भारत जैसे युवा शक्ति से गौरवान्वित और महिमामंडित देश के युवाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वो अशिक्षित और उदासीन लोगों को वोट का महत्व बताकर उन...
मतदाता जागरूकता अभियान का असर देखिये कि विगत वर्षों के दौरान मतदाता पंजीकरण,विशेषकर युवाओं में बहुत तेजी से बढ़ता गया है। 2010 के बाद हुए लगभग सभी राज्य विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में मतदाता वोट डालने आये। इनमें युवाओं और महिलाओं की भागीदारी अधिक रही। निर्वाचन प्रबंध प्रक्रिया के केन्द्र में मतदाता पंजीकरण तथा निर्वाचक शिक्षा हैं, लेकिन गुणवत्ता तथा मात्रा की दृष्टि से भारत में मतदाता भागीदारी आदर्श भागीदारी वाले लोकतंत्र से अभी भी दूर है। इसे एक चुनौती के रूप में लेने की ज़रुरत ही नहीं, बल्कि ज़मीनी और विश्वसनीय प्रयासों से इस दूरी को पाटने की पहल भी ज़रूरी है। लेकिन, स्वीप प्लान इस दिशा में प्रभावी भूमिका का निर्वहन कर रहा है। मकसद साफ़ है कि लोग अपनी सरकार का चुनाव ही न करें बल्कि अपने देश के नव निर्माण में भी योगदान दे सकें। अब की बार तो चुनावों में ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन के इस्तेमाल को लेकर भी एक निहायत जरूरी कदम के नाते विशेष जागरुकता अभियान जारी है।
स्मरणीय है कि भारत निर्वाचन आयोग व्यक्ति की मत की शक्ति तथा उसकी अधिकारिता के बीच गहरे आपसी संबंध को जानने के लिए लगातार कार्यक्रम बना रहा है। इसमें जन सहभागिता एक ज़रूरी ज़िम्मेदारी है। स्वीप कार्यक्रम अपने बहुआयामी नवाचारों और प्रयासों के साथ सौ फीसद मतदान के निर्धारित उद्देश्य को अमल के रास्ते पर लगातार आगे बढ़ा रहा है। बेशक हम एक लोकतांत्रिक देश के स्वतंत्र नागरिक है। लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत जितने अधिकार नागरिकों को मिलते हैं, उनमें सबसे बड़ा अधिकार है वोट देने का अधिकार। इस अधिकार को पाकर हम मतदाता कहलाता हैं। कोई दो राय नहीं कि भारत जैसे दुनिया के विशाल लोकतंत्र में मतदाता होना स्वयं गौरव की बात है। गौरतलब है कि 25 जनवरी 1950 को देशभर के सभी चुनावों को निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ कराने के लिए भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ और 26 जनवरी 1950 से गणतंत्र दिवस मनाने का सौभाग्य देशवासियों को मिला। अब निर्वाचनों में जागे हुए जनमानस की भागीदारी का महत्व बढ़ता जा रहा है। स्वीप उसकी अहम कड़ी है।
भारत में नयी सदी के हालिया दो दशक में निर्वाचन जागरूकता अभियान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया का भाग बन गया है। लेखक साक्षी है कि उस दौर का भी जब केवल चुनाव का शंखनाद होने के बाद चुनावी माहौल सरगर्म हुआ करता था, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। लोकतंत्र की इस अहम कड़ी को ज्यादा से ज्यादा मज़बूत बनने में अब कोई कसर बाक़ी न रह जाए इस पर पूरी गम्भीरता बरती जा रही है। यही कारण है कि मतदाताओं के पंजीकरण से लेकर मतदान के प्रोत्साहन के विविध कार्यक्रम हर साल चलाये जा रहे हैं, ताकि मतदान का प्रतिशत बढ़े। मतलब ये कि शहरी और ग्रामीण इलाके ही नहीं, पहुंचविहीन क्षेत्रों, बियाबानों और पर्वतों-घाटियों तक मतदाताओं को जगाने की मुहिम जोर पकड़ चुकी है। इसमें मानव संसाधन से लेकर आधुनिक तकनीक के प्रयोग तक सारे संभव अनुष्ठान किये जा रहे हैं। लेखक का मानना है कि स्वीप प्लान इसी पहल की ख़ास कड़ी है।
