वार्तालाप एवं आत्म-कथ्य // महेन्द्र भटनागर द्विभाषिक कवि महेंद्रभटनागर डॉ. सुरेशचंद्र द्विवेदी Dr. Mahendra Bhatnagar’s is one of the signi...
वार्तालाप एवं आत्म-कथ्य // महेन्द्र भटनागर
द्विभाषिक कवि महेंद्रभटनागर
डॉ. सुरेशचंद्र द्विवेदी
Dr. Mahendra Bhatnagar’s is one of the significant post-independence voices in Hindi and Indian English Poetry, expressing the lyricism and pathos, aspirations and yearnings of the modern Indian intellect. Rooted deep into the Indian soil, his poems reflect not only the moods of a poet but of a complex age.
हिन्दी प्रगतिशील कविता के द्वितीय उत्थान के प्रमुख कवि महेंद्रभटनागर का रचना-कर्म सन् 1941 के लगभग अंत से प्रारम्भ होता है। परिमाण की दृष्टि से उन्होंने अधिक नहीं लिखा। उनकी लगभग एक-हज़ार कविताएँ ही उपलब्ध हैं। किन्तु गुणवत्ता की दृष्टि से उनकी काव्य-सृष्टि महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि उनकी ख्याति आज देश-व्यापी ही नहीं; विश्व-व्यापी है। वे इंटरनेट के माध्यम से ग्लोबल समाज में जाने-पहचाने जाते हैं।
अधिकांश भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त, अनेक विदेशी भाषाओं में भी उनकी कविताएँ अनूदित व पुस्तकाकार प्रकाशित हैं। उनकी काव्य-कृतियों से भारतीय कविता समृद्ध हुई है। अपनी समाजार्थिक-राजनीतिक चेतना-सम्पन्न एवं मानवीय सरोकारों से सम्बद्ध काव्य-सृष्टि के कारण वे हिन्दी और Indian English साहित्येतिहास में विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनके कविता-संसार में जीवन-राग, प्रेम और प्रकृति की भी मार्मिक अभिव्यक्तियाँ उपलब्ध हैं। हमने उनसे जो बातचीत की वह अविकल रूप में यहाँ प्रस्तुत है।
अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य से सम्बद्ध अपनी पृष्ठभूमि पर यदि कुछ प्रकाश डाल सकें।
अंग्रेज़ी भाषा से संबंध बचपन से ही रहा; क्योंकि अंग्रेज़ी शिक्षण-अध्ययन की माध्यम रही। मैट्रिक, इंटरमीडिएट, बी.ए., एल.टी. आदि परीक्षाओं का माध्यम अंग्रेज़ी रही। माध्यम ही नहीं, पाठ्य-क्रम का एक विषय भी अंग्रेज़ी रहा। बी.ए. में अंग्रेज़ी-साहित्य विषय ऐच्छिक था; किन्तु सामान्य अंग्रेज़ी अनिवार्य। सामान्य अंग्रेज़ी के पाठ्य-क्रम में अंग्रेज़ी-साहित्य की कृतियाँ भी निर्धारित थीं। यथा - बर्नार्ड शॉ का नाटक ‘आर्म्स एण्ड द मैन’, चार्ल्स डिकन्स का उपन्यास ‘ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़’, राजनीतिक वादों पर निबन्ध-संग्रह आदि। ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग’ के ‘विशारद’ पाठ्य-क्रम में मेरा एक ऐच्छिक विषय अंग्रेज़ी-साहित्य भी था। तब अंग्रेज़ी-कविता के अध्ययन का अवसर मिला। ‘गोल्डन ट्रेज़री’ नामक प्रसिद्ध काव्य-संकलन पाठ्य-क्रम में निर्धारित था। शेक्सपीयर के विश्व-विख्यात नाटक ‘जूलियस सीज़र’ का अध्ययन भी तब इसी कारण किया। ‘जूलियस सीज़र’ के संवादों ने मुझे बड़ा प्रभावित किया। उनसे शेक्सपीयर के मन-मस्तिष्क की गहराई व ऊँचाई का बोध हुआ। ‘ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़’ से तत्कालीन यूरोपीय जन-जीवन की झलक पा सका। इन दिनों रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताएँ भी अंग्रेजी में पढ़ीं। भूगोल, अर्थशास्त्र, शिक्षा-शास्त्र आदि सभी पाठ्य-विषयों का माध्यम अंग्रेज़ी रही। अध्ययन-काल के दौरान (सन् 1941 से 1945) जिस अंग्रेज़ी-साहित्य से वास्ता रहा; उसका प्रभाव आज भी बना हुआ है। ‘विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर’ में अंग्रेज़ी-विषय मुझे अंग्रेज़-प्राचार्यों ने ही पढ़ाया - श्री. बी.