सुशीला जितना तुम समझ रही हो उतना आसान नहीं है ये लिखने का काम।’’

‘‘असंभव भी संभव हो सकता है?’’

‘‘वो कैसे?’’

‘‘अरे नेहरूजी से सीख लीजिए।’’

‘‘क्या किया उन्होंने?’’

‘‘अरे क्या नहीं किया, वे आजादी के लिए जेल गये थे। जेल में उन्होंने ‘भारत एक खोज’ के नाम से किताब लिख डाली थी।’’ समझाती हुई सुशीला बोली, ‘‘क्या आप जेल में रहकर अपनी आत्मकथा नहीं लिख सकते हैं। इससे समय का भी सही सद्उपयोग हो जायेगा।

‘‘हाँ सुशीला, बात तो तुम ठीक कहती हो।’’ जरा सोचकर विश्वनाथ बोले.

‘‘तब फिर देर किस बात की, उठाओ कागज कलम और बन जाओ लेखक।’’

‘‘मगर मेरे साथ घपला-घोटाला लगा हुआ है. आत्मकथा पढ़कर लोग हंसी उड़ायेंगे।’’

‘‘आप अपनी आत्मकथा में यही बताने का प्रयास करें कि घपला-घोटाला मैंने नहीं किया, बल्कि यह विपक्ष की आपके प्रति बहुत बड़ी साजिश है. उस साजिश के तहत आपकों फंसाया गया। जैसे श्री कृष्ण बचपन मैं माखन चुराकर खाते थे, यशोदा द्वारा पकड़े जाते थे, तब अपनी सफाई में श्री कृष्ण कहते- ‘मैंने मक्खन नहीं खाया मां, ग्वाल बालों ने मिलकर मेरे मुख पर जबरदस्ती लगा दिया है।’’

कहकर सुशीला ने अपनी बात पूरी की। तब विश्वनाथ के दिमाग में यह बात बैठ गई। अतः प्रसन्न होकर बोलेµ ‘‘अरे सुशीला, क्या तुमने जबरदस्त आइडिया दिया। मेरी खोपड़ी में यह आइडिया पहले क्यों न आया। अरे सुशीला यह तो हमें गड़ा हुआ खजाना मिल गया।’’ तब पत्नी सुशीला चहकती हुई बोलीµ ‘‘सचमुच आपको मेरी योजना पसन्द आ गई और आप अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं?’’

‘‘हाँ सुशीला, मैं लिखूंगा, ऐसी लिखूंगा कि पलक झपकते चर्चित हो जायेगी।’’ बहुत प्रसन्नता से विश्वनाथ बोले. तुरन्त पुलिसवाले को पास बुलाकर बोलेµ ‘‘हमें एक रीम कागज दो।’’

‘‘मगर सर एक रीम कागज का क्या करेंगे?’’ पुलिसवाले ने उत्सुकता से पूछा।

‘‘हमारे भीतर लेखक दहाड़ें मार रहा है?’’

‘‘ये लेखक किस चिड़िया का नाम है सर?’’ पुलिसवाले ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘लेखक का मतलब लिखने वाला समझे।’’

[post_ads_2]

‘‘समझ गया सर तब तो मैं भी लेखक हुआ।’’

‘‘तुम कैसे हो गये लेखक?’’

‘‘अरे सर, रोजनामचा पर रपट लिखता हूं, तब मैं भी लेखक हुआ कि नहीं।’’

‘‘गलत बिल्कुल गलत।’’

‘‘गलत कैसे हुआ सर, समझाइये।’’

‘‘तुम्हारे कथनानुसार बही खाता लिखने वाला बनिया, फाइल को निपटाने वाला बाबू भी अपने को लेखक कहलाएगा। मैं ऐसे लेखक की बात नहीं कर रहा हूं।’’

‘‘तब फिर किस लेखक की बात कर रहे हैं?’’

