मुन्ना तीसरी कक्षा में है। पी.डी.पी.पब्लिक स्कूल में उसके दाखिले के लगभग पाँच महीने हो गए। सीधे तीसरी कक्षा में ही दाखिला हुआ था। इसके पहले ...
मुन्ना तीसरी कक्षा में है। पी.डी.पी.पब्लिक स्कूल में उसके दाखिले के लगभग पाँच महीने हो गए। सीधे तीसरी कक्षा में ही दाखिला हुआ था। इसके पहले वह किसी हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ता था। उसके घरवालों को पूरा विश्वास था कि पी.डी.पी.स्कूल में दाखिले के बाद मुन्ना की पढाई-लिखाई सुधर जाएगी। उसके माता-पिता बहुत खुश थे। इस ज़माने में बच्चों को सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ाना उनके जीवन से खिलवाड़ करना है। बिना अंग्रेजी के देश-परदेस कहीं भी कोई गुजारा नहीं। पी.डी.पी.स्कूल इस कस्बाई शहर का सबसे नामी-गिरामी पब्लिक स्कूल है| इसमें बड़ी मुश्किल से दाखिला मिलता है| मुन्ना के फौजी पिता मन ही मन उसके भविष्य को लेकर आश्वस्त हो रहे थे। गाँव से पत्नी और बेटे को शहर ले आते हुए उनके मन में कई तरह की बातें उमड़-घुमड़ रही थीं। पत्नी की जिद थी कि अब वह अकेले गाँव में नहीं रहेगी। जरूरत का कुछ भी तो नहीं मिल पाता वहाँ। मामूली सर्दी – बुखार के लिए भी गाँव से पाँच किलोमीटर दूर के चट्टी-बाजार में जाना पड़ता है| गाँव पर किसी चीज की कोई जरूरत पड़े तो कोई सुनता कहाँ है। इसलिए अंततः यहीं निर्णय हुआ कि आरा में एक दो कमरे का डेरा किराये पर लिया जाय। अब तक सब कुछ योजनानुरूप ही हुआ था। मुन्ना की माँ अपने पति से बहुत खुश थी। उसने एक बड़े मोर्चे को सँभाल लिया हो जैसे। सचमुच , एक फौजी की पत्नी के लिए घर-परिवार को सँभालने की जिम्मेवारी किसी मोर्चे से कम थोड़े होती है।
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मिसेज चिंकी मुन्ना की क्लास टीचर हैं। यह संयोग ही है कि जितने दिन से मुन्ना स्कूल आ रहा है , चिंकी मैडम भी लगभग उतने ही दिनों से इस स्कूल में पढ़ाने आ रही हैं| दोनों के लिए पी.डी.पी.पब्लिक स्कूल नया-नया है। मुन्ना अभी भी क्लास रूम में अपने को अटपटा ही महसूस कर रहा है। यहाँ की विधि-व्यवस्था से लगभग दोनों अपरिचित। फिर भी मुन्ना की अपेक्षा चिंकी मैडम खुद को सहज महसूस कर रही थी। यहाँ मिसेज रश्मि-रेखा और जयश्री मैडम उनकी फ्रेंड बन चुकी थी। रश्मि-रेखा मैडम तो अब उनकी बेस्ट फ्रेंड हो गई थीं। परन्तु क्लास रूम में अब तक मुन्ना का कोई फ्रेंड ना हो सका। जिस लड़के के साथ मुन्ना बैठता था उसकी हरकतें मुन्ना को आकर्षित कम, परेशान ज्यादा कर रहीं थीं। पचास बच्चों में से उसे ऐसा कोई नहीं मिला जो कहे - मुन्ना , चलो खेलते हैं पर कंप्लेन के लिए सब के सब उठ खड़े होते हैं – “ मैम ,मुन्ना ने आज फिर लंच गिरा दिया।” “मैम, देखिये मुन्ना की नाक बह रही है।” चिंकी मैडम ये शिकायतें सुन-सुन के तंग हो जाती हैं। गुस्से में ‘ह्वाट्स- एप’ बंद करती हैं और मुन्ना से मुखातिब होती हैं- “क्यों बे डर्टी ब्वाय ?तू सुधरेगा या नहीं ?” वैसे उनकी क्लास की शुरुआत मुन्ना की कान खिंचाई से ही होती है। उनकी इस शुरुआत से पूरा क्लास-रूम अचानक खिलखिला उठता। वे एक बार अपने-आप को ऊपर से नीचे तक वैसे देखतीं कि मानो इतना करने के बाद उनका कुछ बिगड़ तो न गया। जैसे लिप्सटिक , जैसे गले में लटक रहा सोने का लॉकेट , जैसे नेल-पॉलिस। उनके लिए उनका सजा-संवरा व्यक्तित्व सबों से ख़ास है। मुन्ना कुछ बोल न पाता। उसके लिए चिंकी मैडम भी कुछ ख़ास न थीं। भले देखने में कुछ-कुछ मम्मी जैसी ही लगतीं लेकिन मम्मी जैसा उनमें कुछ भी न लगता।