प्रारंभ भारत निर्वाचन आयोग ने 2010 में अपने हीरक जयंती समारोह में कम निर्वाचक जागृति तथा मतदाताओं के कम बाहर निकलने के विषय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए मजबूत लोकतंत्र के लिए विशाल भागीदारी को अपना थीम बनाया था। इसी वर्ष देश का मतदाता भागीदारी संबंधी सबसे बड़ा कार्यक्रम-एसवीईईपी, बिहार विधानसभा चुनावों में प्रारंभ हुआ। सरल शब्दों में एसवीईईपी नीति संबंधी पहल तथा गतिविधियों की श्रृंखला है, जिनका उद्देश्य निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी बढ़ाना है। यह तब से सूचना में अंतर,प्रेरणा तथा मदद की कमियों को दूर करने तथा कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़ाने से जुटा है। 2009 के अंत में झारखंड के चुनावों में आईईसी यानी सूचना, शिक्षा तथा संचार का उपयोग हुआ था और इसके बाद 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में चरणबद्ध मतदाता, शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी अर्थात एसवीईईपी कार्यक्रम आगे बढ़ाया गया और 2011 में तमिलनाडु, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, संघ शासित प्रदेश पांडिचेरी के विधानसभा चुनाव में भी यह कार्यक्रम जारी रहा। यह पांच राज्यों-उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, उत्तराखण्ड तथा मणिपुर में जारी रहा तथा फिर हिमाचल प्रदेश के दो आम चुनाव में तथा 2012 में गुजरात में और 2013 में पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा, मेघालय तथा नगालैण्ड में जारी रहा।
ईपीआईसी/पहचान,प्रमाण,मतदान,केन्द्र स्थल, ईवीएम उपयोग,मतदान का समय, आदर्श आचार संहिता के संबंध में क्या करें तथा क्या न करें, उम्मीदवार या उनके सहयोगियों द्वारा मतदाता को प्रभावित करने के लिए धन, बाहुबल तथा शराब का इस्तेमाल होने पर शिकायत कैसे दर्ज करें। यह देखा गया कि मतदान न करने वालों में एक बड़ा हिस्सा युवाओं और महिलाओं का है। मतदाताओं के सभी वर्गों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने सूचना तथा प्रेरणा में अंतर को पाटने का निर्णय लिया तथा साथ-साथ मतदाता सूची में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया आसान और सहज बनाने तथा मतदान के अनुभव को मतदाताओं के अनुरूप बनाने का काम किया। व्यवस्थित क्रियान्वयन चरणबद्ध मतदाता शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी इकाई वोट देने वाली जनता, सिविल सोसाइटी समूहों तथा मीडिया से निरंतर संवाद करने के अतिरिक्त नीति और ढ़ांचा तय करती है, नीतिगत प्रयास करती है और क्रियान्वयन पर निगरानी रखती है। निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों को शामिल करने के लिए एसवीईईपी में सूचना, प्रेरणा तथा सहायता जैसे अनेक कदम होते हैं, जिनसे प्रयास किया जाता है।
गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने 18-19 वर्ष के आयु वर्ग में नये मतदाताओं को जोड़ने के लिए शैक्षिक संस्थानों यथा एनवाईकेएस,एनएसएस,एनसीसी जैसे युवा संगठनों के साथ सहयोग किया। आयोग ने निर्वाचन प्रक्रिया के बारे में युवाओं तथा विद्यार्थियों के बीच और अधिक जागरूकता बढ़ाने तथा मतदाता पंजीकरण में उनसे सहायता मांगी। आयोग ने स्वास्थ्य, शिक्षा, डब्ल्यूसीडी, सहकारिता, कल्याण आदि जैसे केन्द्र तथा राज्य सरकारों के विभागों के साथ सहयोग किया, ताकि यह विभाग निर्वाचक शिक्षा तथा निर्वाचक तक पहुंच के लिए अपनी अवसंरचना तथा मानव शक्ति यानी फील्ड कर्मी दे सकें।
निर्वाचक भागीदारी के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने में सरकार तथा निजी मीडिया के साथ-साथ सिविल सोसाइटी तथा मान्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करने से मतदाता जागरूकता में मदद मिली। 2013 में भारत निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षऱ किए। इसके बाद से निर्वाचक साक्षरता भारत सरकार के साक्षऱ भारत कार्यक्रम का प्रमुख अंग बन गयी। भारत निर्वाचन आयोग तथा यूएनडीपी के बीच मतदाता शिक्षा के क्षेत्र में करार हुआ।