ए. इंग्लिश और श्री. एफ़. जी. पियर्स। इस अवधि में, दैनिक समाचार-पत्र अंग्रेज़ी में ही पढ़ने को मिलते थे - ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ आदि। जब-जब घर से बाहर रहना पड़ा, पिता जी को पत्र अंग्रेज़ी में ही लिखता था। पिता जी भाषा-त्राटियाँ सुधार कर मेरे पत्र मुझे लौटा देते थे। मेरे अल्प अंग्रेज़ी-भाषा-ज्ञान पर नाराज़ होते थे। घर-परिवार की आर्थिक दशा शोचनीय होने के कारण, बी.ए. उपाधि प्राप्त करने के बाद (सन् 1945) नौकरी करनी पड़ी। हाई स्कूल में भूगोल - हिन्दी अध्यापक बना। तदुपरान्त इंटरमीडिएट कॉलेज में हिन्दी-व्याख्याता (सन् 1950)। जिन विद्यालयों-महाविद्यालयों में कार्यरत रहा; वहाँ के अंग्रेज़ी-अध्यापकों से मेरे संबंध विशेष सहज व घनिष्ठ रहे। अंग्रेज़ी की पत्रिकाएँ भी देखता-पढ़ता था। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘मॉडर्न रिव्यू’ का नियमित पाठक था। यही से प्रकाशित होने वाली हिन्दी मासिक पत्रिका ‘विशाल भारत’ से मेरे संबंध स्थापित हुए (सन् 1949)। इस प्रकार, अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य से निरन्तर जुड़ा रहा।
आप मूलतः हिन्दी भाषा के कवि हैं; अंग्रेज़ी में काव्य-रचना के प्रति आप कब और क्यों आकृष्ट व प्रवृत्त हुए?
अपनी कविताओं के अन्य भाषाओं में अनुवाद का विचार कभी मन में आया नहीं। अचानक (सम्भवतः सन् 1953 में कभी), ‘प्राहा विश्वविद्यालय, चेकोस्लोवेकिया’ के हिन्दी-प्रोफ़ेसर व कवि (जो चेकोस्लोवेकिया-विभाजन के बाद, भारत में चेक-गणराज्य के राजदूत बने) डॉ. ओडोलन स्मेकल का पत्र मिला कि वे मेरी कविताओं के चेक-भाषा में अनुवाद करना चाहते हैं। सर्वप्रथम, चेक-भाषा में मेरी कविताओं के अनुवाद हुए; जो ‘Novy Orient’ नामक चेक-पत्रिका में प्रकाशित हुए (सन् 1954); चेकोस्लोवेक-रेडियो से प्रसारित हुए।
चेक-भाषा के बाद, अचानक ही, अंगरेज़ी में भी अनुवादों का क्रम प्ररम्भ हुआ; जो आज-तक बना हुआ है। English organ of the Nagari Pracharni Sabha, Varanasi ने ‘The Hindi Review’ नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। सम्पादक थे ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ के अंग्रेज़ी-प्रोफ़ेसर डॉ. रामअवध द्विवेदी। उन्होंने काव्यानुवाद प्रकाशनार्थ भेजने के लिए मुझे प्रेरित किया। ‘The Hindi Review’ में मेरी अनेक कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए। डॉ. रामअवध द्विवेदी जी ने मुझे लिखा,‘‘मुझे बड़ी खुशी है कि आपकी कविताओं का अच्छा स्वागत हो रहा है। ‘हिन्दी रिव्यू’ का प्रकाशन यदि बंद न हुआ होता तो कुछ और अनुवाद छप गए होते।’’(दि. 19 अप्रैल 1963 का पत्र / देखें - ‘महेंद्रभटनागर-समग्र’, खंड - 6, पृ.. 517)
अंग्रेज़ी में अब-तक आपकी कितनी काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं?
मेरी अंग्रेज़ी-कृतियों के प्रकाशक हैं :
(1) S. Chand & Co., New Delhi — 55
* Forty poemsOf Mahendra Bhatnagar / 1968 / 40 Poems.
* After The Fory Poems / 1979 / 25Poems.
(2) Indian Publishers Distributors, Delhi —7
* Exuberance and other poems/ 2001 / 75 Poems.
* Dr. Mahendra Bhatnagar’s Poetry / 2002 / 50 Poems.
* Death-Perception : Life-Perception / 2002 / 50 Poems.
* Passion And Compassion /2005/ 50 Poems.
* New Enlightened World /2010/ 50 Poems.
* Dawn To Dust / 2011/ 71 Poems.
(3) Lokvani Prakashan, New Delhi — 49
* Poems : For A Better World / 2006 / 50 Poems.
(4) Vista International Publishing House,Delhi — 53
* Lyric-Lute / 2007/ 106 Lyrics.
