रामधन चाचा की लड़की विवाह योग्य हो गई है। उसके विवाह के खर्चे को लेकर रामधन चाचा आश्वस्त हैं। कतई चिंता नहीं है उन्हें विवाह में होने वाले ख...
रामधन चाचा की लड़की विवाह योग्य हो गई है। उसके विवाह के खर्चे को लेकर रामधन चाचा आश्वस्त हैं। कतई चिंता नहीं है उन्हें विवाह में होने वाले खर्च की। उसका प्रबंध तो नौकरी रहते ही कर लिया था। चाचा किसी स्कूल के अध्यापक तो थे नहीं, वे तो सरकारी महकमें में क्लर्क थे।
चाचा अपनी अड़तीस साला सरकारी जिंदगी में क्लर्क ही बने रहे। नौकरी के आरम्भ में ही जन-सामान्य समस्याओं से जुड़ा एक ऐसा टेबल हाथ लगा कि बाद में उस टेबल को छोड़ने की इच्छा ही न हुई।
जनता से जुड़ा व्यक्ति एकाएक जनसामान्य से अपने आप को अलग कैसे कर सकता है। प्रमोशन के प्रलोभन भी रामधन चाचा को विचलित नहीं कर सके। हालांकि उस टेबल पर जमे रहने के लिए उन्हें बड़ी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं ।जेबें गरम करनी पड़ी। पर जीत अंतत: रामधन चाचा की ही होती थी ।
रामधन चाचा ने जन सामान्य के इस महान कार्य में मात्र विभाग प्रमुख को ही सहभागिता का अवसर दिया। विभाग प्रमुख बदलते रहे पर चाचा ने उन्हें अपने बस में रखा। सारांश यह कि जब चाचा सेवानिवृत्त हुए तो गाँव में कई एकड़ जमीन, बड़ा-सा सुंदर मकान एवं सुख-सुविधाओं की सम्पूर्ण आधुनिक वस्तुएँ घर में थीं।
रामधन चाचा ने एक गहरी सांस लेकर आसमान की तरफ निहारा। होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाए और उनके हाथ स्वत: ही जुड़ते चले गए।
आकाश और ऐसे व्यक्तियों का पता नहीं क्या संबंध है। शायद ऐसे व्यक्ति अपने जीवन की ऊँचाई को आकाश जितना मानते हों और जब तब उसे तौलते रहते हों। ऐसा भी हो सकता है कि आकाश में छुपी गुप्त शक्तियों से इनका कोई गुप्त समझौता हो। साधारण तौर पर ऐसा भी समझा जाता है कि ऐसे व्यक्ति धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। अत: आकाश मार्ग से उस पार रहते कृपानिधानों का आशीर्वाद पाने हेतु ऊपर निहारते हों।
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विज्ञापन-संस्कृति के इस युग में कृपाधनिधान भी विज्ञापित होना चाहते हैं। और उन्हें विज्ञापित करने का कार्य कोई ईमानदार, मेहनतकश, सज्जन व्यक्ति तो कर नहीं सकता। जो मानव स्वयं प्रसाद की लालसा में मंदिर-मंदिर भटककर अपनी क्षुधा शांत करते हैं ऐसे व्यक्ति किस काम के। भगवान को भी अब इंतजार रहता है ऐसे भक्तों का जो सीधे डील करें। पंचामृत, नारियल वगैरह से अलग हटकर कुछ आडियों-वीडियों कैसेट उस भगवान पर निर्मित कराएं तो बात बने। इधर कुछ भगवानों के मीडिया एकाधिकार पर अन्य भगवानों का विचलित होना सहज स्वाभाविक है।
हाँ। तो बात रामधन चाचा की हो रही थी। उनकी लड़की के विवाह की हो रही थी। चाचा की लड़की का नाम विमला है। उच्च पद-सा गोरा रंग, घोटालों-सी बड़ी-बड़ी आँखे, रिश्वत-से लुभावने होंठ, आश्वासन-सी मधुर वाणी, लम्बी रकम-सा लम्बा कद। धनधान्य से भरी हुई किसी मर्सिडीज की तरह। भरी-भरी-सी, उभरी-उभरी-सी। पर साथ ही नाजुक और कोमल-कोमल-सी।