उस दिन सुबह से ही रह-रह के बारिश हो रही थी। चिंकी मैडम को स्कूल जाने का तनिक भी मन न था। पर न जाएँ तो एक दिन का वेतन मुफ्त में ही कट जाएगा। ऐसा सोच कर वह स्कूल के लिए निकल पड़ी थीं। उन्हें बारिश भले ही अच्छी न लगे पर बच्चों को तो बारिश में बहुत मजा आता है। मुन्ना को भी बारिश खूब भाती है। वह भी स्कूल आया था। चलते-चलते उसने अपनी रबरवाली नई गेंद बैग में डाल ली। सोच लिया था कि वह अपनी गेंद किसी को न दिखाएगा। हरिओम , जय , आतिश किसी को भी नहीं। वह खुद खेलेगा।
चिंकी मैडम को पता था कि इस बारिश में भी स्टुडेंटस का स्ट्रेंथ कम ना होगा। “ हुह्ह.. बच्चों को गोद में टाँग-टाँग के बसों में बैठा देते हैं लोग। उनका क्या , भर दिन चैन से अपना काम करेंगे और हम लोग बच्चे सँभालेंगें।” यहीं सब सोचते हुए रोज की तरह आज भी क्लास की ओर अनमने ढंग से निकल चली थीं। आज भी क्लासरूम की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए रस्ते में उनकी बेस्ट-फ्रेंड मिसेज रश्मी-रेखा मिल गईं। उनको कैसे अनदेखा करती। इधर बच्चे क्लास रूम में आ चुके थे। चिंकी मैडम के हिदायत के अनुरूप रोज की तरह आतिश और जयश्री क्लास कंट्रोल करने में जुटे हुए थे। चिंकी मैडम ने इन दोनों को मॉनिटर बनाया है। मुन्ना के साथ बैठने वाला हर्षित आज नहीं आया है। मुन्ना को उसका न आना अच्छा न लगा। आतिश ने चॉक सँभाल रखा था कि वह शोर करने वालों का नाम लिखेगा। जयश्री खड़ा होने वालों और इधर-इधर घूमनेवालों को अपनी सीट पर बैठ जाने की हिदायतें दे रही थी।
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“मैम आ रही हैं।” क्लास रूम से अक्सर बाहर की ओर झाँकनेवाली कोमल बोली। सबने क्लास- रूम से बाहर की ओर देखा। कोमल हँस पड़ी –“झूठा झूठा दिया , उल्लू बना दिया।” मुन्ना को भी हँसी आ गई। आतिश ने बोर्ड पर पहला नाम लिखा ‘मुन्ना’| दूसरा नाम लिखा कोमल का। बावजूद इसके क्लास- रूम में शोरगुल की कमी न थी। मुन्ना बिलकुल चुप था। कुछ डरा-डरा –सा , लेकिन कोमल को कोई डर न था। उसे पता था कि चिंकी मैडम उसे खुछ न बोलेंगी। उसके पापा इसी स्कूल में सीनीयर टीचर थे। चिंकी मैडम को उनसे अक्सर जरूरत पड़ा करती थी। वह तो कोमल की प्रशंसा करते न थकती थीं। जयश्री ने कहा , “ जिसका-जिसका नाम लिखा है , खड़ा हो जाय।” कोमल खड़ा न हुई। मुन्ना को भी समझ में न आया कि वह क्यों खड़ा हो जाय। वह भी अपनी जगह बैठा रहा। आतिश को उसका बैठे रहना ठीक न लगा। उसने उसका हाथ पकड़ के उठाना शुरू कर दिया। मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया। तभी आतिश जोर से चीख पड़ा “उफ्ह्ह.आ ..आह्ह.., मुन्ना ने मुझे मार दिया रे..|” वह जोर-जोर से रोने लगा। मुन्ना कुछ समझ न पा रहा था कि उसकी पेंसिल आतिश को कैसे चुभ गई ? उसने तो बस अपना हाथ छुड़ाया था। शायद तभी उसकी गाल पर पेंसिल चुभ गई। कुछ बच्चे क्लास से बाहर दौड़े चिंकी मैडम को बुलाने। वो अभी तक अपनी बेस्ट-फ्रेंड रश्मी-रेखा के क्लास-रूम के पास ही खड़ी बातों में मशगूल थीं।
