आज की संतान आज की संतान हैं हम। माँ-बाप की प्रतिष्ठा की श्मशान हैं हम। आज की ……..हैं हम। जितने भी बहायें, हमारी खुशी खातिर लहू।-2 ...
आज की संतान
आज की संतान हैं हम।
माँ-बाप की प्रतिष्ठा की श्मशान हैं हम।
आज की ……..हैं हम।
जितने भी बहायें, हमारी खुशी खातिर लहू।-2
उनके अरमानों की शाम हैं हम
आज की ……..हैं हम।
कर्ज तले अहसानों उनके, इस कदर दबे हैं हम।-2
उबरने का इस कर्ज से, रखते नहीं दम।
आज की ……..हैं हम।
आज जिनके सहारे, उठ खड़े हुए।-2
देने से सहारा उन्हें ही, कतराते हैं हम।
आज की ……..हैं हम।
जो बिछाते थे फूल, हमारे कदमों तले।-2.
आज उन्हें ही काँटों का चादर ओढ़ाते हैं हम।
आज की ……..हैं हम।
विश्वविख्यात पवित्र भारतीय संस्कृति पढ़े हैं,
किताबों में हम।-2 करते हुए अपवित्र इसे, आती
नहीं शर्म। कलियुग की वरदान हैं हम।
आज की संतान हैं हम।
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नींव की ईंट
होती टिकी बुनियाद जिसपे, वो नींव की ईंट है।
दबे को दबाना तो दुनिया की रीत है।
होती टिकी बुनियाद …...., वो नींव की ईंट है।
न लेता साँस, खुली हवा में। होते दफन,
जिसकी खुशियों के गीत है। होती टिकी
बुनियाद ………..., वो नींव की ईंट है।
छूती इमारत ऊँचाइयाँ, जितनी भी। बुलंदियाँ
आधारित किसपे, सर्वविदित है। होती टिकी
बुनियाद …………….., वो नींव की ईंट है।
है अविचलित, कर्तव्य पथ से। आखिर
जो, कर्तव्यनिष्ट है। होती टिकी बुनियाद
……………., वो नींव की ईंट है।
हो जाए क्षीण गर ये, हाले बयाँ परिलक्षित है।
इसकी हिफाजत से ही, ढांचा सुरक्षित है।
होती टिकी बुनियाद …...., वो नींव की ईंट है।
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जिंदगी
जंग है ये जिंदगी, तंग है ये जिंदगी।
बिना प्रेम के गुलशन के, बेरंग है वे जिंदगी।
है भरा तनाव से, जीना इसे है दाव से।
धोखे, जाल-फरेब से, प्रचंड है ये जिंदगी।
जंग है ये जिंदगी, तंग है ये जिंदगी।
है तबाह इंसानियत, हैवानियत के संग है एक कारवां।
झुक रहा पलड़ा यहां सच्चाई का, देख हालत इस जहाँ
का दंग है ये जिंदगी। जंग है ये जिंदगी, तंग है ये जिंदगी।
है बोलबाला पाप का, पुण्य का है मिट रहा नमो-निशां।
है दिख रहा अपराध, चरम छूता हुआ। अति का अंत
का होगा, इसी उम्मीद में प्रसन्न है ये जिंदगी। जंग है
ये जिंदगी, तंग है ये जिंदगी।
आएंगे मसीहा, करने तांडव यहाँ। करेंगे अंत पापियों का,
खिलेंगे फूल चमन में प्यार का। ये मत भूलो! परमात्मा का अंग
है ये जिंदगी। जंग है ये जिंदगी, तंग है ये जिंदगी।
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मिलते ऐसे भी लोग
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग। आत्म दाह
कर जाते हैं, सदन गैर जलाने को। हैं अनभिज्ञ इस
राज से, खिलते कमल को मिल जाता; कीचड़ का
सहयोग। जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू , रखते बनने का शौक।
कर्म-नीरसता है प्रिय जिन्हें, कर्मठ पर ढाते रोष।
कर्तव्य-पथ पर अग्रसर हैं, जिनका करते विरोध।
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
हमदर्दी का ढोंग रचाते, रखते दिल में छल।
कपटी मित्रता निभाने का, करते कोशिश पुरजोर।
