(3 दिसम्बर 2018 से 16 दिसम्बर 2018तक बना है यह महास्नान पर्वयोग) वृश्चिके मासि सम्प्राप्ते तथार्के गुरू वृश्चिके । नर्मदाया नदी स्नाना...
(3 दिसम्बर 2018 से 16 दिसम्बर 2018तक बना है यह महास्नान पर्वयोग)
वृश्चिके मासि सम्प्राप्ते तथार्के गुरू वृश्चिके ।
नर्मदाया नदी स्नानाद्धि विष्णुलोकमवाप्नुयात ।।
शिवमहापुराण के विद्वेश्वर संहिता के अध्याय 12 के श्लोक 25 में उल्लेखित है कि जब वृहस्पति और सूर्य वृश्चिक राशि में हो तब मागशीर्ष यानि अगहन माह में नर्मदा स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। सूर्य वृश्चिक राशि में वर्ष में एक बार एवं वृहस्पति 12 वर्ष मे एक बार वृश्चिक राशि में आते है। यह महापर्व 12 वर्ष में एक बार आता है ठीक उसी तरह जिस तरह चारों महाकुंभ 12 वर्ष में एक बार आते है। यह 12 साल में आने वाला संयोग इस वर्ष 24 नवम्बर से 16 दिसम्बर तक प्रापत हो रहा है जिसमें 23 दिनों का महापर्व नर्मदना स्नान के लिये अक्षय पुण्यदायी है। आर;के;श्रीवास्तव ज्योतिर्विद के अनुसार 29 नवम्बर को वैधृति योग में विशेष स्नान पर्व की शुरूआत हो चुकी है और 3 दिसम्बर 2018 को उत्पन्ना एकादशी महापर्व पर यह स्नान पर्व पूरे दिन रहेगा वही 7 दिसम्बर 2018 को पुन: अमावस्या को यह संयोग रहेगा जिसमें अमावश्या के साथ वृश्चिक राशि का चन्द्र, वृश्चिक रािश का सूर्य एवं वृश्चिक राशि का वृहस्पति (गुरू) एवं मार्गशीर्ष मास के पॉच दुर्लभ संयोग प्राप्त हो रहे है जिसमें स्नान का विशेष महत्व बतलाया गया है। यह संयोग 16 दिसबर 2018 को दिनभर व्यतिपात योग एवं धनु संक्रान्ति का दुर्लभ संयोग से स्नान के लिये विशेष लाभकारी है।
12 वर्षों बाद नर्मदा स्नान का यह महापर्व सभी को पुण्य देने वाला कल्याणकारी है जिसमें नर्मदाक्षैत्र के निवासियों के लिये यह साक्षात वरदान स्वरूप तो है ही वहीं पुण्यदायिनी नर्मदा में इस मुहुर्त में स्नान से मॉ नर्मदा सहज ही मोक्ष देती है एवं विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। स्कन्दपुराण,पदयपुराण, नारदपुराण,शिवपुराण,महाभारत आदि में नर्मदा में स्नान का अदभुत महत्व बतलाया गया है। नर्मदा की सबसे बडी विशेषता है कि यह जम्बूदीप में प्रकट होने वाली सर्वप्रथम नहीं है एवं कहा गया है कि पूर्वकाल में राजा हिरण्यतेजा के राज्य में इस जम्बूद्वीव में एक भी नदी नहीं थी जिससे देवताओंऔर पितरोंका कोई भी कार्य पूरा नहीं होता था तब राजा हिरण्यतेजा ने पवित्र नदी लाने के लिये भगवान शिव की कठोर साधना व तपस्या की तब शिवजी प्रसन्न हुये और उन्होंने राजा को नर्मदा प्रदान की तब राजा हिरण्यतेजा ने अपने पितरोंका पिण्डदान नर्मदा में किया और सभी पितरगणों को सहज ही शिवलोक उपलब्ध कराया। नर्मदा का यह पहला अवतरण आदिकल्प के सतयुग में माना है तथा दूसरा अवतार दक्षसावर्णि मन्वन्तर में हुआ है। उल्लेख मिलता है कि नर्मदा जम्बूद्वीप में सबसे पहले आयी उसके बाद गंगा का अवतरण हुआ है। मान्यता है कि सरस्वती का जल 3 दिन में पवित्र करता है यमुना का जल 7दिन में पवित्र करता है गंगाजल स्नान करने मात्र से पवित्र करता है वहीं नर्मदा ऐसी प्रभावशाली है जिसके जल के दर्शनमात्र से ही मनुष्यों को पवित्रता एवं कल्याण की प्राप्ति होती है।
