आज एक सम्भ्रांत ब्राण्ड ने अपने जन्मदाता पिता के मृत्यु का शोक संदेश इस प्रकार दिया- समस्त विरादरी के ब्राण्डों, सप्लायर ब्राण्डों, प्रतियोग...
आज एक सम्भ्रांत ब्राण्ड ने अपने जन्मदाता पिता के मृत्यु का शोक संदेश इस प्रकार दिया-
समस्त विरादरी के ब्राण्डों, सप्लायर ब्राण्डों, प्रतियोगी ब्राण्डों और नकली ब्राण्डों को अत्यंत दुख और वेदना के साथ सूचित कर रहे हैं कि दिनांक 1 अक्तूबर, 2018 को हमारे जन्मदाता लाला हरिराम का 85 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया।
इस लोक से परमधाम की यात्रा सुनिश्चित करने के लिए आप सभी 13 अक्तुबर 2018, श्याम 4 बजे ग्लोबल सिलेब्रेटी हाल, रोहिणी, दिल्ली में आयोजित शोकसभा में सम्मिलित होकर उनके परमगति के लिए प्रार्थना करें और हमें शक्ति दें :
जितेन्द्र
जीवन
विनोद जिजीविशा
श्याम
विज्ञापन के नीचे परिवार के सदस्यों की सूची थी। सबसे नीचे दाई ओर मोटे अक्षरों में जिजीविशा ब्राण्ड का लोगो तटस्थ और निर्विकार ठिठका था।
भव्य और सुशोभित हाल में सफेद गद्दों और तकियों की व्यवस्था थी। दीवारों से लगी गद्देदार सफेद कुर्सियां वृद्धों के लिए थी।
पारिवारिक पूजारी की अपनी पीड़ा थी उससे रहा नहीं गया। वह माताजी के चरणों बैठ गया ‘माताजी मेरे पिता से लेकर मैं, मेरे छोटे भाई पिछले 50 वर्षों से आपके यहां सभी प्रकार के धार्मिक कर्मकाण्ड करते आ रहे हैं। बड़े बेटे के जन्म से लेकर उनके विवाह, बहनों का विवाह, उनके बच्चे सबका नामकरण, सुन्दरकाण्ड, सत्यनारायण की कथायें, नवग्रहों को शांति, सबकी जन्म-कुण्डलियां भी हम बनाते रहे हैं।’
माता जी समझ गयी, ‘अब लालाजी का देहांत हो गया है, उसका भी सारा कर्मकाण्ड आपकी ही देखरेख में ही होगा।’
‘ठीक है माताजी, मैं यही चाहता था। मैं अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखुंगा।’
वह माताजी के चरणों में झुक ही रहा था कि माता बोल पड़ी, ‘क्या कर रहे हो पण्डित जी, क्यों मेरा पाप बढ़ा रहे हो?’
जीवन ये सुन रहा था। पण्डितजी को सावधान करते हुए बोला, ‘बहुत बड़े ग्लोबल सेलेब्रेटी हॉल में शोकसभा का आयोजन है। डेढ़ से दो हजार लोग वहां आयेंगे। आप जिम्मेदारी तो ले रहे हो, अच्छा सम्बोधन होना चाहिए। अच्छा कथाकार होना चाहिए। किरकिरी ना हो, उनकी मण्डली अच्छी हो, 5 लाख का किराया है हाल का पण्डितजी। और तो और, ग्लोबल सेलेब्रेटी हॉल के 10 कर्मचारी और सिकुरिटी गार्ड भी हमारे साथ होंगे। इन सभी बातों का ध्यान है आपको? हॉल देखते ही दंग हो जायोगे?’
‘बिल्कुल, मैं जान चुका हूं, अनुभवी विद्वान कथावाचक को लाऊंगा। आप उनके कार्यक्रम की सीडी देखना चाहो तो देख लो एक बार। आप मना नहीं करेंगे।’
‘ठीक है सीडी देखने का टाइम नहीं है।’ जीवनभैया निश्चिंत हो गये।
रमाशंकर पण्डित ने कथावाचकों से बात की, सब निश्चित हो गया। कथावाचक बोले, ‘मेरे साथ चार संगीतकार आयेंगे, तबला, हारमोनियम, बांसुरी और झंझेरीवाला।’
‘और कौन-कौन आनेवाले हैं?’
‘हरे रामा-हरे कृष्णा की मण्डली।’
‘और?’
‘और उन्होंने किसी के कहने पर किसी ब्रह्मचारी को आमंत्रित किया है।’
‘और?’
‘दस-बीस शोक संदेश भी तो पढ़ेंगे?’