(5) National Publishing House, NewDelhi — 2
* A Handful Of Light/ 2011 / 80 Poems
अभी-तक मेरी 633 कविताएँ अंग्रेज़ी में अनूदित व प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपकी काव्याभिव्यक्ति के मूल प्रारूप क्या पहले अंग्रेज़ी में अवतरित हुए अथवा वे सभी पहले हिन्दी में अभिव्यक्त हुए और तदुपरांत उनके अंग्रेज़ी रूपान्तर किये गये?
काव्याभिव्यक्ति सर्वप्रथम हिन्दी में ही हुई। अंग्रेज़ी भाषा के संस्कारों से मैं मुक्त ही रहा। प्रथमतः कुछ इसलिए; क्योंकि मेरा अंग्रेज़ी भाषा-ज्ञान साधारण था। दूसरे, मातृभाषा हिन्दी का लेखक / कवि / अध्यापक होने के कारण; हिन्दी के ही संस्कार मुझमें दृढ़मूल रहे। तीसरे, कुछ इसलिए भी, क्योंकि अंग्रेज़ी साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों पर थोपी गयी विदेशी भाषा थी। लेकिन, लेखक / कवि होने के कारण अंग्रेज़ी भाषा से मुझे कोई द्वेश नहीं था / न है। अंग्रेज़ी-साहित्य चाव से पढ़ता था। घर में, दैनिक व्यवहार में एवं पत्राचार-हेतु हिन्दी को तरजीह देना स्वाभिमान का सहज अंग था। इसका पालन प्रत्येक भाषा-भाषी को करना चाहिए - ऐसा आज भी मेरा दृढ़ मत है।
अपनी हिन्दी कविताओं के अंग्रेज़ी-रूपान्तर क्या आपने स्वयं किये हैं?
अपनी अनेक हिन्दी कविताओं के अंग्रेज़ी रूपान्तर मैंने स्वयं किये हैं; लेकिन अधिकतर वे अंग्रेज़ी भाषा में दक्ष, प्रोफ़ेसरों / कवियों द्वारा किये गये हैं। अपने इन अनुवादकों पर मुझे गर्व है। उनके प्रति मैं सदा कृतज्ञ रहूंगा।
आपकी कविताओं के अनुवादक कौन-कौन हैं? पाठक उनका संक्ष्प्ति परिचय जानना चाहेंगे।
मेरी कविताओं के प्रथम अंग्रेज़ी-अनुवादक हैं (late) Syt. Amir Mohammad Khan Sahib (Journalist / Columnist).इनके द्वारा किये गये मेरी अनेक कविताओं के अनुवाद ‘The Hindi Review’ में प्रकाशित हुए। ‘Forty Poems Of Mahendra Bhatnagar’ (1968) इन्हीं के द्वारा किये गये अंग्रेज़ी काव्यानुवादों का संकलन है।
तदुपरांत ‘कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय’ (हरियाणा) के अंग्रेज़ी-प्रोफ़ेसर (Late) Dr. Ramsevak Singh Yadav द्वारा किये गये अंग्रेज़ी-अनुवाद ‘After The Forty Poems’ (1979) अभिधान से पुस्तकाकार प्रकाश में आये।
फिर, एक लम्बे अन्तराल के बाद, Dr. Ravinandan Sinha (An Indian English Poet, Prof. of English,St. Xavier’s College, Ranchi-Jharkhand & Editor — ‘The Quest’) द्वारा किये गये अंग्रेज़ी-अनुवाद ‘Exuberance and other poems’ (2001) नाम से पुस्तकाकार प्रकाशित हुए।
Year 2002 में ‘Mahendra Bhatnagar’s Poetry’ का प्रकाशन हुआ। इसके अनुवादक हैं Dr. H.C. Gupta (Prof. of English, Gwalior-M.P. & An Indian English Poet)
Year 2002 में ही ‘Death-Perception : Life-Perception’ नामक विशिष्ट कृति प्रकाश में आयी। इसका अनुवाद अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त An Indian English Poet व आलोचक, - ‘Poetcrit’ (Maranda-H.P.) के सम्पादक Dr. D.C. Chambial ने किया।
Dr. D.C. Chambial Ji ने, मेरी एक और कृति ‘A Handful Of Light’ की कविताओं के अंग्रेज़ी-रूपान्तर किये हैं - Year 2011.