पलक झपकते कर देते, संगमीत का लुटिया गोल।
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
निज दोष विलोपन करते, पर छवि बदनाम।
मिथ्यावादिता से अलंकृत हो, बन जाते आप महान।
ज्वलनशीलता का इनको, लग जाता है रोग। जीवन
के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
हैं पराये कंधे पर, बन्दूक चलाने में माहिर।
पर सच्चाई ये कि, हैं अव्वल दर्जे के काहिल।
स्वार्थ हित में अपनों का भी, गाला दबाते लोग।
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
इनकी सारी करतूतें, हो जाते हैं नाकाम।
कर्मवीर को हीं मिलता है, कर्मठता का प्रमाण।
होगी बुराई की चित, चाहे जितनी डाले रोक।
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
प्रेम सुधा जब बरसेगी, नफरत होगी खाक।
सच्चाई के आगे, नतमस्तक होंगे आप।
कुंठित ही रह जायेगी, चापलूसी की नोक।
जीवन के सफर में, मिलते ऐसे भी लोग।
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राजनीतिक काँटे
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
छिड़वा दी जंग, एक खेत के दो मूली में।
बस कहा, तू इस पांते की-तू उस पांते की।
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
हैं एक मृदा में, पनपे हम।
विद्वेष रसायन, किसने घोली।
भाईचारे के बीच में, क्या जरूरत है नफरत की?
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
है राजनीति बिन कंधे की।
वजह यही, लेता सहारा दंगे की
है जरूरतमंद! कभी इस कंधे की, कभी उस कंधे की।
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
है दक्षता, खड्डा खोदने की।
बखूबी आती कला इन्हें, समाज बांटने की।
फिर देते क्यूँ मिथ्या-दिलासा,स्वनिर्मित-खाई पाटने की।
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
न रहे वो लाल जिन्होंने, मिट्टी पे कुर्बानी दी।
नवचेतना लाने में, ताउम्र न्योछावर तन-मन की।
अब ठहरे वतन-घात, धोखाधड़ी व घोटालेबाज़।
ये पुजारी हैं! समाजवाद की आड़ में,अलगाववाद की नीति की।
सिंक गई रोटी, राजनीति के काँटे की।
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पिता
यारों मैं भी आज बाप बन गया।
अपने पिता के त्याग का एहसास हो गया।
यारों मैं भी………बाप बन गया।
हम थे कितने मूढ़ जो जिद अपनी
उनसे मनवाते रहे। गर लगी डाँट
तो मूँह रंग-बिरंगे बनाते रहे।
हमें अपनी गलती का आभास हो गया।
यारों मैं भी………बाप बन गया।
न पड़ती मार डंडे की, रह जाते उदंड यूँही।
लड़खड़ाते पैर को संभालना सिखा दिया।
यारों मैं भी………बाप बन गया।
देखा था फटेहाल कपड़ों में उन्हें।
हमें तो खूबसूरत पोशाकों का बादशाह
बना दिया। यारों मैं भी……….बाप बन
गया।
छोड़ी नहीं कसर कोई भी, हमें जमीं से आसमाँ
तक लाने में। अपने अरमानों का गला दबा दिया।
यारों मैं भी………बाप बन गया।
थी बस! हमारी ही फिक्र उन्हें। हमारी
खुशियों पर सर्वस्व वार दिया।
यारों मैं भी………बाप बन गया।
है वक्त अब उनके ख्याल रखने का।
अपना ठीक वही सिला होगा क्योंकि हमारा भी
नकलची संतान हो गया।यारों मैं भी आज बाप बन गया”।
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“ हिंदी अब पुरानी हो गई है ।”
हिंदुस्तान के कोने-कोने की जुबानी हो गई है।
