राजेश गोसाईं 1.....गरीब आज मैं दुनिया के बहुत करीब हूँ बस माँ नहीं है पास इसलिये बहुत गरीब हूँ बेशक माँ की दुआओं का ...
राजेश गोसाईं |
1.....गरीब
आज मैं दुनिया के
बहुत करीब हूँ
बस माँ नहीं है पास
इसलिये बहुत गरीब हूँ
बेशक माँ की दुआओं का
खजाना भरा है
पर खुदा की तराशी हुई
माँ की मूरत नहीं है पास
जिसका मैं हबीब हूँ
इसलिये बहुत गरीब हूँ
मेरी आँखों में तेरी याद का
गर्म जल बहता रहता है
तेरी ममता की उंगलियों से
सहलाये हुये गालों पर
तेरे पैरों की धूल के
हीरे - मोती नहीं हैं पास
कितना मैं बदनसीब हूँ
इसलिये बहुत गरीब हूँ
राजेश गोसाईं
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2.....रोटी के रंग
बोटी बोटी होती रोटी
राजनीती में रोती
मजहब में बंटती
जेबों मे चलती
गरीबों में मरती
आतंकी को पालती रोटी
निर्भया में तड़पती
दरिंदों को छोड़ती
लाशों पर सिकती रोटी
खेल में फिसलती
सब कुछ देती
जेब तो भर देती
बस पेट नहीं भरती रोटी
क्यों होती है
बोटी बोटी रोटी
आज की हवा में
उड़ती रोटी
कहीं ठिठुरती सहमी
सिसकती
अपनो से बिछुड़ती
रोटी
शायद दम तोड़ती
यही है आज की
सच्ची रोटी
नहीं है कहीं
निस्वार्थ की रोटी
ये रंग बदलती
चूल्हे से निकल
देश की आग में
जलती रोटी
चन्द सिक्कों की महफिल में
थिरकती
कानून से निकल कानूून
तोड़ती नियम की रोटी
राजनीती के तीन निशान
पेट कानून और संविधान
स्त्रिलिंग राजनीती का
रूप पीड़ित रोटी
जान देने वाली
जान लेती रोटी
राजेश गोसाईं
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3......आज की आवाज
आज की आवाज है या
गोली की आवाज
चटख रही माला किसी की
टूट रहे हैं साज (श्रृंगार )
जाने किसका सुत मरा है
सिंदूर मिटा है आज
घुट रहे हैं गले सबके
सुलग रहे हैं ताज
पर काटे हैं किसने उनके
पंछी तड़प रहे जो आज
इक चिंगारी जो लगी दिल में
भाई भाई के भी आज
मानवता की कर लडाई
ज्वाला बन रह वोे आज
भूल गये हैं सब वो भाई
इंसानियत की आवाज
चन्द सिक्कों की खनक में मानव
जाने क्यों कर रहा है ताण्डव
रक्त सिंधु बह रहा है
शिव की गंगा में भी आज
किसकी छलनी छाती देखी
भाइयों पर चली दरांती देखी
कायर हैं ऐसे देश प्रेमी आज
जो करते हैं देश पर राज
वीरो सुनो मेरी आवाज
बन्द करो जल्दी से
यह जुल्म की आवाज
सूखी रोटी नंगे बच्चे
बिलख रहे हैं आज
नहीं माता के स्तन में कोई
दूध की बूंद भी आज
बेखबर है इनसे वो खबर
जो देश को कर रही बरबाद
आँखें रख बैठे हैं बाज
जो ना मिले कोई शिकार
तो भी आती है इक बार
गोली की आवाज
जागो कब्र में सोने वालो ( शहीद )
देश को दस्तक दे रहे हैं
देखो कुछ दरिन्दे आज
तुमको आना होगा वापिस
हमे कराने फिर से आजाद
यही मेरी तमन्ना तुमसे
यही इच्छा है आज
हमको बनना होगा फिर से
नेहरू भगत और आजाद
बन्द करनी है जल्दी हमको
यह गोली की आवाज
आज की आवाज
परन्तु राष्ट्र हित में आये सदा
शांति की आवाज
प्रेम की आवाज
यही हमे चाहिये सदा सदा
आज की आवाज
राजेश गोसाईं
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4.....पानी
प्रकृति की गोद से निकल
पर्वतों के कन्धे पर
खेलता पानी
मधुर गीतों पर थिरकता