‘ठीक है। 10-15 मिनट तो मेरे लिये है, 10-15 मिनट आप भी लेंगे। हरे रामा-हरे कृष्णा वाले भी 10-15 मिनट लेंगे। एक घंटा यों ही बीत जायेगा।’
‘अच्छे साउंड सिस्टम की व्यवस्था है, प्रोजेक्टर लगेगा, हर आने-जाने वाले की भी तस्वीर दिखाई देगी। आपके भी साक्षात दर्शन होंगे सबको, और आपकी वाणी का प्रसाद सबको मिलेगा।’
‘वाह! रिकॉर्डिंग कर लेना, मैं भी तैयारी के साथ आऊंगा, आगे यूट्यूब में भी डाल लेंगे। ऐसे अच्छे मौके पर बोलना बड़ा अच्छा लगता है।’
दस वर्ष की आयु में लाला हरिराम हिसार से दिल्ली अपने पिता के साथ आये थे। किसी तरह 10वीं पास की और कारोबार की उधेड़बुन में लग गये। विवाह हुआ 4 बेटे और 4 बेटियों का जन्म हुआ। लाला हरिराम ने खूब पसीना बहाया था। तब तो कपड़े भी फट जाते थे। कबाड़ से लेकर चना दाल तक बेचा। फिर प्लास्टिक के कंटेनर बनाने शुरू किये। अब तक कई मिले-जुले असली-नकली ब्राण्ड बनाते गये। बल्कि हरेक थोक व्यापारी के लिए अलग-अलग स्टीकर लगाकर माल बेचते रहे।
जितेन्द्र, जीवन, विनोद और श्याम लड़कों में जीवन ने बी.कॉम और एमबीए कर लिया। होशियार था। इस तरह कारोबार में जीवनभैया का नाम बढ़ता गया। वैसे हरिराम ने चारों लड़कों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए 8 ब्राण्डों का पंजीकरण करा लिया था। चार फिर भी दौड़ रहे थे। जीवनभैया को कारोबार की अच्छी समझ थी, उसने एक ही ब्राण्ड से अपनी पहचान बनाना चाहा। इस तरह चारों भाईयों के नाम का एक-एक अक्षर जोड़कर जिजीविशा के नाम से ब्राण्ड खड़ा कर दिया। अब जीवनभैया कारोबार का नेतृत्व करने लगा और उसकी भूमिका निर्णायक रहती है।
पिता की इस शोकसभा में आने वाले सभी शोकाकुल और व्यवहारकुशल लोग जीवनभैया को अपना चेहरा दिखा रहे थे। इस दुखद घटना के अवसर पर अनेक ब्राण्डों के संवाहक, घोर प्रतियोगी भी जीवनभैया के साथ सफेद कुर्ता-पैजामा पहने पालथी लगाये बैठे थे। उनके चेहरे पर दुःख, संवेदना के स्थान पर उनके ब्राण्ड की चमक दिखाई दे रही थी।
एक कुछ समृद्ध, शांत, गम्भीर व्यक्तित्व का धनी पालथी मांडे योगमुद्रा में बैठे था। उसने अपने सामने गद्दे पर चौड़ा मोबाईल आड़ा खोल रखा था। ऐसे लग रहा था जैसे वह भगवत गीता पढ़ हुए असार संसार में सार ढूंढ़ रहा हो।
सेलेब्रिटी हॉल के व्यासपीठ के नीचे दाई ओर आकर्षक फ्रेम में लाला हरिराम का फोटो बहुत दिव्य और पवित्र दिखाई दे रहा था। पास में चंदन की आगरबत्तियां सर्पिली लहरों में धुंआ फेंकते हुए खुशबू फैला रही थी। सुन्दर मेहरूमी गुलाबी हार लाला हरिराम की फ्रेम में चढ़ा हुआ था। एक सुंदर गहरी थाली में ऐसे ही गुलाबी की पंखुड़ियां हर एक के पूजन के लिए छोड़ी हुई थी। इसके अतिरिक्त पंडितजी के लिए एक सुन्दर बड़ा-सा गहरा शोकदानपात्र भी रखा हुआ था। बारी-बारी लोग आते तस्वीर पर फूल-पंखुड़ियां चढ़ाते, दानपात्र में नोट रखते, लाला हरिराम के चित्र को नमन करते और घूमकर शोकमग्न परिवारजनों को हाथ जोड़, मौन संवेदना व्यक्त करते और अपने स्थान पर जाते।
सारे बच्चे पारिवारिक सदस्य बहुत सुंदर, नये, शूभ्र, मखमली कुर्ता-पैजामा पहने बैठे थे। जीवनभैया और उनके तीनों भाई प्रोजेक्टर में सभी आने-जाने वालों के जीवंत चित्र देख रहे थे और साथ-साथ अभिवादन भी स्वीकार कर रहे थे।