अब तो परदेश भी इसकी दीवानी हो गई है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
यथा समुद्र में तरिणी प्रवाहित होती है,
विश्वस्तरीय भाषाखण्ड इसमे समाहित हो गई है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
शब्दों के आभूषण से भारी हो गई है।
तलवार की धार से भी तीक्ष्ण, इसकी व्यंग्य-वाणी हो गई है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
जटिलता है मगर बहु रोचक व प्यारी हो गयी है।
इसकी उपन्यासें तो बंगाल की खाड़ी हो गयी है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
इसकी कविताएं व गीत, मन मोह लेती है।
कहानियाँ व चुटकुले तो, गमगीन होंठों पर भी हँसी के स्रोत
बन गयी है। जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
हिंदी हिन्दोस्ताँ की शान हो गयी है।
क्योंकि पूरी दुनिया में इसकी पहचान हो गई है।
हमें भी सम्मान की लाज रखनी है।
सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी की कार्य-नवाजी है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
हमारी राष्ट्रभाषा अब अजय हो गई है।
क्यूँकि आज का नारा जय हिंद! जय हिंदी हो गई है।
जी हाँ! हिंदी अब पुरानी हो गई है।
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प्रलय
जगह-जगह प्रलय का हाहाकार है।
ओ ऊपर वाले! तरस खा।
तूने ही रचा ये संसार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
कहीं बाढ़, भूकंप, तो कहीं ज्वालामुखी खूंखार है।
इसके आगोश में हर इंसा बना बेबस-लाचार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
न जाने मांग कितनी उजर रही, है कितनी गोद सूनी हो रही।
बचा तबाही के मंजर से, बस तेरे रहम की दरकार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
जाती-धर्म के चक्रव्यूह में, उलझ चुका संसार है।
कूटनीति के दलदल में फँसा पड़ा जगसार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
ईर्ष्या-द्वेष और पाप जहाँ में, धर रहा रूप विकराल है।
देख तेरी दुनिया में, न एकता है न प्यार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
ऊपर वाले कुछ ऐसा कर! बरपा सिर्फ पापियों पर
प्रलय कहर। तेरा विचित्र संसार है।
जगह-जगह ……….हाहाकार है।
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ओ अमन हत्यारे शर्म करो!
जातिवाद या धर्म विवाद की, यातना आखिर कब तक दोगे?
सत्तासीनता के लोलुप, क्या राष्ट्र विखण्डित कर दोगे?
ओ अमन हत्यारे शर्म करो! बर्बाद चमन को कर दोगे!
चिंगारी फैलाते हो, क्या राख वतन को कर दोगे?
हर तरफ कोहराम मचा है, परस्पर संग्राम मुखर
दोगे? ओ अमन हत्यारे शर्म करो! बर्बाद चमन को
कर दोगे!
आपस में उलझाकर, क्या शांति भंग कर दोगे?
क्या स्वार्थ में अंधे होकर, पीड़ा से दामन भर दोगे?
ओ अमन हत्यारे शर्म करो! बर्बाद चमन को कर दोगे!
घोटालों से जेब भरोगे, राष्ट्र सेवा का ढोंग रचोगे?
ओ अस्तित्वहीन दगेबाजों! दाग तिरंगा कर दोगे ! ओ
अमन हत्यारे शर्म करो! बर्बाद चमन को कर दोगे!
बंद करो ये धंधेबाजी! जनता को कब तक लूटोगे?
सरहद के रखवाले को,सम्मान भला तुम क्या दोगे?
अमन हत्यारे शर्म करो! बर्बाद चमन को कर दोगे!