‘‘मैं उस लेखक की बात कर रहा हूं, जो उपन्यास कहानियां, नाटक, प्रहसन, कविताएं, यात्रा वर्णन, आत्मकथा लिखते हैं, वे लेखक की श्रेणी में आते हैं।’’

‘‘मगर सर, आपने जिन चीजों का उल्लेख किया है, वे मेरी समझ में नहीं आई। ये उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, कविताएँ क्या हैं, मेरी समझ से बाहर हैं।’’

‘‘तुमको किसने पुलिस में भर्ती कर लिया? तुम नहीं समझोगे. लाओ पहले एक रीम कागज लाकर दो, फिर तुम्हें प्रैक्टिकल करके समझाता हूं।’’ विश्वनाथ ने जब यह आदेश दिया, तब पुलिस वाला सलाम ठोकते हुए बोला, ‘‘जी सर, अभी लाया, बहुत जल्दी।’’

कहकर पुलिस वाला चला गया. विश्वनाथ भीतर ही भीतर प्रसन्न हो रहे थे। सुशीला ने समय काटने के लिए कितनी अच्छी तरकीब बताई थी। समय काटे नहीं कट रहा था। अब दिन भर आत्मकथा लिखने में ही गुजारूंगा। इससे समय का पता नहीं चलेगा। खुद की कथा लिखूंगा. जब वो छपेगी तब तहलका मच जायेगा। सोचते-सोचते सुशीला से वे बोलेµ ‘‘धन्यवाद सुशीला, आत्मकथा के बहाने मेरे विरोधियों को नंगा करने का अच्छा प्लान दिया।’’

‘‘हाँ सो तो है. मगर मैं देख रही हूं, पुलिस वालों पर आपका रूतबा अब भी कायम है। आपका आदेश पाते ही कागज लेने चला गया।’’

‘‘यह सब मुझे नहीं, मेरे गृहमंत्री पद को सलाम कर रहे हैं। अरे जब मैं गृहमंत्री था, तब ये ही पुलिसवाले मेरे आगे पीछे नाचते थे। सुशीला देखना, ऐसी आत्मकथा लिखूंगा जिसे पढ़कर सब दांतों तले ऊँगली दबाकर रह जायेंगे. मगर ये पुलिस वाला अभी तक कागज लेकर क्यों नहीं आया? करूं क्या, इस पर दबाव भी तो नहीं डाल सकता हूं। आज मैं कुर्सी पर नहीं हूं, अतः पुलिस वाला भी लापरवाह है.’’ तभी वही पुलिस वाला उधर से निकलता दिखा. तब विश्वनाथ बोलेµ ‘‘अरे तुम कागज लेकर नहीं आये।’’

‘‘कागज की बात साहब तक पहुँचा दी है।’’ पुलिस ने लापरवाही से उत्तर दिया।

‘‘मगर कागज के लिए साहब से बात करने की क्या जरूरत थी।’’

‘‘मैं कानून से बंधा हुआ हूं सर।’’

‘‘यह कौन-सा कानून, मुआ यह कागज नहीं बम हुआ है।’’

‘‘सर, आपको ऐसा लगता है. मगर मैं आदेश से बंधा हुआ हूं. जब तक साहब इजाजत नहीं देंगे, मैं कागज लाकर नहीं दे सकता।’’

‘‘आदेश से बंधा हुआ। मैं आदेश दे रहा हूं एक रीम कागज लेकर आओ।’’

‘‘माफ करें सर, मैं आपको लाकर नहीं दे सकता. साहब के आदेश का इंतजार करो।’’

‘‘मगर जब तक तुम कागज लाकर दोगे तब तक मेरे सारे विचार दम तोड़ देंगे।’’

‘‘सॉरी सर, मैं कानून से बंधा हुआ हूं।’’ कहकर पुलिस वाला चला गया. विश्वनाथ बौखलाते हुए बोले- ‘‘जेल क्या हुई सबने आँखें फेर लीं।’’

‘‘गुस्सा न करें।’’ समझाती हुई सुशीला बोलीµ ‘‘अपने आप को मंत्री न समझे, यह मत भूलें कि आप अभी जेल में कानून से बंधे हुए हैं।’’

‘‘कानून...कानून...कानून... तुम भी कानून की बात करती हो. सुशीला जब मैं मंत्री था, यही कानून मेरे कदमों के नीचे था?’’ गुस्से से विश्वनाथ यह बात कर रहे थे. तभी पुलिस वाला आकर सुशीला से बोला, ‘‘मैडम, आपका समय कभी का खत्म हो गया। अब एक मिनट भी देर न करें, वरना साहब आकर मुझे डांटेंगे।’’

‘‘अच्छा चलती हूं, आप अपनी आत्मकथा आज से ही लिखना शुरू कर देना।’’ उठती हुई सुशीला बोली.

