हम दागी हैं ..... मुन्ना भाई, जग्गू हठेला के साथ मेरा पता ढूंढते हुए आये। जग्गू हठेला ने परिचय कराते हुए कहा ,ये मुन्ना भाई हैं , अपने इलाके...
हम दागी हैं .....
मुन्ना भाई, जग्गू हठेला के साथ मेरा पता ढूंढते हुए आये।
जग्गू हठेला ने परिचय कराते हुए कहा ,ये मुन्ना भाई हैं , अपने इलाके के ख़ास नए उम्मीदवार। अब की बार रूलिंग पार्टी ने इनको टिकट दिया है। आप तो इन्हें अखबार की सुर्ख़ियों में पढ़े होंगे ?
मुझे दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की मशक्कत नहीं करनी पड़ी। 302 का आरोपी मेरे सामने था। इलाके के दबंग मुन्ना भाई का कट्टा, मेरे बरामदे में रखे सेंटर टेबल के उस टांग पर पड़ गया, जो पहले से कमजोर था। लिहाजा वो महज तीन टांगों पर बिलकुल मेरे अधमरे पैरों की तरह काँप रहा था ..।
मैंने लड़खड़ाती जुबान को काबू रखने की कवायद करते उनको बतलाया , "भाई जान के अलावा अपना और पूरे परिवार का वोट कहीं गया नहीं है।" आप नहीं भी आते तो आपको .....मैं अपनी बात पूरी करता उससे पहले हठेला ने बयान किया , हम वोट के लिए अभी निकले कहाँ हैं ...?
भाई जान को एक विज्ञापन ड्राफ्ट करवाना है .....?
विज्ञापन और मुझसे ...? मैं तो कवि और अदना लेखक हूँ ....। किस्से ,कहानी, कविता या चुनाव है तो कुछ जिंदाबाद के नारे लिख सकता हूँ। कोई तर्ज दो तो विरोधी को उखाड़ने की पैरोडी बना सकता हूँ।
आप आज आइडिया दे जाइये कल सुबह तक 'माल' मिल जाएगा।
मुझे पहली बार किसी साहित्य विधा की चाशनी में पगे चीज को 'माल' कहते हुए शर्म सी आई।
मूढ़ लोगों के बीच में बात , उनकी भाषा में बताने से संप्रेषणीय हो जाता है,कुछ-कुछ इस टाइप का इल्म मुझे था।
इस बीच भीतर कमरे में रखी मोबाइल की घण्टी बजी।
मैंने एक्सक्यूज मी वाले अंदाज में, चाय नाश्ता भिजवाने की बात कह भीतर पहुंचा।
श्री आदेश पलटवार जी, अपने नए अंक के लिए कुछ चाहते थे।
मैंने आई मुसीबत को बखाना ....।
-कौन हठेला .... वही तो नहीं जो गंज मण्डी में पल्लेदार था ,हाथ ठेला चलाता था। वहीं से उसका नाम हठेला पड़ गया। वो धीरे -धीरे मुन्ना ठाकुर के साथ छुटभैया नेतागिरी करते,आज उसका दाहिना हाथ है।
मैंने कहा, पलटवार जी , मैं हेंडल नहीं कर पाउँगा। तुम्हारे पास भेजता हूँ।
उसने समझाया ,बेवकूफी मत करो ... वे लोग कौन साहित्य के शोध -छात्र हैं। कुछ भी लिख के टरका दो ...बस इतना ख्याल रखना कि 'मटेरियल' में कोई पकड़ की बात न रह जाए।
उन्हें पहले निपटा ,मैं फिर लगाता हूँ।
वापस उनके बीच पहुंच के मैंने हठेला जी को कहा , (जी लगाना मेरी मजबूरी में शामिल जान के पढ़े) आप सविस्तार अपने विज्ञापन का मौजू बताइये ..... ?
हठेला ने पूछा ये मौजू क्या है ....?