चिंकी मैडम बच्चों का शोर सुन अपने क्लास-रूम की ओर झटक चलीं। मन ही मन सोचते हुए कि कहीं आज भी मेरे लिए प्रिंसिपल मैडम का बुलावा न आ जाय। हूंह.. देखने में छोटे हैं पर नाक में दम कर के रख देते हैं। वे बड़बड़ाए जा रही थीं। कोमल और जयश्री ने दोनों ओर से आतिश को पकड़ रखा था। उसके गाल पर दिख रही हल्की लाल खरोंच सारे बच्चों के लिए कौतूहल का विषय था। पर चिंकी मैडम के लिए ...उफ्फ्फ्फ़ ..| बच्चे की गाल पर की खरोंच तो मामूली ही थी। पर उन्हें पता था कि यहीं मामूली-सी दिखने वाली खरोंच उन्हें प्रिंसिपल और पेरेंट्स के कटघरे में खड़ा करने के लिए काफ़ी है। प्रिंसिपल तक बात जाय इससे पहले उन्होंने सोचा कि क्यों न खुद मुन्ना और आतिश को प्रिंसिपल के पास पकड़ ले जाएँ ! उन्होंने ऐसा ही किया। कुछ ही देर में मुन्ना और आतिश प्रिंसिपल चेंबर में थे। न मुन्ना बोल रहा था न आतिश। चिंकी मैडम खुद प्रिंसिपल से मुखातिब थीं, “ मैम, मैं तो तंग आ गई हूँ इस मुन्ना से। समझ में नहीं आता क्या करूँ ! न ठीक से क्लास-वर्क करता है न होम-वर्क। कभी किसी को पेंसिल चुभो देता है , कभी किसी की बुक फाड़ देता है। इसके बैड-हैविट्स से सारे बच्चे परेशान हो जाते हैं। कल ही तो इसने जयश्री के ऊपर थूक दिया था। जस्ट लाइक मेंटल बिहैब मैम !” प्रिंसिपल ने सबकुछ सुना। देखा भी कि मिसेज चिंकी पसीने-पसीने हुई जा रहीं हैं। उन्होंने समझाया ,”नो प्राब्लम मैम ! प्लीज कुल डाउन ! आप उसकी डायरी में फिर से एक कंप्लेन लिखिए ! और हाँ ,बच्चों के बीच कभी किसी को मेंटल मत बोलिए !.. बाकी तो मैं हूँ ही सँभालने के लिए। उसे लेकर क्लर्क-ऑफिस में जाइए , फस्ट-ऐड करवा दीजिए !” उन्होंने बच्चों को एक-एक टॉफी दी और अच्छे बच्चे बनने की हिदायतें भी।
चिंकी मैडम ने राहत की साँस ली और दोनों बच्चों को लिए प्रिंसिपल चेंबर से बाहर निकली। बच्चों पर उन्हें अब भी गुस्सा आ रहा था। बड़बड़ाए जा रहीं थीं ,”न जाने क्यों ऐसे मेंटल बच्चों का एड्मिसन ले लेते हैं लोग।” तभी त्रिपाठी मैडम ने उनको टोका ,”क्या हुआ मैम ? मुन्ना ने फिर कुछ किया क्या ?” उन्हें टालती हुई चिंकी मैडम ने फिर से एकबार अपनी विवशता दुहराई ,”हाँ जी , ये तो बिलकुल मेंटल है मैम ! इसे तो मेरे पल्ले ही पड़ना था। इस बार जो कुछ किया तो इसका सेक्सन चेंज करके रहूँगी।” उनकी बातों को त्रिपाठी मैडम ने ध्यान नहीं दिया। आतिश और मुन्ना ने भी ध्यान नहीं दिया । प्रिंसिपल मैडम के दिए चॉकलेट दोनों खाए जा रहे थे। किसने किसे मारा था देखने से कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था।
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संपर्क : द्वारा , चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह , बजाज शो रूम की गली , बजाज वर्क-शॉप के पास , कतीरा , आरा- 802301 ,बिहार। ई-मेल –singhsuman.ara@gmail.com
परिचय : जन्म : 23 /01/1972
बक्सर जिले के भटौली गाँव में
रचनाएँ : हंस , वागर्थ , वर्तमान साहित्य, युद्धरत्त आम आदमी , समकालीन जनमत , लोक गंगा , अनहद ,छपते-छपते , जनसत्ता साहित्य विशेषांक ,जनपथ , प्रसंग , ज्योत्स्ना , पाठ , समकालीन तीसरी दुनिया , इसबार , अमिधा , दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर , दैनिक जागरण , आर्यावर्त , समकालीन विश्व भोजपुरी सम्मेलन , पाती , निर्भीक संदेश , युवा संदेश आदि पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी तथा भोजपुरी की कहानियाँ, कविताएँ, समीक्षा , आलेख आदि प्रकाशित।
संकलन : ‘महज़ बिंब भर मैं’ बोधि प्रकाशन से हिंदी का पहला काव्य संकलन प्रकाशित।
प्रासंगिक कहानी । उम्दा लेखन शैली !
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