‘‘क्या लिखूं कागज का तो यहाँ अकाल पड़ा हुआ है।’’ गुस्से सो फिर उबल पड़े विश्वनाथ अभी तक वह पुलिस का बच्चा कागज तक लेकर नहीं आया।

‘‘धीरज रखिये कागज भी मिल जायेगा। जेल में रहकर ऐसी आत्म कथा लिखना, सब पढ़कर दांतों तले ऊँगली दबाते रहे।’’

यह कहकर सुशीला चली गई। मगर विश्वनाथ खा जाने वाली निगाह से उस पुलिस वाले को देखते रहे, जो व्यंग्य से मुस्काता हुआ चला गया था।

विश्वनाथ जेल की सलाखों में अपना क्रोध उगलते रहे। आज वे कागज के लिए तरस गये। जब वे गृहमंत्री थे। तब ये ही लोग उनके आसपास तलवे चाटते थे। उनके एक आदेश पर तत्काल आकर खड़े हो जाते थे। जो वे कहते थे। तत्काल कर दिया करते थे। वे ही पुलिस वाले आज उन्हें आंखें दिखा रहे हैं। कागज अभी तक लाकर नहीं दिया। सुशीला कितनी अच्छी सलाह दे गई। खुद की आत्मकथा लिखो। इस समय उनके भीतर विचार समुद्र की तरह दहाड़ें मार रहे थे। कागज होता तो लिखना शुरू कर देता। कितनी देर हो गई। चार बार उस पुलिसवाले को बुलाकर पूछा। उसका एक ही उत्तर होता- साहब ने अभी इजाजत नहीं दी। कानून के तहत कार्यवाही जारी है। आज जब मैं जेल में हूं तब मुझे सब कानून सिखा रहे हैं। कागज देना या नहीं देना- इस पर कानून का शोध चल रहा है। मतलब सारे कानून मेरे ऊपर ही लागू हैं। ये पुलिसवाले खुद ही कहाँ कानून का पालन कर रहे हैं। अब मुझे कानून का पाठ सिखा रहे हैं। कानून का वास्ता देकर सारे कानून मुझ पर लागू किये जा रहे हैं। यह सब अब भी उनके विरोधी गुट की शरारत है। मुझे जेल में भिजवाने में भी सारा षड्यंत्र भी उन्हीं का है। जेलर से जब कागज मांगे तब वो भी कानून का पाठ पढ़ाकर चला गया। उनको कागज देने में भी कानून आड़े आ रहा है। देर पर देर किये जा रहे हैं। जान बुझकर उन्हें परेशान कर रहे हैं। इस बात को विश्वनाथ को समझ चुके हैं।

उन्हें आत्मबोध हुआ, कानून नाम की कोई चीज होती है। यह भी सच है... मंत्री पद पर रहते उन्होंने खूब घोटाले किये। आये दिन उनके विरोधी घोटाले उजागर करते रहते थे मगर कानून के उन्होंने हाथ पैर बांध दिये थे। आज जब वे मंत्री पद पर रहते हार गये, और विपक्ष की सरकार बन गई तो उनके घोटालों के गढ़े मुर्दे उखाड़े गये। उन पर मुकदमा दायर किया गया। तत्काल उनके खिलाफ फैसला हो गया। उन्हें 10 साल कैद की सजा सुना दी गई। उनकी सरकार होती, तो वे अपने को बचा लेते। आज उनकी ही पार्टी के लोग उनसे मिलने नहीं आते हैं। सत्ता के साथ मिलकर वो भी उनकी राजनैतिक हत्या करना चाहते हैं।

मगर ऐसे में सुशीला ने आत्मकथा लिखने की प्रेरणा देकर उनमें नई जान फूंक दी है. वे अपने आत्मकथा लिखने के लिए अब बेताब हैं. हालांकि लेखक के किटाणु उनमें मौजूद नहीं हैं। मगर क्या हुआ? केवल आत्मकथा का वर्णन तो करना है। कहाँ भाषा में चार चांद लगाना है। जब आत्मकथा पूरी हो जायेगी। जेल से जब छुटूंगा तब किसी बहुत बड़े प्रकाशक से छपवाउंगा. वो भी हजारों प्रतियों में. फिर एक भव्य समारोह में इसका विमोचन करवाऊंगा. प्रदेश के नामचीन लेखकों को बुलाऊंगा. उसकी समीक्षा करवा के यह सिद्ध करवाऊंगा कि आत्मकथा से यह लगता है कि मुझे घोटाले में झूठा फंसाया गया। उन सारे आलोचकों का मुँह बंद करवा दूंगा। हर आलोचक को खरीदकर उससे तारीफ की पुल बंधवाऊंगा.