ऊपर से नीचे
निर्मल विनम्र भाव से
फिर विश्राम करता
किसी झील-सरोवर में
शांत पानी
हर चोट सह कर
मगर अटूट रह कर
एक हो जाता
काश मानव भी
पानी सम हो जाता
जीवन का हमसफर
गम स्वंय पीता
लाठी पत्थर झेल कर
हर रंग मे मिल
एक होता
काश मानव भी
पानी सम हो जाता
मित्र की सरगम
पर शत्रु की दहाड़
भी बन जाता
है शांत पानी
है आगाज विश्व युद्ध का
पानी जीवन की
धरोहर
ललकार है मानव
बचा ले
व्यर्थ ना कर
वरन नहीं मिलेगा
अनमोल निर्मल पानी
राजेश गोसाईं
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5... - - - भूख - - -
दहेज की अग्नि में
जलने से पहले
बहु-बिटिया की
झोली में
विध्या व हुनर की
भर दो- -भूख--
दहेज के दानव की
कन्या कोख
मारन की
मिट जायेगी
-- - - भूख - - -
नन्ही सी किलकारियों का
पेट चिपका देती है
- - - भूख - - -
माँ की आँखों में
समन्दर
बाप को पत्थर
बना देती है
- - -भूख - - -
लालच में इंसान को
हैवान और
हैवान को अंधा
बना देती है
- - -भूख-- - -
झूठी शान ओ शौकत दिखा
शादी ब्याह में
खाना - पैसा बर्बाद
कर देती है-
- - भूख - -
दहेज बचाओ
बिटिया पढ़ाओ
गर ठान लिया जाये
तो घर व समाज की
शान बढ़ा देती है
- - - भूख - - -
राजेश गोसाईं
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कारवां
जिन्दगी के चन्द लम्हों का कारवां
बढ़ता ही जाता है
आगे.....और आगे.....जैसे
कोई सजा हुआ जनाजा
और पीछे चलता...
शोकाकुल लोगों का यह
छोटा या बड़ा कारवां
या फिर कहीं किसी
शब ए बारात में गुल
इक शोर में डूबा
यह यह गम विहीन कारवां
यह जिन्दगी का काफिला
लगता है कहीं हसीन
तो कभी नासुर दर्द भरा
यह कारवां तो देगा छोड़
एक नया सा सलौना सा गुबार
जहाँ होगा कहीं हमारा
खुशी का आलम
या फिर होगा
गम का सिसकता
साज सा बजता यह कारवां
कभी कांटों के दामन में
लिपटा होगा यह
तो कभी ....पुष्प अम्बार लिये
इक ताज सा होगा
यह कारवां
राजेश गोसाईं
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6... मौत की वसीयत
जिन्दगी की किताब के
आखरी पन्ने पर लिखा होता है
***** मौत****
काम कुछ ऐसे कर जायें
किताब ये खत्म ही न होने पाये
और *** जिन्दगी** दे जाये
** मौत**
मुझे पढ़ लेना कोई आज
मुझे रख लेना कोई याद
मेरी मौत के बाद
कौन होगा जो मेरे
पार्थिव शरीर पर दो आँसु
कीमती बहायेगा
कौन होगा जोे मेरी
अंतिम यात्रा में मेरे संग
मुझे कन्धे पे ले जायेगा
मुखाग्नि देगा कौन
मेरी मौत के बाद
प्रार्थना है मेरी
मात पिता - भाई बन्धु सबसे
मेरी अंतिम इच्छा ये लेना मान
किसी जरूरतमंद को
कर देना मेरे अंगदान
चिकित्साल्य में किसी परिक्षक के
परिक्षण में या परशिक्षण में
कर देना मेरा शवदान
ना जलाना किसी अग्नि में
ना बहाना कहीं जल में
ना दफनाना भूगर्भ में कहीं
मेरी आँखे रखेंगी जिन्दा मुझे
मेरी मौत के बाद
अस्थि राख चुटकी भर
उठा कर रख देना
लहराये तिरंगा जहाँ
जय हिन्द कह देना इक बार
मेरी मौत के बाद
रचना : राजेश गोसाईं
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7..... दुनियादारी
झूठी दुनिया ने क्या क्या रंग बदला है
ए मौत- तुझसे मिल के सब पता चला है
-………..........