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नव पीढ़ी के नवयुवक
पेट्रोल छिड़कते अपने जब, गैरों से बगावत क्या करना।
बस एक चिंगारी बाकी है, जब राख वतन को है करना।
नव पीढ़ी के नवयुवक, संग्राम जहाँ से क्या करना।
रंग बदलते गिरगिटी, खद्दरदारी का क्या कहना।
है छल से स्वदेश जला, परदेश जलाकर क्या करना।
नव पीढ़ी के नवयुवक, संग्राम जहाँ से क्या करना।
सीमा विवाद मे क्या पड़ना ।सीमा विवाद मे क्या पड़ना।
सहोदर से जब खतरा है, इल्जाम पराये क्या मढ़ना।
नव पीढ़ी के नवयुवक, संग्राम जहाँ से क्या करना।
जब पिता पुत्र पर साधे स्वार्थ, ऐसे रिश्ते का क्या करना।
क्रांति कुनबे से है करना, वैमनस्य की शंका क्या रखना।
नव पीढ़ी के नवयुवक, संग्राम जहाँ से क्या करना।
गृह युद्ध की बारी है फिर सरहद पार से क्या लड़ना।
है राष्ट्र लुटेरे अपने ही तो व्यर्थ शहादत क्या करना।
नव पीढ़ी के नवयुवक, संग्राम जहाँ से क्या करना।
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वृक्ष का संदेश
दिन रात तेरी बलायें लिया करती हूँ।
पग-पग तुम्हें छाया दिया करती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
तेरी खुशी वास्ते हर दर्द सहती हूँ।
दुश्मनों को तेरे, आत्मसात करती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
तेरे साँसों की डोर मुझसे बंधी है।
तुम्हें प्राणदायिनी हवा जो देती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
पैरो तले जमीन न खिसके, मिट्टी जकड़ कर रखती हूँ।
भूस्खलन की मार न पड़े, इसलिए ऐसा करती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
झूम-झूम कर बदल राजा को, खुश किया करती हूँ।
इस तरह बारिश का आह्वान किया करती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
अपनी दुनिया तेरी खुशियों पर न्योछावर करती हूँ।
तेरे स्वास्थ्य का भरपूर ख्याल रखती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
आज तूने ये क्या किया? मेरी दुनिया उजाड़कर हरी-भरी धरा
को बंजर बना दिया! जिससे तेरे दुनिया थी उसे स्वयं मिटा दिया! मानो अपनी खुशियों का गला दबा दिया!
मेरा संदेश सुनो मेरे लाल! धारा पुनः करो हरियाल!
गर रहना है स्वस्थ्य-खुशहाल, तो मैं ये सलाह देती हूँ।
युग-युग जियो मेरे लाल! ये दुआ करती हूँ।
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एक लड़का मनचला मिला
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
दूर से किसी हंसी लड़की का पीछा करता मिला।
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
उसकी आँखों में मुहब्बत का चेहरा मिला।
उसकी होंठों पर हँसी का फव्वारा मिला।
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
लड़की का भी मुड़-मुड़ देखता मुखड़ा मिला।
कमबख्त दोनों में प्यार का क्या गुल खिला।
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
कहीं दूर तक यही सिलसिला मिला।
अजीबोगरीब इश्क का पचड़ा मिला
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
लड़की सड़क पार करती मिली।
देखते-देखते गाड़ियों का एक कारवाँ मिला व लड़का
किनारे पर रुक कुछ क्षण निहारता मिला।
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
अब गुजरा हुआ गाड़ियों का कारवाँ मिला।
दृश्य स्पष्ट हुआ, सड़क के बीचोबीच एक बड़ा जमावड़ा
मिला। पास जाके देखा तो उसी लड़की का शव कुचला
मिला। लड़का भी दौर उसकी लाश पर सर पटक रोता
मिला। किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला
मिला
बड़ा दुखद ऐसा हादसा मिला।
सड़क व सावधानी का रिश्ता गहरा मिला।
किसी गुमनाम सड़क पर एक लड़का मनचला मिला।
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दुश्मन ऐसा नहीं देखा
चिल्मन देखा, चिल्मन में छुपा चेहरा नहीं देखा।
दोस्ती की आड़ में, दुश्मनी का पहाड़ नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
लोग यूँही मुस्कुरा देते हैं गम छुपाने को।
पर कभी उबलता हुआ, चेहरा नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
दोस्तों बड़ा ही मजेदार खेल है आँख-मिचौली का।
अपने पीठ पीछे छुपा, चेहरा नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
लोग चाँद का बखूबी तारीफ किया करते हैं।