कवि और आलोचक Kedar Nath Sharma (Delhi) ने भी मेरी कविताओं में विशेष रुचि ली। ‘Poems : For A Better World’ (2006) की कविताएँ उन्हीं के द्वारा अनूदित हैं।
सन् 2007 में ‘Lyric-Lute’ नामक कृति का प्रकाशन हुआ। इसके अनुवाद बदायूँ (उ. प्र.) के डॉ. कल्पना राजपूत और डॉ. शालीन कुमार सिंह ने किये हैं। ये दोनों प्रतिभाशाली युवा अंग्रेज़ी-साहित्य-लेखन में ख्यात हैं। सक्रिय हैं।
हिन्दी-प्रोफ़ेसर डॉ. पी. आदेश्वर राव (विशाखापट्टनम - आंध्र-प्रदेश) के तेलुगु और हिन्दी की कई काव्य-कृतियों के अंग्रेज़ी-अनुवाद प्रकाशित हैं। डॉ. आदेश्वर राव ने ‘Passion
And Compassion’ (2005) के अंग्रेज़ी-अनुवाद किये।
प्रो. डॉ. अंशु भारद्वाज (जयपुर - राज. / अलीगढ - उ.प्र.़) और डॉ. मुकेश शर्मा (ग्वालियर - म.प्र.) ने संयुक्त रूप से ‘New Enlightened World’ (2010) की कविताओं के अनुवाद-प्रारूपों को प्रस्तुत किया।
‘Dawn To Dusk’ (2011) की 34 कविताएँ मेरे द्वारा अनूदित हैं; शेष डॉ. मुकेश शर्मा, श्री. केदारनाथ शर्मा और अंग्रेज़ी-प्रोफ़ेसर एवं हिन्दी-कवि डॉ. नरेंद्र शर्मा ‘कुसुम’ (जयपुर-राज.) द्वारा।
अंग्रेज़ी-प्रोफे़सर लक्ष्मीशंकर शर्मा (विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन) और दर्शन-शास्त्र के प्रोफ़ेसर वारीन्द्र कुमार वर्मा ने भी कुछेक कविताओं के अंग्रेज़ी-अनुवाद किये।
इन मित्रों का अनुवाद-कर्म स्वतः प्रेरित है। कविताएँ उन्हें रुचिकर लगीं; उन्होंने स्वयं अनुवाद करने की इच्छा प्रकट की।
आप अपनी कविताओं के अंग्रेज़ी-अनुवादकों से कहाँ-तक संतुष्ट हैं? इन अनुवादों को अंतिम रूप प्रदान करने में क्या आपकी भी कोई भूमिका है?
इसमें संदेह नहीं, मेरी कविताओं के अंग्रेज़ी-अनुवादकों ने बड़ा श्रम किया और अपनी क्षमता-भर अधिकाधिक सफल अनुवाद प्रस्तुत किये। काव्यात्मक भाषा एवं अभिव्यक्त शैली की दृष्टि से वे कितने perfect हैं; इसका प्रमाण तो अंग्रेज़ी-विद्वान ही दे सकते हैं। इस संदर्भ में, निम्नलिखित कथन द्रष्टव्य हैं -
यशस्वी साहित्यकार (स्व.) डॉ. विद्यानिवास मिश्र
‘’I have feeling that the vigorous rhythm of the original has not been carried fully to the English translations, may be the barriers of language do not permit its export. The poet has a very sensitive ear for cadences and knows how to use them. ..” (Preface : ‘FortyPoem Of Mahendra Bhatnagar’)
Prof. R.S. Sharma (Banaras Hindu University)
‘’Ravi Nandan Sinha has achieved a fair measure of success in tranferring the theme, tone and poetic quality of the Hindi poems into English. ... Sinha has been able to translate the poetic discourse without departing from the literality of the original text.” (Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’, Pages 85 & 86)
सम्पादित आलोचना-कृतियों (‘Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’ & ‘Concerns And Creation’) में अन्य समीक्षकों द्वारा भी इस संदर्भ में बहुत-कुछ लिखा गया है। वस्तुतः इसकी विस्तृत जाँच-पड़ताल करना स्वतंत्र शोध का विषय है।
हाँ, इन अनुवादों को अंतिम रूप प्रदान करने में मेरी सक्रिय भूमिका लगातार रही।
अनुवादकों की मातृभाषा हिन्दी होते हुए भी (हिन्दी-प्रोफ़ेसर डॉ. आदेश्वर राव जी को छोड़
कर) कुछ शब्दों के अर्थ और कहीं-कहीं मेरे आशय को वे ठीक-ठीक नहीं समझ पाये। बस, इस दृष्टि से, मैंने उनमें संशोधन-परिवर्तन किये; जिन्हें मेरे अनुवादकों ने सहर्ष स्वीकारा। माना, ऐसा करने में, अनेक कविताए,ँ एक तरह से, मेरे द्वारा re-translate हो गयीं।
अंग्रेज़ी की किन-किन पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ प्रकाशित हुईं?