एक दिन मैने सोचा
क्या होता है मरने के बाद
कौन क्या करता है
कौन कितना रखता है मुझे याद
यह सोच कर मर गया हूँ मैं आज
देखने को दुनिया का असली राज
एक तरफ मैं मरा हुआ था
रिश्ते नातों से घिरा हुआ था
चारो तरफ रोते रिश्तेदारों में
रोना धोना मचा हुआ था
सूनी मांग कलाई में
बीवी ने पकड़ा कोना था
मेरी माँ का हाल बुरा तो
और भी ज्यादा होना था
बाप की आँखे पथरा गई
मौत मेरा लाल खा गई
ढेर कफन ओढ़ कर
गली मौहल्ले के लोगों संग
मैं आँगन में पड़ा हुआ था
उधर समाज के लोगो का हौंसला
मेरे परिवार को मिल चला
कुछ लोगो को फिर भी चैन ना मिला
जल्दी ले चलो वापिस दूर भी जाना है
एक आवाज आई बच्चो को भी लाना है
देर हो रही दफ्तर को और काम बहुत है
किसी पार्टी शादी और मॉल भी जाना है
बदबू मेरी से कोई दूर भी खड़ा हुआ था
मंत्री जी ने हंस कर सबसे हाथ मिलाया
हौंसला दे मेरी बीवी को गले लगाया
बूढी माँ से हाथ जोड़ एक तरफ हो गये
पार्टी वाद ले कर राजनीति में खो गये
देख कर सारा हाल मैं
मजबूर वहाँ पर धरा हुआ था
कन्धे बदल रहे थे
देने वाले मुझको सहारा
जिन्दगी भर जो कर रहे थे
मेरे से किनारा
मकान से श्मशान गेट
ऐसे मौके पे क्रिकेट
ठहाके उनके देख
मैं भी घृणा से भरा हुआ था
हैरान तो मै और भी हुआ
जब घर ने वसीयत को छुआ
कर रहे थे मेरे बाप भाई
एक पानीपत की लडाई
बीवी कहती हक है मेरा
बच्चे बन गये कसाई
दिवार पे तस्वीर बन
मैं परिवार की दिवार बना हुआ था
झूठी दुनिया की देखी
झूठी दुनियादारी है
पैसा धर्म पैसा ईमान
पैसे की सब यारी है
मतलब स्वार्थ की रह गई
दिल के रिश्तों में बह गई
सिक्कों की रिश्तेदारी है
रंग बदलती दुनिया में बेरंग
घमासान यह श्मशान तक
मौत से पहले की मौत में
जी रही दुनिया सारी है
राजेश गोसाईं
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8.....खजाना
है खजाना माँ बाप का
मैं अमीर दुनिया का
बूढ़े अनुभव के रत्नों से
मैं माला माल आज का
चाँदी जैसे बाल जिनके
सोने जैसा दिल
है सुनहरी भविष्य मेरा
जो सानिध्य है माँ बाप का
जिनकी चरण रज बनी
जिन्दगी की सफल जमीं
है लाख कोटि प्रणाम उनको
हीरा बना दिया
मुझे जो मैं खाक था
राजेश गोसाईं
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9.. . रंगदारी
बात समझ में आई ना हमारी
कैसी है सारी , ये दुनियादारी
कौन किसी का है यहाँ अपना
कैसी है यारी, कैसी रिश्तेदारी
लाख अपनों को ,कोई बुलाये
सब के सब यहाँ करते किनारी
ना कोई किसी का इस जहां में
बेरंग दुनिया में , फैली रंगदारी
होती नहीं कभी कफन की जेबें
खुमारी यहाँ , सिक्कों की भारी
पैसा कमाने का बहुत है जुनुन
आदमी कमाओ , चलेगी यारी
राजेश गोसाईं
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10. जीने की मस्ती
जरा मुस्कुरा के जीओ
हंस के हंसा के जीओ
ये जिन्दगी कुछ ऐसी हो
हम भी जीयें और तुम भी जीओ
सुख के लम्हों में
हर पल खुशी को ही ढूंढें
चार दिनों की जिन्दगी में
पल पल हम झूमें
सदा गीत गायें ,
सदा सफलता के कदम चूमें
शुभ कर्म सेवा ही जिन्दगी का धर्म हो
चलने के बाद भी होंठों पे हम हों
मरें तो मरें हम एेसे
हर आँख में पानी हो
धानी धरती ये बनी रहे
मधुबन मुस्कराये
कलि कलि यहाँ खिलि हो
जीयें हम इस कदर के
सफल ये जिन्दगी हो
क्या साथ लाये थे
क्या ले चलेंगे
ना कोई अपना ना कोई पराया
क्या है हमारा क्या है गवायां
नेक कमाई कर चलें
जीने की कला में मरने की शक्ति हो
मौत से पहले जीने की मस्ती हो
राजेश गोसाईं
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11......बालक
मैं बालक हूँ तेरा
तू भारत देश है मेरा
तेरी लाज बचाने को
सरहद पे लगाया डेरा
कभी तुझपे आँच ना आये
कोई दुशमन आँख ना उठाये
तेरी आन बान शान में
मेरा लहु काम आ जाये
तेरी हरियाली सेज पे सदा
केसर श्वेत परिधान रहे
इसिलिये बांध के कफन का सेहरा
सीमा पे किया बसेरा
तू भारत देश है मेरा
राजेश गोसाईं
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