पर उसमें लगा दाग, गहरा नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
गुलाब देखा, उसकी टहनी का काँटा नहीं देखा।
वफा देखी, बेवफाई का सन्नाटा नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
जहर कड़वा होता है, ऐसा मीठा नहीं देखा।
समझौते की आड़ में दुश्मनी का बीजारोपण नहीं देखा।
यारों दुश्मन! ऐसा नहीं देखा।
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पत्थर दिल
न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने में।
हैं रौंदे जाते, घर गैरों के बसाने में
न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने में।
लग जाते हैं चार चाँद, लोगों के आशियाने में।
कमबख्त जकड़े जाते हैं, यूँही हम दीवारों में।
न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने में।
थी खूब मुहब्बत, शाहजहाँ को भी अपनी बेगम से।
आखिर कर दिए ना जिस्म के टुकड़े मेरे, अविस्मरणीय
प्रेम निभाने में। न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने में।
नहीं छोड़ा हमें शेरशाह शूरी ने भी, जी0 टी0 सड़क बनाने में।
न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने में।
हम रहकर मूक सहते गए, जुर्म सभी जमाने के।
शर्म न आयी इंसां तुझको, बेरहम हमें बताने में।
हर निर्मम को पत्थर दिल कह, हम पर दाग लगाने में।
न जाने कितनी चोटें खायी, बेरहम जमाने मे।
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शहीदों का संदेश
हम शहीदों की टोली में आँसू न बहाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
शेरों की आँखों मे आँसू शोभा नहीं देते।
खून की होली तो हमारी फितरत है।
हमारी वीरगति पर मशाल जलाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
हो जायेंगे फौलाद भी चूर-चूर।
लाएगी रंग हौसलों की उड़ान भरना।
हमारे नक्शे कदम आगे बढ़ाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
बह जाने दो लहू जंग में।
है कुर्बानियाँ विरासत का गहना।
है हमे वतन का मान बढ़ाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
बिन पानी फसल पैदा नहीं होते।
सींचने दो धरा हम वीरों के रक्त से,
वीर-भूमि कभी बंजर नहीं करना।
रचना विजयगान का ताना-बाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
कर दो जारी फरमान कायरों को,
कभी आंखों में आंखें डाल देखे।
पीठ पीछे वार कोई वीरता नहीं होती।
हमारी शूरत्व पर ताली बजाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना।
हैं बेखौफ मौत से,अपनी शहादत का जश्न जो मानते हैं।
भारत माँ के लाल हम, कर्तव्य सरहद रखवाली करना।
जब बाँधा कफन सर पे तो फिर, मौत से है क्या डरना।
गर है स्नेह अमर वीरों से, सतत मुस्कान भेंट चढ़ाना।
हमारी शहादत पर दीवाली मनाना
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दो बलिदान
(काव्य छंद हाइकु के रूप में)
उनकी आँखें।
कुछ कहने आई।।
तरस गई।।।
जुबां खामोश।
निःशब्द प्यार यूँ ही।।
छलक गई।।।
जैसे बादल।
मौसम के बिना ही।।
बरस गई।।।
कुछ भी नहीं।
ये माँ की ममता थी।।
पुत्र खातिर।।
ये क्या हुआ।
कोख सूनी हो गई।।
राष्ट्र रक्षा मे।।
दो बलिदान।
ममता व पुत्र की।।
नमन करूँ।।।
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देश न बाँटो
काले-गोरे का भेद रहा, अब जाती धर्म का दंगा है।
देश न बाँटो अमन लुटेरों क्या यही तुम्हारा धंधा है?
तुम ठहरे सफेद-पोश, इरादे तुम्हारे काले हैं।
मंदिर-मस्जिद फसाद क्या यही तुम्हारा मुद्दा है?
देश न बाँटो अमन लुटेरों क्या यही तुम्हारा धंधा है?
भूल गए आजादी हमने, जद्दोजहद से पाई है।
एक सूत्र में बंध, अंग्रेजी सत्ता हिलायी है।
क्या हमें विखंडित करके राष्ट्र खोखला करना है?
देश न बाँटो अमन लुटेरों क्या यही तुम्हारा धंधा है?
कहते आप राष्ट्रभक्त, फिर करते क्यूँ घोटाला हो?
हमें मूर्ख बनाने का क्या यही तुम्हारा जरिया है?
देश न बाँटो अमन लुटेरों क्या यही तुम्हारा धंधा है?
‘धर्मनिरपेक्षता’ अपने वतन की, अतुलनीय विशेषता है।
क्या इसे सुलगते देख, हुआ कलेजा ठंडा है?
देश न बाँटो अमन लुटेरों क्या यही तुम्हारा धंधा है?
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कलुषित लोकतंत्र
क्या सुलगता रहेगा देश राजनीति की आग मे?