अंग्रेज़ी की अनेक लब्ध-प्रतिष्ठ मासिक-त्रैमासिक-अर्द्ध्रवार्षिक पत्रिकाओं में मेरी कविताएँ निरन्तर प्रकाशित हुयीं; हो रही हैं। प्रारम्भ में, ‘The Hindi Review’(Varanasi) के अतिरिक्त जिन अन्य पत्रिकाओं में मेरी कविताएँ प्रकाशित हुयीं; वे हैं - ‘The Literary Half-early’ (Mysore), ‘Macron’ (Hubly), ‘The Cotemporary Indian Literature’ (New Delhi), ‘dhara’ (New Delhi) आदि में।
एक लम्बे अन्तराल के बाद, सन् 2000 से, अंग्रेज़ी पत्रिकाओं में, मेरी कविताओं का प्रकाशन पुनः आरम्भ हुआ। कुछ नाम इस प्रकार हैं - ‘The Quest’ (Ranchi-Jh.K.), ‘Poetcrit’ (Maranda-H.P.)’, ‘Shine’ (Pattukottai-T.N.), ‘Indo-Asian Lierature’ (Delhi), ‘Protocol’ (Tura-Meghalaya), ‘Cyber Literature’ (Patna-Bihar), ‘Indian Journal of Postcolonial Literatures’ (Thodupuzha-Kerala), ‘Contemporary Vibes’ (Chandigarh), ‘Indian Book Chronical’ (Jaipur-Raj.), ‘Kohinoor’ (Begusarai-Bihar )
‘A HUDSON VIEW’ (New York-U.S.A. / Editor - Dr. Amitabh Mitra, East London, South Africa)
आपकी काव्य-कृतियों के प्रमुख समीक्षक कौन-कौन हैं?
मेरी काव्य-कृतियों के प्रमुख समीक्षक हैं :
Dr. Suresh Chandra Dwivedi (Allahabad), Dr. D. C. Chambial (Maranda), Dr. R. K. Bhushan (Jagraon-Panjab), Dr. Anita Myles (Gorakhpur), Mrs. Purnima Ray (Burdwan), Dr. Kalpana Rajput (Badaun), Mr. Kedarnath Sharma(Delhi), Dr. Shaleen Kumar Singh (Badaun), Dr. O. P. Mathur (Varanasi), Prof. R. S. Sharma (Varanasi), Dr. B. C. Dwivedy (Orissa), Dr. A. K. Caturvedi (Gwalior), Dr. Kiran Chaudhry (JNU, new Delhi), Dr. Hallikeri (Dharwad-Karnatak University), Dr. Patricia Prime (Newzeland) and many more.
पत्र-पत्रिकाओं में आपकी अंग्रेज़ी काव्य-कृतियों के जो रिव्यूज़ छपे उनका आकलन करेंगे?
रिव्यूज़ में मुझे विश्वास नहीं। वे या तो व्यावसायिक होते हैं; जिनके पीछे सम्पादक-समीक्षक से प्रकाशक के संबंधों की भूमिका प्रमुख रहती है या फिर अधिकांश समीक्षक कृति को ठीक ढंग से पढ़े बिना मात्र कामचलाऊ रिव्यूज़ लिख डालते हैं। वे रचनाकार के लेखन व उसके साहित्यिक अवदान से प्रायः अनभिज्ञ पाये जाते हैं। पक्षपातपूर्ण रिव्यूज़ भी कम देखने में नहीं आते। पत्र-पत्रिकाओं में, मेरी कृतियों पर समीक्षात्मक आलेखों के रूप में ही अधिक प्रकाशित हुआ; जो सम्पादित आलोचना-कृतियों में समाविष्ट है।
आपकी अंग्रेज़ी काव्य-कृतियाँ विदेशों में कहाँ-कहाँ पहुँचीं?
मुझे नहीं मालूम, विदशों में मेरी अंग्रेज़ी व फ्रेंच कृतियों से कहाँ-कहाँ कौन-कौन परिचित हैं। इंटरनेट के माध्यम से, Newzeland की विदुषी समीक्षक Dr. Patricia Prime से मेरा परिचय ज़रूर हुआ; जिन्होंने मेरी दो कृतियों पर विस्तृत समीक्षा-आलेख लिखे; जो ‘Concerns And Creation’ नामक आलोचना-पुस्तक में समाविष्ट हैं। विदेशी साहित्यकारों से मेरे परिचय-सूत्र बहुत कम हैं। मैंने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अधिकतर छोटी जगहों पर रहा। महानगरों में तमाम विदेशी विद्वान एवं रचनाकार प्रायः आते हैं; जिनसे वहाँ के साहित्यकारों को सम्पर्क करना सहज-सुलभ हो जाता है। विदेश यात्राएँ भी मैंने नहीं कीं। ‘ताशकंद विश्वविद्यालय’ में मेरी प्रतिनियुक्ति हुयी ज़रूर; किन्तु किन्हीं कारणों से वहाँ जाना सम्भव नहीं हो सका। द्रष्टव्य ‘ता.ाकंद-प्रसंग’ (‘महेंद्रभटनागर-समग्र’ खंड - 1)।
इंटरनेट के माध्यम से आपका अंग्रेज़ी काव्य कितना जाना-पढ़ा गया?