‘जीवन आता है, जीवन जाता है’ इस प्रकार कथाकार के प्रवचन का सार था। शेष माईक की सिस्कियों के कारण कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
फिर, ‘माटी कहे कुम्हार को तू क्यों रोंदे मोहे’ यह भक्ति गीत कथावाचक के मुख से निकला तो माईक की सिसकियां और तेज हो गई। शेष भजन उपस्थित लोग अपने-आप अनुभव करने लगे। फिर भी उन्होंने अंत तक गाया। संकेत मिलने पर उन्होंने हाथ जोड़े और अपना आसन और माईक चोटीदार सिर-मुंडे सफेद धोती-कुर्ते वाले हरे-हरे, कृष्णा मंडली को दे दिया। उन्होंने आत्मा को कोई जला नहीं सकता, आत्मा को कोई काट नहीं सकता, आत्मा तो बस वस्त्र बदलता है। इस प्रकार भाव-विभोर व्याख्या की। यहां माईक धीमे-धीमे सिसकियां ले रहा था कि अचानक विस्फोटक रूप में हड़बड़ाया। सभा स्तब्ध हो गयी।
तब कुशल सीनियर माईक ऑपरेटर आया, उसे फूंक मारकर बाहर निकाला और उसके स्थान पर दूसरा कठोर माईक रख दिया। प्रोजेक्टर सब ठीक-ठाक दिखा रहा था।
कुछ छोटे व्यापारी, उद्योगपति और आपूर्तिकर्ता जिनमें लाला हरिराम के कुछ सम्बन्धी भी थे। वे एक कोने में खुस-फुस कर रहे थे-
‘मेरा तो साढ़ू लगता है रिश्ते में। जब भी जीवन से पेमेंट की बात करता हूं कहता अभी पिताजी बीमार हैं। 2 साल से लटका रखा है।’
‘रिश्तेदारों के ये हाल है, दूसरे छोटे-छोटे सप्लायरों पर क्या गुजर रही है।’
‘अरे तू तो साढ़ू है, मैं तो उसके दामाद का बड़ा भाई हूं। जीवन यही कहता है कि तुम्हारा मामला तो लालाजी देखेंगे। अब क्या देखेंगे? लालाजी वो तो गये।’
‘माल बेचने की खूब शर्तें हैं? तो सप्लायरों को तंग करने का क्या मतलब?
‘अरे 900 करोड़ का कारोबार है। जब तक मांगों नहीं पेमेंट ही नहीं करते। अपनी रकम मांगने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है। पता नहीं क्या-क्या बहाने बना देते हैं।’
‘तीनों भाई भी ऐसे ही हैं, जिसे कहो यही कहते है। जीवनभैया से कहो। अरे तुम भी तो डायरेक्टर हो कम्पनी के। लेकिन बहाना बना रखा है। जीवन भाईया से कहा तो कहते हैं जाओ एकाउंटेंट से हिसाब कर लो।
‘और एकाउंटेंट कहता है, ‘हिसाब तो लेजर में है क्लीयर है। तुम जितना कह रहे हो उतना ही निकलता है। लेकिन जब तक ऑडर नहीं मिलता मैं चैक नहीं काट सकता।’
‘अरे हम तो पब्लिसिटी वाले हैं, हमें ऑर्डर लेने से ज्यादा पेमेंट लेने में दम लगाना पड़ता है।’
एक्जिबिशन इवेंट वाला कहने लगा, ‘तीन लाख का स्टॉल लगाया, तीन साल हो गया। जीवनभैया मेरा फोन ही नहीं उठाता। शुरू-शुरू में जब बात हुई थी तब कहने लगे तुम्हारी इज्जत रखने के लिए मैंने स्टॉल डेकोरेट किया था। मुझे तो फालतु में तीन लाख लगे स्टॉल डेकोरेशन करने में।’
शांति पाठ हुआ। सभी लोग बाहर आये। अपने-अपने टोकनों से जूते वापस लिये, पहने और प्रसाद जलपान के लिए एक अन्य बड़े हॉल में उपस्थित हुए। वहां नेस्केफी, टाटा-टी, बिसलेरी, ब्रिटानिया, बिट्टू, बीकानेरी, ट्रॉफीकोना, पतंजलि, पारलेजी, लेज, कैट्स, मैरीगोल्ड, गुलाब की मठरी आदि उपस्थित थे।
ओहो, जाते समय जिजीविशा का एक नया पोस्टर एकाएक दिखाई दिया। इस पोस्टर में गूगल से निकली मुस्कुराती सौभाग्यवती महिला हाथ जोड़ आभार प्रदर्शित कर रही थी और नीचे ब्राण्ड का नाम जिजीविशा लिखा था।
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