और कब तक सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
जाने कब आएगी अक्ल, यूँ ही बह जाते हम कूटनीतिक
सैलाब में। शायद आदत है हमें, बार-बार मुँह की खाने की।
और कब तक सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
प्रजातंत्र का मतलब क्या है? दंगा-फसाद, अपहरण उद्योग
हत्या या घोटाला है? हैं मूकदर्शक हो रहे आत्म-अत्याचार
का, इसीलिए तो बोलबाला है राजनीतिक भ्रष्टाचार का।
आओ जगाएँ आत्मशक्ति, जलाएं मशाल पुनर्जागरण की।
और कब तक सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
अपराधी सीना तान खड़ा है, सिर उसके राजनीतिक हाथ
जो पड़ा है। रहे उड़ा क्या खूब, धज्जियाँ कानूनी हथकंडे की।
और कब तक सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
इन्हें स्वदेश से प्यार नहीं है, ये दुश्मन है सरकार नहीं है।
हमे ही देश बचाना होगा, हम जनता हैं लाचार नहीं हैं।
हैं कड़ी हम, लोकतांत्रिक गणराज्य की। और कब तक
सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
जाति-धर्म का भेद न कर, राष्ट्रोत्थान कर जाएँ।
मानवता का परचम लहराए, राष्ट्र का मान बढ़ाये।
न बचे जगह आपसी विद्वेष की। और कब तक
सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
आओ एकता सूत्र में, एक साथ बंध जाएं।
कलुषित हुए राजनीति से, लोकतंत्र बचाये।
हमारी अखंडता ही है, पहचान देश की।
और कब तक सिंकेगी रोटी स्वदेशी लुटेरे की?
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शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का
चहुँ ओर जल का घेरा था, ना दूर-दूर कोई हमारा था।
उफनती नदियों ने भी घरों में डाला डेरा था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का,बेबस का बना सहारा था।
थे भूख के मारे तड़प रहे, ऐसा प्रकृति ने मारा थपेड़ा था।
बचा न कोई बसेरा था, छाया आंखों तले अंधेरा था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
था निगल रहा काल आपने आगोश में।
पड़ा मौत का पहरा था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
जन-जीवन सामान्य हुआ जब, भीषण भूकंप पधारा था।
विध्वंशकारी प्रकोप था जिसका, मातम ने रोष जताया था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
भूस्खलन ने भी कहाँ छोड़ा, चट्टानों ने दबाया था।
हृदय विदारक प्रलय से जब, जन मानस थर्राया था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
सन चौरासी-गैस त्रासदी का दंश हमने झेला था।
न थी कोई तकनीक अरु ना कोई ऐसा शेरा था।
२०११-जापान सुनामी व २०१५-नेपाल भूकंप भी भीषण कहर उकेड़ा था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
जहाँ भी देखा एक हीं चेहरा, रक्षक बनकर उभरा था।
मौत से खेलकर मानवता का लाया नया सबेरा था।
शुक्र है राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का, बेबस का बना सहारा था।
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मानसिक आपदा
ऐसी आपदा ।
दिल दिए दहला ।।
चित्र मार्मिक ।।।
एक इंसान ।
पाया मेरे गली में ।।
था विचलित ।।।
पड़ा बेसुध ।
न गम न खुशी में ।।
शून्य लक्षित ।।।
था भूखा-प्यासा ।
बेखबर प्रतीत ।।
दृश्य दैनिक।।।
नंग-धरंग ।
गुजारता वो रैन ।।
चौके पथिक ।।।
मिलते दान ।
रहे भौंचक मूक ।।
मन भ्रमित ।।।
गुजरे माह ।
राज्य न सुनी आह ।।
पड़ा वहीं कुंठित ।।।
हैं ऐसे कई ।
बिछड़े अपनों से ।।
पथ-भ्रमित ।।।
दिमागी रोग ।
जीवन मृतप्राय ।।
प्राण जिल्लत।।।
आवारा कुत्ते ।
हैं होते संरक्षित ।।
प्रणाली नीक ।।।
ये तो इंसान ।
सूबे करे इलाज ।।
होवें रक्षित ।।।
ये भी आपदा ।
हैं अपने ही लोग ।।
न हों आहत ।।।
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अटैची में अटका प्राण
है उम्र संतावन की ।
हूँ सेवानिवृत्त फौजी जवान।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
मैदान में बहाये पसीने।