इंटरनेट के माध्यम से मेरा अंग्रेज़ी-काव्य दूर-दूर तक पहुँचा – स्वदेश में; विदेश में। स्वदेश में, अंग्रेज़ी साहित्यिक-वृत्त से जुड़ने में इंटरनेट की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। इंटरनेट के अभाव में अंग्रेज़ी लेखकों, कवियों, पत्र-सम्पादकों आदि से मेरे इतने संबंध-सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाते। इंटरनेट की सुविधा बहुत बड़ी उपलब्धि है। स्वदेश और विदेश की अनेक websites से जुड़ा हुआ हूॅँ; जिनमें मेरी कविताएँ, मेरे काव्य की समीक्षाएँ, मेरे इंटरव्यूज़ आदि समय-समय पर प्रकाशित होते रहते हैं। पाठकों के रोचक comments भी पढ़ने को प्रायः मिलते हैं। मेरे अपने स्वतंत्र Blog भी हैं (www. pustakaalay.com एवं अन्यं) Facebook आदि में भी मौजूद हूँ। Mauritius की websites में भी मेरा साहित्य उपलब्ध है।
अंग्रेज़ी-कव्यानुवादों से आपकी कविता का जो प्रसार हुआ; उसके क्या परिणाम हुए?
अंग्रेज़ी-कव्यानुवादों के माध्यम से अ-हिन्दी प्रांतों में मेरी कविता की पहुँच आसान हो गयी। हिन्दी भाषा से अनभिज्ञ अनेक कवियों, लेखकों, पत्र-सम्पादकों ने मेरी कविताओं के अंग्रेज़ी-अनुवादों को पढ़कर, मेरे काव्य-कर्तृत्व को जाना। हिन्दी जानने वालों को भी सुविधा हुई। उन्हें हिन्दी में जहाँ समझने में कठिनाई हुई; वहाँ अंग्रेज़ी-अनुवादों ने उनकी सहायता की।
आपके अंग्रेज़ी काव्य-साहित्य पर क्या मूल्यांकन-ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं?
मेरे अंग्रेज़ी काव्य-साहित्य पर, इस समय तक, चार संमीक्षा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
(1) डा. बैरागी चरण द्विवेदी द्वारा लिखित मूल्यांकन-पुस्तक ‘Living Through Challenges A Study Of Dr. Mahendra Bhatnagar’s Poetry’. इसमें 9 अध्यायों के अन्तर्गत, ओड़िया और अंग्रेज़ी के लेखक Dr. बी. सी. द्विवेदी जी ने मेरे काव्य का अध्ययन प्रस्तुत किया है। इस कृति का प्रकाशन सन् 2006 में हुआ। प्रकाशक हैं ’Sanjay Prakashan’,New Delhi — 2.
(2) दूसरी कृति सम्पादित है - ‘Poet Mahendra Bhatnagar : His Mind And Art’. इस मूल्यांकन-ग्रंथ का सम्पादन यशस्वी लेखक / कवि Dr. Suresh Chandra Dwivedi और Dr. Shubha Dwivedi ने किया। इस कृति में विख्यात अंग्रेज़ी-लेखकों / कवियों के 36 आलेख समाविष्ट हैं। इस समीक्षा-ग्रंथ का प्रकाशन सन् 2007 में हुआ। प्रकाशक हैं - ‘Vista International Publishing House’, Delhi — 53.
पुस्तकाकार प्रकाशन-पूर्व, इस कृति के अधिकांश आलेख, अंग्रेज़ी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे।
इस कृति में, एक स्वतंत्र आलोचना-खंड मेरी कविताओं के फ्रेंच-अनुवादों से सम्बद्ध भी है। 108 कविताओं के फ्रेंच-अनुवाद ‘बर्दवान विश्वविद्यालय’ की पूर्व-प्रोफ़ेसर श्रीमती पूर्णिमा राय ने किये हैं। फ्रेंच में लिखे कुल 5 समीक्षा-आलेख इस फ्रेंच-खंड में शामिल हैं। यह कृति सन ्2004 में ‘A Modern Indian Poet Dr. Mahendra Bhatnagar : UN POÈTE INDIEN ET MODERNE’ अभिधान से प्रकाशित हुई थी। प्रकाशक हैं - ‘Indian Publishers’ Distributors’, Delhi — 7.
(3) तीसरी मूल्यांकन-कृति ‘Concerns And Creation’ इसका सम्पादन अंग्रेजी़ के लब्ध-प्रतिष्ठ कवि और आलोचक Dr. R. K. Bhushan ने किया है। इसमें मेरे इंटरव्यूज़ भी समाविष्ट हैं।
अंग्रेज़ी में क्या आपके काव्य-कर्तृत्व पर शोध-कार्य भी हुआ है? यदि हाँ, तो कहाँ-कहाँ?
