पुस्तक समीक्षा- ■■जीवन का गीत एवं आत्मा की लय हैः ’खोजना होगा अमृत कलश’■■● समीक्षक- सुविधा पंडित कविता संग्रह- ’खोजना होगा अमृत कलश’ लेखक- र...
पुस्तक समीक्षा-
■■जीवन का गीत एवं आत्मा की लय हैः ’खोजना होगा अमृत कलश’■■●
समीक्षक- सुविधा पंडित
कविता संग्रह- ’खोजना होगा अमृत कलश’
लेखक- राजकुमार जैन राजन
प्रकाशक- अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-30
मूल्य- 240 रु.
संस्करण- 2018
पृष्ठ- 120 ,
प्रकाशन वर्ष- 2018
पुस्तक प्राप्ति हेतु संपर्क-09828219919
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राजकुमार जैन राजन का काव्य संग्रह ’खोजना होगा अमृत कलश’ प्राप्त होते ही एक-एक करके समस्त कविताएँ एक साथ पढ़ डालीं। कारण स्पष्ट है कि मानवीय संवेदनाओं से उद्भूत, जीवन के यथार्थ को ईमानदारी से उद्घाटित करती हुई, छंद मुक्त होते हुये भी ये कविताएं जीवन का गीत हैं,आत्मा की लय हैं। इसलिए पाठक का मन इनके साथ एकाकार हो जाता है।
कवि ने पुस्तक को जो शीर्षक दिया है वह सर्वथा उपयुक्त है। ये कविताएँ प्रत्येक व्यक्ति को प्रेरित करती हैं,कि अपना मनोमंथन कर ऐसा अमृत प्राप्त करें जो मृत मानवीय संवेदनाओं को पुनर्जीवित कर दे। कवि ने वस्तुतः अपने दर्द,वेदना,संवेदना,सहानुभूति व साफगोई से मानो अमृत कलश प्राप्त ही कर लिया हो। अपने मन रूपी सागर का मंथन कर दुर्भावना रूपी विष का वमन कर सदभावना रूपी अमिय निथार कर भर लिया हो कलश। जिसका एक अंजुरि भर पान, एक आचमन भी किया जाए तो मृत होती मनुष्यता को नव जीवन दे सकता है।
राजकुमार जैन राजन ने अपनी कविताओं में सामाजिक विसंगतियों पर कड़ा प्रहार करते हुए आक्रोश प्रकट किया है ,जो उनकी परिवर्तन की अदम्य लालसा का परिचायक है। वे कहते हैं ’धरती के अमृत कोश में विष बीज कौन बो गया?’, ’छद्म हंसी के पीछे कपट बहुत गहरा है’, ’रिश्तों को छलनी कर दिया है,झूठ ,कपट,बेशर्मी के शूलों ने’ इन कंटकों की चुभन और दर्द से ही वे आत्मा पर दबाव महसूस करते हैं--’और मेरी आत्मा पर एक दबाव ,निरंतर महसूस होता है,भीतर ही भीतर’,इसी दबाव एवं आत्मावलोकन से कवि को मार्ग मिलता है परिवर्तन व उत्कर्ष का।
सामाजिक कुप्रथाएँ भी कवि को कलम उठाने के लिये बाध्य करती रही हैं। दहेज की आग मासूम बालाओं के सपनों को जला कर राख कर देती है। कवि भी इस जलन से कराह उठता है-’जब-जब भी कोई फूल मुरझाता,दुःख दर्द का गीत उभर आता।’ ’हाशिये पर वह’ में उन्होंने नेताओं और समाज सेवी संस्थाओं के दिखावों पर भी व्यंग्य प्रहार किया है। ’निराश नहीं है वह’ में मजदूरों की व्यथा,’ बेरोजगार में बेरोजगारी की सामाजिक समस्या को मार्मिक स्वर प्रदान किये हैं।
कवि इन विषमताओं से निराश नहीं हैं,वरन अपनी जिजीविषा से नूतन भोर के प्रति आशावादी हैं और प्रत्येक कविता में नव सूर्य के उदित होने की अभिलाषा लिये हैं। ये आशावाद ही इन कविताओं की उपयोगिता सिद्ध करता है।
कवि ने रुदन, विषाद, दारुण्य, कारुण्य के साथ समस्याओं के हल भी सुझाये हैं। उनके स्वरों में-’हारता नही जो परिस्थितियों से जीतता है, फिर वही उत्कर्ष,नए सृजन के साथ।’ वे पुरुषार्थ की ओर अग्रसर करते हैं- ’तुम्हें स्वयं सृष्टा बनना होगा।’ आत्मविश्वास का वरण ही सफलता की पहली सीढ़ी है-’कई बार बिना चले ही थक जाते हैं पाँव, बिना उड़े ही हार का हो जाता है भ्रम।’ ये पंक्तियाँ उन्हें संघर्षशीलता का पक्षधर बनाती हैं।