हुए युद्ध में लहू-लुहान।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
न सोने को गद्दे मिले।
न मिले कभी आराम।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
गिनी-गिनाई छुट्टियाँ मिली।
रहे सरहद पर सीना तान।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
कहीं जानी दुश्मन बने नक्सल।
उतनी ही आतंकवाद ।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
चंदन फौजी ने ग्रेनेड भी खाए।
फिर भी न निकली जान ।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
जान पे खेलकर पाएँ हमने, जीवन में सम्मान।
अनुशासन में ही गुजर गए सारी उम्र तमाम।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
बड़े जतन से जमा किये थे, पैसे दुई-एक लाख।
रेलगाड़ी से ही उड़ा गए, थे चोर बड़े महान।
दारोगा जी एक रिपोर्ट लिख लो, अटैची में अटका प्राण।
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किसान
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
हमें धूप से वैर नहीं, मौसमी त्रासदायें संग खेले हैं।
हैं श्रमवीर उत्पादक, देते सबको निवाले हैं।
धरा स्वेद से करते सिंचित, पड़े सलिल के लाले हैं।
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
हो रहे शुष्क नलकूप हमारे, नहरें भी पड़ गई खाली है।
पेट्रोल-डीजल महँगे हो रहे अतिशय, शोणित जलाने वाले हैं।
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
बाजारों में आग लगी है, नौकरोशाहों की तनख्वाह बढ़ी है।
मंहगाई की प्रबल मार, हम नीरव झेलने वाले हैं।
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
आंखें खोल देखे! कितनी समस्याएँ पाले हैं।
इस धरती का उद्धार करे वो, जो सरकार चलाने वाले हैं।
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
धरती बंजर हो जायेगी, जल संचय की बारी है।
नहीं तो भूखे मरना होगा, कितने भी पैसे वाले हैं।
चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
उन्नत्ति का द्वार बचा लो, जीवन का संहार बचा लो।
सुलझा लो किसानी समस्याएँ, मत भूलो हम भी सरकार
सरकार बनाने वाले हैं। चीर कलेजा धरती का हम अन्न उगाने वाले हैं।
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भूकंप व राष्ट्रीय आपदा मोचन बल
जब-जब धरती होवे कंपित, मनुवास विस्थापित।
ध्वस्त ढांचा तले फांसे लोग, तो होवे कछु विखंडित।
भये प्राकृति निर्मोही, करे काल रूप जब धृत।
पड़े संकट में प्राण, लेवे आखिरी श्वास हृदय-स्पंदित।
तीतर-वितर पड़े धरातल, होत लहू विरंजित।
पल ऐसे दर्द-कराह से, धरती-अम्बर गुंजित।
सूनी गोद,सुनी माँग,कलाई सूनी; करे जलजला व्यथित।
निःसहाय, सहमे हुए, निराश आंखे आखिर जो आपदा पीड़ित।
घटना अवगत आपदा मोचक की प्रतिक्रिया बड़ी उचित।
राहत-बचाव कार्य का देते अंजाम त्वरित।
रखते पास बचाव उपकरण, है जो भी आधुनिक।
देते ढूंढ-ढूंढ कर राहत, करते खतरों से विमोचित।
हैं प्राथमिक उपचार में भी दक्ष, अव्वल दर्जे प्रशिक्षित।
इनके अमूल्य योगदान प्रलय में, बचाते अनेकों जीवित।
हैं राष्ट्रीय आपदा मोचन बल के रक्षक बड़े समर्पित।
प्राकृतिक चाहे मानव निर्मित हर विपदा से करे सुरक्षित।
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आज की प्रशासन
आम जनता की क्या मजाल जो प्रशासन का मजाक उड़ाए।
आम जनता को एक रुपया के लिए तरसनी पड़ती है लेकिन
प्रशासन के आगे नोटों की ढेर लगी रहती है।
यूँ डंडे घुमाकर नोटों की बौछार कर देती हैं।
पैसे लेकर तो अपराधी को भी फरार कर देती है।
आम जनता की क्या मजाल जो प्रशासन का मजाक उड़ाए।
आज ईमानदार लोग कारागार मे चले जाते हैं। पैसे देकर तो
खूनी भी सुरक्षित कार मे चले जाते हैं।
आम जनता की क्या मजाल जो प्रशासन का मजाक उड़ाए।
कहा जाता है उनके ऊपर राजनीतिक दबाव है।
शायद यही तो भ्रष्टाचार का प्रभाव है।