जो देख ले बस देखता रह जाए। जब से गाँव में आई है नित्य टंटे शुरू हो गए हैं। भाई-भाई दुश्मन बन बैठे हैं, मित्र-मित्र शत्रु-सा व्यवहार कर रहे हैं। एक स्वर्ण पदक-सी लुभावनी विमला को पाने की होड़ में आस-पास के गाँव भी प्रभावित होने लगे हैं। पुलिस को काम मिल गया है। लाला की बिक्री बढ़ गई है। विमला ने गाँव में क्रांति-सी ला दी है। चलती है तो भ्रष्ट नेता के पीछे नारे लगाती भीड़ की तरह मनचलों की टोली साथ लेकर चलती है।
रामधन चाचा आजकल कुछ इसी कारण चिंतित हैं। गाँव छोटा है। स्वर्ण पदक किसे नहीं भाता। हो सकता है कोई प्रतियोगिता के नियमों को तोड़कर वाम मार्ग से सामने आ खड़ा हो तो क्या होगा ? बिटिया की जवानी घर में तो छुपाई नहीं जा सकती। और केवल जवानी होती तो इतनी चिंता नहीं थी। केवल जवानी विवाह की मोहताज नहीं होती। सुंदरता, समृद्धता के साथ हो तो ज्यादा हाहाकारी होती है। विमला वेतन की नही बल्कि रिश्वत की रकम-सी थी। अत: ज्यादा लुभावनी थी।
रामधन चाचा की जानकारी के अनुसार विमला के दीवानों में तीन उम्मीदवार प्रमुख थे। वैसे तो सारा गाँव ही उन्मादित था। पर रामधन चाचा जिन्हें गंभीरता से ले सकते थे ,वे तीन ही उम्मीदवार थे। बिरजू, नागेश और हेमंत।
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विमला तीनों को देखकर मुस्कुराती थी। इठलाती थी। बल खाती थी। अभी तक मात्र नजरों का ही खेल चल रहा था। वह उन्हें तौल रही थी। प्रेम विवाह में सदैव लड़के ही तौले जाते हैं।
बिरजू गाँव की प्राथमिक शाला में अध्यापक है। अध्यापक है अत: गंभीरता से प्रेम को ले रहा है। रामधन चाचा को अचानक आदर देने लगा है। उन्हें दूर से देखकर कमानी की तरह झुक जाता है। जैसे किसी दल के विधायक अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के सम्मुख झुके रहते हैं। विमला को देखकर केवल नजरों में ही मुस्कुराता है। एक दिन रामधन चाचा ने उसे घर बुला भेजा। बिरजू ने उस दिन नए परिधान धारण किये और शाम की चाय के समय चाचा के दरबार में पहुँच गया। रामधन चाचा ने उसका पूर्ण निरीक्षण किया और उससे संवाद स्थापित किया।
- - जीवन की सार्थकता किसमें है ?
- - समाधान में।
- - पैसा क्या है ?
- - छल। हाथ का मैल।
- - रिश्वत क्या है ?
- - पाप। अपराध ।
- - पत्नी को कैसे सुखी रखोगे ?
- - अपने प्रेम से। अपने परिवार की मधुर छाया में।
- - जा सकते हो।
नागेश सरकारी अस्पताल में आयुर्वेदीक डॉक्टर है। एक बार विमला को सर्दी-खाँसी की शिकायत हुई थी। तब विमला सम्पर्क में आई थी। तीन माह से लगातार चूरण की पुड़िया खिलाए जा रहा है। कहता है सर्दी-खाँसी जड़ से दूर कर देगा। नाड़ी परीक्षण के समय विमला को टुकुर-टुकुर ताकता रहता है। विमला शर्माती है तो स्वयं भी शर्माता है। आज उसे संदेश मिला है कि उसे रामधन चाचा ने घर बुलाया है। वह उनके घर पहुँचता है।
- - जीवन की सार्थकता किसमें है ?
- - स्वस्थ निरोगी शरीर में
- - पैसा क्या है ?
- - मेहनत की कमाई। पैशेंट की फीस। सरकार की पगार ...
- - रिश्वत क्या है ?
- - गुनाह।
- - पत्नी को कैसी सुखी रखोगे ?