अंग्रेज़ी में मेरे काव्य-कर्तृत्व पर अभी मात्र एक विश्वविद्यालय, Madurai Kamraj University, Madurai — 625-021 (Tamilnadu) / 2018 म,ें पी-एच. डी. उपाधि-हेतु शोध-कार्य हुआ है। शोधार्थी - Rama Krishnan Karthikeyan, Lecturer, PAC Ramasamy Raja Poly Technic College, Rajapalayam — 626 117 [T.N.] Supervisor : Dr. G. (Gavarappan) Baskaran, Reader in English, VHNSN College, VirudhuNagar — 626 001 [T.N.] Topic : ‘Post-Independence Voice For Social Harmony And Humanism : A Study Of Selected Poems Of Mahendra Bhatnagar’.
इसके अतिरिक्त दो विशिष्ट Research Papers प्रकाशित हैं। एक अद्यतन काव्य-कृति पर; दूसरा तुलनात्मक :
(1) ‘A Critical Explication Of Mahendra Bhatnagar’s ‘Passion And Compassion’. शोध-पत्र लेखिका Dr. Anita Myles. यह शोध-पत्र Sahitya Akademi, New Delhi द्वारा प्रकाशित ‘Indian Literature’ में प्रकाशित हुआ (No. 233,May-June 2006, Vol. L. No. 3)
(2) ‘Death beyond the Borders of Despondency in the poetry of D. C. Chambial and Mahendra Bhatnagar’. शोध-पत्र लेखिका Dr. Kalpana Rajput. यह शोध-पत्र Newman College, Thodupuzha-Kerala के Centre For English Studies and Research के मुखपत्र ‘Indian Journal of Postcolonial Literatures’ (An International Refereed Biannual / Vol. 11, No. 1, June 2011) में प्रकाशित हुआ।
अंग्रेज़ी में आपके और-और साक्षात्कार किन-किन ने लिए हैं और वे कहाँ-कहाँ प्रकाशित हुए हैं?
अंग्रेज़ी में मेरे दो अति-विशिष्ट साक्षात्कार प्रकाशित हो चुके हैं।
(1) प्रथम इंटरव्यू ‘Contemporary Vibes’ (Chandigarh) में प्रमुखता से प्रकाषित हुआ। यह इंटरव्यू ‘Contemporary Vibes’ के सम्पादक / कवि / कहानीकार Mr. Anil Kumar Sharma द्वारा लिया हुआ है।
(2) दूसरा इंटरव्यू Dr.Nilanshu Kumar Agarwal, Associate Professor of English, Feroze Gandhi College, Rae Bareli ने लिया जो दो प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ -
* ‘Bilingual Poetic Voice: An Interview with Mahendra Bhatnagar’.
(Indian Journal of Postcolonial Literatures (Newman College,
Thodupuzha, Kerala) . (July-Dec. 2008). And ,
* ‘An Interview with Mahendra Bhatnagar’
(Wild Violet. (Philadelphia). 8.1 / Summer 2009).
यह इंटरव्यू इंटरनेट की कई websites पर भी उपलब्ध है।
अंग्रेज़ी की किन-किन साहित्यिक पत्रिकाओं के आप परामर्शक रहे हैं - हैं?
International fame की अंग्रेज़ी की दो पत्रिकाओं का मैं सलाहकार चला आ रहा हूँ।
(1) POETCRIT (Estd. 1988) — An Internatonal Bi-annual Refereed Journal of Literary Criticism & Contemporary Poetry.
Dr. D. C. Chambial द्वारा सम्पादित एवं Maranda-H.P. से प्रकाशि्ेत।
(2) Indian Journal of Postcolonial Literatures (Estd. 2000) An International Refereed Bi-annual Journal.
सम्प्रति Dr. Alphonsa P. O. द्वारा सम्पादित एवं Thdupuzha-Kerala से प्रकाशित।
(3) डा. शालीनकुमार सिंह द्वारा संचालित-सम्पादित Website — www.creative saplings.Com का एक परामर्शी मैं भी हूँ।
भारतीय अंग्रेज़ी कविता के इतिहास में आपकी जो चर्चा होती है; उसे आप कहाँ तक युक्तियुक्त मानते हैं?
मुझे ज्ञात नहीं, भारतीय अंग्रेज़ी कविता के इतिहास में मेरी चर्चा भी होती है। इस दिशा में, मैं प्रायः उदासीन रहा हॅूँ। अन्यथा भी अनेक अंग्रेजी़-लेखकों को मेरे बारे में कुछ विदित नहीं है। अंग्रेज़ी-लेखकों से मेरे संबंध-सम्पर्क सीमित हैं।
आपकी कविताओं के अन्य विदेशी भाषाओं में - चेक, फ्रेंच, जापानी आदि में - जो अनुवाद हुए हैं; उनकी तुलना में अंग्रेज़ी-अनुवादों की गूँज भारत और भारत के बाहर अधिक होना स्वाभाविक है। इस समग्र उपलब्धि और ख्याति से आप क्या अनुभव करते हैं?
