सावन ऐसे भी न जाओ सावन ऐसे भी न जाओ वसुंधरा तप्त है प्रेम रस बरसाओ। सावन ऐसे भी न जाओ उम्मीदे आँखों की पूरी कर जाओ कृषकों की आस जगाओ। ...
सावन ऐसे भी न जाओ
वसुंधरा तप्त है प्रेम रस बरसाओ।
सावन ऐसे भी न जाओ
उम्मीदे आँखों की पूरी कर जाओ
कृषकों की आस जगाओ।
सावन ऐसे भी न जाओ
सीमा पर जवान खड़े है
बहनों की सन्देश सुनाओ
गरजो बिजली बन नापाक
दहशत गर्दों की छाती पर
मेघ मल्हार गाओ
सावन ऐसे भी न जाओ
बरसाओ विश्वास की धारा
उमड़ घुमड़ कर बदरी आये
नवस्फूर्ति की अगन जगाओ
सावन ऐसे भी न जाओ
@अविनाश तिवारी अमोरा
बचपन
खोया मेरा बचपन फिर
वही गांव ढूंढता है,
चौपाल के ठहाके
पीपल का छांव ढूंढता है।
पगडंडी खो गए
कांक्रीटों के अंदर
सुख गये पोखर
अमरइया है किधर
तेज है धूप पर छांव
नहीं दिखता है
खोया मेरा बचपन फिर
वही गांव ढूंढता है।
दादा दादी के किस्से
हो गए किताबी
मामा मामी काका काकी
रिश्ते अब हिसाबी
नाना नानी का फिर वही
दुलार ढूंढता है।
खोया मेरा बचपन
वही गांव ढूंढता है।
वो गुड्डे की शादी
वो सपना सलौना
वो अमरूद की चोरी
और घास का बिछौना
यादों की झिलमिल ठाँव
ढूंढता है,
खोया मेरा बचपन फिर वही
गांव ढूंढता है।
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
बूढ़ा दरख़्त
जब भी याद आयी उस दरख़्त की जो खड़ा अविचल।
कितने बचपन सींचे अपने छांव पर निश्छल।।
कुल्हाड़ी का आघात हमने किया।
उन पलों का हिसाब दिया।
बचपन बीता जवानी आयी
जिसकी छांव में दिन बिताई
उसी दरख़्त को आज काटने लगे हैं।
चमन अपना ही हम उजाड़ने लगे हैं।
सुनो इन दतख्तों की करुण पुकार,
उठे है हजारो ंहजार हाथ।
चीत्कारते मुझे बचाओ चीखते
अपनी पीढ़ी बचालो
हो गर इंसान तो
कीमत मेरी पहचान लो
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
कली
मैं कली हूँ मुझे खिल जाने दो
माँ मुझे इस दुनिया में आने दो
जमाने के थपेड़े हंस के सह लुंगी
पढ़ के सपने आपके पूरे करूंगी
पापा इन बंदिशों को टूट जाने दो
अपनी अंगना में मुझे खिल्खिलाने दो।
अभी तो आंखें खुली नहीं है
दुनिया मैंने देखी नहीं है
बेटी हूँ आपकी जमाने को बताने दो
पापा मुझे दुनिया मे आने दो।
मैं ही गीता ,मेरी,सुनीता कल्पना
बछेंद्री पाल हूँ,
मुझमे सम्भावित तेरे सपने
अपरिमित तेरी उड़ान हूँ।
गर्भस्थ हूँ पर अन्तस्थ हूँ तेरे
मुझे घर तेरा महकाने दो
माँ मुझे दुनिया में आने दो।
@अवि
अविनाश तिवारी
जांजगीर चाम्पा
पौधा प्रेम का
आओ एक पौधा लगाएं हम प्यार का
सींचे स्नेह का पानी डालें खाद
दुलार का।
रोकें तेज धूप स्वाभिमान मान का
पोषण दे विश्वास का
सहेजें अपने रिश्ते
छोड़े हठ गुमान का
आओ एक पौधा लगाये
रिश्तों में प्यार का अपनत्व
के अहसास का
दूर करे पुरानी खटास
दिलों में रखें सदा मिठास
श्रद्धा और जज्बात का
आओ एक पौधा लगाएं
प्रेम और विश्वास का।
©अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
दीप जलाएं
आओ हम नवदीप जलाएं
दीपमाला ऐसा सजाएं
आओ हम एक दीप जलाएं
प्रेम और विश्वास का
जगमग ज्योति ज्ञान का
तमस हटे संसार का
जीवन में खुशियाँ फैलाएं
आओ हम नवदीप जलाएं
श्रद्धा तप और त्याग का
जतन करें इस बात का
रिश्ता कुछ ऐसा निभाएं
जिसमें सम्मान हो जज्बात का
अपने घर के मान का
फर्ज कुछ ऐसा निभाएं
देश के अभिमान का
मातृभूमी के यशगान का
समृद्ध भारत के निर्माण का
सुरभित हो जीवन सबका
पल्लवित सौरभ हो सुगंधा
सर्वे भवतु सुखिन: बन जाये हमारी वसुंधरा
दीप ऐसा सब जलाएं आओ हम नवदीप जलाये
दीप पर्व के सभी दिवस अनन्त अशेष अखण्ड अपरिमित
मंगलमय हो
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
जीवन दर्शन
ये जीवन आना जाना है,
यहां नहीं कोई ठिकाना है।
मेरा तेरा कहकर हमने
सब कुछ तो है जोड़ लिया,
महल बनाकर पाषाणों का
रिश्ते नाते तोड़ लिया।
तेरा नहीं रहेगा कुछ भी
सब खाक में मिल जाएगा,
कर्म बचेगा तेरा खाली
बाकी पीछे रह जायेगा।
ये जीवन.....