- - अपनी तनख्वाह से। अपनी दवाइयों से। अपने प्रेम से।
- - जा सकते हो।
हेमंत गाँव का थानेदार है। सरकारी जीप से एक चक्कर पूरे गाँव का जरूर लगाता है। जब से रामधन चाचा गाँव में रहने आए हैं थानेदार साहब की गश्त में तेजी आ गई है। अब तो जब-तब उनकी जीप विमला के आस-पास से गुजरती रहती है। वह विमला को देखकर कभी-कभी सौम्य गालियाँ भी देता है। इन गालियों की चर्चा पूरे थाने में है। गालियों की सौम्यता के कारण थाने के लोग विमला को बाईसाहेब मानने लगे हैं।
हेमंत अभी-अभी हफ्ता वसूली से लौटा है। मुख पर परम संतोष है। रास्ते में दो मवालियों से तकरार भी हुई थी। उन्हें पवित्र रिश्तों से जुड़ी गालियों से नवाजकर थानेदार पूर्ण संतुष्ट नजर आ रहे थे कि उन्हें रामधन चाचा का न्योता मिला। थानेदार साहब मुस्कुराए और बोले, बुढऊ रास्ते पर आ गया लगता है। साला मेरे से कुछ ज्यादा ही सरकारी आदमी है। शाम को निर्धारित समय पर हेमंत रामधन चाचा के सामने उनके मुँह पर सिगरेट का धुआँ उड़ाता बैठा था।
- - जीवन की सार्थकता किसमें है ?
- - अबे रिश्ता तो कर। तुम सबका जीवन सार्थक कर दूँगा।
- - पैसा क्या है ?
- - जीवन की मुस्कान। सुख-समृद्धि सब कुछ। तू कितना देगा दहेज में ?
- - रिश्वत क्या है ?
- - रिश्वत ही तो जीवन है। अर्थों से भरा जीवन। तनख्वाह तो पत्नी है रिश्वत प्रेमिका है। मदमाती, गरमाती किसी पराई सौंदर्यवती की तरह लुभावनी। बुढऊ। रिश्वत को समझने में वर्षों लग जाएंगे। उसकी व्याख्या सीमित शब्दों में संभव नहीं है।
- - पत्नी को कैसे सुखी रखोगे ?
- - थानेदार से ऐसा प्रश्न पूछते तुझे शर्म नहीं आती। हमारे यहाँ सिपाहियों की पत्नियाँ राज करती हैं। और तू मेरी होने वाली पत्नी के सुखी होने को लेकर शंकित है। भारतीय पुलिस व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ?
रामधन चाचा कृतकृत्य हो गए। उनके हाथ थानेदार के सम्मुख जुड़ते चले गए। उन्हें अपेक्षित वर जो मिल गया। विमला शर्माती-सी थानेदार के सम्मुख आई। जिसे देखकर थानेदार के मुँह से फिर कोई सौम्य-सी गाली निकली। जिसे आज सबने सुना और सभी खिलखिला कर हँस पड़े।
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परिचय
सुधीर ओखदे
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जन्म -21 दिसम्बर 1961 (बीना मध्य प्रदेश)
शिक्षा -रीवा ,शहडोल और छतरपुर मध्य प्रदेश में .....
1-कला स्नातक -(B.A.)
2-पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान स्नातक -(B.Lib.I.sc)बी.लीब .आई एस सी
लेखन -सभी प्रतिष्ठित हिंदी पत्र पत्रिकाओं में व्यंग्य ,आलोचना , कवितायें और संस्मरण प्रकाशित .
प्रकाशित पुस्तकें -(व्यंग्य)
1-बुज़दिल कहीं के ...
2-राजा उदास है
3-सड़क अभी दूर है
4-गणतंत्र सिसक रहा है
विशेष -1-मुंबई विश्वविद्यालय के B.A. (प्रथम वर्ष) में 2013 से 2017 तक “प्रतिभा शोध निकेतन “व्यंग्य रचना पाठ्यक्रम में समाविष्ट
2-अमरावती विश्वविद्यालय के B.Com (प्रथम वर्ष) में 2017 से “खिलती धूप और बढ़ता भाईचारा”व्यंग्य रचना पाठ्यक्रम में शामिल .
सुधीर ओखदे की अनेक रचनाओं का मराठी और गुजराती में उस भाषा के तज्ञ लेखकों द्वारा भाषांतर प्रकाशित
इंडिया टुडे साहित्य वार्षिकी सहित अनेक साहित्य वार्षिकी और महाराष्ट्र में प्रसिद्ध दीपावली अंकों में रचनाओं का प्रकाशन
आकाशवाणी के लिए अनेक हास्य झलकियों का लेखन जो “मनवा उठत हिलोर“और “मुसीबत है “शीर्षक तहत प्रसारित
सम्प्रति -आकाशवाणी जलगाँव में कार्यक्रम अधिकारी
सम्पर्क -33, F/3 वैभवी अपार्टमेंट व्यंकटेश कॉलनी
साने गुरुजी कॉलनी परिसर जलगाँव(महाराष्ट्र)425002
ईमेल -ssokhade@gmail.com
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