मैंने कहा किस अखबार में कितने बड़े फांट में किस जगह छपना है।
वो बोला , अपने इलाके में चार अख़बार हैं ,मुन्ना जी चारों के एडीटर को नजदीकी से जानते हैं। जहाँ कहेंगे आयोग के दिशा-निर्देश मानते हुए छाप देंगे।
वे छपाई का खर्चा भी न लेंगे, बावजूद आयोग में जमा करने को पुख्ता बिल देंगे। मुझ पर उनकी दबंगई हॉबी करवाने का नुस्खा चल पड़ा था।
हठेले ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा ,घबराओ नहीं। भाई जान खुश हुए तो आपके 'बिल'का पाई-पाई नगद दे जाएंगे। पारदर्शिता का मामला है।
हठीले ने भविष्य में किसी काम को 'पास' करवाने का जिम्मा भी लिया।
मैंने मन ही मन सोचा लेखकों को किसी एडीटर पर दबाव डालने की जिस दिन शुरुआत हुई, उस दिन से साहित्य का पतन चालू हुआ समझो .....।
वे चले गए ... एकाएक कट्टा उठा लेने से ,मेरे सेंटर टेबल की चौथी टाँग पूर्व की स्थिति में लौट आई मगर मेरी हालत में पहले सा कुछ नहीं रह गया था।
अब मेरे सामने, उनके द्वारा दिए गए व्याख्यान से 'मुन्ना-चालीसा' विज्ञापन रस निचोड़ना था।
मैंने लिखा ,
मेरे प्यारे मतदाताओं !
आज मैं आपके सामने अपना जी खोल के रखता हूँ।
मैं गरीब ,अछूत जात में पैदा हुआ। मुझमें संगठन क्षमता थी। साथियों से कभी धोखा नहीं किया। पार्टी वाले मुझे किसी बन्द या हड़ताल में ढूंढ के निकाल लेते। मैं उनके एवज डंडा खाता ,धरा 144 के उल्लंघन पर जेल जाता। इस किस्म के करीब 10 अपराध पर मेरी आये दिन पेशी होती है। मेरा अपराध क्रमांक और आगे की पेशी तारीख का मैं उल्लेख नीचे कर रहा हूँ।
मुझ पर किडनेपिंग, फिरौती का भी आरोप है। इस अपराध के बारे में आपने तब के अखबार में पढा होगा। कई पत्रकारों ने मेरी भूमिका को सराहा है। मैंने, भष्टाचार में गले तक लिप्त अधिकारियों के खिलाफ, कई आंदोलन किये ,उस समय के सरकार को चेताया , मगर सरकार स्वयं उन्हीं लोगों की हिफाजत में खड़ी थी, लिहाजा मुझे सामने आना पड़ा। इन अपराधों की संख्या छै है। इसे भी आपकी जानकारी में ला रहा हूँ।
अब रही बात 302 की ...? ये विरोधियों की चाल है। मामला अपराध क्रमांक 1111 पर मुझे बेल मिली है। अगर संगीन होता तो मैं बाहर नहीं होता। अभी यह अदालत के अधीन है अत: इस विषय में व्यापक पक्ष रखना उचित नहीं है।
आप मतदान के दिन निर्भयता से मुझ पर भरोसा करते हुए मेरे पक्ष में वोट दे सकते हैं।
आपका सदैव निर्भय भाई ,
मुन्नाभाई ठाकुर
उम्मीदवार ......सत्तापक्ष दल
हठेले ने इस विज्ञापन राइटिंग पर इतना जरूर कहा, हम सत्ता काबिज होते ही आपको, राज्य-राजभाषा आयोग का चेयरमेन बनाने का वादा करते हैं।
मुझे लगा बन्दूक की नोक पर मेरा चयन 'हिंदी' के लिए कितना उत्साही परिणाम देगा पता नहीं ,,,,?
--
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3
दुर्ग छत्तीसगढ़
COMMENTS