कैंपस एम्बेसडर बनाये गये जो कैंपस में विद्यार्थी होता है और आयोग के दूत के रूप में काम करता है तथा शैक्षिक परिसरों में एसवीईईपी कार्यक्रमों में सहायता देता है। आज भारत निर्वाचन आयोग के एसवीईईपी कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए निजी मीडिया घराने तथा कॉरपोरेट आगे आ रहे हैं। एसवीईईपी रणनीति के हिस्से के रूप में सहायता एसवीईईपी के तहत पंजीकरण, मतदाता पहचान-पत्र जारी करने तथा चुनाव प्रक्रिया को मतदाता के लिए सुविधाजनक बनाने के तौर-तरीके सुझाने जैसे क्षेत्रों में मतदाताओं को सहायता देने के नये कदम उठाये गए हैं। इन प्रयासों में सभी जिलों में मतदाता हेल्पलाइन, मतदाता सूची में इंटरनेट तथा एसएमएस के जरिये नाम खोजने, मतदाता सहायता बूथ, आदर्श चुनाव केन्द्र ईवीएम से परिचित कराने संबंधी शिविरों, मतदाता पर्ची तथा पहचान-पत्र का दायरा बढ़ाने यानी ईपीआईसी के अलावा अन्य प्रमाणों को मतदान के लिए वैध बनाने जैसे कदम शामिल हैं।
भारत निर्वाचन आयोग ने लोगों तक पहुंचने के उद्देश्य से 2011 में अपना स्थापना दिवस 25 जनवरी, को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की। इसे एसवीईईपी के विभिन्न प्रयासों में महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को पूर्ण वास्तविक रूप देने के लिए मतदाताओं की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। युवा पीढ़ी को जिम्मेदार नागरिक का भाव देने तथा उन्हें मताधिकार के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारत निर्वाचन आयोग बड़ी तादात में मतदान केन्द्रों में नये योग्य पंजीकृत मतदाताओं की सहायता करता है। उन्हें फोटो युक्त पहचान-पत्र तथा बैज दिया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग ने जनता के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए लोकप्रिय छवि के लोगों की क्षमता की पहचान की और जागरूकता कार्यक्रमों को तेजी देने, तथा मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए राष्ट्रीय तथा राज्यस्तर पर लोकप्रिय छवि वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति की. राज्यों में ऐसे व्यक्तित्व हैं जो एसवीईईपी के प्रयासों में शामिल हैं।
आधुनिक टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा योगदान लोगों की जिंदगी तक इंटरनेट की पहुंच है। भारत निर्वाचन आयोग ने बदलते समय के साथ रहने के लिए अपनी वेबसाइट को नया रूप दिया, ताकि बिना किसी बाधा के नागरिकों को सभी तरह की सूचना और सेवाएं दी जा सकें। जिला तथा राज्य स्तर पर मतदाताओं की जागरूकता बढ़ाने तथा मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। अधिकतर राज्यों के मुख्य निर्वाचन कार्यालयों के अपने फेस बुक पेज हैं, ताकि टेक्नोलॉजी प्रेमी युवा मतदाताओं तक पहुंचा जा सके। मतदाता का ऑन लाइन पंजीकरण भारत में एकमात्र प्रणाली है, जहां कोई व्यक्ति फोटो युक्त मतदाता पहचान-पत्र सरकारी कार्यालय गए बिना पा सकता है। वेबसाइट पर ऑनलाइन जनसांख्यिक ब्यौरा बदलने तथा आवेदन की निगरानी जैसी सुविधाएं भी प्राप्त हैं। यह हर नागरिक के लिए गर्व की बात है कि भारत निर्वाचन आयोग सृजनात्मक रूप से लोगों को निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उत्साहित करने में जुटा है। अब यह हम सबकी जिम्मेवारी है कि इस अभियान को कामयाबी की मंज़िलों तक पहुँचायें।
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राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक
एवं शोध निदेशक
हिंदी विभाग,
शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय,
राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
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