आम जनता की क्या मजाल जो प्रशासन का मजाक उड़ाए।
आज उनके ऊपर घूसखोरी का बवाल है। पर ऐसी बात नहीं
है भाई, क्यूँकि वे तो अपराधियों के दलाल हैं।
आम जनता की क्या मजाल जो प्रशासन का मजाक उड़ाए।
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लौटा दो हरिताभ
हमे कैद से रिहा करो ओ मनुपुत्र सरकार।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
लगता तेरा चिड़ियाखाना जैसे कारागार।
हमे यहाँ से मुक्त करो करते यही गुहार।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
चारदीवारी कैसा होता कोई पूछे मेरा हाल।
दिखते नहीं पहाड़-जंगल परिकल्पना का संसार।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
होते निर्मित अट्टालिकाएँ, बिछे सड़कों के जाल।
हो रहे आशय हमारे जंगल-झाड़ उजाड़।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
है घुटन-भरी अब जिंदगी, रहे नहीं खुशहाल।
हम चौपाया खुली हवा मे नहीं ले पा रहे साँस।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
वैश्विक उष्णता आरण्य उगाने का करता आगाज।
वरना बढ़ता ताप धरा को कर देगा बेताब।
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ, बने प्रदूषण मुक्त संसार।
झुलस रहे इस जीवन का कर डालो उद्धार
वीरान पड़ा है विपिन हमारा लौटा दो हरिताभ।
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सरहद पर होली
सजनी तेरी खातिर लाया तीन रंग की चोली।
हँसते-हँसते खेले हमने रक्त वर्ण की होली।
जोगीरा सा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा रा।
एक रंग को समझ ले है ये शूर साजन रंगोली।
गोली आगे सीना रख दुश्मन की बंद की बोली।
जोगीरा सा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा रा।
दूजा सच्चा कर्तव्य हमारा, लगा दी जान की बोली।
चंदन आखिर बाज न आये, खेले गोली से धूरखेली।
जोगीरा सा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा रा।
तीजा रंग से भारत माँ की आन पे दी कुर्बानी।
राष्ट्रध्वज का मान बढ़ाया, कर सरहद रखवाली।
जोगीरा सा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा रा।
सजनी तुम भी खूब मनाओ मजे मे जमकर होली।
चंदन सजन पर करो गर्व, टपके ना अश्रु थोड़ी।
जोगीरा सा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा रा।
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नारी की पुकार
हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
है घेर रही माया कलयुगी। जोगी बन रहा है भोगी।
हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
द्वापर में था कंस राज, राज बचाने आगे थे। द्रौपदी के
चिर-हरण से लाज बचाने आये थे।
हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
आज अपराध का हो रहा गुणगान। इज्जत लूटी जा रही
सरेआम।हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
तड़प रही हूँ, चीख रही हूँ, लूटी जा रही हूँ खुलेआम।
ओ देव हमारे कहाँ छुपे हो, अबला की सुनले पुकार!
हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
है अंधा कानून हमारा, इसे राह दिखा दे आज!
हो रही विकृत संस्कृति विकार मिटाने आओ आज!
ओ देव हमारे अवतृत होकर संस्कार बचाने आओ आज!
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तपो तुम ही
तपो तुम ही।
तुम्ही देश के लाल।
तुम्ही संभाल।
शत्रु निज भी।
देते दर्द पहाड़।
करे बेहाल।
हो राष्ट्र नाज।
तुम्हें दुआ अपार।
हिय विशाल ।
थको तुम ही।
न लो कभी विराम।
झुके न भाल।
हो गर्व तुम।
रखते शीश थाल।
है किसे ख्याल।
स्वार्थी जहान।
करे तू बलिदान।
पूछा न हाल।
तपो तुम ही।
तुम्ही देश के लाल।
तुम्ही संभाल।
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कवि:- चंदन कुमार
आत्मज वेद प्रकाश शर्मा, छोटी कोपा,
नौबतपुर,पटना(बिहार) 801109
दूरभाष-829450150
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