कविता- विवाह से पहले रतन लाल जाट सुना है आजकल विवाह से पहले मिलना-जुलना और साथ रहना किसी और के आम बात है फिर अन्त में ...
कविता- विवाह से पहले
रतन लाल जाट
सुना है आजकल
विवाह से पहले
मिलना-जुलना
और साथ रहना
किसी और के
आम बात है
फिर अन्त में
दिखावे के लिए
शादी कर लेते हैं
पर विवाह नहीं होता है
केवल निबाह होता है
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नेक काम
कुछ नेक काम हो
जो मरने के बाद भी
याद किये जाये
धन-दौलत और
जमीन-जायदाद के तो
नये मालिक बन जाते हैं
फिर आपको याद
शायद ही किया जायेगा
इसलिए कुछ ऐसा करो
जो केवल और केवल
आपकी याद बने
हाथ से किया दान
या सेवार्थ किया कार्य
और दया-प्रेम भाव
जो हमेशा जिन्दा रहता है
आत्मकथा की तरह
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कल जो उसने किया
पहले उसने भी खूब किये थे
काम कई सारे घिनौने
बहू-बेटियों के साथ
करता था गन्दी हरकतें
यहाँ तक कि रहा अपनी हवस
मिटाने की ताक में
अब उम्र ढल गयी
तो दूसरों को मौका मिल गया है
इसी के घर की बहू-बेटी को
अब वो मोहरे बनाकर
बाजी बराबर करने लगे
कल जो उसने किया
आज वही उसके साथ होने लगा है
अब किसी को कुछ कह भी नहीं सकता
क्योंकि उसने भी तो यही किया था पहले
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आम जनता
अपने यहाँ के
वे लोग देखिए
जिन्हें आम जनता
और जागरूक मतदाता
नाम दिया जाता है
उन्हें प्रधानमंत्री या
मुख्यमंत्री के बारे में पूछिए
कुछ विशेष पता नहीं है
मुश्किल से केवल नाम सुना हुआ है
क्योंकि बहुत जगह पर
वो नाम बोलते हुए सुना है
लेकिन सरकार और अधिकार
किसी चिड़िया के नाम जैसा है
इनको विकास और वोट का
कुछ भी पता नहीं होता है
जब कोई पूछता है
अपने और गाँव-शहर के बारे में
तो कहते हैं हमको क्या पता है
क्या हो रहा है
और क्या होने चाहिए
यह इनके लिए
कोई सपना मात्र है
इतनी भोली-भाली जनता
जिसे खुद का नाम पता तक
ठीक तरह से मालूम नहीं है
उसके आगे जब सफेदपोश लोग
हाथ जोड़कर कुछ माँगते हैं
तो फिर इसे कुछ भी
शिकायत नहीं रह जाती है
और आँखें मुँदकर
भेड़चाल चलते हुए
तख्तऔताज बदल देती है
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अभिनय
कितना बड़ा अभिनय
करता है मनुष्य
और कितने ही रहस्य
छिपाये रहता है मन
कोई कितना भी खास हो
चाहे हजारों बातें खुलकर
किसी को कह देता हो
लेकिन कुछ तो रह जाता है भीतर
जो शायद कोई किसी को नहीं कहता है
और कहना भी नहीं चाहिए
चाहे कितना ही विश्वास दिला दे
कई कसमें खाये या वादे करले
लेकिन सच है, मनुष्य परदा रखता है
वरना कोई भी किसी के साथ रहने से
इनकार कर देगा बड़ी आसानी से
इसीलिए यह अभिनय हमेशा
वास्तविक ही नजर आता है
और मन रहस्य को मामूली बात कह
बहुत भीतर दफना देता है
जिसे उसके और खुदा के सिवा
और कोई कभी नहीं जान सकता है
चाहे कोई कितना ही सच्चा हो
और कितना ही प्यार करता हो
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मनमुटाव
उनके बीच कई दिनों से
परस्पर बातचीत बन्द है
तो लोग सोचते हैं कि
अब ये शायद ही कभी बोलेंगे
लेकिन सब उस वक्त
आश्चर्यचकित हो जाते हैं
जब वे देखते हैं कि
वे पल भर में ही
सारे गिले-शिकवे भूल गये
और ऐसा लग रहा था
मानो उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं है
सच है कि वो बहुत लड़े-झगड़े थे
लेकिन इतनी आसानी से मिल जायेंगे
किसी ने सोचा भी नहीं था कभी
हर किसी को यकीन नहीं हो रहा है
लेकिन सबको यह पता नहीं
