गाड़ी प्लेटफार्म से चलने लगी तभी वह दौड़ी-दौड़ी आई और गाड़ी में सवार हो गई। भीतर क़दम रखते ही उसे संतोष हुआ। दो पल अपनी आंखें मून्दे वह दरवाज़े क...
गाड़ी प्लेटफार्म से चलने लगी तभी वह दौड़ी-दौड़ी आई और गाड़ी में सवार हो गई। भीतर क़दम रखते ही उसे संतोष हुआ। दो पल अपनी आंखें मून्दे वह दरवाज़े के पास ही खड़ी रही। शायद ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी। अगर गाड़ी छूट जाती तो उसे निराशा होती। हो सकता है जहां उसे जाना हो वहां के लिए यह एकमात्र ही गाड़ी हो। उसके शांत चेहरे पर उभर रहे भावों से यही महसूस किया जा सकता था।
दो पल बाद उसने आंखें खोली। ऐसे लगा जैसे वह चैतन्य हो उठी हो। अब उसने क़दम आगे बढ़ाए और बैठने का स्थान तलाशने लगी। कोच में बैठे यात्री यह काम पहले ही कर चुके थे। आदत के अनुसार हर यात्री फैलकर बैठ चुका था। उसने किसी से कहा, थोड़ी जगह देंगे?‘ यात्री ने रूखेपन से जवाब दिया, जगह है कहां?‘
दूसरे यात्री की ओर उसने देखा, जो आंखें बन्द किये नींद आने का प्रदर्शन कर रहा था। ट्रेन में बैठते ही किसी को इतनी गहरी नींद कैसे आ सकती है, यह मन ही मन सोचते हुए वह आगे बढ़ी।
अब वह जहां खड़ी थी वहां रमेश मौजूद था। रमेश के साथ पत्नी रजनी और पांच साल का बेटा राज।
सिमटी हुई वह खड़ी थी। उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें,तन पर ओढ़ी गई शाल की सिलवटों से होड़ कर रही थी। उसे दो पल खड़ा देख रमेश समझ गया कि वह यहां बैठना चाहती है। रजनी अपने बेटे राज को खिड़की से बाहर के दृश्यों को दिखाने में मशगूल थीं।
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रमेश अपनी जगह से थोड़ा रजनी की तरफ खिसका और इशारे से उसे बैठने को कहा। रजनी की तरफ खिसकते ही रमेश के पास बनी जगह पर वह बैठ गई। बाहर के सुन्दर दृश्यों को देखती रजनी का ध्यान इधर हुई हलचल से भंग हुआ। उसने देखा रमेश के पास कोई नया यात्री बैठ गया है। उसने आंखों ही आंखों में रमेश से कुछ कहा। रमेश समझ गया है कि रजनी कह रही है ,‘ट्रेन मे इतनी सहानुभूति दिखाने की क्या जरूरत है? अब ठस कर बैठना पड़ेगा।‘
रमेश की आंखों से आ रही बात रजनी ने भी पढ़ी, ‘ठीक है,सभी बैठकर चले जाएंगे। किसे यहां हमेशा बैठना है। गाड़ी तेज़ गति से चली जा रही थी। बाहर के दृश्यों को देखकर ऊब चुका राज अब भीतर देख रहा था। वह आमने-सामने बैठे यात्रियों के चेहरे पढ़ने की कोशिश कर रहा था। हर चेहरे में उसे कोई न कोई आकृति नज़र आ रही थी जिसे देख वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था।
सामने की सीट पर चार यात्री बैठे थे। एक के हाथ में अख़बार था,जो उसे इस कदर पकड़े था कि कहीं कोई मांग न ले। दो युवक अपने हाथों में मोबाइल थामे अपने सुनहरे भविष्य की राह खोज रहे थे। एक ग्रामीण सीट के कोने पर सिमटा सा बैठा था। इधर सीट पर रमेश की दम्पत्ति और वह महिला।
सफर जारी था। राज बार-बार मचल रहा था। रजनी उसे बहला रही थी। कभी कुछ खाने को देती। कभी पानी पिलाती। सहसा राज ने कुछ और खाने की ज़िद की। रजनी ने बैग से बिस्कुट का पैकेट निकाला तो राज ने इनकार कर दिया। नमकीन दिया तो वह भी राज को पसन्द नहीं आया।
राज को ज़िद करता देख ,पास बैठी महिला से रहा नहीं गया। उसने अपनी झोली से कागज़ की पुड़िया निकाली। उसे खोला। उसमें मूंगफली थी। महिला ने पुड़िया राज के आगे की। मूंगफली को देख राज के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गए। वह मूंगफली उठाता उससे पहले ही रजनी ने कहा-‘यह मूंगफली नहीं खाता।‘
राज ने मां की तरफ देखा। आंखों ही आंखों में रजनी ने राज को धमकाया। बेचारा बच्चा ख़ामोश हो गया।
महिला ने रमेश के आगे पुड़िया करते हुए कहा,‘लो भैया, आप तो खाओ।‘
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हालांकि रमेश यह जानता था कि सफर में किसी अनजान यात्री से कुछ लेना ठीक नहीं है,फिर भी उसने एक मूंगफली उठा ली।