उन्होंने अपने मंत्री काल में अच्छे-अच्छे हरिशचन्द्र को खरीद लिया था, तब आलोचक किस खेत की मूली हैं। आखिर खरीदने की कला में वे सिद्धहस्त खिलाड़ी रहे हैं। एक बार जब सरकार पर खतरा मंडरा रहा था, सरकार के गिरने की पूरी संभावना लग रही थी, तब मुख्यमंत्री जी ने उनसे गृहमंत्री होने के नाते कहा था कि किसी तरह सरकार को बचाओ. तब विरोधी विधायकों को खरीदने हेतु करोड़ों रुपये खर्च किये थे। उन करोड़ों को निकालने के लिए ही करोड़ों का घपला किया था। उसी का परिणाम मिला था कि उन पर एफ.आई. आर. दर्ज हो गई। मुकद्मा चला और फैसला उनके खिलाफ चला गया. उन्हें 10 साल की सजा हो गई।

‘‘सर ये कागज।’’ पुलिस वाला आवाज देकर कागज दे रहा था, तब वे अतीत से वर्तमान में लौटे। हाथ में कागज लेकर विश्वनाथ बोले- ‘‘एक रीम कागज मंगवाया था, केवल चार कागज लेकर आया।’’

‘‘साहब ने केवल चार कागज दिये.’’ अपनी सफाई देते हुए सिपाही बोला.

‘‘चार कागजµ चार कागज से क्या होगा? बहुत बड़ा ग्रंथ लिखना है मुझे।’’

‘‘साहब ने कहा है- ये कागज पूरे हो जाए, फिर नये देंगे।’’

‘‘मतलब यह है कि मैं बार-बार तुमसे कागज की भीख मांगता रहूंगा।’’

‘‘साहब ने जैसा कहा, वैसा मैंने किया है?’’

‘‘आज मैं मंत्री पद पर होता तो कागज से तुझे तोल देता. जाओ मेरे लिए पूरी एक रीम कागज लेकर आओ. पैसे मुझसे ले जाओ.’’ विश्वनाथ ने आदेश देते हुए कहा।

‘‘आईएम सॉसी सर, मैं आदेश से बंधा हुआ है।’’ पुलिस वाले ने जब यह कहा तब विश्वनाथ तिलमिलाकर बोले- ‘‘ए ज्यादा कानून मत दिखा मुझे-मुझे पूरी रीम कागज लाकर दे. इस समय मेरे भीतर का लेखक बाहर आने के लिए मचल रहा है।’’

‘‘सर, मैं पहले ही कह चुका हूं कि मजबूर हूं।’’

‘‘ठीक है. तू मजबूर है तो संभाल अपने कागज. मुझे नहीं लिखनी अपनी आत्मकथा.’’ कहकर विश्वनाथ ने कागज के टुकड़े करके पुलिस के मुँह पर फेंक दिये। पुलिस वाला व्यंग्य से मुस्काता हुआ चला गया।

--


संपर्कः शीतला माता गली, जावरा

जिला- रतलाम म.प्र. 457226

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्राची अक्टूबर 2018 : कहानी // पूर्व मंत्री जी की जेल और उनकी आत्मकथा // रमेश मनोहरा
प्राची अक्टूबर 2018 : कहानी // पूर्व मंत्री जी की जेल और उनकी आत्मकथा // रमेश मनोहरा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoMzfI8WdLg0WrnUjCaUe8SsMEyG_rg23WhOyo9dusUF3wyYrNe9gEinTISZ3ekaz0Rr3M6ntlTzj95jLLcwHfYdhXJZRjeAkjlYXK-Dakgwb8Qx84rZg5E70HJYkGPe79ndpd/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoMzfI8WdLg0WrnUjCaUe8SsMEyG_rg23WhOyo9dusUF3wyYrNe9gEinTISZ3ekaz0Rr3M6ntlTzj95jLLcwHfYdhXJZRjeAkjlYXK-Dakgwb8Qx84rZg5E70HJYkGPe79ndpd/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/12/2018_13.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/12/2018_13.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content