कि ये कभी दूर हुए ही नहीं थे
क्योंकि उनके दिल हमेशा एक थे
जो सब कुछ भूलकर वापस एक हो गए
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तीज-त्योहार
तीज-त्योहार नाम मात्र रह गये
आम दिन उनसे खास हो गये
अपनों से दूर निकल आगे बढ़ चले
परायों पर जी-जान लगाने लगे
होली के रंग फीके हो गये
राखी के धागे टूट-से गये
दशहरा रावण दहन तक सीमित है
दीपावली पटाखों से काँपती है
अब हर रोज होली जलती है
जन्मों के बन्धन भी छूटने लगे हैं
नवरात्र में ही मंदिर नजर आते हैं
साफ-सफाई की दिलों में जरूरी है
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विज्ञान
जादू विज्ञान के आविष्कार और सभ्यता के विकास का
देखिए, मानव को कितना आसान बदलकर रख दिया
दिलों की जगह मस्तिष्क बजाने लगा अपना डंका
ज़िन्दगी से पहले साँस का पाई-पाई मोल होने लगा
रिश्ते-नाते कल-पुर्जे बन गये
और इन्सान रोबोट या कम्प्यूटर हो गये
सब कल्पना को हकीकत मान बैठे
और भूख-प्यास मात्र हवा से मिटाने लगे
रात दिन की तरह नजर आने लगी
सर्दी पर गर्मी अपने पैर पसार बैठी
दुनिया में एक दुनिया सिमट गयी
या जेब में ही दुनिया बन्द हो गयी
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भविष्य के दहलीज़ पर
अब आ पहुँचे हैं हम
भविष्य की दहलीज़ पर
खड़े हैं मूक बनकर
कोशिश जाने की लाँघकर
जहाँ सुनसान घर
दिखाई दे रहे हैं
और अनाथालय खचाखच भरे
नदी पर बने कल-कारखाने
मंदिर के नाम पर दवाघर हैं
और शादी की जगह समझौते
मनमानी आधुनिकता की आड़ में
विभाजित तन-मन हर घर में
गली-मोहल्ले में पसरा आतंक है
पास आने पर मिल रहे तमाचे
पानी में घुल रहे जहर मीठे
और अँधेरे में बुजुर्ग बिलख रहे
उजाले में बच्चे भटक रहे
दोनों के जिम्मेदार हाथ खड़े किये हुए
गर्त में उतरते नजर आ रहे
हवा कृत्रिम और पानी रंगीन
दिख रहे आकाश में बुझे सितारे
बिना अक्स के घूमती धरती है
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कविता- वह क्या करे
इस शर्त पर
उसकी शादी मंजूर हुई है
कि सामने वाले
इसके भाई के साथ
अपनी लड़की के हाथ पीले करे
वक्त आने पर
दोनों पक्षों ने वादे निभाये
वह बड़ी थी
तो जल्दी ससुराल भी भेजने लगे
उधर लड़की छोटी है
कहकर बहाने बनते गये
अब इसके दो बच्चे हैं
एक लड़का और एक लड़की
इसी बीच उसके
भाई या ननदोई की पत्नी या ननद
और पति या भाई के साला की
बहन जिससे इतने नाम जुड़े थे
वो किसी के साथ भागकर
नये रिश्ते जोड़ बैठी
तो उसको ससुराल से पीहर
बाल-बच्चों के साथ
भगा दिया गया
अब उसे यहाँ आकर
दोहरी जिम्मेदारी उठानी पड़ी
वहाँ के दुख यहाँ कहकर सह लेती
लेकिन यहाँ के दर्द किसे कहे
चुपचाप ज़िन्दगी काटने लगी
बच्चों को पालने लगी
कुछ समय बाद ही
भाई नयी पत्नी ले आया
जो घर आते ही
उसकी छाती पर मूँग दलती
और ताने मारकर कहती
अच्छी होती तो ससुराल वाले
लात मार क्यों भगाते
यह ससुराल नहीं
इस घर में नौकरानी बनकर रहे
नहीं तो नया रास्ता ढूँढ लो
वह क्या करे कहाँ जाये
कोई नहीं बताने वाला है
दूसरे भी हमदर्दी बनकर
उसे भूखी नजरों से देखते
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कवि परिचय
रतन लाल जाट
s/o रामेश्वर लाल जाट
गाँव- लाखों का खेड़ा
पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन
जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पिन कोड- 312202
sarthak rachnaen
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
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