मूंगफली छिलते ही रमेश की नज़र रजनी से मिलीं। रजनी ने इशारे से कहा,‘ मूंगफली मत खाओ। पता नहीं कौन औरत है यह। इसमें कुछ मिला रखा हो।‘
एक हाथ में मूंगफली के छिलके और दूसरे हाथ में दाने लिये रमेश असमंजस में पड़ गया। अगर नहीं खाए तो महिला का अपमान और खाए तो पत्नी के आदेश की अवहेलना। रमेश ने बात संभालते हुए मूंगफली के दाने मुंह में रखने का नाटक किया।
वह बोला,‘अरे वाह, अच्छी मूंगफली है।
इतना सुनते ही महिला का चेहरा खिल उठा। गाड़ी में सवार होने के बाद पहली बार उसके चेहरे पर ऐसी रौनक देखी गई। उसने पुड़िया आगे की। बोली,‘और लीजिए न।‘
अब रमेश और मुसीबत में पड़ गया। जिस चीज़ की तारीफ की उसे न ले तो कैसे? वह बात संभालते हुए बोला, ‘नहीं,रहने दो। घर पर बच्चों को देना।‘
महिला मुस्कुराई। बोली,‘बच्चों के लिए ही तो ले जा रही हूं।‘यह कहते हुए उसने रमेश के आगे झोली खोल कर रख दी। पूरी झोली मूंगफली से भरी हुई थी। रमेश आश्चर्य से बोला,‘इतनी सारी मूंगफली? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?‘
महिला बोली,‘दो बेटियां है।‘
‘दो बेटियों के लिए इतनी मूंगफली?‘
अब महिला ने रमेश की ओर इस तरह देखा कि रमेश खुद झेंप गया। उसे लगा यह कैसी बात कर दी मैंने। कोई अपने बच्चों को कितना ही खिलाए,दूसरा बोलने वाला कौन होता है।
बात संभालते हुए रमेश ने पूछा,‘कितनी बड़ी हैं तुम्हारी बेटियां।‘
महिला बोली,‘बड़ी बेटी तो मेडिकल की पढ़ाई कर रही है जयपुर में। छोटी बेटी कोटा में रहकर कोचिंग कर रही है। वह इंजीनियर बनना चाहती है।‘
महिला के इतना कहते ही रमेश के तो पैंरों तले ज़मीन खिसक गई। इतनी साधारण महिला की बेटियां इतनी होनहार। रजनी की नज़रें रमेश से मिलीं। उसकी आंखों में भी यही सवाल था।
रमेश बोला,‘ बेटियों को मूंगफली काफी पसंद है क्या?‘
वह बोली,‘ इन्हें खा कर ही तो बड़ी हुई है। कल ही फोन पर कह रही थी-मां,तुम्हारी मूंगफली याद आ रही है।,यह सुनते ही मुझसे रहा नहीं गया। घर में जितनी मूंगफली पड़ी थी,सब झोले में भरी और गाड़ी में बैठ गई।
रमेश को लगा, वाकई यह इस मां की शक्ति का ही कमाल है जिसने अपनी बेटियों को होनहार और संस्कारवान बनाया। रमेश ने उसकी झोली में से कुछ मूंगफली उठाई और राज की ओर बढ़ाई। वह बोला,‘ लो, बेटा। इन्हें खा लो। इनमें एक मां का प्रेम समाहित है। यह तुम्हें भी ताक़त देगा।‘
राज मूंगफली खाने लगा। रजनी के चेहरे पर पश्चाताप के भाव थे। वह महिला मूंगफली खाते राज में अपनी बेटियों के बचपन को ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रही थी।
संक्षिप्त परिचय
नाम - आशीष दशोत्तर
जन्म - 05 अक्टूबर 1972
शिक्षा - 1. एम.एस.सी. (भौतिक शास्त्र)
2. एम.ए. (हिन्दी)
3. एल-एल.बी.
4. बी.एड
5. बी.जे.एम.सी.
6. स्नातकोत्तर में हिन्दी पत्रकारिता पर विशेष अध्ययन।
प्रकाशन - 1 मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा काव्य संग्रह-खुशियाँ कैद नहीं होती-का प्रकाशन।
2 ग़ज़ल संग्रह 'लकीरें',
3 भगतसिंह की पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक-समर में शब्द-प्रकाशित
4 नवसाक्षर लेखन के तहत पांच कहानी पुस्तकें प्रकाशित। आठ वृत्तचित्रों में संवाद लेखन एवं पार्श्व स्वर।
5. कहानी संग्रह 'चे पा और टिहिया' प्रकाशित।
पुरस्कार - 1. साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा युवा लेखन के तहत पुरस्कार।
2. साहित्य अमृत द्वारा युवा व्यंग्य लेखन पुरस्कार।
3. म.प्र. शासन द्वारा आयोजित अस्पृश्यता निवारणार्थ गीत लेखन स्पर्धा में पुरस्कृत।
4. साहित्य गौरव पुरस्कार।
5, किताबघर प्रकाशन के आर्य स्मृति सम्मान के तहत
कहानी, संकलन हेतु चयनित एवं प्रकाशित।
6. साक्षरता मित्र राज्य स्तरीय सम्मान
सम्प्रति - आठ वर्षों तक पत्रकारिता के उपरान्त अब शासकीय सेवा में।
संपर्क - 12@2,कोमल नगर,बरबड़ रोड
रतलाम (म.प्र.) 457001
E-mail- ashish.dashottar@yahoo.com
achchhi kahani
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