चेक, अंग्रेज़ी, जापानी आदि विदेशी भाषाओं में मेरी कविताओं का इस क़दर अनुवाद होना और उन अनुवादों का अंग्रेज़ी-पत्रिकाओं में एवं पुस्तकाकार प्रकाशित होना विशिष्ट और महत्त्वपूर्ण अवश्य है। इससे मेरी काव्य-रचना के गुणात्मक मूल्य का बोध भी होता है। लेकिन, अनुभव यही करता हूँ कि सही अर्थो में श्रेष्ठ काव्य-सृजन नहीं कर सका। 85 पार कर चुकने के बाद, रचना-कर्म के प्रति एक अजीब छटपटाहट अनुभव करता हूँ। बहुत-कुछ अभिव्यक्त करना चाहता हूँ; किन्तु समय तेज़ी से फिसलता जा रहा है। मानसिक-शारीरिक पीड़ाएँ एवं पारिवारिक परेशानियाँ उबरने नहीं देतीं।
निकट भविष्य में आपकी और कौन-कौन-सी अंग्रेज़ी-कृतियों के प्रकाशन की सम्भावना है?
मेरे रचनात्मक लेखन की प्रमुख विधा कविता है। दुर्भाग्यवश कविता की आज बड़ी बेक़द्री है। काव्य-कृतियों के प्रकाशन के प्रति प्रकाशक उदासीन रहते हैं; क्योंकि काव्य-कृतियों का प्रकाशन व्यावसायिक दृष्टि से हानिप्रद सिद्ध होता है। कविता के प्रति पाठकों में उत्साह सदा कम रहा अथवा इधर कम होता जा रहा है - ऐसा मैं नहीं मानता। प्रांजल सहज कविता का आस्वादन हर व्यक्ति चाहता है। बस, ऐसी कविता उस-तक पहुँचे। हर व्यक्ति सुख में; दुख में गुनगुनाता है; भाव-विभोर होकर गाता है। व्यक्ति चाहे कितना भी बौद्धिक हो कविता से उसका नाता कभी टूट नहीं सकता। ज़रूरत है, सरल-सहज कविता की अल्पमोली पुस्तिकाओं के प्रकाशन की।
अतः जब देखता हूँ, काव्य-कृतियाँ प्रकाशक छापना नहीं चाहते तो निराशा होती है। आश्चर्य है, मेरी काव्य-कृतियों के प्रथम संस्करण सुगमता से प्रकाशित होते चले गये; किन्तु उनका पुनर्प्रकाशन अब इतना सुगम प्रतीत नहीं होता। इसलिए विषयानुसार कृतियों का क्रम प्रारम्भ कर रहा हूँ। अपने सम्पूर्ण काव्य-कर्तृत्व को पाँच भागों में विभाजित किया है। चाहता हूँ, ये पाँचों anthology पाठकों को उपलब्ध होती रहें :
[1] Engraved On The Canvas Of Time (Realistic & Visionary Progressive Poems)
[2] Life :As It Is (Philosophy Of Life)
[3] Love Poems
[4] Nature Poems
[5] Death And Life
इनके प्रकाशन के लिए प्रयत्नशील हूँ। फ़िलहाल, उपरिअंकित पाँचों anthologies तैयार हैं। internet पर उपलब्ध हैं।
आपकी कविता का मक़सद?
व्यक्ति और समाज के लिए कविता की उपादेयता निर्विवाद है। कविता के प्रमुख तत्त्वों में (अनुभूति / भाव, विचार, कल्पना, शिल्प) भाव-तत्त्व मानस को जितना उद्वेलित करता है; उतना अन्य तत्त्व नहीं। कविता इसीलिए अभीष्ट है; क्योंकि भाव-प्रधान होने के कारण वह हमारी चेतना को बड़ी तीव्रता से झकझोरने की क्षमता रखती है। कविता पढ़कर-सुनकर हम जितना प्रभावित होते हैं; उतना साहित्य की अन्य विधाओं के माध्यम से नहीं। कविता व्यक्ति को बल प्रदान करती है; उसे सक्रिय बनाती है; उसके सौन्दर्य-बोध को जाग्रत करती है। जब-तक मनुष्य का अस्तित्व है; कविता का भी अस्तित्व बना रहेगा। कविता का सहारा सदा से लिया जाता रहा है। मानवता का प्रसार करने के लिए, व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य प्रेम-भाव बनाए रखने के लिए, देश-प्रेम का उत्साह जगाने के लिए, वेदना के क्षणों में आत्मा को बल पहुँचाने लिए, सात्त्विक हर्ष की अभिव्यक्त करने के लिए आदि अनेक प्रयोजनों की पूर्ति कविता से होती है। काव्य-रचना का प्रमुख उद्देश्य मनोरंजन नहीं (वस्तुतः मनोरंजन की भी अपनी उपयोगिता है); हृदय के सूक्ष्मतम भावों और श्रेष्ष्ठ विचारों को रसात्मक-कलात्मक परिधान पहनाना है; आकार देना है।
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