समस्त कविताएँ कवि की सूक्ष्म अवलोकन सामर्थ्य व अनुपम अनुभव क्षमता का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं-’रात्रि के अंधकार में,जगमगाते जुगनुओं की तरह क्यों नहीं छेड़ देते तुम जंग...’, ’सूखे गुलाबों की पत्तियों में भी खुशबू बची रहती है।’
राजन जी की कविताएं गहरी अनुभूतियों का सार्थक परिणाम हैं। उनके व्यक्तिवाद में भी समाजवाद है।’सीढियाँ उतरते पिता का बेचैन चेहरा,माँ की बदहवासी आज भी याद है’ ऐसा हृदय स्पर्शी चित्रण ,जो अपने अनुभव से समस्त गरीब, मजबूर लोगों की व्यथा को स्वर दे गया है। वे अपने एकांत,मौलिक,जीवंत अनुभवों का उत्कृष्टता से परिचय कराते हैं- ’पत्थर भी होते हैं दिल फेंक,प्रकाश भी करता है इंतजार...।’
’मन का कैनवास’ एक अद्वितीय भावप्रधान कविता है,पर उसमें कवि का आशावाद, आत्मविश्वास डाँवाडोल होता प्रतीत हुआ है,जो पाठकों को सामाजिक परिवेश पर पुनः पुनः विचार करने के लिए बाध्य करता है।
आज राजकुमार जैन राजन जीवन में सफलता के जिस मुकाम पर हैं, वह उनकी अपने अस्तित्व की पहचान कराने की निरंतर कुलबुलाहट का ही परिणाम है , जी उनकी कविताओं में भी दृष्टिगत है-’आखिर अपनी पहचान बनाना चाहूं तो भी कैसे?’
कहीं कहीं उनके प्रतीक कुछ विरोधाभासी हो गए हैं। यथा-’इच्छाओं की जर्जर कुटिया में देखा करता था स्वप्न नव सृजन के।’ में इच्छाओं की कुटिया को जर्जर क्यों कहा है? इच्छाओं को तो स्वर्ण महल सा मजबूत होना चाहिए,तभी तो नव सृजन का सपना साकार हो सकता है।
’रिश्ते आजकल कटुता की हल्की सी आंच में भी भाप बन कर उड़ जाते हैं’ पंक्तियों के प्रति मैं कवि से यह प्रतिप्रश्न अवश्य करना चाहूंगी कि क्या हम यश लिप्सा, स्वार्थ, लोकप्रियता को भावनाओं, आदर्शों, रिश्तों से अधिक महत्व नहीं दे रहे?
यदि ऐसा न होता तो हमें भी इतने कटु अनुभव न होते। क्योंकि हम जिस कसौटी पर औरों को कसते हैं ,स्वयं को भी कसें,जिस तराजू पर औरों को तौलते हैँ, उस पर खुद को भी तौलें तो ज्ञात होगा कि हमारी संवेदनाएं भी इतनी ठोस नहीं थीं। अन्यथा किसी द्रव्य में से केवल जल ही वाष्पित होता है, ठोस नहीं, उसे समय लगता है। अतः हमें भी अपनी संवेदनाओं को इतना ठोस बनाना होगा।
’मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि तुमने दिए थे जो स्वप्न,कहीं खो गए हैं’ कह कर वे मानो रिश्तों के टूटने की अवहेलना कर गये हैं। शायद अब सफलता की चिंता ,टूटन के दर्द से अधिक ,उस पर हावी है। परंतु ये विचारणीय है कि आखिर सफलता की परिभाषा क्या है?
राजन जी की कविताएं आज के दौर में संवेदनशील सच्चे मनुष्य की दुःखद मनः स्थिति का सजीव चित्रण करती हुई इसी के समानांतर आशा के दीप प्रज्वलित करती हैं। कवि मन सत्य,शिव ,सुंदर की स्थापना करना चाहता है। ’उदय होता सूरज अपनी सम्पूर्ण रश्मियों से सत्यम, शिवम , सुंदरम का फिर फैला देगा प्रकाश...।’
मैं पूर्ण विश्वास से कहना चाहूंगी कि प्रत्येक साहित्य प्रेमी को,प्रत्येक मानव को ये कविताएँ अवश्य पढ़नी चाहिए। परिवर्तन की राह में ये कवि की अप्रतिम सौगात है। प्रत्येक पाठक द्वारा ये प्रशंसित होंगीं। अपनी सरल,प्रवाहमयी भाषा के कारण ये जन साधारण के लिए भी बोधगम्य हैं। कवि को कोटिशः शुभकामनाएं।
अंत में मैं यही कहूंगी कि-
’हर बदमिजाज तजुर्बे के बाद, खुशमिजाज ख्वाब का इस्तकबाल है जिंदगी।
नाकामी के गमगीन दौर के बाद, बुलंदियों का कामिल मुकाम है जिंदगी।’
● सुविधा पंडित
155/बी सरदारनगर शास्त्री स्कूल के पास, तलावड़ी सर्कल
अहमदाबाद-382475 (गुजरात )
Shandar lekhan par badhai dono ko
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