गंगा कनखले पुण्या, कुरूक्षैत्रे च सरस्वती।
ग्रामे वा यदिवारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा ।।
हरिद्वार में गंगा को पुण्यदायिनी माना है तथा कुरूक्षैत्र में सरस्वती पुण्यदायिनी है किन्तु नर्मदा तो चाहे किसी भी ग्राम, शहर में, जंगल में बह रही हो वह सभी जगह पुण्यदायिनी है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि विशिष्ट योगों में नर्मदा स्नान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है। वे पर्व है पूर्णिमा, अमावस्या, विषुवयोग, संक्रान्ति, व्यतिपात, वैधृति योग, मन्वादि, युगादि, कल्पादि तिथियों में संक्रान्ति काल में नर्मदा स्नान अक्षय पुण्यदायी है जिसका वाणी द्वारा वर्णन करना असंभव है। जो श्रद्धा से युक्त मनुष्य नर्मदा में स्नान, दान, जप होम और पूजन करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। जो मनुष्य प्रात:काल उठकर पुण्य सलिला मॉ नर्मदा का कीर्तन, भजन, करता है उसका सात जन्मों में किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है तथा नर्मदातट पर जहॉ जहॉ शिवालय है वहॉ वहॉ स्नान करनेसे 1 लाख गंगा स्नान का पुण्यफल मिलता है। कहा भी गया है कि :-
नर्मदे त्वं महाभागा सर्वपापहरी भव।
त्वदप्सु या: शिला: सर्वा: शिवकल्पा भवन्तु ता: ।
हे नर्मदे । तुम बड़ी भाग्यशालिनी हो। तुम सम्पूर्ण पापों का हरण करने वाली हो। तुम्हारे जल में अवस्थित सभी पत्थर शिवतुल्य है। नर्मदा की उत्पत्ति को लेकर अनेक प्रसंग है जिसमें कहा गया है कि –रेवा तु नर्मदा सोमेदभवा मेकलकन्यका । अर्थात उक्त चारोंनाम नर्मदा की उत्पत्ति को व्यक्त करते है तथा दूसरे दो नाम नर्मदा के गुण के मुताबिक है । सोमवंशी राजा पुरूरवा के द्वारा अवतरित होने के कारण नर्मदा का नाम सोमदभवा भी कहलाया है। दूसरी ओर नर्मदा को मेकलसुता भी कहा गया है। पोराणिक मान्यता के अनुसार मेकल, विन्ध्य का पुत्र है। राजर्षि पुरूरवा ने मेकल पर्वत पर कठोर तपस्या करके नर्मदा को स्वर्गलोक से उतारा और वह मेकलपर्वत पर बहने लगी इसलिये वह मेकलकन्या कहलायी। हर्ष उत्साह से पूर्ण करने तथा तन मन को खुशी से आल्हादित करने वाले को नर्मदा कहा गया है।
नर्मद: केलिसचिवे नर्मदा सरिदन्तरे ।
नर्मदा का यह आनन्ददायी स्वरूप उसकी उत्पत्ति से जुड़ा है और देवताओं को सुख प्रदान करने वाला है इसलिये नर्मदा अपने शीतल जल से मानवजाति को नर्म सुख प्रदान करती है तो वही प्रलयकाल के अपार महासमुद्र में जब महाप्रलय था तब उस घोर महाभयकारी अंधकार की कालघड़ी में नर्मदा ने मनु और महर्षि मार्कण्डेय को प्रथम दर्शन देकर उन्हें सुख शांति तो दी ही वहीं उनके प्राणों की रक्षा कर नर्मदा के लौकिक और अलौकिकवरदान वाले सामर्थ होने के कारण अपने नर्मदा नाम को सार्थक कियाकिया। ऐसी मोक्षदायिनी नर्मदा में 12 वर्षों बाद आने वाले इस अजीव संयोग के अवसर पर स्नानादि का पुण्यलाभ लेकर पापाग्नि में जलने वाला मनुष्य सहज ही विष्णुलोक का अधिकारी हो सकता है, ऐसा वर्णन है।
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आत्माराम यादव (पीव)वरिष्ठ पत्रकार
सिटीपोस्ट आफिस के पास, उर्मिलकिराना गली, मोरछली चौक,
वार्ड नम्बर 2, होशंगाबाद मध्यप्रदेश पिन’461001
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