मैं में करके तुमने प्यारे
हम बनना क्यों छोड़ दिया,
भौतिक दैहिक के पीछे भागे
लौकिक को क्यों छोड़ दिया।।
कल के लिए जमा किया तूने,
अपनों से मुख क्यों मोड़ लिया।
पल भर का जीवन है पगले
क्यो आज को जीना छोड़ दिया।।
ये जीवन......
कर लो मीठी बातें सबसे
मानस जन्म अनमोल है,
तेरा तुझमें कुछ भी नहीं है,
सन्तों के ये बोल है।
माता पिता ही काशी गंगा
इसी में चारों धाम है,
कर लो सेवा माता पिता का
जीवित ये भगवान है।
ये जीवन..........।।
@#अवि
अविनाश तिवारी
धरतीपुत्र
सुनहरी रश्मि किरण जब छू लेती है धान की बालियां,
स्वर्ण कण सा दमकती स्वर्णिम आभा पाती बालियां।
श्रम जल से सिंचित धरा स्वरूप अपनी स्वर्णिम वसुंधरा,
किया श्रृंगार अन्नपूर्णा हरित
समपूर्णित धरणी धरा।
पुलकित पुत्र हलधर स्वरूप है निहारते,
हर्षित मुदित मन से स्वेद हैं बहाते।
धरतीपुत्र पोषण देते धरा का मान
बढ़ाते है,
शोषित होते निरन्तर पर कर्तव्य विमुख नहीं हो पाते हैं।
गर्दन पकड़ती शाहकारों की पीड़ा
सहन नही कर पाते हैं
धरतीपुत्र कर्म कर के भी
रस्सी से झूल जाते हैं।
व्यथा इनकी सुने कौन कैसे रुके
इनकी जीवित समाधि
करुण पुकार दहलाती ह्रदय
कैसे थमे इनकी ये व्याधि।
प्रश्न ये अनुत्तरित काल गर्भ में जाता है
समपूर्णित धरा के भारवाहक का
जीवन इनका हाशिये में जाता है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
#मेरी-बेटियां
महकती गुलाब हैं,शहरे आफताब है।
चाँद है पूनम की मेरी बेटियां लाजवाब है।
पुलकित है घर फिरती ये
तितलियां
चहकती आंगन में रंगोली है बेटियां।
संस्कारों से सुसज्जित अबूझ है
पहेलियां
पिता के ह्रदय का स्पंदन नाजुक
मेरी बेटियां।
सुरभित है वो सदन जिसमें बजती इनकी पैजनिया है।
सुगन्धा सी निर्मल घर का ये गहना है।
आंखों में प्रेम होंठों पर मुस्कान है
भगवान इस घर पर सदा मेहरबान है
लक्ष्मी बरसती सम्पन्नता की थान है
सच मे बेटियां ईश्वर का वरदान है।
@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
[16/11 15:49] avinashtiwari: #काव्य-माला-18
सबला
युगों युगों से सहते आये नारी की व्यथा करुणा है,
अबला नहीं अब सबला है ये दुर्गा लक्ष्मी वरुणा है।
द्रौपदी आज बीच सभा चीत्कार रही,
कितनी सारी निर्भया खून
के आंसूं बहा रही।
चीर हरण अब रोज होता कृष्ण नहीं अब आते हैं,
छोटे छीटे मासूम भी हवस की भेंट चढ़ जाते हैं।
अर्जुन बना बृहनलला देखो,भीष्म शैया पर सोते हैं,
विदुर चले अब शकुनि चाल द्रोण
गुरुत्व को खोते हैं।
सीता की अग्नि परीक्षा बीच चौराहे होती है,
कटी नाक शूर्पणखा को प्रतिदिन
लम्बी होती है।
महिषासुर का मण्डन करते रामायण को भूल रहे,
बन्दूक उठा के आज युवा घर
अपना ही फूंक रहे।
अब तो नारी सजग होकर शस्त्रों
का संधान करो,
चंडी काली दुर्गा बनकर नवयुग
का निर्माण करो।
छद्म रखे निर्बलता के बंधन
सारे तोड़ दो,
तूफानों से टकराने को नाव उधर ही मोड़ दो।
मंज़िल तेरी हिम्मत तेरा पथिक व्यर्थ क्यूँ थकता है,
वही सफल जिसको #शमशान की,राख का चूरा लगता है।
निर्भय हो कूद पड़ो समर में चामुंडा अवतार हो,
तोड़ो बन्धन छद्म हया की देश की कर्णधार हो।
थाम लो तलवार अब तुम रानी लक्ष्मी बाई हो,
सुनीता कल्पना गीता जैसी आज
की तरुणाई हो।
तुम आज की तरुणाई हो........
©अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
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